19-Jun-2014 04:07 AM
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अरूण यादव प्रदेश कांग्रेस कमेटी में नई जान फंूकने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं। पुराने और खुर्राट कांग्रेसियों को उन्होंने चलता कर दिया है तथा तीसरी और चौथी पंक्ति के नेताओं को पहली और दूसरी पंक्ति में लाने की वे भरसक कोशिश कर रहे हैं। उनका यह प्रयास कितना फलीभूत होगा कहा नहीं जा सकता। चुनाव के दौरान अरूण यादव पर चुनाव के लिए आये खर्चे में हेराफेरी करने का आरोप लगा था। इसी कारण चुनाव सुचारू रूप से सम्पन्न नहीं हो पाए। मीडिया के बारे में कांग्रेस को शिकायत रहती है कि वह कांगे्रस को सपोर्ट नहीं कर रहा है। लेकिन जिस तरह की राजनीति यादव कर रहे हैं वह खानापूर्ति वाली राजनीति अधिक दिखाई देती है। वे स्वयं को पाक-साफ रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस चक्कर में उनकी छवि कांग्रेस के मजबूत नहीं बल्कि मजबूर नेता की बनी है जो दिखावे के लिए कांग्रेस को पुर्नजीवित करना चाहते हैं। इससे कांग्रेस के सच्चे कार्यकर्ताओं का नहीं बल्कि दलालों का भला हो रहा है। कांग्रेस का भविष्य देखकर कोई भी उससे जुडऩा नहीं चाहता न कार्यकर्ता न नेता। सब उससे दूर भाग रहे हैं। यादव ने कार्यभार तो राजधानी एक्सप्रेस टे्रन की स्पीड से संभाला था किंतु लगता है अब वह गति टांय-टांय-फिस्स हो गई है।
यादव अकेले नहीं हैं जिन्होंने पार्टी फंड से अपनी जेब मजबूत की है बल्कि उनके पूर्ववर्ती कांतिलाल भूरिया के कार्यकाल में भी सवा करोड़ के करीब का घपला सामने आया था। अब यादव विदा होंगे तो पता नहीं क्या घोटाला सामने आयेगा।
यही सब भांपते हुए दिल्ली के नेताओं ने अजय सिंह को इशारा कर दिया है कि वह अपने पिता के समय की पुरानी टीम को पुर्नजीवित करें। अजय सिंह इस मिशन में लगे हुए हैं किन्तु घोर निराश कार्यकर्ताओं को वे कितना उत्साहित कर पाएंगे कह नहीं सकते। हाल ही में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शोभा ओझा ने प्रदेश में महिला अत्याचारों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था लेकिन इस विरोध में रचनात्मकता का अभाव दिखा। बाद में जब पीसीसी में शोभा ओझा की मौजूदगी में महिला कांग्रेस पदाधिकारियों ने यह कहा कि हमें केवल झंडा-बैनर लगाने और भीड़ जुटाने के लिए तैयार किया जाता है तो कांग्रेस की अंदरूनी हालत सामने आ गई। वैसे भी पहले युवा कांग्रेस और एनएसयूआई की बैठक में असंतोष खुलकर सामने आया था।
एनएसयूआई के पूर्व पदाधिकारियों ने तो साफ कहा था कि प्र्रदेश में बड़े नेता मेहमानों की तरह आना बंद करें। क्योंकि अब दौर बदल गया है, पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों को मौका देना ही होगा। एक पूर्व पदाधिकारी ने तो यह तक बोला कि कांतिलाल भूरिया दस मिनट में ही नाम और चेहरा भूल जाते थे। इन नेताओं ने तो यह भी कहा कि पुराने गानों का रीमिक्स नहीं चलेगा नए चेहरे चाहिए। कुछ लोग तो यह भी कहते सुने गए कि उत्तरप्रदेश की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भी भंग कर देना चाहिए। यह मांग इसलिए उठी है कि सुभाष यादव के पुत्र अरूण यादव के नेतृत्व को लेकर भी कहीं न कहीं असंतोष है जिस शैली में अरूण यादव काम करते रहे हैं वह बहुत से नेताओं को पसंद नहीं आ रही है।
अरूण यादव भले ही संगठन को पुर्नजीवित करने का दिखावा करें लेकिन स्थानीय नेता यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के कर्मचारी तक तवज्जो नहीं देते। ऐसे में निकाय चुनाव के समय कांग्रेस की क्या दुर्दशा होगी कहा नहीं जा सकता। निकायों में जनता नाखुश है और व्यापक असंतोष है। लेकिन कांग्रेस इस पोजीशन में नहीं है कि वह असंतोष से कोई लाभ उठा सके। जहां तक सक्रियता का प्रश्र है इतना अवश्य हो रहा है कि कांग्रेस में कुछ नेता आए दिन प्रेस कांफे्रस करके सरकार की थोड़ी बहुत खिंचाई कर देते हैं। लेकिन कोई जनआंदोलन इस प्रदेश में अभी तक खड़ा नहीं हुआ है जिससे यह लगता है कि कांग्रेस पुरानी पराजय को भूलकर पुन: संगठित होने की कोशिश कर रही है।
वेबसाइट कब अपडेट होगी
मध्यप्रदेश कांग्रेस की वेबसाइट को देखकर यह लग रहा है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। वेबसाइट में प्रवेश करते ही सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी घोषणा पत्र लिए खड़े दिखाई देते हैं। लोकसभा प्रत्याशियों और मध्यप्रदेश के स्टार प्रचारकों की सूची देखकर लगता है कि मार्च माह के बाद से ही इस वेबसाइट को कबाड़ के हवाले कर दिया गया है। कांग्रेस के नेता संगठन में युवा जोश फूंकना चाहते हैं लेकिन संगठन को आगे बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रचार माध्यमों की उपयोगिता का उन्हें ज्ञान नहीं है। क्या इसी भरोसे कांग्रेस पुर्नजीवित होने का ख्वाब देख रही है।