देखी और याद रखी जाने वाली फिल्म
20-Jun-2014 05:10 AM 1234813


फिल्मिस्तान एक नए तरह की फिल्म है। कॉमेडी की अपनी सीमाओं के साथ भी यह दर्शकों का पूरा मनोरंजन करती है। पिछले दो-एक साल में बॉलीवुड के कई छोटे-बड़े फिल्मकारों ने हिंदी सिनेमा के सौ बरस होने को अपने-अपने ढंग से महिमामंडित किया है। उनके बीच फिल्मिस्तानÓ सबसे मौलिक और ईमानदार प्रयास कहा जा सकता है। हालांकि इस कॉमेडी की अपनी सीमाएं हैं। इसके बावजूद यह फिल्म देखने के योग्य है।  कई अंतरराष्ट्रीय समारोहों में इसे पुरस्कृत किया गया है और इसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है।
फिल्म का नायक सनी अरोरा (शारिब हाशमी) देश के उन लाखों-करोड़ों फिल्मी दीवानों का प्रतिनिधित्व करता है, जो किसी न किसी दिन पर्दे पर चमकने के ख्वाब देखते रहते हैं। मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियां भी उनके सपनों की चमक को कम नहीं कर पाती। फिल्म में सनी एक मिमिक्री आर्टिस्ट है और बड़ा हीरो बनना चाहता है परंतु उसे मौका नहीं मिलता। संघर्ष के दिनों में एक बार उसे अमेरिकी यूनिट के साथ सीमा पर करने का मौका मिलता है।  सीमा पार के कट्टरपंथी एक साजिश के तहत अमेरिकियों का अपहरण करना चाहते हैं मगर उनके हाथ लगता है सनी। पाकिस्तान के सीमावर्ती गांव में कैद के बावजूद सनी का सिनेमा के प्रति जुनून कम नहीं होता और जब कट्टरपंथी फिरौती के लिए उसका वीडियो बनाते हैं तो वह खुद उसे डायरेक्ट करता है। फिल्म में ऐसे कई और रोचक प्रसंग हैं। जिनका संबंध लोकप्रिय फिल्मों और सितारों से  डॉक्युमेंट्री शूट हैं। अपनी मिमिक्री से सनी पाकिस्तान में भी लोगों के दिल जीतता है। भारत-पाकिस्तान के बीच खड़ी दीवारें भी यहां दिखती हैं। लेकिन यह भी दिखता है कि लोगों के दिलों में क्या है। फिल्मी अंदाज में चलती इस कहानी में आप देखते हैं कि पाकिस्तान में कितने चाव से भारतीय फिल्में देखी जाती हैं। सिर्फ मनोरंजन के लिए। कुछ बूढ़ी आंखें इन फिल्मों में उन जगहों को ढूंढती हैं जहां बंटवारे से पहले उन्होंने दिन गुजारे थे! फिल्म एक साथ अलग-अलग स्तरों पर संवाद करती है। यहां एक और अहम किरदार आफताब (इनामुलहक) का है, जो पाकिस्तानी है और पायरेटेड सीडी का धंधा करता है। उसे सीमा पार करने के चोर रास्ते पता हैं। सनी से उसकी दोस्ती हो जाती है और दोनों शोलेÓ के जय-वीरू की तरह दोस्ती निभाते हैं। फिल्म दर्शक को बांधे रखती है। हालांकि यह मसालेदार-पारंपरिक बॉलीवुड फिल्म नहीं है, लेकिन बताती है कि अच्छा सिनेमा तथाकथित बड़े निर्माता-निर्देशकों-स्टार ऐक्टरों का मोहताज नहीं है। फिल्मिस्तान को देख कर आप कह सकते हैं, थोड़ा है थोड़े की जरूरत है

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