जैदी की जिद
16-Apr-2014 08:58 AM 1234991

मध्यप्रदेश में चुनाव आयोग द्वारा चार कलेक्टरों के तबादलों ने कई सवाल खड़े किये हैं। हाल ही में आयोग ने चुनाव की पूर्व तैयारी में कलेक्टर, कमिश्नर और पुलिस के आला अफसरों की जो खिंचाई की थी उसी से लग रहा था कि कलेक्टरों और एसपी की छुट्टी होगी। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्य चुनाव आयुक्त वी.एस. संपत को लिखे पत्र में कलेक्टरों को बिना कारण बताये और सुनवाई का अवसर दिये हटाने के निर्णय पर विरोध जताया है, लेकिन प्रश्न यह है कि जिन अफसरों को विधानसभा चुनाव के दौरान अच्छा कार्य करने के लिये आयोग से प्रमाण पत्र और प्रशंसा पत्र मिले थे अब वे ही आयोग की नजर में खलनायक क्यों बन गये? मुख्यमंत्री के पत्र में लिखा है कि कुछ अधिकारियों को कतिपय जिलों में पदस्थ करने के लिये आयोग ने ही पत्र लिखा था। आयोग के निर्देशों का पालन भी किया गया लेकिन उसके बाद भी जिस तरह अफसरों को स्थानांतरित किया गया वह चिंतनीय है।
प्रक्रिया यह है कि चुनाव आयोग किसी अधिकारी विशेष का तबादला करना चाहता है तो वह पहले राज्य सरकार के अधिकारियों का एक पैनल बुलाकर उसमें से एक नाम चुनता है। पहले ऐसा ही किया जाता रहा है। लेकिन अचानक इस परंपरा की पूरी तरह से अनदेखी की गई। मुख्यमंत्री के पत्र में कहा गया है कि एक अनुविभागीय दंडाधिकारी को अशोकनगर से जबलपुर भेजा गया। चूंकि इस अफसर को किसी भी अन्य जिले में उसी पद पर कार्य करने के लिये पूर्व में अच्छा माना गया था इसलिये वर्तमान में उसे उसी पद पर कार्य करने के लिये अक्षम माना जाना समझ से परे है। अचानक किये गये इन स्थानांतरणों से निर्वाचन कार्य में लगे अधिकारियों के मनोबल पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। लेकिन आयोग के इस निर्णय के बाद कई दूसरे सवाल भी खड़े हुये। जैसे जिन कलेक्टरों को हटाया गया वे उन जिलों में पदस्थ हैं जहां से कांग्रेस के तीन बड़े दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं। जयश्री कियावत को कलेक्टर झाबुआ के पद से हटाकर स्टेट डेयरी फेडरेशन का एमडी बनाया गया है। 2002 बैच के आईएएस अधिकारी चंद्रशेखर बोरकर झाबुआ भेजे गये हैं। कियावत की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुये उनके विरुद्ध माणक अग्रवाल ने चुनाव आयोग में शिकायत की थी और कहा था कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की मुंहबोली बहन हैं तथा उन्हें राखी बांधती हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने 8 मई 2012 को भाजपा के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस शिकायत पर जयश्री कियावत ने आयोग को 28 मार्च 2014 को बिंदुवार प्रतिवेदन प्रेषित किया था जिसमें स्पष्ट किया गया था कि उन्होंने विभिन्न अवसरों पर धार्मिक तथा अन्य आयोजनों में भाग लेकर शासन की योजनाओं के निष्पादन में आम जनता के सहयोग की अपेक्षा की है। प्रतिवेदन में लिखा है कि जिस घटना का विवरण माणक अग्रवाल की शिकायत में दिया गया है वह डेढ़ साल पुरानी है और इसका चुनाव संपादन से कोई संबंध नहीं है। कियावत ने यह भी स्पष्ट किया है कि न तो वे सीएम की मुंहबोली बहन हैं और न ही उन्हें राखी बांधती हैं।
