बस्तर ने जगाई उम्मीदें
16-Apr-2014 08:06 AM 1234864

बस्तर में 9 अप्रैल को जब सुकमा से करीब 80 किलोमीटर दूर मतदान दलों को कैंप तक छोड़कर लौट रहे सुरक्षाबलों पर नक्सलियों ने फायरिंग करके तीन जवानों की हत्या कर दी थी तो लगा था कि लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत कम रहेगा, लेकिन 10 अप्रैल को जनता ने इसका मुंहतोड़ जवाब दे दिया और बस्तर में रिकार्ड मतदान देखने में आया।  54 प्रतिशत लोगों ने अपने मत का प्रयोग किया। इससे यह तो साफ है कि नक्सलियों ने लोगों को लोकतंत्र से मुंह मोडऩे के लिए प्रेरित किया, लेकिन जनता ने लोकतंत्र में अपनी आस्था बनाए रखी है। इसके बाद भी कई क्षेत्रों में नक्सली वोट डालने के उत्सुक लोगों को मतदान केंद्रों तक पहुंचने से रोकने में कामयाब रहे। ऐसे वोटरों की संख्या हजारों में है। 164 बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा, कई जगह प्रेशर बम भी फटे और लोग भी सहमे रहे, लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ में चुनाव का पहला चरण, जिसमें एकमात्र सीट बस्तर के लिए मतदान हुआ, शांतिपूर्ण कहा जा सकता। सुरक्षा बलों की 300 कंपनियों ने लोगों का हौंसला लौटाया।
अब 17 और 24 अप्रैल को दो चरणों में बाकी 10 सीटों के लिए मतदान होगा। सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन यह लड़ाई व्यक्तित्वों की भी है। खासकर अजीत जोगी जैसे नेताओं के मैदान में आने से माहौल बदला है। भाजपा की सीटें पहले के मुकाबले घट सकती हैं। बस्तर में आम आदमी पार्टी की सोनी सोरी ने भाजपा का गणित बिगाड़ दिया है ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं। 17 अप्रैल को कांकेर, महासमुंद और राजनांदगांव में जब वोट डाले जाएंगे तो राज्य का सियासी भाग्य तय हो चुका होगा। महासमुंद में अजीत जोगी दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं और उन्होंने पूरे राज्य के कांग्रेसी स्रोतों को अपने चुनाव क्षेत्र में लगा के रखा है। विधायकों से लेकर युवक कांग्रेस और एनएसयूआई की टीम जोगी के लिए काम कर रही है, लेकिन बाकी जगह माहौल कांग्रेस के पक्ष में नहीं है। अजीत जोगी और चरणदास महंत की आंतरिक तनातनी के निशान स्पष्ट देखे जा सकते हैं। महंत के मुकाबले भाजपा ने डॉ. बंशीलाल महतो को मुकाबले में उतारा है। महंत के नामांकरण के समय अमित जोगी और उनके समर्थक विधायक रामदयाल उइके की गैर मौजूदगी के कारण भितरघात का खतरा मंडराने लगा है। महंत के लोकसभा क्षेत्र में मरवाही विधानसभा आती है जहां जोगी परिवार का एक तरफा प्रभाव है यदि यहां से महंत को लीड नहीं मिली तो मामला बिगड़ जाएगा। इसी प्रकार सरगुजा में भाजपा के कमलभान को कांग्रेस के रामदेव राव से कड़ा मुकाबला करना होगा। यहां पर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस ने सिंहदेव को यह सीट निकालने की जिम्मेदारी दी है। भाजपा के विधायक राम विचार नेताम की क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। उधर कांकेर में भाजपा के विक्रम उसेंडी मजबूत स्थिति में हैं क्योंकि कांग्रेस में भितरघात स्पष्ट दिखाई दे रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी फूलो देवी नेताम अकेली ही चुनाव लड़ रही है। जोगी विरोधी खेमे की होने के कारण बाकी नेता नेताम से कटे हुए हैं। फूलो देवी ने जोगी से समझौता करने की कोशिश की है, लेकिन इस कोशिश में उनके अपने भी दूर हो गए। एक रोचक मुकाबला बिलासपुर में है जहां भाजपा प्रत्याशी लखनलाल साहू और कांग्रेस की करुणा शुक्ला मैदान में हैं। कुछ समय पूर्व एक बैनर करुणा शुक्ला के पक्ष में लगाया गया था। जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी करुणा शुक्ला के लिए वोट की मांग करते हुए कमल का बटन दबाने की बात कही गई थी। इस बैनर ने कांग्रेस की बहुत भद पिटवाई। करुणा शुक्ला यूं तो मजबूत हैं, लेकिन अजीत जोगी की गुटबाजी के चलते कांग्रेस में उनकी हालत और भी दयनीय हो गई है। भाजपा प्रत्याशी लखनलाल साहू को जातिवाद का फायदा भी हो सकता है। