16-Apr-2014 09:08 AM
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राजस्थान की 10 सीटों पर बहुकोणीय मुकाबले ने भाजपा के मिशन 25 को खासा नुकसान पहुंचाया है। लोकसभा की 25 सीटों पर जिन 320 प्रत्याशियों के लिए मुकाबला होना है उनमें से महज 27 महिलाएं हैं इससे साफ हो जाता है कि

राजस्थान में पुरुषों का वर्चस्व है और इनमें भी जिन 7 सीटों पर खास मुकाबला है वहां अधिकांश जाने-पहचाने पुरुष नेता मदान-ए-जंग में हैं। बाड़मेर, दौसा, चुरु, झुंझुनू, गंगानगर, टोंक-सवाई माधौपुर, जालौर, नागौर, सीकर, जयपुर ग्रामीण, जयपुर शहर, बांसवाड़ा अजमेर, भीलवाड़ा, बीकानेर, चित्तौडग़ढ़, झालावाड़, पाली, राजसमंद, उदयपुर, कोटा, करौली-धौलपुर, अलवर, भरतपुर में से अधिकांश पर भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य रूप से मुकाबले में हैं, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है। बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी सहित विभिन्न दलों ने अच्छी पकड़ बनाई है। बूटा सिंह और जसवंत सिंह जैसे निर्दलीय भी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। अजमेर में कांग्रेस के सचिन पायलट का मुकाबला राजस्थान सरकार में मंत्री सांवरलाल जाट से है। यह एक प्रमुख सीट मानी जा रही है। पायलट को हाल ही में कांग्रेस ने प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व सौंपा है और उनका प्रयास यही रहेगा कि वे अधिक से अधिक सीटें अपने दल को दिलवाएं। एक अन्य हाईप्रोफाइल मुकाबला सीकर में है जहां भाजपा के स्वामी सुमेधानंद और कांग्रेस के पीएस जाट की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाया है भाजपा से बागी हुए सुभाष महरिया ने जो निर्दलीय मैदान में हैं। अलवर में भाजपा के महंत चांदनाथ के मुकाबले केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री भंवर जितेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहीं टोंक-सवाई माधौपुर में प्रदेश के सबसे धनी प्रत्याशी भाजपा के सुखबीर सिंह जौनपुरिया कांग्रेस के मोहम्मद अजहरुद्दीन का मुकाबला करेंगे। ये दोनों प्रत्याशी प्रदेश से बाहर के हैं और इसी कारण मुकाबला रोचक हो गया है।
दौसा पर भी सभी की नजरें रहेंगी क्योंकि मुकाबला दो सगे भाईयों के बीच है। दोनों आईपीएस अफसर रहे हैं। कांग्रेस के नमो नारायण मीणा और भाजपा के हरीशचंद मीणा में से कौन जीतेगा कहना कठिन है क्योंकि राजपा के पूर्व सांसद किरोणी मीणा ने यहां पर जातिवादी टक्कर को रोचक बना दिया है। यही हाल जयपुर ग्रामीण में है जहां ब्राह्मण वोटों पर भरोसा करके मैदान में उतरे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सीपी जोशी को ओलंपियन राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से कड़ी चुनौती मिलेगी। जातिगत समीकरण किसके पक्ष में जाएंगे कह नहीं सकते, लेकिन राज्य की सबसे हॉट सीट तो बाड़मेर है जहां से भाजपा के बागी जसवंत सिंह निर्दलीय मैदान में हैं और उनका मुकाबला भाजपा के कर्नल सोना राम से हैं। ये दोनों आपस में भाजपा के ही वोट काटेंगे। जिसका फायदा कांग्रेस के मौजूदा सांसद हरीश चौधरी को मिल सकता है। भाजपा ने हाल ही में जसवंत सिंह के बेटे और