16-Apr-2014 10:59 AM
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मध्यप्रदेश में बिल्डरों को उपकृत करने के लिये वन अधिनियम की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और जब गलती पकड़ में आती है तो फिर अधिकारी बगलें झांकने लगते हैं। भू-माफिया और जमीन का खेल इस प्रदेश में बहुत पुराना है।मध्यप्रदेश में जमीनों की कीमत बढऩे का एकमात्र कारण अवैध जमीनों पर कब्जा करना, किसानों की जमीनों को आवासीय में बदलना, आदिवासियों की जमीन खरीद-फरोख्त कर बाद में घुमा-फिराकर अपने खातों को ठीक करा लेना इस प्रदेश के भू-माफियाओं का धंधा बना हुआ है। इसी का एक उदाहरण मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप वन परिक्षेत्र की भूमि को आवासीय में बदलने की हिम्मत भोपाल के भू-माफिया नितिन लालचंदानी ने की है। कहानी कुछ यूं है कि भोपाल विकास योजना में तहसील हुजूर जिला भोपाल में नगर निगम सीमा के बाहर चंदनपुरा गांव में स्थित खसरा 88/1/1/ख/ 6,89/1 के तहत 6.7 हैक्टेयर भूमि को पहले आवासीय क्षेत्र में परिवर्तित करने की पूरी तैयारी कर ली गयी और बाद में जब इस पर आपत्ति उठाई गई तो बिल्डर नितिन लालचंदानी को काम करने से रोक दिया गया। यह जमीन वन क्षेत्र की जमीन है और इस पर किसी भी प्रकार की व्यावसायिक या आवासीय गतिविधियां करना 1980 में बनाये गये वन अधिनियम का सरासर उल्लंघन है। इस अधिनियम में तो वन क्षेत्रों में प्रवेश भी वर्जित बताया गया है लेकिन यहां तो बिल्डर बाकायदा वन विभाग का अनापत्ति प्रमाण पत्र हाथ में रखकर जंगल को तबाह करने पर जुटा हुआ था। ज्ञात रहे कि एसआईटीपी भोपाल के संचालक (समन्वय) नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 की धारा 23-(1)ख के अंतर्गत वन विभाग से उक्त भूमि के संबंध में अभिमत उपलब्ध कराने की बात कही थी। इस पत्र के उत्तर में भोपाल वन मंडल के पदेन वन मंडालाधिकारी एवं वन संरक्षक एल. कृष्णमूर्ति ने एक पत्र जारी करके कहा था कि राजस्व विभाग से पुष्टि कर ली जाये कि उक्त भूमि छोटे-बड़े झाड़ के जंगल के रूप में दर्ज तो नहीं हैं। तदोपरांत उक्त भूमि का सार्वजनिक, अर्धसार्वजनिक, मार्ग एवं आवासीय (निम्न घनत्व) से आवासीय भू उपयोग उपांतरण किया जा सकता है। पत्र में लिखा गया था कि इस पर वन मंडल कार्यालय भोपाल को कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन बाद में वन मंडल ने पुन: एसआईटीपी के संचालक (समन्वय) को एक पत्र लिखा तथा उस पत्र में राजस्व विभाग के परिपत्र क्रमांक 16-10-7/2-ए/90 दिनांक 13-1-1997 का हवाला देते हुये पुन: स्मरण दिलाया गया कि उक्त भूमि छोटे-बड़े झाड़ का जंगल या वन परिभाषा में न आने की स्थिति में ही अनापत्ति दी गई। यदि ऐसा नहीं है तो इस भूमि पर भूमि संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधान लागू होंगे और इस स्थिति में यह वन संरक्षण अधिनियम नियम 1980 का उल्लंघन माना जायेगा।
