मुंडे के बाद कौन?
21-Jun-2014 05:52 AM 1234941


महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा अचानक बदल गई। सड़क दुर्घटना में गोपीनाथ मुंडे के दुखद निधन के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि मुंडे के बाद भाजपा के पास महाराष्ट्र में कौन सा चेहरा है? एक सहज स्वाभाविक उत्तर नितिन गडकरी हो सकते हैं। किंतु नितिन गडकरी महाराष्ट्र में शिवसेना को स्वीकार्य नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त जब गडकरी ने राज ठाकरे से निकटता बढ़ाई थी उस वक्त उद्धव ठाकरे ने गडकरी के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था और हालात इतने बिगड़ गये थे कि राजीव प्रताप रूड़ी को महाराष्ट्र भेजकर केंद्रीय नेतृत्व में इस टकराव को टाला था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रारंभ से ही नितिन गडकरी को महाराष्ट्र में प्रमोट करता रहा है। किंतु उस समय जब गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, बाला साहब ठाकरे जीवित थे इसलिये भाजपा और शिवसेना के संबंधों में मधुरता बनी रही। लेकिन ठाकरे के जाने के बाद गडकरी ने भरसक कोशिश की कि महाराष्ट्र में भाजपा अपने दम पर खड़ी हो जाये और यदि थोड़ा बहुत सहयोग लेना पड़े तो एमएनएस जैसी पार्टियों से सहयोग लेकर भाजपा अपना अलग मुकाम बना ले। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का भले ही यह एजेंडा नहीं था लेकिन महाराष्ट्र में संघ भाजपा को शिवसेना से ज्यादा मजबूत होते देखना चाहता था। शिवसेना इस हकीकत से वाकिफ थी। इसलिये उसने पहले प्रमोद महाजन और बाद में गोपीनाथ मुंडे को ज्यादा तरजीह दी। इसका असर यह हुआ कि संघ के नापसंद करने के बावजूद महाजन और मुंडे दोनों नेता शिवसेना तथा भाजपा के बीच की कड़ी बन गये और महाराष्ट्र में नेतृत्व की धुरी भी बने रहे। इन दोनों की जोड़ी का प्रभाव इतना था कि महाराष्ट्र में कोई भी बड़ा नेता नहीं उभर सका।
नितिन गडकरी को जब संघ ने अचानक भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया उस वक्त गडकरी महाराष्ट्र से एक बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आये। किंतु प्रमोद महाजन की मृत्यु के बाद एकछत्र कमान संभालने वाले गोपीनाथ मुंडे उस समय तक महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा का चेहरा बन चुके थे और उनके बगैर भाजपा की कल्पना महाराष्ट्र में असंभव थी। इसी कारण संघ की तमाम असहमतियों के बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मुंडे का प्रभुत्व खत्म करने का प्रयास नहीं किया। प्रमोद महाजन की तरह गडकरी को भी भाजपा ने केंद्र तक ही सीमित कर दिया। इस प्रकार मुंडे महाराष्ट्र के ऐसे नेता बन गये जिन्हें महाराष्ट्र के कोने-कोने में लोग जानते थे। वे बंजारा समुदाय से थे लेकिन उनकी राजनीति में ज्यादा स्थायित्व और गंभीरता थी। जिस कारण भाजपा का जनाधार इस राज्य में कभी कम नहीं हुआ। यहां तक कि शिवसेना के विभाजन का भी असर मुंडे ने भाजपा पर नहीं पडऩे दिया। कालांतर में जब भाजपा के नेतृत्व में गठबंधन सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई तो यह कहा जाने लगा कि मुंडे ही महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। किंतु भाजपा द्वारा मुंडे को मुख्यमंत्री पद के लिये प्रोजेक्ट करने की नीति शिवसेना को नहीं भा रही थी। शिवसेना के नेता आवाज उठाने लगे थे कि भाजपा केंद्र की सत्ता संभाल रही है इसीलिये राज्य में मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना का सहज और स्वाभाविक अधिकार बनता है। इस खींचतान का फायदा उठाने की कोशिश गडकरी भी कर सकते हैं। लेकिन अब विधानसभा चुनाव के बाद संभवत: मुख्यमंत्री पद को लेकर इतनी कश्मकश नहीं होगी। खासकर भाजपा द्वारा गडकरी को आगे लाना उतना आसान नहीं होगा क्योंकि भाजपा अच्छी तरह जानती है कि गडकरी को प्रोजेक्ट किया गया तो गठबंधन टूट जायेगा।
फिलहाल कोई बड़ा नेता भी भाजपा के पास नहीं है। केंद्र में बहुमत के बावजूद भाजपा नहीं चाहती कि महाराष्ट्र में शिवसेना उसका साथ छोड़े क्योंकि भाजपा की योजना केंद्रीय सत्ता पर लंबे समय तक टिके रहने की है। ये योजना तभी फलीभूत हो सकती है जब उसके सहयोगी उसके साथ जुड़े रहें। यद्यपि लोकसभा चुनाव में जो भी जीत मिली वह पूर्णत: मोदी लहर का ही प्रभाव था। किंतु शिवसेना को यह मुगालता हो गया कि यह जीत उसकी अपनी है। इसीलिये उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम छेड़ दी गई थी। कई जगह पोस्टर भी लगाये गये थे।  मुंडे के देहांत के बाद शिवसेना यह मान रही है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर अब भाजपा किसी अन्य नेता की दावेदारी प्रस्तुत नहीं करेगी।

निरूपम का अनुपम बयान

अपने बयानों के लिये विख्यात कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने कहा है कि यदि नरेंद्र मोदी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते तो वे भी पराजित हो जाते। निरूपम का यह बयान इस बात की पुष्टि कर रहा है कि पराजय के एक माह बाद भी कांग्रेस में हालात सुधरे नहीं हैंं। यदि कांग्रेस इसी तरह नष्ट होती रही तो महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के समय शून्य हो जायेगी। निरूपम ही नहीं बल्कि और नेता महाराष्ट्र में कांग्रेस की दुरावस्था को लेकर टिप्पणी कर रहे हैं पर उनके पास कोई समाधान नहीं है। जहां तक एनसीपी का प्रश्न है उसने घोषणा कर दी है कि हालात कितने भी खराब क्यों न हों एनसीपी किसी भी हालत में कांग्रेस से नाता नहीं तोड़ेगी। इसका अर्थ यह है कि मजबूरी दोनों पार्टियों को जोड़े रखेगी।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^