मुंडे की मौत से उठते सवाल
20-Jun-2014 04:12 AM 1234783

भारतीय जनता पार्टी के संभावनाशील और प्रतिभाशाली नेता गोपीनाथ मुंडे को भारत की सड़कों ने निगल लिया। राजेश पायलट, साहिब सिंह वर्मा जैसे नेताओं की तरह गोपीनाथ मुंडे भी सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये। दुर्घटनाओं में यह देश कई प्रतिभाशाली नेताओं को खो चुका है। इनमें से कुछ सड़क दुर्घटनायें थीं तो कुछ हवाई दुर्घटनायें। हवाई दुर्घटनाओं को तकनीकी सुधार अथवा मौसम की आशंका की आधार पर टाला जा सकता है। लेकिन सड़क दुर्घटनायें जो पूरी तरह टाली जा सकती हैं लगातार बढ़ रही हैं। 11 जून 2000 को जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेश पायलट की कार राजस्थान सड़क परिवहन निगम की बस से भंडाना के निकट टकरा गई थी उस वक्त पायलट स्वयं गाड़ी चला रहे थे। अनुभवी ड्रायवर पायलट संतुलन नहीं बना सके और देश ने एक प्रतिभाशाली नेता खो दिया। 2006 में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की दुखद मृत्यु भी सड़क दुर्घटना का नतीजा थी। 1994 में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार भी पंजाब के रोपड़ जिले के कीरतपुर साहिब में टकरा गई थी। बाद में उनका देहांत हो गया। दो वर्ष पहले 2012 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और तेदेपा नेता के. येर्रन नायडु की कार ऑयल टैंकर से टकरा गई और उनकी मृत्यु हो गई। इसी वर्ष वाय.एस.आर.  कांग्रेस के नेता और आंध्रप्रदेश के विधायक वी.एस.एन. रेड्डी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
जब भारत में विशेष सुरक्षा प्राप्त लक्जरी गाडिय़ों में चलने वाले नेता सुरक्षित नहीं हैं तो आम आदमी की सुरक्षा की कल्पना ही की जा सकती है। गोपीनाथ मुंडे की सड़क दुर्घटना में दुखद मृत्यु के बाद 4 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी सड़क दुर्घटना में बाल-बाल बच गये जब उनकी कार को पीछे से टक्कर मार दी थी।
प्रश्न यह है कि भारत कब तक प्रति वर्ष डेढ़ लाख लोगों को सड़क दुर्घटना में खोता चला जायेगा? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में सर्वाधिक सड़क हादसे भारत में ही हो रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में तो घर से निकलने के बाद सुरक्षित घर पहुंचने पर ही व्यक्ति को जीवित समझा जाता है। दिल्ली में चेन्नई और मुंबई के मुकाबले सर्वाधिक वाहन रजिस्टर्ड हैं। दिल्ली में मामूली आमदनी वाला व्यक्ति भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलना शान के खिलाफ समझता है। एक-एक घर के सामने छह-छह गाडिय़ां खड़ी हैं लेकिन नगर निगम यह भी नहीं पूछता कि जब पार्किंग की जगह नहीं है तो गाडिय़ां क्यों खरीदी गई हैं। दिल्ली में यदि यही नियम लागू कर दिया जाये कि जिसके पास पार्किंग की जगह है वही गाड़ी खरीदेगा तो एक चौथाई गाडिय़ां ही बचेंगी। लेकिन सख्त कानून इस देश में बनाये नहीं जाते। विश्व के केवल 28 देश हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 5 रिस्क फैक्टर  को लेकर सख्त कानून बना सके हैं। भारत में तो हर व्यक्ति कानून तोड़ता है। जो जितना ताकतवर है वह उतने अधिकार से देश के कानून को तोड़ डालता है। यही कारण है कि सड़क हादसे इस देश में लगातार बढ़ रहे हैं। यदि किसी व्यक्ति को कानून तोडऩे से रोका गया तो वह अपनी पहुंच का हवाला देते हुये बच निकलने के मार्ग तलाशता है। परिवहन विभाग इस देश के सबसे भ्रष्टतम विभागों में से एक है। कानून ऐसे बनाये गये हैं जिनमें से शातिर लोग तो बच निकलते हैं लेकिन जो ईमानदार और कानून के मुताबिक चलने वाले हैं वे शिकंजे में आ जाते हैं। यही कारण है कि देश में सड़क दुर्घटनायें लगातार बढ़ रही हैं। दुर्घटना के बाद खानापूर्ति की जाती है। लेकिन दुर्घटना न हो उसके कोई उपाय नहीं किये जाते। घटिया सड़कें।
लचर ट्रेफिक व्यवस्था और अनफिट वाहनों की बढ़ती तादाद ये कुछ ऐसे कारण हैं जो सड़क दुर्घटनाओं के लिये फोरी तौर पर जिम्मेदार हैं। लेकिन शराब पीकर गाड़ी चलाने, रेस करने, हेलमेट, सीट बेल्ट आदि न पहनने के कारण भी दुर्घटनायें बढ़ जाती हैं। हर वर्ष करोड़ों रुपये दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ते हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद हमारे देश में कोई गंभीरता नहीं है कि किस तरह से इन दुर्घटनाओं को रोक दिया जाये। स्थिति इतनी गंभीर है कि देश में जनसंख्या वृद्धि दर से भी तेजी से एक्सीडेंट हो रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2003 से 2012 के दौरान जनसंख्या वृद्धि दर 13.6 फीसदी रही है, जबकि इस दौरान सड़क हादसों में होने वाली मौतों की संख्या में 34.2 फीसदी की वृद्धि हुई। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर देश में होने वाला हर सड़क हादसा जानलेवा क्यों बनता जा रहा है?
सुरक्षा मानकों के अनुसार सड़क और स्पीड ब्रेकर्स की कमी है। स्पीड लिमिट का पालन नहीं किया जा रहा है। यदि औसतन स्पीड में पांच फीसदी की कमी की जाए तो 30 फीसदी हादसे टाले जा सकते हैं।
शराब पीकर गाड़ी चलाना देश में हादसे का एक प्रमुख कारण है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार ब्लड अल्कोहल कंजम्पशन लिमिट 0.05 ग्राम प्रति डीएल या इससे कम होनी चाहिए।  एक्सीडेंट में मौत का एक बड़ा कारण टू-व्हीलर चालकों द्वारा हेलमेट न पहनना भी है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हेलमेट दुर्घटना के समय गंभीर चोट को 70 फीसदी तक कम कर देता है। सीट बेल्ट लगाने और सिग्नल क्रॉस करने जैसे नियमों का बहुत ही कम पालन किया जाता है। बेल्ट के इस्तेमाल से आगे की सीट पर बैठे व्यक्ति की दुर्घटना में मौत की आशंका 40 से 65 फीसदी कम हो जाती है। माना जाता है कि दुर्घटना के बाद दिमाग बिना ऑक्सीजन के तीन से छह मिनट तक काम कर सकता है। मगर हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और जागरुकता के अभाव के कारण पीडि़त समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाता है। गाड़ी चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल भी दुर्घटना की एक प्रमुख वजह है। इसके अलावा हम स्वयं ट्रैफिक नियमों को लेकर जागरूक नहीं हैं। चिंता की बात है कि देश में हर मिनट एक बड़ी सड़क दुर्घटना होती है, जिससे हर चार मिनट में एक व्यक्ति की मौत हो रही है। केवल वर्ष 2012 में ही देश भर में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 1,40,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। यानी इस वर्ष रोजाना यहां पर औसतन 383 लोगों की मौत हुई थी। कई रिपोट्र्स में तो आंकड़े इससे भी भयावह हैं। देश में एक लाख जनसंख्या पर रोड ट्रैफिक एक्सीडेंट डेथ रेट 2009 में 16.8 था, जो कि 2013 में 18.9 पहुंच चुका है। वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बीच सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि देश में अभी पैदल चलने वाले लोग भी सुरक्षित नहीं हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले 38 फीसदी लोग वे होते हैं, जो पैदल चल रहे होते हैं, जबकि 32 फीसदी साइकिल या मोटर -साइकिल सवार होते हैं। वहीं दूसरी तरफ इन हादसों में दुनियाभर में सबसे अधिक 15 से 29 साल के युवा शिकार होते हैं।
दुनिया में होने वाले सभी सड़क हादसों में पुरुषों की भागीदारी 77 फीसदी होती है। 25 साल की उम्र वाले पुरुष की हमउम्र महिला की तुलना में दुर्घटना की आशंका 3 गुना अधिक होती है। लो और मिडिल इनकम देशों में दुनिया के कुल वाहनों के मात्र 53 फीसदी वाहन हैं, लेकिन यहीं पर दुनिया की कुल रोड ट्रैफिक डेथ में से 92 फीसदी मौतें होती हैं।  इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक देश में 90 फीसदी सड़क हादसे ड्राइवर की गलती के कारण होते हैं।

