नेताओं के बोल वचन
16-Apr-2014 11:02 AM 1234880

चुनाव आयोग ने अंतत: अमितशाह और आजम खान पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे पहले उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद को जेल भेज दिया गया था। इन तीनों के खिलाफ जो कार्रवाई हुई वह भड़काऊ बयान देने के कारण हुई। इमरान मसूद ने कहा था कि मुसलमान मोदी की बोटी-बोटी कर देंगे तो आजम खान ने एक नया ही तथ्य प्रस्तुत किया कि कारगिल की फतह हिंदू सैनिकों ने नहीं मुस्लिम सैनिकों ने की थी और उधर अमित शाह ने मुजफ्फरनगर में घोषणा की थी कि ये चुनाव अपमान का बदला लेने का है।
लगभग हर चुनाव से पूर्व नेता घटिया बयानबाजी करते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे एकाध लीडर को छोड़ दिया जाए तो भारतीय लोकतंत्र के अधिकांश नेताओं ने पिछले दो दशक के दौरान निहायत घटिया और आपत्तिजनक बयानबाजी की है। चुनाव आयोग सभी बयानों का संज्ञान नहीं लेता। केवल वे बयान जो भड़काऊ हों और जिनसे अशांति फैल सकती हो उन्हें संज्ञान में लेकर चुनाव आयोग कार्रवाई करता है जो बहुधा उतनी प्रभावी नहीं होती इसीलिए नेताओं के बयान हर चुनाव के समय सुनने को मिल ही जाते हैं। चुनाव के अलावा भी विभिन्न मौकों पर नेता ऐसे भड़काऊ बयान देते आए हैं। एक समय वरुण गांधी ने भी मुसलमानों के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बयान दिया था।
अमित शाह और आजम पर कार्रवाई करने वाले चुनाव आयोग का कहना है कि ये बयान जानबूझकर धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए दिए गए थे। आयोग ने यह भी आरोप लगाया कि मंत्री आजम खान ने जो बयान दिया उसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने उनके प्रति नरमी बरती। आयोग के इस कदम के बाद भाजपा और कांग्रेस का बयान आया। कांग्रेस ने कहा कि आयोग ने सही निर्णय लिया। भाजपा ने इसे एक तरफा बताया। अब सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जाएगी। वहीं आजम खान ने कहा कि संभवत: शाह की कार्रवाई एक तरफ न लगे इसलिए उनके खिलाफ भी चुनाव आयोग ने कार्रवाई करते हुए बैलेंस बनाने की कोशिश की।
लेकिन भड़काऊ बयान और बेहूदे बयानों का दौर जारी है। मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि लड़के तो बलात्कार जैसी गल्तियां करते रहते हैं। इसके लिए उन्हें फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए और उधर उन्हीं की पार्टी के अबु आजमी ने लिव इन रिलेशनशिप में सेक्स संबंध बनाने वाली महिलाओं को भी फांसी देने की बात कही है। यह समझ से परे हैं कि बलात्कारियों की पैरवी करके किसके वोट लेने का प्रयास किया जा रहा है। क्या इस देश में इस मनोवृत्ति के लोग भी रहते हैं जो बलात्कारियों को कड़ी सजा दिए जाने पर किसी दल विशेष के खिलाफ या समर्थन में वोटिंग कर सकते हैं। लेकिन मुलायम और अबु आजमी को यहां भी वोट दिखते हैं। उन्हें महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार नहीं दिखते।
प्राय: हर नेता किसी न किसी समुदाय की भावनाओं को भुनाना चाहता है और इसके लिए निजी हमले करने से भी वे बाज नहीं आते। चुनाव विकास और सुशासन के मुद्दे पर लड़े जाते हैं, लेकिन जिस तरह के बोल वचन नेताओं के मुंह से निकल रहे हैं। उन्हें सुनकर लगता है कि सुशासन और विकास का मुद्दा इन चुनावों में पीछे धकेल दिया गया है और निजी हमले प्रमुखता से किए जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी की वैवाहिक स्थिति का पता लगते ही कांग्रेस चुनाव आयोग शिकायत दर्ज कराने पहुंच गई। मोदी पर निजी हमले भी किए गए। बाद में भाजपा ने तिलमिलाकर पलटवार किया कि उन्हें भी इंदिरा-नेहरू और राजीव के बारे में बहुत कुछ मालूम है और ये किस्से दस्तावेजों के साथ हैं, लेकिन भाजपा इनका पर्दाफाश नहीं करना चाहती। वरना बता दूर तलक जाएगी। उधर महाराष्ट्र में राजठाकरे ने कहा कि किसानों की आत्महत्या के लिए कांग्रेस और राकांपा जिम्मेदार है। किसान आत्महत्या न करें बल्कि वे उन लोगों को मार डालें जिन्होंने उनके साथ छल किया है।  राजस्थान में वसुंधरा राजे ने 4 अप्रैल को करौली में भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में जनसभा के दौरान कहा कि चुनाव के बाद देखते हैं किसके टुकड़े होंगे। आश्चर्य का विषय यह है कि वसुंधरा के इस बेहद आपत्तिजनक बयान के बाद भी चुनाव आयोग ने उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की। शरद पवार भी नवी मुम्बई में आयोजित मथाडी कामगार सम्मेलन में लोगों से स्याही मिटाकर दो बार बोगस वोटिंग करने की बात कह चुके हैं। हालांकि उन्होंने बाद में कहा कि ऐसा मजाक में कहा गया था। विधायक धनंजय मुंडे तो सरेआम स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने अपने काका गोपीनाथ मुंडे के कहने पर बोगस वोटिंग करवाई थी। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह भी कह चुके हैं कि मोदी से डरने की जरूरत नहीं है, यूपी के पहलवान उनके 56 इंच के सीने की हवा निकाल देंगे।
देखा जाए तो हर नेता ने कुछ न कुछ कहा है। इससे उनके बौद्धिक स्तर का भी पता चलता है। चुनाव में भड़काऊ बयानबाजी करने के लिए आईपीसी की धारा 153-ए व जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 125 के तहत मुकदमें दर्ज कराए जाते हैं। इन धाराओं में कोई दम नहीं है। साल दर साल सुनवाई चलने के बाद मामला वहीं खत्म हो जाता है। ज्यादा से ज्यादा चुनाव आयोग एक चुनाव के लिए रैली और आम सभाओं पर प्रतिबंध लगाकर किसी जनप्रतिनिधि को सीमित भर कर सकता है। बाद में कोर्ट में कुछ सिद्ध नहीं होता। आज तक किसी भी शब्दवीरÓ को इन धाराओं के तहत सजा नहीं हुई। इसी कारण हर चुनाव में बढ़-चढ़कर बयानबाजी होती है।

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