19-Jun-2014 04:07 AM
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सागर विश्वविद्यालय में करोड़ों का घोटाला करने और कई अवैध नियुक्तियां करने के आरोपी एम.एस. गजभिये का बचना मुश्किल है। पिछले वर्ष नवंबर माह में विधानसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सागर विश्वविद्यालय में चल रही घपलेबाजी को लेकर चिंता व्यक्त की थी। सीबीआई ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुये घपलेबाजी को उजागर करना शुरू कर दिया। हाल ही में सीबीआई ने गजभिये के उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में छह ठिकानों पर छापा मारा तो हड़कंप मच गई। गजभिये कुछ माह पहले ही अचानक अपना पद छोड़कर कानपुर वापस चले गये थे लेकिन जाते-जाते विश्वविद्यालय का इतना नुकसान कर गये
सीबीआई ने गजभिये के अलावा रजिस्टार के कार्यालय सहित 4 प्रोफेसरों के घर पर भी छापा मारा है। गजभिये 2010 में सागर विश्वविद्यालय के कुलपति थे। उस समय उन्होंने नियुक्तियों से लेकर खरीददारी में जमकर भ्रष्टाचार किया था। गजभिये की अनियमितताओं पर सबसे पहले पाक्षिक पत्रिका अक्स ने रिपोर्ट छापी थी कि किस तरह केवल कानपुर के लोगों में ही काबिलियत है कि वे सागर विश्वविद्यालय में नौकरी पा जाते हैं बाकी जगहों के लोगों में वह विशेषता नहीं है। दरअसल गजभिये ने अपने चाहने वालों को उपकृत किया और अयोग्य लोगों को भर्ती कर लिया। भर्ती घोटाले की आवाज राष्ट्रपति भवन में भी सुनाई दी और सीबीआई गुप्त तरीके से गजभिये के खिलाफ जांच-पड़ताल में जुट गई।
छापेमारी में 2 करोड़ 52 लाख रुपये की संपत्ति और नगदी तो मिल चुकी है। जिसमें इंश्योरेंस पॉलिसी भी शामिल हैं। लेकिन अभी मामले की परतें खुलना बाकी हैं। गजभिये का कहना है कि वे किसी भी घोटाले में शामिल नहीं हैं और उन्होंने आईआईटी पैटर्न पर 153 प्रोफसरों की भर्ती की है। सीबीआई ने महाराष्ट्र और हरियाणा में भी इस भर्ती से जुड़े लोगों की जड़ों को तलाशने की कोशिश की है। खासकर भूगोल, अपराध विज्ञान एवं फॉरेंसिक, फाइन आर्ट और परफॉरमिंग आर्ट जैसे विषयों में यूजीसी के मापदंडों का उल्लंघन करते हुये भर्ती की गई। विज्ञापन में दी गई अहर्ताओं को अनदेखा करते हुये नियुक्तियां कर दी गईं। बाद में इन नियुक्तियों के विरुद्ध प्राथमिक जांच पड़ताल की गई जिसमें सिलेक्शन कमेटी के सदस्य और गजभिये की भूमिका का पता लगाया गया। लेकिन गड़बड़ी पाये जाने के बाद भी ये निष्कर्ष धूल खाते रहे। गजभिये से बड़ी संख्या में ऐसे दस्तावेज बरामद हुये हैं जो उनकी कारगुजारी को उजागर करते हैं। एक जमाने में गजभिये आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर हुआ करते थे। बाद में उन्हें गोरखपुर विश्वविद्यालय का उप कुलपति बना दिया गया। बताया जाता है कि इस नियुक्ति में भी गोरखधंधा किया गया था। वहां से वे 2009 में सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बनकर आये और आते ही उन्होंने अपना रंग-ढंग दिखाना शुरू कर दिया। लगभग 172 कर्मचारी जिनमें बहुत से प्रोफेसर थे गजभिये के इशारे पर समस्त नियमों का उल्लंघन करते हुये भर्ती किये गये। लेकिन बार-बार शिकायत के बाद भी गजभिये ने अपना रवैया नहीं बदला। अंतत: सीबीआई हरकत में आई और अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि जो नियुक्तियां गजभिये के कार्यकाल में की गईं वे निरस्त की जायेंगी अथवा नहीं?
गजभिये ने नियुक्तियों में ही अनियमिततायें नहीं कीं बल्कि विश्वविद्यालय पैसे का भरपूर दुरुपयोग किया। अपनी पत्नी और बेटी सहित कई देशों की यात्रायें की। सीबीआई अब उनकी विदेश यात्राओं के खर्च का ब्यौरा खंगाल रही है। वे कहां ठहरे और कितना खर्च किया उनके जाने का उद्देश्य क्या था यह सब सीबीआई के जांच के दायरे में है। उनकी पत्नी, बेटी और स्वयं उनका पासपोर्ट जब्त किया जा रहा है। नागपुर में उनके ससुर हीरामन भगत के घर छापा मारकर अनेक दस्तावेज जब्त किये गये हैं। सीबीआई की टीम ने भगत का एक बैंक लॉकर सील कर दिया है। इस लॉकर से एक किलोग्राम सोना बरामद हुआ था।
गजभिये ने कैंपस के क्वार्टरों, मेंटेनेंस, अत्याधुनिक उपकरण खरीदी से लेकर छोटी-मोटी हर तरह की खरीद में गजभिये का कमीशन तय था। जिन लोगों की नियुक्ति की गई उन्होंने भी लाखों रुपये गजभिये के घर पहुंचाये जिन्हें रिश्तेदारों के मार्फत ठिकाने लगाया गया। मध्यप्रदेश के परिवहन एवं आईटी मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सागर विश्वविद्यालय में हुये घोटाले की जांच के लिये प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर स्मरण दिलाया है कि जब वे (नरेंद्र मोदी) सागर आये थे तो जनसभा में विश्वविद्यालय में एक हजार करोड़ के घोटाले की बात कही गई थी। 