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़ और सरगुजा में 24 अप्रैल को मतदान है। यहां पर आमतौर पर भाजपा ही मजबूत समझी जाती है, लेकिन स्थानीय मुद्दे मोदी लहर का प्रभाव कम कर सकते हैं। बस्तर में चुनाव परिणाम पेटियों में बंद हो चुके हैं और पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा को सहानुभूति का लाभ अवश्य मिलेगा। समझा जाता है कि अधिक वोटिंग का यह भी एक कारण है। महेंद्र कर्मा पिछले वर्ष हुए एक नक्सली हमले में जान गवां बैठे थे। रायपुर में कांग्रेस बड़ी हास्यास्पद स्थिति में आ गई। अंदरूनी विवाद के चलते तीन-तीन बार प्रत्याशी बदले गए। छाया वर्मा और सत्यनारायण के बीच छाया युद्ध चलता रहा। आला कमान छाया वर्मा में संभावना तलाश रहा था तो स्थानीय नेता पूरी तरह सत्यनारायण शर्मा के पक्ष में थे। कहा जाता है कि शर्मा की एनजीओ पर अच्छी पकड़ है और उसी के मार्फत वे रायपुर में अपनी राजनीति चलाते हैं, लेकिन छाया वर्मा लगातार 8 दिन तक नाराज रहीं और बाद में भूपेश बघेल के घर जाकर उनकी नाराजगी शांत हुई इससे सत्यनारायण शर्मा को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन डेमेज हो चुका है। सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ रमेश बैस 7वीं बार सांसद बनने के लिए मैदान में हैं और कांग्रेस की भीतरी घमासान उन्हें मजबूत बना चुकी है।
राजनांदगांव में अब मुख्य रूप से डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है। कहा जा रहा है कि स्वयं रमन सिंह यहां परोक्ष रूप से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के कमलेश्वर वर्मा को जातिवाद के चलते टिकिट दिया गया है, लेकिन उसका असर कुछ खास नहीं है। क्योंकि कांग्रेसी नेता भी अभिषेक के साथ खड़े हैं। जांजगीर लोकसभा सीट में भाजपा सांसद कमला पाटले ने अब गहन प्रचार शुरू किया है उनके सामने प्रेमचंद जायसी कितने प्रभावी होंगे कहा नहीं जा सकता। क्योंकि यहां नरेंद्र मोदी की हवा देखी जा सकती है।
कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि अभी तक कोई बड़ा नेता यहां चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंचा है। दुर्ग में भाजपा की सरोज पांडे को लेकर भी स्थानीय नेताओं में असंतोष है, जिसके चलते सरोज पांडे के रिश्तेदारों ने मोर्चा संभाला हुआ है। उधर रायगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और आदिवासी नेता विष्णु देव राय चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की आरती सिंह ज्यादा प्रभावी हैं। भाजपा में यहां भितरघात की आशंका है क्योंकि कुछ लोग विष्णु देव को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते। यदि वे चुनाव जीते तो उनका कद और बढ़ जाएगा। वैसे भी अजीत जोगी यदा-कदा आदिवासी कार्ड खेलते रहे हैं। वे रमन ङ्क्षसह का विरोध इस आधार पर करते हैं कि रमनसिंह आदावासी नहीं है। छत्तीसगढ़ की अधिकांश जनसंख्या आदिवासी है। इसी कारण यहां मुख्यमंत्री के रूप में आदिवासी चेहरे की मांग होती रही है, लेकिन भाजपा के पास आदिवासी नेताओं का अभाव है। जो नेता हैं वे उतने प्रभावशाली नहीं है। जबकि कांग्रेस के पास कोरबा के चरणदास महंत और अजीत जोगी जैसे वजनी नेता है। लेकिन दिक्कत यह है कि इन नेताओं में एकता नहीं है।
