06-May-2014 01:59 PM
1234830
2014 में जब 141 सीटों के साथ मनमोहन सिंह ने यूपीए सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की तो लगा कि यह सरकार बमुश्किल दो-चार माह टिक पाएगी और उसके बाद मध्यावधि चुनाव अवश्य होंगे, लेकिन मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के साथ ही सोनिया गांधी ने स्पष्ट कर दिया था कि सत्ता में रहने के लिए वे हर समझौता करने के लिए तैयार हैं। मनमोहन सिंह को जो अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी वह अपेक्षाकृत मजबूत कही जा सकती है, लेकिन मनमोहन सिंह छोटे-मोटे दलों के गठबंधन से सरकार चला रहे थे इसीलिए यह पहले से ही तय था कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी वे उतनी कुशलता से नहीं खींच पाएंगे। जितनी कुशलता से कांग्रेस के बहुमत में खींच सकते थे। हर दल की अपनी महत्वाकांक्षा थी और क्षेत्रीय आकांक्षाएं भी सरचढ़कर बोल रहीं थी। इसीलिए अर्थव्यवस्था से खिलवाड़ किया गया। कुशल अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह सबकुछ जानते हुए भी समझौते करते चले गए। जिसका असर देश की आर्थिक सेहत पर पड़ा और देश आर्थिक आपातकाल की चपेट में आ गया। यूपीए-1 के कार्यकाल में जब विकास दर 8 के करीब पहुंचने लगी थी, सारे देश को उम्मीद थी कि यह विकास की रफ्तार एक अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही तीव्रतर होगी। क्योंकि पिछले दो दशक में चाहे कांग्रेसी हो या गैर कांग्रेसी हर सरकार में मनमोहन आर्थिक सलाहकार रहे। इसी वजह से उनसे उम्मीदें
ज्यादा थी।
देश ही नहीं दुनिया के लोगों को लगा कि अब हम बड़ी आसानी से दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार हासिल कर लेंगे। नई पीढ़ी ये सपना देखने लगी थी कि अब हमारा भी जीवन अमेरिका, लंदन में रहने वालों जैसा होगा। लेकिन हुआ क्या? 2004-2009 यूपीए के पहले शासनकाल में तो तरक्की की रफ्तार आठ प्रतिशत पर बनी रही लेकिन उस मजबूत बुनियाद में सीलनÓ डाल दी सोनिया गांधी के प्रिय मनरेगाÓ योजना ने। 2004 में जब आठ प्रतिशत से ज्यादा तरक्की की रफ्तार विरासत में लेकर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे तो हर कोई यह आसानी से मान ले रहा था कि भले ये एनडीए ने काम किया लेकिन इसकी बुनियाद नरसिंहा राव-मनमोहन की जोड़ी के देश को दुनिया के साथ जोडऩे वाले सुधारवादी फैसलों के साथ किया था।
सब्सिडी से हटकर देश के लोगों को बाजार के सिद्धांतों के अनुकूल बनाकर तरक्की की मनमोहिनी योजना में ये पहला बड़ा छेद था। भ्रम ये फैलाया गया कि 2009 में लोगों ने इसी मनरेगा से मिलने 100 रुपये रोज की गारंटी पर यूपीए-2 के लिए वोट कर दिया। जबकि सच्चाई ये थी कि दरअसल नौजवान वोटर शहरों में कमाने निकला मध्यमवर्गीय परिवार यूपीए-2 के लिए इस गलतफहमी में वोट कर गया था कि मनमोहन सिंह हैं तो 10 प्रतिशत की तरक्की हम हासिल कर ही लेंगे। अर्थव्यवस्था की खराब हालत के लिए ठीकरा दुनिया की मंदी पर मनमोहन सिंह ने आसानी से फोड़ दिया। पी.चिदंबरम ने और फिर प्रणब मुखर्जी ने वित्तमंत्री रहते हुए यूपीए सरकार की सब्सिडी का बोझ कम करने वाली योजना, अमल में लाने की बात बजट भाषण के दौरान लगातार देश को बताई थी। लेकिन सोनिया के दबाव में यह योजना रद्द कर दी गई। बाद में खाद्य सुरक्षा योजना जैसे कार्यक्रमों ने देश की आर्थिक सेहत और खराब कर दी।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक पद पर तैनात विदेश सेवा अधिकारी अरिंदम बागची भी श्रीलंका में भारत के उप-उच्चायुक्त बनाकर भेजे जा रहे हैं। वहीं गोरांगलाल दास वाशिंगटन में भारतीय दूतावास में तैनाती पर जाएंगे। महत्वपूर्ण है कि नई सरकार की आमद के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय ही नहीं, सरकार के शीर्ष मकहमों में व्यापक तौर पर प्रशासनिक बदलाव भी होने हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में शीर्ष पद पर तैनात टीकेए नायर, शिवशंकर मेनन तथा पुलक चटर्जी जैसे अधिकारियों की सेवाएं मनमोहन सरकार के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाना हैं।
वहीं कैबिनेट सचिव और वरिष्ठतम आईएएस अधिकारी अजित सेठ भी सेवा विस्तार पर हैं। उल्लेखनीय है कि मनमोहन के प्रधान सचिव के पद पर तैनात 1974 बैच के उत्तरप्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी चटर्जी भी नियमित सेवा से रिटायर हो चुके हैं। वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेनन को यह जिम्मेदारी विदेश सचिव पद से 2009 में सेवानिवृत्ति के बाद ही दी गई थी। पीएमओ में पदस्थ प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव टीकेए नायर फिलहाल बतौर सलाहकार कार्यरत हैं।
पीएम की टीम ने तलाशे नए आशियाने
गहमा-गहमी और नई सरकार की आमद की उत्सुकता के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ काम कर रहे पीएमओ अधिकारियों की मौजूदा टीम ने अपने लिए नए आशियाने तलाशने शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय के कई आला अधिकारियों की विदेश में तैनाती का सिलसिला शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री के निजी सचिव और विदेश सेवा के 1989 बैच के अधिकारी विक्रम मिस्त्री के स्पेन में भारतीय राजदूत बनाए जाने का एलान हो गया है। मिस्त्री 2012 से प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात हैं। वहीं प्रधानमंत्री के साथ बीते छह सालों से बतौर निजी सचिव पदस्थ झारखंड कैडर के आईएएस अधिकारी इंदुशेखर चतुर्वेदी के भी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में वरिष्ठ सलाहकार पद पर जाने के संकेत हैं। चतुर्वेदी 2004 से 2008 तक योजना आयोग में रहे। वह 2008 से पीएम के निजी सचिव पद पर हैं।