रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश
19-Jun-2014 02:53 PM 1234858


यदि दुनिया के सबसे आधुनिक विमान और दुनिया के सबसे उन्नत हथियार भारत में बनने लगें तो क्या भारत की तस्वीर बदल जायेगी? क्या भारत को हथियार आयात करने के बजाय निर्यात करने का हक मिल जायेगा? क्या भारत हथियार उत्पादक देशों के समक्ष हथियारों के लिये हाथ फैलाना बंद कर देगा?
ये कई ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर नरेंद्र मोदी के उस कदम से मिल सकता है जिसमें उन्होंने प्रस्ताव किया है कि आने वाले दिनों में रक्षा में सौ फीसदी विदेशी निवेश किया जाये। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है। भारत की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा हथियार आयात करने में ही खर्च हो जाता है। हालांकि चीन, दक्षिण कोरिया और पाकिस्तान भी बड़ी संख्या में हथियार आयात करते हैं, लेकिन चीन जैसे देशों ने हथियार विकसित करने में भी महारथ हासिल कर ली है।
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातकदेश है जो भारत को 82 प्रतिशत हथियारों की आपूर्ति करता है। रूस की राष्ट्रीय आय का बड़ा हिस्सा हथियार निर्यात से ही आता है। अमेरिका भी दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्माता देश है और यह सबसे बड़ा निर्यातक भी है। एशिया के ज्यादातर देश हथियार आयात करते हैं। यही कारण है कि एशिया में ही दुनिया के शीर्ष हथियार आयात करने वाले चार देश पाये जाते हैं। विश्व के किसी और कोने में हथियारों की इतनी होड़ नहीं है। नरेंद्र मोदी तो चाहते हैं कि रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत विदेशी निवेश कर दिया जाये और भारत को एक प्रमुख हथियार उत्पादक देश में तब्दील कर दिया जाये। नरेंद्र मोदी के इस कदम की यह कहकर आलोचना की जा रही है कि अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिये दुनिया भर में लड़ाईयां करवाता रहता है। कहीं भारत भी इसी भूमिका में न आ जाये? इसी कारण हथियार निर्माण में भारत की पिछली सरकारों ने कभी हाथ नहीं डाला। लेकिन मोदी सरकार का मानना है कि देश की संप्रभुता को बचाये रखने के लिये एक मजबूत सेना का होना जरूरी है और सेना के हथियार सहित अन्य खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं इसलिये अपने देश में ही हथियार निर्मित करके सेना को दिये जायें और आवश्यकता पडऩे पर उनका निर्माण-निर्यात किया जाये तो बुरा नहीं है।
रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति से रक्षा उपकरणों के लिए आयात बिल घटाने और विनिर्माण क्षेत्र में तेजी लाने व रोजगार सृजन में काफी मदद मिलेगी। अगर मोदी सरकार यह कदम उठाती है तो रक्षा क्षेत्र में एक अहम बदलाव आने की उम्मीद है। रक्षा क्षेत्र में सुधार के साथ- साथ भारत के पास कई आधुनिक तकनीकें भी आ सकती हैं, जो आगे चलकर भारतीय सेना को बड़े स्तर पर मजबूती देंगी। ऐसा करके अमेरिका और रुस जैसे देशों पर हमारी निर्भरता को काफी हद तक कम भी किया जा सकेगा। अगर सरकार एफडीआई को मंजूरी दे देती है तो यह आर्मी, एयरफोर्स और नेवी तीनों के लिए कारगर साबित होगा। भारत के मौजूदा फाइटर जेट्स काफी पुराने हो चुके हैं। भारतीय सेना अभी अपनी कुल उपकरण और प्रणाली जरूरतों के 70 फीसदी हिस्से का आयात करता है और पिछले एक दशक में रूस, इजरायल और अमेरिका देश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। अभी तक तो रक्षा क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए सिर्फ 26 फीसदी एफडीआई की ही मंजूरी है। लेकिन भारत सरकार के पास यह आजादी है कि वह किसी खास मुद्दे पर अपनी इच्छा से विदेशी निवेश को मंजूरी दे सकती है। एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने भी साल 2012 के दौरान रक्षा क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई की मांग की थी ताकि घरेलू औद्योगिक आधार का विकास हो, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिले और बड़े स्तर पर आयात में कमी आए। अमेरिका के पास विश्व में सर्वाधिक परमाणु हथियार हैं। साथ ही अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा हथियार निर्माता और निर्यातक देश भी है। इस तथ्य की पुष्टि 31 जनवरी 2014 को जारी हुई स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीटयूटÓ (स्ढ्ढक्कक्रढ्ढ) की सालाना रिपोर्ट से हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के शीर्ष 100 हथियार निर्माताओं की सूची में अमेरिका सर्वोच्च स्थान पर है। रिपोर्ट से यह भी उजागर हुआ है कि वैश्विक स्तर पर हथियारों की बिक्री में अमेरिका की बादशाहत कायम है।

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