बहरहाल इन सबके बावजूद यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पहले के मुकाबले बेहतर होगा। क्योंकि विधानसभा में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। वह सकार नहीं बन पाई थी। तब भी उसके मतों के प्रतिशत में अच्छी वृद्धि हुई। यदि एक प्रतिशत मत बढ़ जाते तो निश्चित रूप से कांग्रेस की ही सरकार बनती।

गुटीय राजनीति हावी
लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं की गुटीय राजनीति हावी दिख रही है। इसी का परिणाम है कि कई प्रमुख नेताओं को उनके क्षेत्रों में प्रभार या काम देने के बजाय उनसे नीचे के नेताओं को प्रभारी बना दिया गया है। भितरघात की आशंका के चलते उन नेताओं को आसपास के दूसरे क्षेत्रों में भेज दिया गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल के प्रत्याशियों को भितरघात की आशंका सता रही है। इसके अलावा ऐसे नेताओं की गतिविधियों को भी संगठन वॉच कर रहा है ताकि आपसी टकराहट बढ़ ना जाए। हेमचंद को दुर्ग के बजाय कांकेर का जिम्मा, सरगुजा की कमान पैकरा को भाजपा ने कुछ बड़े नेताओं को उनके क्षेत्र के बजाय दूसरे लोकसभा का जिम्मा दे दिया है। खासकर दुर्ग, सरगुजा, जांजगीर आदि क्षेत्रों के चुनाव संचालन की जिम्मेदारी इस तरह बांटी गई है कि प्रत्याशी और नेताओं के मतभेद ने उभर पाएं। भाजपा ने पूर्व मंत्री हेमचंद यादव को दुर्ग सीट के बजाय कांकेर की जिम्मेदारी सौंपी है। सांसद सरोज पांडे और हेमचंद के बीच मनभेद की वजह से यह व्यवस्था की गई है। दुर्ग जिले से ही कद्दावर नेता और मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे को जिम्मेदारी देने के बजाय पूर्व विधायक जागेश्वर साहू को संचालक बनाया गया है। प्रेमप्रकाश और हेमचंद दोनों घनिष्ठ मित्र माने जाते हैं। इस तरह दोनों को दुर्ग की कमान देने से परहेज किया गया है। जागेश्वर साहू को संचालक बनाकर भाजपा ने कांग्रेस के जातिवाद के कार्ड को हल्का करने का भी प्रयास किया है। सरगुजा जिले के चुनाव का संचालन करने वाले पूर्व गृह व पंचायत मंत्री रामविचार नेताम भी दूसरी पंक्ति में चले गए हैं। उनके बजाय कमलभान सिंह का चुनाव संचालन गृह मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा को दिया गया है। पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर भी अपने जिले के बजाय महासमुंद में चंदूलाल साहू की चुनाव कमान संभाल रहे हैं। जांजगीर में पुराने वरिष्ठ नेताओं के बजाय लीलाधर सुल्तानिया और रायगढ़ में गिरधर गुप्ता को प्रभारी बनाया गया है।

दो माओवादी हमलों में 15की मौत
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के दो अलग-अलग हमलों में 15 लोगों के मारे जाने की खबर है। पहला हमला बीजापुर जिले में मतदान दल पर हुआ है, जिसमें सात लोग मारे गये हैं। जबकि दूसरा हमला बस्तर के दरभा के पास स्वास्थ्य विभाग के एंबुलेंस पर हुआ है, जिसमें सीआरपीएफ के छह जवानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई है। पुलिस प्रवक्ता दिपांशु काबरा ने बताया, बीजापुर के थाना कुटरु अंतर्गत ग्राम केतुलनार के पास एक मतदान दल बस में बैठ कर लौट रहा था। एक तालाब के पास माओवादियों ने पहले से बम लगा रखा था, जिसकी चपेट में मतदान दल का वाहन आ गया। इस विस्फोट में सात लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि कुछ लोग घायल भी हुए हैं। पुलिस के अनुसार राजस्थान ट्रैवल्स की बस क्रमांक सीजी 17 के 0321 में मतदान कराने गए दो दल के लोग बेस कैंप से लौट रहे थे। दस अप्रैल को मतदान के बाद उन्हें पास के ही पुलिस कैंप में ठहराया गया था। शनिवार दोपहर उन्हें जगदलपुर के लिए रवाना किया गया था। एक दूसरी घटना में दरभा के पास तामनार में स्वास्थ्य विभाग के एंबुलेंस संजीवनी 108 पर भी माओवादियों ने हमला किया है, जिसमें सीआरपीएफ के छह जवान मारे गये हैं।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^