विधायक मानवेंद्र सिंह के बेटे को पार्टी से निकाल दिया है। मानवेंद्र अपने पिता का ही प्रचार कर रहे थे। कांग्रेस ने जो चक्रव्यूह बनाया है। उसमें तकरीबन सभी बड़े नेता शामिल हैं। जबकि भाजपा ने मोदी लहर पर भरोसा करते हुए मुख्य रूप से बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में झोंका है। कांग्रेस के सचिन पायलट और सीपी जोशी को उनके क्षेत्र में सीमित करने की भाजपा की रणनीति कामयाब दिखाई दे रही है। उधर गुलाबचंद कटारिया, गजेंद्र सिंह खींवसर, राजेंद्र राठौड़, यूनुस खान जैसे दिग्गज भाजपाई नेता जो कि वर्तमान सरकार में मंत्री भी हैं, जातिगत समीकरणों के आधार पर सारे प्रदेश में गहन चुनावी अभियान कर रहे हैं। प्रदेश प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी का विश्वास है कि बागियों से निपटने में यह पांच महारथी सक्षम है, फिर भी कुछ सीटें हैं जो भाजपा के मिशन 25 को फेल कर सकती हैं। जहां तक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का प्रश्न है वे बाड़मेर में कुछ ज्यादा ही रुचि दिखा रही है लगता है उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। बताया जाता है कि राजे ने छोटे-छोटे कार्यकर्ता तक को फोन किया और कर्नल सोनाराम को जिताने की अपील की। एक जमाने में छोटे-मोटे कार्यकर्ता राजे के निकट भी नहीं पहुंच पाते थे।
दूसरी तरफ कांग्रेस के चुनाव प्रचार का तरीका थोड़ा अलग है। कांग्रेस राहुल गांधी की युवा छवि के भरोसे यह चुनाव लड़ रही है, लेकिन राहुल गांधी कई बार कुछ अलग टिप्पणी कर देते हैं जैसे उदयपुर में उन्होंने कहा कि देश का प्रधानमंत्री आदिवासी होना चाहिए। यह सच है कि उदयपुर आदिवासी बहुल क्षेत्र है, लेकिन राजस्थान को आदिवासी बहुल राज्य नहीं माना जाता। यदि वे यही बात किसी आदिवासी बहुल राज्य में बोलते तो ज्यादा मजा आता। बहरहाल राहुल गांधी की सभा का लाभ उदयपुर के शहरी क्षेत्रों में अवश्य मिलेगा। जहां तक ग्रामीण क्षेत्रों का प्रश्न है वहां भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है। उधर टोंक सवाई माधौपुर और दौसा संसदीय क्षेत्रों में राजपा नेता डॉ. किरोणीलाल मीणा अपनी राजनीतिक हस्ती पुनर्जीवित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। मीणा तो जगमोहन मीणा को भी चुनाव मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन जब यह मंसूबा पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने अपने इस छोटे भाई को एक अन्य जगह टिकिट दिलवा दी। टोंक-सवाई माधौपुर में मीणा और मुस्लिम वोटर 3-3 लाख हैं। मीणा वोटरों को बांटने के लिए दो मीणा मैदान में हैं, जबकि मुस्लिम वोटरों के लिए कांग्रेस का चेहरा अजहरुद्दीन ज्यादा मुफीद हैं। ऐसे में भाजपा के गुर्जर सुखवीर सिंह जौनपुरिया को थोड़ा लाभ मिल सकता है, लेकिन उन्हें बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है।
