16-Apr-2014 09:06 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के बम धमाकों के मामले में फांसी की सजा प्राप्त देविंदरपाल सिंह भुल्लर की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी है। इसी के साथ राजीव गांधी के हत्यारों सहित अन्य 15 लोगों को राहत देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतत:

भुल्लर के मृत्युदंड को भी उम्रकैद में परिवर्तित कर दिया। इस परिवर्तन का आधार भी वही बनाया गया- दया याचिका के निपटारे में अधिक व अकारण देरी। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यह देरी मृत्युदंड पाये गये कैदी के साथ अमानवीय व्यवहार है और इसी कारण मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने का यह उचित और पर्याप्त आधार है। न्यायालय ने भुल्लर की फांसी की सजा आजीवन कारावास में परिवर्तित की है। इससे पहले न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड में फांसी की सजा पाये 4 अपराधियों के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में परिवर्तित करने संबंधी अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से साफ इनकार कर दिया था। न्यायालय के इस निर्णय के बाद यह तय हो गया है कि भुल्लर सहित बाकी अपराधी जेल से छूट जायेंगे क्योंकि आजीवन कारावास की अवधि वे जेल में बिता चुके हैं।
देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और इस दृष्टि से न्यायालय के इस फैसले का राजनीतिक नफा-नुकसान देखा जा रहा है। तमिलनाडु में तो जयललिता ने उन चारों हत्यारों को जेल से छोडऩे की अनुशंसा भी कर दी थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। यदि भुल्लर को छोडऩे का आदेश सरकार की तरफ से दिया जाता है तो राजीव गांधी के हत्यारों को भी छोडऩा ही होगा। राजनीति शुरू हो गई है। युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मनिंदर जीत सिंह बिट्टा ने भुल्लर की फांसी की सजा कम होने पर निराशा जताई है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद वे जिंदा नहीं रहना चाहते और सोनिया गांधी से आत्मदाह की इजाजत मांगेंगे। बिट्टा ने यह भी कहा कि फांसी की सजा को उम्रकैद में परिवर्तित करने से हम कांग्रेस में मौजूद राजनीतिक आतंकवाद से पराजित हो गये हैं। ज्ञात रहे कि भुल्लर ने वर्ष 1993 में दिल्ली में एक बम विस्फोट किया था जिसमें 9 लोग मारे गये थे और बिट्टा बुरी तरह घायल हो गये थे। यह विस्फोट युवा कांग्रेस दफ्तर के बाहर किया गया। 2001 में टाडा कोर्ट ने भुल्लर को मृत्युदंड दिया। 2002 में पुनर्विचार याचिका दायर की गई। 2003 में सुधारात्मक याचिका दायर की गई जिसे खारिज कर दिया गया। इसी वर्ष राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की गई जिसे 2011 में खारिज कर दिया गया। देखा जाये तो 2011 में दया याचिका को खारिज किये जाने के बाद भुल्लर को फांसी पर लटका देना चाहिये था लेकिन इसके बाद इस मामले में अनावश्यक विलंब ही होता रहा। इस दौरान आतंकवादी कसाब और अफजल गुरु को फांसी की सजा देने से यह लगने लगा कि भुल्लर सहित तमाम अपराधियों को मृत्युदंड मिलेगा लेकिन फिर भी सजा नहीं सुनाई गई। उधर केंद्र सरकार ने इसी वर्ष मार्च माह में स्वीकार किया था कि मृत्युदंड का सामना कर रहे भुल्लर की दया याचिका पर फैसला लेने में देरी हुई है। केंद्र सरकार की स्वीकारोक्ति के बाद यह तय हो चुका था कि भुल्लर के प्रति नरमी बरती जायेगी। दरअसल इन सब लोगों को राहत मिलने की संभावना तो 21 जनवरी 2014 को ही पैदा हो गई थी जब उच्च न्यायालय ने कहा था कि दया याचिका में विलंब पर सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदला जा सकता है। चंदन माफिया वीरप्पन के चार सहयोगियों समेत 15 कैदियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदलते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी कि मानसिक विक्षिप्तता और शिजोफेरेनिया से ग्रस्त कैदियों को सजा-ए-मौत नहीं दी जा सकती है। भुल्लर के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि दया याचिका पर फैसला करने में विलंब सजा-ए-मौत खत्म कर उसे उम्र कैद में बदलने का कोई आधार नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में उनके मानसिक रोग के आधार पर उनकी सजा-ए-मौत उम्रकैद की सजा में बदल दी जानी चाहिए। दया याचिकाओं के निबटारे और सजा-ए-मौत पर अमल करने के संबंध में मार्गनिर्देश तय करते हुए प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने व्यवस्था दी कि सजा-ए-मौत दिए गए कैदियों को उनकी दया याचिका रद्द होने की सूचना अवश्य ही दी जानी चाहिए। उन्हें सजा-ए-मौत देने से पहले अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात का एक मौका अवश्य देना चाहिए।
अदालत ने सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहे बंदियों समेत किसी भी बंदी को कैद-ए-तन्हाई में रखने को असंवैधानिक करार देते हुए कहा
था कि कारागाहों में इसकी इजाजत नहीं दी
जानी चाहिए।