इसके अतिरिक्त खंडवा कलेक्टर नीरज दुबे को हटाकर उनके स्थान पर 2008 बैच की आईएएस अधिकारी सुश्री शिल्पा गुप्ता को पदस्थ किया गया है। नीरज दुबे वही अधिकारी हैं जिन्हें इसी वर्ष जनवरी माह की 25 तारीख को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी जयदीप गोविंद ने विधानसभा चुनाव 2013 में प्रदेश स्तर पर सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता गतिविधियों में उल्लेखनीय कार्य हेतु प्रशंसा पत्र दिया था। लेकिन अब नीरज दुबे को लूप लाइन पर पटकते हुये मंत्रालय में अपर सचिव चुनाव आयोग द्वारा बना दिया गया है। इसी तरह रतलाम कलेक्टर राजीव चंद्र दुबे को भी इसी वर्ष चुनाव आयोग ने प्रशंसा पत्र दिया था, लेकिन वे स्वास्थ्य संचालक बनाकर भेज दिये गये और उनके स्थान पर 2003 बैच के आईएएस अधिकारी संजय गोयल को रतलाम कलेक्टर बना दिया गया। कलेक्टरों पर कार्रवाई का आभाष तो उसी दिन हो गया था जब मार्च माह की 30 तारीख को चुनाव आयुक्त डॉ. नसीम जैदी और उप निर्वाचन आयुक्त सुधीर त्रिपाठी ने चुनाव तैयारियों की समीक्षा के दौरान कलेक्टरों के कामकाज पर उंगली उठाई थी। उस वक्त कहा गया था कि मामलों को 24 घंटों के भीतर निपटाना है विलंब नहीं होना चाहिए।
सवाल यह है कि जो अफसर जनवरी माह में आयोग से ही प्रशंसा पत्र पाते हैं वे अप्रैल आते-आते इतने अप्रिय क्यों हो जाते हैं कि आयोग कलेक्टरी से लज्जित करके उन्हें हटा देता है। शासन का कहना है कि अगर कलेक्टरों को बदलना है तो उनके नामों की एक पैनल मांगने की प्रक्रिया है। आयोग खुद अपनी मर्जी से नाम तय करके शासन को नहीं भेजता है। दबे पांव सरकार के आला अफसर कहते हैं कि इसमें राजनीति रंग होने के कारण इन कलेक्टरों को वहां से रफा-दफा किया गया है। जिस तरह ग्वालियर एसएसपी संतोष सिंह के स्थान पर तीन नामों का पैनल मांगा गया। चंदेरी एसडीएम के लिये भी तीन आईएसएस अफसरों ने नाम मांगे थे। उसी तरह इन मामलों में भी किया जाना था। यूं देखा जाये तो हर राज्य में चुनाव से पूर्व चुनाव आयोग द्वारा अफसरों के तबादले किये जाते हैं। छत्तीसगढ़ में धमतरी कलेक्टर नवलसिंह मंडावी को हटा दिया गया। उधर पिछले वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पैरों पर गिरने वाले एक अफसर को चुनाव आयोग ने हटा दिया था। निष्पक्ष चुनाव के लिये इस तरह की कार्रवाईयां होती रहती हैं। लेकिन कई बार ज्यादती भी हो जाती है। जैसे अशोक खेमका के मामले में देखा भी जा चुका है। चुनाव आयोग एक निष्पक्ष संस्था है इसलिये चुनाव आयोग से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रहती हैं।
कांग्रेस के कहने पर तबादला
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि रतलाम और झाबुआ में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया, प्रेमचंद गुड्डू, मीनाक्षी नटराजन के क्षेत्रों का कुछ हिस्सा इन कलेक्टरों के कार्यक्षेत्र में आता है। वहीं खंडवा से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए वहां के कलेक्टर को हटाया गया। इसी तरीके से छिंदवाड़ा कलेक्टर महेश चौधरी की छुट्टी कमलनाथ के चुनावी खर्च को सही बता देने के कारण उनकी शिकवा-शिकायत की गई। जिसके कारण आयोग ने उन्हें हटाने के निर्देश सरकार को दिए थे।
80 अधिकारियों को हटाया गया
चुनाव आयोग ने शिकवा-शिकायतों के चलते मध्यप्रदेश के 80 छोटे और बड़े अफसरों को स्थानांतरित कर दिया है। कुछ के खिलाफ गंभीर शिकायतें थीं तो कुछ राजनीति का शिकार होकर रुख्सत हो गए हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इसी दुर्भावना के साथ कुछ कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों के तबादले कर दिए गए थे पर चुनाव होते ही उन्हें वापस उसी जगह पर पदस्थ कर दिया गया था। इस बार चुनाव आयोग ने चार कलेक्टर एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, एक एसडीएम और चार थाना प्रभारियों को स्थानांतरित किया। वहीं दो सीएमओ को सस्पेंड किया गया। वहीं नगर तथा ग्राम निवेश इंदौर के संयुक्त संचालक जेडी मिश्रा को भी अपने प्रमुख सचिव और मंत्री की जिद के कारण इंदौर से हटना पड़ा। सफाई में प्रमुख सचिव महोदय यह कह रहे हैं कि वह तो खुद ही इंदौर से जाना चाहते थे। सूत्र बताते हैं कि इसे के चलते हुए भोपाल के एक भू-माफिया को सरकार के एक मंत्री ने शिकायत करने को कहा और उस शिकायत को मुद्दा बनाते हुए आयोग ने सरकार को उन्हें स्थानांतरित करने के निर्देष दिए थे।
