16-Apr-2014 10:55 AM
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सारे देश के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक रोचक चुनाव उत्तरप्रदेश के हैं क्योंकि कहा यह जा रहा है कि यह प्रदेश देश को अगला प्रधानमंत्री देने वाला है। उत्तरप्रदेश का प्रभाव उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली से लेकर बिहार की

सियासत तक पड़ता है। कहा तो यह भी जाता है कि उत्तरप्रदेश ही सारे देश को चलाता है। जो उत्तरप्रदेश में जमा हुआ है उसे सारे देश से कोई नहीं उखाड़ सकता, पिछले तीन दशक में यह मिथक टूटा है। 1984 में यहां कांग्रेस को भारी विजय मिली थी, लेकिन उसके बाद कांग्रेस अपना प्रदर्शन दोहराने में नाकामयाब रही। फिर एक दौर ऐसा आया कि भाजपा ने उत्तरप्रदेश में अपना मजबूत आधार बना लिया, लेकिन राम के नाम पर सवार भाजपा ज्यादा समय तक इस प्रदेश में टिक नहीं पाई।
प्रदेश की राजनीति में वह चौथे नंबर पर है और लोकसभा चुनाव में लगातार उसकी हालत दयनीय होती गई है। कभी उत्तरप्रदेश में 60 सीटें तक जीत चुकी भाजपा 10 के अंक पर आकर ठहर गई है। लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी की लहर उत्तरप्रदेश की इबारत फिर से लिखने को तैयार है। खासकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बदलाव की बयार बह सकती है। जिसका असर दिल्ली की सियासत पर अवश्य पड़ेगा।
अन्य राज्यों से अलग उत्तरप्रदेश और बिहार ये दोनों ऐसे राज्य हैं जहां राष्ट्रीय दलों के अलावा क्षेत्रीय दलों की उपस्थिति भी पर्याप्त है। इसी कारण चुनाव दो दलों के बीच न होकर बहुकोणीय मुकाबले में उलझ जाते हैं। इस बार भी कमोबेश यही हालात हैं। उत्तरप्रदेश में ज्यादातर सीटों पर भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजपार्टी के बीच मुख्य मुकाबला है। राष्ट्रीय लोकदल भी 7-8 सीटों पर प्रभावी है। हालांकि उसका गठबंधन कांग्रेस के साथ है। नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव मैदान में हैं। जिसका असर उत्तरप्रदेश की सभी 80 सीटों पर देखा जा सकता है। इसी प्रकार आम आदमी पार्टी ने राज्य के मुसलमानों को समाजवादी पार्टी के खिलाफ लामबंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पार्टी भले ही चुनाव न जीते लेकिन सभी दलों का चुनावी गणित बिगाडऩे में सक्षम है। खासकर भाजपा और कांग्रेस को आम आदमी पार्टी का उभार नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी भी बहुत नुकसान में जा सकती है। मुजफ्फरनगर दंगे और सपा नेताओं की गुंडागर्दी इन लोकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है। रिकार्ड वोटिंग किसके खिलाफ
10 अप्रैल को जब प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई तो उसके फीडबैक ने कांग्रेस को हलाकान कर दिया। रिकार्ड वोटिंग को कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के खिलाफ माना जा रहा है। राहुल गांधी को जो फीडबैक मिला उसके बाद उन्होंने आपात बैठक बुलाई, जिसमें नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सही उपाय नहीं किए गए तो पार्टी लोकसभा चुनाव से पूरी तरह बाहर हो जाएगी पर कांग्रेस के कार्यकर्ता ही एकजुट नहीं हैं, इसलिए राहुल की कोई भी रणनीति पूरी तरह चल नहीं पा रही है। दूसरी चिंता मुस्लिम मतों की भी है। इमाम बुखारी से मिलने के