20-Jun-2014 04:12 AM
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अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जब ऑपरेटर ब्लू स्टार की बरसी पर तलवारें और कृपाण चली तो पंजाब के आतंकवाद की दुखद यादें ताजा हो गईं। शिरोमणि अकाली दल खलिस्तान बनाये जाने की वकालत करता है और स्वर्ण मंदिर में भी उस दिन खलिस्तान समर्थक नारे लगे। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी इस विवाद में एक तरह से मौन ही साधे रखा।
यह तो विवाद का एक छोटा सा हिस्सा है। लेकिन इस ज्वालामुखी के भीतर जो लावा खदबदा रहा है वह भारत की अखंडता को 1982-83 के दिनों की तरह चुनौती दे सकता है जब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को निकालने के लिये मजबूरी में इंदिरा गांधी को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी। आज भी स्थिति कुछ वैसी ही है। खासकर विदेशों में रहने वाले कुछ अलगाववादी तत्व खलिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिये हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। जैसे लॉस एंजिल्स में भिंडरावाले की इमेज प्रिंट किये टीशर्ट 16 डॉलर में बिका करते थे लेकिन अब लुधियाना में 200 रुपये में ये उपलब्ध हैं। 50 रुपये में भिंडरावाले का पोस्टर खरीदा जा सकता है। ये पोस्टर खरीदने वाले बड़ी तादाद में हैं और यही चिंता का विषय है। नशे में डूबा पंजाब कहीं आतंकवाद की चपेट में न आ जाये? क्योंकि नशा और आतंकवाद साथ-साथ चलते हैं। अफगानिस्तान में आतंकवाद को पनपने का मौका नशे के अवैध व्यापार ने दिया। आतंकवाद के लिये नशे का पैसा मुफीद होता है।
यह चिंता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। सिखों के एक वर्ग के मन में ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर नये तरह की नफरत पैदा की जा रही है ताकि खलिस्तान आंदोलन को हवा दी जा सके। सीमा पार से पाकिस्तान में बैठे कुछ लोग इसके लिये भरसक प्रयासरत हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने जीर्ण-शीर्ण पड़े गुरुद्वारों के जीर्णोद्धार पर बेतहाशा खर्च किया। इसका मकसद सिख समुदाय को खुश करके भारत में अलगाव को बढ़ावा देना है। बताया जाता है कि भारत से जाने वाले सिखों को हिंदुओं की अपेक्षा विशेष तरजीह मिलना और उन्हें नई सुविधायें प्रदान करना भी पाकिस्तान की इसी कूटनीति का हिस्सा है। ऑपरेशन ब्लू स्टार को भारत विरोधी भावनायें भड़काने के लिये इस्तेमाल करना पाकिस्तान की सियायत बखूबी जानती है। इसी कारण पंजाब में इस आंदोलन के पुनर्जीवित होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों से पैसा इक_ा किया जा रहा है। पंजाब की बेरोजगारी और अपेक्षाकृत बेहतर जीवन जीने की वहां के निवासियों की चाहत कहीं न कहीं असंतोष को भी पैदा करती है। जिस तरह पंजाब के निवासियों ने भाजपा और कांग्रेस को दरकिनार कर आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया है उससे भी कहीं न कहीं यह प्रतीत होता है कि पंजाब बदल रहा है। कहीं यह बदलाव भारत की लिये चुनौती न बन जाये।
लंदन में जब सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ पर हमला हुआ था उस वक्त भी कहीं न कहीं यह लगा कि जनरल बराड़ पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने 1984 में आप्रेशन ब्लूस्टार के दौरान अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश का नेतृत्व किया था। सूत्रों के मुताबिक कई तत्व पंजाब में फिर से खालिस्तानी आंदोलन को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। पैसे भेज कर यहां युवाओं को फिर गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। कई आतंकवादी जिन्हें सजा दी गई और जो यहां से भाग गए थे उनका पंजाब में पुनर्वास किया जा रहा है। उग्रवादियों के दबाव में मुख्यमंत्री ने खुद पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआणा के लिए माफी याचिका दाखिल की जबकि राजोआणा ने इसकी कोई मांग नहीं की थी। एक आतंकी जो एक पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने बहुत बहादुरी से आतंकवाद का मुकाबला किया था की हत्या में संलिप्त था, का पक्ष लेकर बादल पंजाब और उसके बाहर क्या यहसंदेश दे रहे थे कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की हत्या करने में कोई बुराई नहीं? फिर उन्होंने ब्लूस्टार में मारे गए उग्रवादियों की याद में स्वर्ण मंदिर में यादगार बनाने की इजाजत दे दी। जो यादगार 28 वर्ष नहीं बनी उसे अब क्यों बनाया जा रहा है जबकि यहां मामला बिल्कुल ठंडा है और उग्रवादियों के सिवाए किसी और की यह मांग नहीं थी? ऐसी कोई यादगार केवल आतंकवादियों को गौरवान्वित करेगी और उन सभी के संबंधियों के जख्मों पर नमक छिड़केगी जो उस काले दौर में आतंकवाद का शिकार हुए थे। पंजाब सरकार को आत्म मंथन करना चाहिए कि वह पुराने जख्मों पर मरहम लगाना चाहते हैं या इन जख्मों को हरा रखना चाहते हैं।