02-Apr-2014 09:53 AM
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उत्तरप्रदेश में जुबानी जंग चालू है लेकिन कई बार राजनेता शब्दों की मर्यादा लांघ जाते हैं। ऐसे ही एक वाकये में कांग्रेस के सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार इमरान मसूद ने नरेंद्र मोदी को एक तरह से जान से मारने की धमकी दे डाली

और कहा कि गुजरात में सिर्फ चार प्रतिशत मुस्लिम हैं जबकि यहां सहारनपुर में बयालीस प्रतिशत हैं। यदि मोदी ने उत्तरप्रदेश को गुजरात बनाने की कोशिश की तो यहां के मुसलमान उनकी बोटी-बोटी काट डालेंगे। बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा तो इमरान मसूद ने माफी मांगने से भी इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि जिन शब्दों का प्रयोग उन्होंने किया था वह गलत है और मुहावरे के तौर पर बोले गये थे। मसूद को 14 दिन के लिए जेल भेज दिया गया है। लेकिन तब तक बवाल मच गया था। लगातार कांग्रेस और भाजपा की तरफ से हमले होते रहे। कांग्रेस नेता राजबब्बर ने मसूद के बयान को गलत बताया लेकिन भाजपा ने चुनाव आयोग से शिकायत कर मांग की कि मसूद की उम्मीदवारी रद्द की जाये। उधर राहुल गांधी की सभा इस गलत बयानी के कारण 2 मिनट में पूरी हो गई। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस को बतौर उम्मीदवार मसूद को चुनाव में प्रस्तुत नहीं करना चाहिये, लेकिन प्रश्न इतना ही नहीं है प्रश्न यह है कि चुनावों में शब्दों की मर्यादा का उल्लंघन ही क्यों किया जाता है। स्वयं नरेंद्र मोदी कई बार अपने भाषणों में व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी कर चुके हैं। उनका आचरण भी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की गरिमा के अनुरूप नहीं है।
बहरहाल कांग्रेस फिलहाल मसूद के इस बयान के कारण बैकफुट पर आ गई है। मसूद को गिरफ्तार कर लिया गया है और मामले ने यदि ज्यादा तूल पकड़ा तो चुनाव आयोग भी कार्रवाई कर सकता है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में वैसे भी दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर है। उधर समाजवादी पार्टी ने भी इस मुस्लिम बहुल इलाके में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटें सभी दलों के लिये महत्वपूर्ण हैं और इसीलिये कांग्रेस तथा भाजपा उत्तरप्रदेश में सर्वाधिक मेहनत कर रहे हैं। राज्य में सत्तासीन समाजवादी पार्टी का ग्राफ मुजफ्फरनगर दंगों के बाद तेजी से गिरा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इन दंगों को रोकने के लिये अखिलेश सरकार ने पर्याप्त उपाय नहीं किये। सुप्रीम कोर्ट के इस निष्कर्ष के बाद अखिलेश सरकार की मुसीबतें बढ़ती नजर आ रही हैं।
मोदी की चुनौती बढ़ी
अरविंद केजरीवाल जब बनारस पहुंचे उसी दिन तय हो गया था कि वे गंगा स्नान के बाद चुनाव लडऩे की घोषणा करेंगे। यदि केजरीवाल जनमत संग्रह कराते तो संभवत: जनता उन्हें चुनाव लडऩे साफ मना कर देती। लेकिन बनारस में उन्होंने जनमत से ज्यादा ध्वनिमत पर विश्वास किया और अब वे चुनावी मैदान में हैं। केजरीवाल के आने के बाद कांग्रेस के रुख में अचानक बदलाव आया है। पहले दिग्विजय सिंह की चर्चा थी कि वे मोदी को चुनौती देने के लिये मैदाने जंग में आ सकते हैं लेकिन दिग्विजय को लेकर कोई ठोस बयान कांग्रेस की तरफ से नहीं आया है। लगता है कि ये किसी गोपनीय डील का हिस्सा है, क्योंकि लखनऊ में नेताजी ने राजनाथ सिंह के खिलाफ दमदार प्रत्याशी बदल दिया है उधर उमा भारती जिनके सोनिया के खिलाफ चुनावी मैदान में आने की संभावना थी झांसी से ही चुनाव लड़ रही हैं और स्मृति इरानी का भी तय नहीं है कि वे राहुल गांधी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगी। सियासी बिसात पर शतरंज की गोटियां भविष्य के समीकरणों को देखकर तय की जा रही हैं। लेकिन इसके बाद भी उत्तरप्रदेश सारी दुनिया की निगाहों में रहेगा। गाजियाबाद में राजबब्बर के मुकाबले में भाजपा के जनरल वी.के. सिंह हैं और आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी ने लड़ाई को रोचक बना दिया है। यहां मुस्लिम मतों का विभाजन तय है। इसका फायदा अंतत: भाजपा को ही मिलेगा। इसी प्रकार कानपुर में श्रीप्रकाश जायसवाल और मुरली मनोहर जोशी के आमने-सामने होने से सारे देश की निगाहें इस सीट पर भी रहेंगी। जोशी को बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है जायसवाल जाति का समीकरण में पहले भारी पड़ते थे लेकिन अब परिसीमन के बाद 35 प्रतिशत मुस्लिम वोटर निर्णायक हो सकते हैं जिन्हें समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी काट सकता है। वहीं 35 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर अब कानपुर में मुरली मनोहर जोशी को वोट दे सकते हैं। बहुजन समाज पार्टी पिछड़ों और दलितों के वोट में अवश्य सेंध लगायेगी। जोशी का मानना है कि तीन बार के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल की जीत का अंतर पिछली बार 20 हजार रह गया था। यदि आम आदमी पार्टी जैसे दलों के आने से मतों का धु्रवीकरण हुआ तो भाजपा को फायदा ही पहुंचेगा। उत्तरप्रदेश में आम आदमी पार्टी कोई फैक्टर नहीं है लेकिन आम आदमी पार्टी को मिलने वाले वोट समाजवादी पार्टी, कांग्रेस तथा बहुजन समाज पार्टी के खाते से ही आयेंगे। इस तरह जहां-जहां त्रिकोणीय संघर्ष होगा वहां निश्चित रूप से भाजपा को फायदा मिलेगा। भाजपा के सभी दिग्गज नेता इसी वजह से अपनी जीत के प्रति आशावान हैं चाहे वह राजनाथ सिंह हों या उमा भारती। जहां तक समाजवादी पार्टी का प्रश्न है उसका मतदाता अभी भ्रम की स्थिति में जी रहा है। समाजवादी पार्टी कितना लाभ ले पायेगी कहना मुश्किल है।