बाद सोनिया गांधी आशा कर रही थीं कि कम से कम कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में मुस्लिमों के वोट एकतरफा मिलेंगे, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। संभवत: पहली बार उत्तरप्रदेश में मुस्लिम मतों का विभाजन धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए खतरे की घंटी बन गया है। बची हुई 70 सीटों पर यह मत विभाजन बेहद नकारात्मक प्रभाव डालेगा। आजम खान अभी भी मुखरित हैं यद्यपि उनकी चुनावी सभाओं पर रोक लगी है, लेकिन बोलने से नहीं चूक रहे।
हाल ही में उन्होंने इंदिरा, राजीव और संजय गांधी की अकाल मृत्यु पर कहा कि इन तीनों को अल्लाह ने उनके किए की सजा दी। इंदिरा गांधी ने जहां अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार की सजा भुगती तो राजीव गांधी बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए और उधर संजय गांधी ने जिस तरह जबरन नसबंदी कराई उसके लिए अल्लाह ने उन्हें सजा दी। आजम खान के इस बयान के बाद कांग्रेस ने तल्ख रुख

अपना लिया है। मुलायम सिंह यादव को इससे परेशानी हो सकती है। वाराणसी में मोदी के खिलाफ चुनाव न लडऩे की मुख्तार अंसारी की घोषणा से कांग्रेस और मुलायम दोनों को फायदा होता नहीं दिख रहा। यह फायदा अरविंद केजरीवाल के खाते में जा रहा है। अमेठी में भले ही राहुल गांधी आगे हों, लेकिन स्मृति ईरानी और कुमार विश्वास ने परेशानी खड़ी कर दी है। राहुल गांधी को रोड शो के अलावा भी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। खबर है कि प्रियंका गांधी आगामी कुछ दिनों में यहां डेरा जमा सकती हैं। जहां तक मथुरा का प्रश्न है। मथुरा में हेमा मालिनी को जिताने के लिए उनकी बेटी ईशा देओल भी कमल का फूल लेकर चुनावी मैदान में हैं। कमल के रंग की ही साड़ी और बेटी की सलवार कमीज पर कमल के रंग की ही चुनरी यह सब मतदाताओं को बहुत लुभा रहा है, लेकिन मथुरा के चुनावी गणित का हिसाब लगाना थोड़ा कठिन है। यहां समाजवादी पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत है। हेमा मालिनी को कुछ ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ेगी। वे कह रही हैं कि दासी बनकर बृजवासियों की सेवा करेंगी। लेकिन जनता को ड्रीम गर्ल से ऐसी उम्मीद नहीं है। इसी कारण भाजपा के स्थानीय नेता वाजपेयी ने कमान संभाल ली है और वे जी-जान से जुटे हुए हैं। फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से मैदान में रालौद प्रत्याशी अमर सिंह ग्लैमर के भरोसे अपनी नैय्या पार लगाने के मूड में हैं। इसीलिए कभी श्रीदेवी तो कभी जयाप्रदा के सहारे चुनाव जीतने के ख्वाब देख रहे हैं। देखना है कि इन बड़े नेताओं के अलावा बाकी सीटों पर क्या होता है। चुनावी माहौल में डूबते जहाज से जिस तरह चूहे भागते हैं उसी तरह कुछ प्रत्याशी अपना दल भी बदल रहे हैं।
फतेहपुर सीकरी में राष्ट्रीय लोकदल के जिला अध्यक्ष नरेंद्र धनगर ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। उनके साथ दो अन्य भी हैं। इससे रालौद को झटका लगा है, लेकिन झटके झेलने वाले अकेले अमर सिंह ही नहीं हैं। समय के साथ कई नेताओं ने दलबदल किए हैं जिसका कारण असंतोष है।
देश प्रेमी बनाम पत्नी पे्रमी