सीईओ की मनमानी से आईएएस नाराज
इलेक्शन कमीशन-चुनाव आयोग जिसे सत्ता के गलियारों में ईसी कहा जाता है से आईएएस एसोसिएशन नाराज चल रही है। जाहिर सी बात है जब अधिकारियों को फुटबाल की तरह इधर से उधर किया जाएगा तो नाराजगी कहर बरपाएगी ही। वो भी उन अफसरों पर जिनका रिकार्ड बेहतरीन था। बहरहाल संयोग की बात यह है कि चुनाव आयोग के गुस्से के शिकार जो अधिकारी हुए हैं। उनमें से ज्यादातर प्रमोटी ही हैं। चाहे चौधरी हों या कियावत या कोई अन्य। आईएएस एसोसिएशन ने राम नवमी के दिन अपने पदाधिकारियों की बैठक बुलाई वह भी जब, जब रामलला का जन्म का समय था। अधिकारियों को पूजा-पाठ से तो कोई मतलब होता नहीं है उनके लिए तो कर्म ही पूजा है इसलिए उन्होंने बैठक का समय भी कुछ ऐसा  चुना जब ज्यादातर लोग पूजा करते हैं और इस बैठक में साफ तौर से देखने को मिला कि आरआर और प्रमोटी में कितना अंतर है। परंतु एक पदाधिकारी ने अपना नाम न लिखने की शर्त पर बोले कि आईएएस तो आईएएस ही होता है। भला वह पीछे के दरवाजे से या खिड़की से या सीधे आया क्यों न हो। हमें अपने और उसके बीच में इस तरीके का भेदभाव नहीं करना चाहिए। जिस तरीके से अफसरों को फुटबाल की तरह इधर से उधर किक मारी जा रही है। उससे पूरी एसोसिएशन का मनोबल टूट रहा है। इतना कहने के बाद तो दो महिला पदाधिकारियों को यह बात रास नहीं आई क्योंकि उनका धर्म यही है कि हम तो आरआर हैं प्रमोटी से हमें क्या लेना-देना। मजे की बात यह है कि जिन चार कलेक्टरों को आयोग के निर्देश पर चलता किया है वह चारों ही प्रमोटी हैं और उनकी जगह जिन्हें भेजा है वह चारों-आरआर है। जब आयोग और प्रदेश के नेता ही उनके साथ दोहरा व्यवस्था करते हैं तो भला यह एसोसिएशन में तो उनके लिए पहले भी कोई जगह थी नहीं। इसी के चलते हुए प्रमोटी आईएएस अफसरों ने कुछ माह पूर्व एक बैठक करक अपनी भड़ास आरआर के प्रति निकाली थी। फिर बाद में उक्त बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि जिन जिलों से कलेक्टरों को हटाया है उनकी जगह पर आयोग ने सीधे नाम भेज दिए हैं कि  इन्हें उक्त कलेक्टरों के स्थान पर पदस्थ करें। जबकि पुलिस अधिकारियों में बाकायदा प्रक्रिया के तहत पैनल मंगाई गई थी। बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि चुनाव आयोग के इस रवैये से युवा आईएएस में असंतोष है क्योंकि उन्हें अपमान जनक तरीके से हटाया गया। कई मामलों में चुनाव आयोग की दादागिरी देखने में आती है। सुनने में तो यह भी आया है कि चुनाव आयोग की इस मनमानी के खिलाफ एसोसिएशन कोर्ट भी जा सकती है।

चुनाव चल रहा है। मैं इस विषय में कोई बात नहीं करना चाहती।
अरुणा शर्मा, अध्यक्ष आईएएस एसोशिएशन, म.प्र.
आईएएस अधिकारी निष्पक्षता से कार्य करते हैं और पूरी निष्ठा से ड्यूटी निभाते हैं। यह आईएएस एसोसिएशन का भीतरी मामला है। बाहर चर्चा का विषय
नहीं है।
अशोक वर्णवाल, पदाधिकारी आईएएस एसोशिएशन, म.प्र.
अधिकारियों को बगैर पैनल मांगे हटाना सरासर गलत है। मैं इसका समर्थन नहीं करता। इससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता भी कटघरे में खड़ी होती है और अधिकारियों का मनोबल भी गिरता है।
अवनि वैश्य, पूर्व मुख्य सचिव, म.प्र.

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