सिर्फ 28 देशों में सख्त कानून

  • 28 देश विश्व में केवल ऐसे हैं, जहां पर डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित पांचों रिस्क फैक्टर को लेकर सख्त कानून हैं।
  • ये रिस्क फैक्टर ड्रिंकिंग एंड ड्राइविंग, स्पीडिंग, हेलमेट, सीट बेल्ट और चाइल्ड रिस्ट्रैन्ट हैं।
  • 03 फीसदी के करीब जीडीपी का हमें नुकसान होता है हर साल केवल सड़क हादसों की वजह से। यह आंकड़े योजना आयोग के हैं। इसके अलावा पारिवारिक क्षति और भी गंभीर है, जिसकी कोई भरपाई नहीं है।
  • चीन- 97551  अमेरिका 41292  रूस 37,349 पाकिस्तान 12000  और जापान 4373 व्यक्ति प्रतिवर्ष दुर्घटना में खो देता है।

आकाश में भी दुर्घटनायें

  • सड़क ही नहीं बल्कि हवाई दुर्घटनाओं में भी देश ने कई प्रतिभाशाली नेता खो दिये हैं। 23 जून 1980 को सफदरजंग एयरपोर्ट नई दिल्ली के निकट संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
  • वर्ष 2001 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया का दुखद निधन एक सड़क दुर्घटना में हो गया।
  • 3 मार्च 2002 को पूर्व लोकसभा अध्यक्ष जी.एम.सी. बालयोगी का आंधप्रदेश के गोदावरी जिले में हेलीकॉप्टर गिर जाने के कारण निधन हो गया।
  • 2004 में मेघालय के मुख्यमंत्री और दो विधायक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गये।
  • 2005 में हरियाणा के एक कांग्रेस नेता रणवीर सिंह महिंद्रा और ओ.पी. जिंदल हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गये।
  • 2009 में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
  • 2011 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सी.एस. दोरजी की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई
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