बनारस में मोदी की पत्नी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मोदी को देश प्रेमी बताते हुए एक पोस्टर जारी किया है, जिसमें जवाहर लाल नेहरू को लार्ड माउंट बेटन की पत्नी एडविना माउंट बेटन के साथ दिखाए गए हैं। दिग्विजय सिंह की दो पत्नी और शशि थरूर की तीन पत्नियों का जिक्र हैं। आजम खान की छह तो मुलायम सिंह की दो पत्नियों के विषय में पोस्टर बताता है। राहुल गांधी को कोई महिला आलिंगन कर रही है। इस पोस्टर का आधार क्या है। क्योंकि शशि थरूर की तीन पत्नियों का तो पता है, लेकिन बाकी नेताओं के पास भी पत्नियों की भरमार है यह तो इसी पोस्टर से पता चलता है। देखना है कि यह पोस्टर युद्ध कितना लंबा खिंचता है क्योंकि चुनाव आयोग पोस्टर के मामले में बहुत सख्ती बरत रहा है।
मोदी को घेरने की केजरीवाल की रणनीति
वाराणसी की सीट पर सारी दुनिया की नजर है। सारी दुनिया का मीडिया वाराणसी में जमा हुआ है। भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में दावेदार नरेंद्र मोदी का मुकाबला अरविंद केजरीवाल से है। बाकी नेताओं की उपस्थिति उतनी
महत्वपूर्ण नहीं है। मोदी को घेरने के लिए आम आदमी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह वाराणसी में लगातार दौरे कर रहे हैं। राज मोहन गांधी, दिलीप पांडे, शाजिया इल्मी, गोपाल राय, योगेन्द्र यादव भी जनता के बीच मोदी को हराने की अपील कर रहे हैं। इसके अलावा जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षाविदों और छात्रों को भी बनारस में तैनात किया गया है।
केजरीवाल ने 2000 स्वयंसेवक पहले ही लगाए हुए हैं अब 2000 और प्रशिक्षित स्वयंसेवकों को भेजा गया है। सिविल सोसाइटी के 1000 सदस्य, मानव अधिकार कार्यकर्ता लोक गायक ये सब मोदी के खिलाफ भरपूर अभियान चला रहे हैं। लेकिन इसमें खतरा यह है कि इस अभियान का असर हिंदू बनाम मुस्लिम न बन जाए। वाराणसी में 12 मई को मतदान होना है। यानी अभी प्रचार के लिए काफी समय है। केजरीवाल 22 अप्रैल को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। आम आदमी पार्टी बनारस में भी दिल्ली की तर्ज पर प्रचार करेगी। पार्टी टूर घर-घर कैंपेन, रोड शो और जनसभाओं के जरिए समर्थन जुटाएगी। स्वयंसेवकों को निर्देश दिए गए हैं कि वे सीधे तौर पर स्थानीय लोगों से संपर्क बनाएं। मतदाताओं को समूहों के आधार पर बांटकर प्रचार करें। जैसे बुनकरों के लिए अलग से, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए अलग से प्रचार योजना बनाकर काम करें। बनारस की चार विधानभा सीटों को बांटकर विशेष रणनीति के तहत प्रचार करें। सपा ने कैलाश चौरसिया को इस सीट से टिकट दिया है। वहीं कौमी एकता दल के नेता मुख्तार अंसारी ने इस सीट से चुनाव न लडऩे का फैसला किया है। साल 2009 के चुनाव में भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी को दो लाख तीन हज़ार 122 वोट मिले थे। मुख्तार अंसारी को एक लाख 85 हजार 911, तो अजय राय को, जो कि जाति से भूमिहार हैं, एक लाख 23 हजार 874 वोट, राजेश मिश्र को 66 हज़ार 386 और विजय प्रकाश जायसवाल को 65 हजार 912 वोट मिले थे। मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है उनका बाहरी होना। यदि मुस्लिम केजरीवाल के पक्ष में जाते हैं तो मोदी के लिए यह एक बड़ी मुश्किल होगी। दो स्थानों से चुनाव लडऩा भी मोदी के खिलाफ जा सकता है। जीतने पर मोदी वड़ोदरा से सांसद रहना पसंद करेंगे या वाराणसी से? यह सवाल भी लोगों को मोदी को वोट देने से रोक सकता है।