आधी आबादी की उपेक्षा
16-Apr-2014 08:47 AM 1234783

2014 के लोकसभा चुनाव में हम सब उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार विभिन्न राजनीतिक दल महिलाओं को भी टिकिट देंगे। टिकिट तो मिला लेकिन पर्याप्त संख्या में नहीं। कुछ पार्टियों ने दिखावे के लिये हारने वाली सीटों पर महिलाओं को टिकिट दे दिया। देश की राजधानी दिल्ली में ही कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी ने केवल एक-एक महिला को टिकिट दिया है। भाजपा की तरफ से नई दिल्ली सीट पर मीनाक्षी लेखी, कांग्रेस की तरफ से पश्चिम दिल्ली से वर्तमान सांसद कृष्णा तीरथ और आम आदमी की पार्टी की तरफ से राखी बिड़लान को मिला। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी केवल मु_ी भर महिलाओं को नामांकित किया गया है।  दिल्ली में जब निर्भया कांड हुआ था उस वक्त सारे देश में महिलाओं के पक्ष में एक तरह से सहानुभूति का सैलाब ही आ गया था इसलिये लोगों को उम्मीद थी कि राजनीतिक दल भी महिलाओं को टिकिट देने में कंजूसी नहीं दिखायेंगे। लेकिन किसी भी दल ने कोई उदारता नहीं दिखाई। वर्ष 2009 में विभिन्न राजनीतिक दलों ने केवल 349 महिला उम्मीदवारों को टिकिट दिया था। 2004 में यह आंकड़ा 238 था। इसी कारण महिलाओं की उपस्थिति भी संसद में कम रही। कांग्रेस ने 2009 में 43 और भाजपा ने 44 महिलाओं को टिकिट दिया। इससे पहले 2004 में कांग्रेस ने 45 और भाजपा ने कुल 30 महिलाओं को ही टिकिट दिया। अभी तक के चुनावी टिकिटों को देखें तो विभिन्न राजनीतिक दलों ने 10 प्रतिशत से भी कम महिलाओं को टिकिट दिया है। मध्यप्रदेश में भाजपा ने 5 और कांग्रेस ने 4 महिलाओं को टिकिट दिया।
2009 के लोकसभा चुनावों में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके को तमिलनाडु में उसके सहयोगियों के साथ कुल 37 प्रतिशत वोट मिले। पुरुषों में उन्हें 37 प्रतिशत वोट मिले जबकि महिलाओं के बीच यह आंकड़ा 38 प्रतिशत रहा। इसी तरह पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस गठबंधन को कुल 45 प्रतिशत वोट मिले। इसमें पुरुषों के 46 प्रतिशत और महिलाओं में 43 प्रतिशत वोट शामिल थे। उत्तरप्रदेश में पिछले लोकसभा चुनावों में मायावती की बसपा को 27 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी को 28 प्रतिशत पुरुषों और 27 प्रतिशत महिलाओं के वोट मिले। इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी ऐसे ही रुझान देखने को मिले। 1950 और 1960 के दशक में महिलाओं के मतदान का प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले काफी कम था। ये अंतर दस प्रतिशत से अधिक रहा। ज्यादातर राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान भी महिलाओं के मतदान का प्रतिशत कम रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान हुए विधानसभा चुनावों में ये रुझान बदला है। लगभग सभी राज्यों में न सिर्फ महिलाओं के मतदान का प्रतिशत बढ़ा है बल्कि महत्वपूर्ण बात ये है कि कई राज्यों में मतदान के लिहाज से महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में महिलाओं के मतदान का प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 3.4 प्रतिशत अधिक था। ऐसे ही रुझान साल 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तराखंड में देखे गए। उसी साल गोवा में हुए विधानसभा चुनावों में महिलाओं के मतदान का प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले छह प्रतिशत अधिक रहा, जबकि हिमाचल प्रदेश में ये आंकड़ा सात प्रतिशत रहा। कर्नाटक, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे कई दूसरे राज्यों में पिछले चुनावों में तो महिलाओं के मतदान का प्रतिशत कम था, लेकिन हाल में हुए विधानसभा चुनावों को दौरान वहां महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। कई राज्यों में अभी शुरुआत ही हुई है। चुनावों और चुनावी राजनीति में महिलाएं अधिक सक्रिय दिखाई दे रही है। अब समय आ गया है कि राजनीतिक दल बदलाव की पहल करें। उन्हें टिकट वितरण में महिलाओं को अधिक हिस्सेदारी देने, राजनीति और खासतौर से चुनावों में अधिक सक्रिय भागीदारी के लिए व्यवस्था बनाने के बारे में सोचने की जरूरत है। मध्य प्रदेश में 1957 से 2009 के बीच हुए 15 लोकसभा चुनावों में अब तक सिर्फ 15 महिलाएं ही लोकसभा तक पहुंचने में सफल रही हैं। इस दौरान मुख्य राजनीतिक दलों कांग्रेस व भाजपा ने कुल 21 महिलाओं को मैदान में उतारा। भाजपा ने 11 व कांग्रेस ने 10 बार महिलाओं को टिकट दिया।

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