बाहरी प्रत्याशी समूचे राजस्थान में एक बड़ा मुद्दा है। कहीं जातिगत समीकरण तो कहीं परिसीमन के बाद बदले हालातों के चलते विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर अन्य राज्यों के प्रत्याशियों को टिकिट दिया है। जैसे जालौर से बूटा सिंह चुनावी मैदान में हैं। मूलत: पंजाब के रहने वाले बूटा सिंह जालौर से चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन पिछली बार चुनाव हार गए थे। मोहम्मद अजहरुद्दीन आंध्रप्रदेश से हैं। सीकर के स्वामी सुमेधानंद हरियाणा निवासी हैं। अलवर से महंत चांदनाथ योगी भी बाहरी हैं। वे पहले बाहरोड़ से विधायक रह चुके हैं। सुमेधानंद का पिछले 30 साल से पिपराली में आश्रम है। इसी प्रकार दौसा संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय किस्मत आजमा रहे डॉ. नसीम चौधरी मूलत: जम्मू कश्मीर के रहने वाले हैं। यहां पर एक अन्य निर्दलीय शिवपाल गुर्जर हिमाचल प्रदेश के हैं। भरतपुर से भारतीय युवा शक्ति पार्टी के टिकिट पर चुनाव लड़ रही गायत्री देवी दिल्ली निवासी हैं जबकि यही से बीएसपी के महेंद्र कुमार मैदान में हैं जो हरियाणा निवासी हैं। गंगानगर से प्रबुद्ध रिपब्लिक पार्टी के डॉ. पालुस्कर चुनाव लड़ रहे हैं जो मूलत: महाराष्ट्र के हैं। यही पर भारतीय संत मत पार्टी के बलवंत सिंह हरियाला किस्मत आजमा रहे हैं जो हरियाणा निवासी हैं। झुंझुनू में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जनरल आरएस कादियान हरियाणा के रहने वाले हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है बूटा सिंह के अलावा भी कई चेहरे यहां बाहर से आकर चुनाव लड़ चुके हैं इनमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण की पत्नी सुशीला बंगारू प्रमुख हैं जो जालौर सिरोही से सांसद रह चुकी हैं।
जातिवाद भी राजस्थान के चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा है। पाली लोकसभा सीट से कांग्रेस ने वर्तमान सांसद बद्री राम जाखड़ का टिकिट काटकर उनकी बेटी मुन्नी देवी गोदारा को टिकिट देकर जाट और महिला कार्ड खेला है। भाजपा ने सीरवी मतदाताओं की बड़ी संख्या को देखते हुए एडवोकेट पीपी जोशी को टिकिट दिया है। यहां पर विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की सभी 8 सीटों पर भाजपा जीती थी और जीत का अंतर 1,97,407 मतों का रहा, जिसको पाटना उतना आसान नहीं है। यही हाल जोधपुर में है। जहां 8 में से 7 विधानसभा में भाजपा के प्रत्याशी जीते हैं और भाजपा ने भी गजेंद्र सिंह के रूप में एक राजपूत उम्मीदवार को टिकिट दिया है। कांग्रेस की पूर्व राजघराने की बेटी चंद्रेश कुमारी ने पिछले चुनाव में यहां जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार उनको कड़ी चुनौती मिल सकती है। ब्राह्मण वोट ढाई लाख की संख्या में हैं, जो मुख्यत: भाजपा के समर्थक माने जाते हैं, जहां तक 20 प्रतिशत ओबीसी मतों का प्रश्न है तो ये मत कांग्रेस और बसपा के बीच विभाजित हो जाएंगे। उदयपुर लोकसभा सीट पर अभी तक अजेय रहे कांग्रेस प्रत्याशी रघुवीर मीणा के मुकाबले भाजपा ने अर्जुन मीणा को जातिगत समीकरण के चलते मैदान में उतारा है। यह सीट जनजातीय सीट हैं और यहां नरेंद्र मोदी की लहर विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखी गई। वर्ष 2004 में कांग्रेस की डॉ. गिरिजा व्यास को भाजपा की किरण माहेवरी ने पराजित कर दिया था, लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने फिर जीत हासिल की और भाजपा के महावीर भागौरा चुनाव हार गए। विधानसभा में 8 विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट पर कांग्रेस जीत पाई है इसलिए यहां से जीतना भी कांग्रेस के लिए चुनौती ही है।