दरअसल ये भूमि कोलार रोड के पास स्थित भादुड़ी नगर बीडीए कॉलोनी के समानांतर रोड एवं अमरनाथ कॉलोनी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर बनने वाले किसी मार्ग पर स्थित है। यहां से दानिश हिलव्यू तक 24 मीटर चौड़ा रास्ता निकाला जायेगा। नितिन नील चंदानी जो कि एक बिल्डर हैं इसमें मल्टी स्टोरी बनाना चाहते हैं और उन्होंने नगर निगम भोपाल विकास प्राधिकरण, राजस्व विभाग, जल संसाधन विभाग की एनओसी भी प्राप्त कर ली थी। बाद में भू उपयोग परिवर्तन की समिति ने अपना सामूहिक निष्कर्ष देते हुये लिखा कि उपरोक्त भूमि भोपाल नगर निगम सीमा के बाहर कोलार क्षेत्र में स्थित है जहां पूर्व में कई कॉलोनियों का विकास हो चुका है एवं यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है। अत: भोपाल विकास योजना अनुसार संवेदनशील क्षेत्र हेतु भूमि का एफएआर 0.75 रखते हुये भोपाल विकास योजना के मार्ग को यथावत रखते हुये भूमि का भू उपयोग आवासीय एवं मार्ग की अनुशंसा की जानी चाहिये। परंतु संचालक मंडल ने बाद में अपनी अनुशंसा को शासन में भेजने के साथ संबंधितों को कह दिया कि हमने तो इस भूमि को आवासीय में परिवर्तित करने की अनुशंसा कुछ शर्तों के साथ कर दी है पर आप (यानी शासन) इसमें आपत्ति लगा दे। यह दोहरे चरित्र की पीछे की कहानी तो किसी को पता नहीं है, परंतु बिल्डर तो दमदार है। इसीलिए तो उसने संचालक मंडल के साथ-साथ वनमंडल भोपाल से भी अपने पक्ष में फैसला करा लिया। गुलशन बामरा कहते हैं कि 10 विभागों ने इसमें पहले से ही एनओसी दे रखी थी। वे 10 विभाग कौन है। हमारी जानकारी के अनुसार केवल वन विभाग और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने उक्त अनुमति दी थी। बिल्डर द्वारा तो इसमें वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन तो किया ही हैं क्योंकि यह जंगल की जमीन है और इस जमीन के आसपास जंगल दिखाई देता है साथ ही यहां पर बाघ-बाघिन और उनके बच्चों का विचरण हमेशा देखा गया है। बाघ-बाघिन ने कई मवेशियों का शिकार भी उक्त जंगल में किया है। परंतु वन मंडल भोपाल ने अपने पत्र क्रमांक 1925 दिनांक 19.07.2013 में संबंधित व्यवसायी को उक्त भूमि का सार्वजनिक अर्ध सार्वजनिक एवं मार्ग एवं आवासीय, निम्न घनत्व से आवासीय भू-उपयोग उपांतरण किया जाता है। इसमें कार्यालय को कोई आपत्ति नहीं है। परंतु बाद में इसी कार्यालय द्वारा दिनांक 23.1.2014 को एक घुमा-फिरा पत्र नगर तथा ग्राम निवेश को लिखते हुए उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन होना बताया है। उन्होंने उस पत्र में जंगल की जो परिभाषा दी है उसमें छोटे झाड़ झंखाड़ भी जंगल की ही श्रेणी में आते हैं, जिन्हें साफ करना गैरकानूनी है। ऐसे क्षेत्र के आसपास कोई भी आवासीय या व्यावसायिक गतिविधि नहीं की जा सकती। यहां तक कि माचिस की तिल्ली जलाना भी अपराध है। ऐसी स्थिति में यहां पूरी कॉलोनी बनाने की तैयारी चल रही है। इसका क्या आधार है यह समझ से परे है।
इस जमीन का प्रकरण 10 विभागों के अनुमोदन के पश्चात मेरे पास आया था। मैंने आश्चर्य व्यक्त किया था कि उस क्षेत्र में अनुमति कैसे दी जा सकती है क्योंकि अन्य विभागों ने पहले से ही एनओसी दे रखी थी अत: हमने भी दे दी।
-गुलशन बामरा,
आयुक्त नगर तथा ग्राम निवेश
मेरे समक्ष यह प्रकरण एनओसी के लिए आया था मैंने उसमें शर्त रखी थी कि यदि नियमानुसार वन भूमि न हो तो निर्माण की अनुमति न दी जाए। बाद में जब ज्ञात हुआ कि यह वनभूमि है तो उस अनुमति को रद्द किया गया।
एल कृष्णमूर्ति, वन संरक्षक
हम तो छोटे से बिल्डर हैं जब तक परमीशन नहीं मिलेगी काम नहीं करेंगे। उस भूमि पर अभी कोई काम नहीं किया गया है।
नितिन लालचंदानी, बिल्डर