19-Jun-2014 02:53 PM
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उत्तरप्रदेश में एक से बढ़कर एक वीभत्स बलात्कार की घटनायें घटती हैं। यूं तो सारे देश में ही यह हृदय विदारक घटनायें सुनाई पड़ती हैं लेकिन उत्तरप्रदेश की खासियत यह है कि यहां दबंगों को बचाने के लिये पुलिस कुछ भी कर सकती है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी बदायूं की वीभत्स घटना पर चिंता व्यक्त की। यदि अपराधियों को बचाया जायेगा तो फिर कानून लागू करवाने वाली एजेंसियां सुरक्षा कैसे दे पायेंगी?
यही हाल मुजफ्फरनगर दंगों के समय भी हुआ था। पुलिस ऊपर से मिले निर्देशों के अनुसार ही काम करती रही और दंगे भड़क गये। उत्तरप्रदेश की पुलिस दबाव में काम करती है। किसी व्यक्ति का उपनाम यादव है या फिर वह मुस्लिम है तो उत्तरप्रदेश पुलिस उस पर हाथ डालने से पहले चार बार सोचती है। क्योंकि पुलिस वालों को थाने में घुसकर मारने वाले दबंग अक्सर उसी जाति से होते हैं जिसे राजाश्रय मिला होता है।
यही कारण है कि पुलिस अक्सर रिपोर्ट नहीं लिखती। रिपोर्ट लिखती है तो धारायें इतनी मामूली लगाई जाती हैं कि निचली अदालत से ही आरोपी बाइज्जत बरी होकर मूंछों पर ताव देते हुये चल देते हैं। जो सरकार दबंगों के भरोसे चल रही हो उस पर हाथ डालने का साहस भला कौन कर सकता है। उत्तरप्रदेश में पुलिस की यह लाचारी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। अब सरकार ने खुद मान लिया है कि गुजरे एक साल में प्रदेश में विभिन्न प्रकार की आपराधिक घटनाओं में इजाफा हुआ है। विधान परिषद में प्रश्नकाल के दौरान नगर विकास राज्य मंत्री चितरंजन स्वरूप ने एक सवाल के जवाब में बताया कि 1 जनवरी 2013 से 14 जनवरी 2014 तक प्रदेश में विगत वर्ष की तुलना में डकैती के मामलों में 131.39, बलात्कार में 49.54, लूट में 16.66, हत्या में 0.69 और आगजनी में 19.03 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
कांग्रेस के नसीब पठान के सवाल के जवाब में चितरंजन स्वरूप ने यह भी बताया कि पहली जनवरी 2013 से 15 जनवरी 2014 तक प्रदेश में हत्या की 4937, आगजनी की 344, डकैती की 516, बलात्कार की 2801 और लूट की 3368 आपराधिक वारदातें हुईं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 के दौरान उत्तरप्रदेश में प्रति सप्ताह बलात्कार की 126 घटनाएं हुई हैं। पिछले दिनों बदायूं में हुई नाबालिग बहनों के साथ बलात्कार की घटना के बाद उत्तरप्रदेश की न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में थू-थू हुई है। ऐसा लगता है कि बलात्कार के बाद उन मासूमों को फांसी पर नहीं लटकाया बल्कि राज्य की कानून व्यवस्था ही पेड़ पर लटकी हुई दिखाई दी।
बलात्कारियों को फांसी की सजा नहीं देने की वकालत करने वाले मुलायम सिंह यादव के मुंह से तो बोल ही नहीं फूट रहे हैं। वे सिर्फ इतना बोलकर चुप हो गए कि यूपी सरकार कार्रवाई कर रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में प्रति वर्ष करीब 2 हजार रेप, करीब 8 हजार अपहरण और महिलाओं के साथ बलात्कार की प्रति वर्ष 3 हजार कोशिशें होती हैं या महिलाओं को मारा-पीटा, प्रताडि़त किया जाता है। जहां तक महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है तो उत्तरप्रदेश से निकृष्ट राज्य और कोई नहीं है।
नेताओं पर हमले के मामले रेप और महिला हिंसा के मामलों के अलावा राज्य में राजनीति से जुड़े लोगों को भी निशाना बनाया जा रहा है। बीते 9 दिन में पांच बीजेपी नेताओं पर हमले के मामले सामने आ चुके हैं। हाल ही में अमेठी में कांग्रेस नेता जंग बहादुर के बेटे की भी अज्ञात हमलावरों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी।
बीजेपी नेताओं पर हमले के मामले
- वजय पंडित की नोएडा के दादरी इलाके में हत्या- 7 जून
- ओमवीर सिंह की मुजफ्फरनगर जिले में हत्या- 10 जून
- सांसद साध्वी निरंजन ज्योति पर हमला- 14 जून
- उत्तराखंड के भाजपा नेता राकेश कुमार रस्तोगी की लाश बरेली में मिली- 14 जून
- मथुरा जिले के भा

जपा नेता देवेंद्र शर्मा के घर पर हमला, मां पर फायरिंग- 15 जून