भाइयों का महाभारत
राजस्थान में सचमुच का चुनावी महाभारत भी देखा जा सकता है। कई मुकाबले ऐसे हैं जहां खून के रिश्ते आमने-सामने हैं। दौसा क्षेत्र में दो सगे भाई नमोनारायण मीना और हरिश्चंद्र मीना आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और पूरे देश की निगाहें इन पर टिकी हैं। प्रदेश की राजनीति में अब तक सगे भाई आमने-सामने सिर्फ विधानसभा चुनाव में ही लड़ते रहे हैं। इनमें प्रद्युम्नसिंह-रवींद्रसिंह और मोहन छंगाणी-दीपचंद छंगाणी और जयलाल बंशीवाल-नंदलाल बंशीवाल आदि प्रमुख हैं। एक माह पहले तक पूरे राजस्थान में जिनके भाइचारे की मिसालें दी जाती थी, आज मरुधरा में उनकी प्रतिद्वंद्विता के किस्से गूंज रहे हैं। ये हैं केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीना और पूर्व डीजीपी हरिश्चंद्र मीना। तीन माह पहले वसुंधरा राजे सरकार बनते ही हरिश्चंद्र मीना की डीजीपी पद से विदाई कर उन्हें होमगार्ड में लाग दिया गया। कहते हैं, बड़े भाई नमोनारायण मीना की कोशिशों से ही हरिश्चंद्र मीना को केंद्र में प्रतिनियुक्ति मिली। पिछली बार टोंक-सवाई माधोपुर में मामूली वोटों के अंतर से जीते नमोनारायण इस बार दौसा से चुनाव लडऩे का मानस बना ही रहे थे कि उनके छोटे भाई ने आईपीएस की नौकरी से वीआरएस लेकर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने उन्हें तुरंत दौसा से लोकसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया। हरिश्चंद्र मीणा की उम्मीदवारी नमोनारायण पर वज्रपात बनकर गिरी। कुछ दिन तो वे यह तय नहीं कर पाए कि वो चुनाव लड़ें या न लडें, लेकिन ऐन समय पर कांग्रेस का टिकट हासिल कर छोटे भाई को मैदान में चुनौती दे दी। भाई-बहन के रिश्ते अच्छे हों तो भी सियासत की रस्में अलग रहती हैं। जोधपुर में ऐसा ही दृश्य नजर आ रहा है। जोधपुर के पूर्व राजघराने के गजसिंह ने अपने आपको अभी तक अपनी बहन चंद्रेश कुमारी के चुनाव प्रचार से अलग-थलग कर रखा है।
वजह यह बताई जा रही है कि प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे गजसिंह को जोधपुर में अपना सबसे बड़ा शुभचिंतक मानती हैं। ऐसे में अपनी बहन के लिए भाजपा के खिलाफ प्रचार कर गजसिंह मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते।
सीकर में सुभाष महरिया भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सगे भाई नंदकिशोर महरिया पिछले विधानसभा चुनाव में फतेहपुर से निर्दलीय चुनाव जीते चुके हैं। वे भी विधानसभा चुनाव में भाजपा से विद्रोही हो गए थे। कांग्रेस के नेता प्रद्युम्नसिंह और भाजपा नेता रवींद्रसिंह बोहरा भी सगे भाई हैं। ये दोनों ही भाई 2008 और 2003 के विधानसभा का चुनाव आमने-सामने लड़ चुके हैं। भरतपुर के पूर्व राजघराने से संबंधित विश्वेंद्रसिंह और कृष्णेंद्र कौर दीपा रिश्ते में भाई बहन हैं, लेकिन दीपा भाजपा में और विश्वेंद्रसिंह कांग्रेस में हैं। इससे पहले इनके रिश्ते के भाई अरुण सिंह भी अलग पार्टी में या निर्दलीय रहे। हालांकि इनमें से कभी किसी ने आमने-सामने चुनाव नहीं लड़ा।