20-Jun-2014 04:12 AM
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बिहार में लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उठा तूफान नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को छिन्न-भिन्न कर सकता है। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद का बलिदान देकर और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद सौंपकर डैमेज कंट्रोल की को
शिश की थी लेकिन उनकी पार्टी के विधायक राष्ट्रीय जनता दल से तालमेल के खिलाफ हैं और हालात इतने बिगड़ गये हैं कि बिहार में एक नया दल अस्तित्व में आ सकता है जो भाजपा के साथ गठबंधन करके आगामी चुनाव में नीतीश की पार्टी का सफाया करने की ताकत रखता है। विद्रोह के सुर तो तभी उभरने लगे थे जब पार्टी महासचिव चंद्रराज सिंघवी ने नीतीश कुमार को स्वार्थी और सांप्रदायिक बताते हुये इस्तीफा दे दिया था। शिवानंद तिवारी पहले से ही नाराज चल रहे थे, क्योंकि उन्हें महासचिव और प्रवक्ता पद से मुक्त कर दिया गया था। लेकिन ये कुछ समय पहले की बात है। अभी हाल ही में जब जनता दल यूनाइटेड के विधायक पूनम देवी, मदन सहनी, रवींद्र राय और राजू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नितीश पर अहंकार में भाजपा से नाता तोडऩे और मोदी का विरोध करने का आरोप लगाया तो प्रतीत हुआ कि कहीं न कहीं जनता दल यूनाइटेड अब यूनाइटेड नहीं रह पायेगा। इन चारों विधायकों का तो यह भी कहना था कि टूटने की कगार पर 50 विधायक बैठे हुये हैं। पूनम देवी कभी नीतीश कुमार को राखी बांधती थीं लेकिन अब वही भाई उनके लिये सबसे बड़ा दुश्मन हो गया है। उन्हीं का आवास असंतुष्टों का अड्डा बन चुका है। राज्य की तीन राज्यसभा सीटों पर चुनाव लडऩे का ख्वाब देख रही जनता दल यूनाइटेड अपना प्रत्याशी ही नहीं खड़ा करना चाहती थी क्योंकि उन्हें डर था कि चुनाव में हार के बाद हालात और भी खराब हो जायेंगे। लेकिन बाद में यह सुझाव दिया गया कि चुनाव से दूर रहने से बेहतर है सख्ती से बगावत का सामना किया जाये। लिहाजा जनता दल यूनाइटेड तीनों राज्यसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करेगा किंतु इससे बगावतियों को कोई असर नहीं है और क्रॉस वोटिंग भी हो सकती है।
हाल ही में महुआ के विधायक रवींद्र राय को पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू भी मुख्यमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे हैं। पूर्व सांसद डॉ. मोनाजीर हसन भी बागियों के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। रेणु कुमारी तो यह तक कह चुकी हैं कि पार्टी नेतृत्व का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। ज्ञानू जैसे नेता रामविलास पासवान से मिलकर नये समीकरणों का संकेत दे चुके हैं। पासवान ने पहले ही भविष्यवाणी की है कि नीतीश सरकार चार माह में गिर जायेगी। प्रत्यक्ष रूप से 17 विधायक पार्टी के खिलाफ खुलकर सामने आ गये हैं, लेकिन भीतर ही भीतर जो असंतोष पनप रहा है उसका फायदा लेने के लिये राज्यसभा के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में साबिर अली मैदान में आ सकते हैं। उधर ए.के. सिंह भी निर्दलीय खड़े हो रहे हैं। इससे बिहार का राज्यसभा चुनाव भी इस बार बहुत रोचक हो सकता है। इस चुनाव के परिणाम आगामी राजनीति का स्पष्ट संकेत देंगे। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी बगावत उठी है। पूर्व मंत्री अजीत कुमार ने कहा कि जिन लोगों ने वर्षो तक जदयू को जड़ से उखाड़ कर गंगा में प्रवाहित करने की कोशिश की और पार्टी नेतृत्व के खिलाफ आग उगली उन्हें ही मंत्री पद दिया गया है जिससे वह स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा कि वह शीघ्र ही नीतीश कुमार से मिलकर उन्हें पार्टी की राज्य कार्यकारिणी से अपना इस्तीफा सौंप देंगे। पार्टी के इस कदम से कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता दुखी हैं। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही अपने समर्थकों और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे। जदयू के प्रदेश प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार ने भी मंत्रिमंडल विस्तार पर नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि पार्टी ने विश्वासघातियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर उन्हें सम्मानित किया है। जिस ललन सिंह ने नीतीश कुमार को सार्वजनिक तौर पर कई बार अपमानित किया और जिसने सामाजिक विद्वेष पैदा करने की कोशिश की उसे इनाम के तौर पर मंत्री का पद दिया गया है। कुमार ने कहा कि ललन सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल विधायक दल को तोडऩे में भी भूमिका निभाई थी शायद उन्हें इसका ही इनाम दिया गया है। विधायक ज्ञानेंद्र कुमार सिंंह ज्ञानू ने कहा कि पार्टी के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ता काफी दुखी हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल में गलत तत्वों और दल बदलुओं को तरजीह दी गई है। जिनका पार्टी में योगदान कुछ भी नहीं रहा है।