16-Apr-2014 08:31 AM
1234815
हाल ही में जितेंद्र तिवारी द्वारा मध्यप्रदेश वित्त विकास निगम इंदौर में ओएसडी के पद पर नियुक्ति के लिए मंत्रालय में वित्त विभाग को लिखा। इस बारे में वित्त विभाग ने सामान्य प्रशासन विभाग से संबंधित नियुक्ति पत्र, कब से कार्य कर

रहे हैं आदि की जानकारी दिनांक 17 अक्टूबर 2013 को मांगी। उक्त पत्र वाणिज्य एवं उद्योग विभाग से संंबंधित होने के कारण जीएडी ने उद्योग विभाग को भेजा। उद्योग विभाग द्वारा उक्त नियुक्ति आदि के संबंध में जब सेडमैप से जानने की कोशिश की तो वहां से दिनांक 27 जनवरी 2014 को एमपी एफसी के पत्र का हवाला देते हुए उद्योग विभाग को अपनी नियुक्ति की चिट्ठी ही थमा दी। सरकार के नाक के बाल बने हुए तिवारी की नियुक्ति कैसे और किस अधिकारी के कहने पर जारी हुई यह तो शोध का विषय है। पर वित्त विकास निगम के चेयरमैन अपर मुख्य सचिव अजय नाथ के द्वारा उन्हें सलाहकार के पद पर नियुक्ति का अनुमोदन किया गया है।
एक ही फर्म पर इतनी मेहरबानी क्यों?
कहावत है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है इस कहावत को कई गुना चरितार्थ करा है उद्यमिता विकास केन्द्र मध्यप्रदेष (सेडमैप) के घोटालों में माहिर एवं धोखाधड़ी के सिद्धहस्त कार्यकारी संचालक जितेन्द्र तिवारी ने, भ्रष्ट्राचार का भोजन खा खा कर अपने मछली रूपी आकार को शार्क जैसा विषाल और खूंखार बना लिया है कि उनके विरूद्ध मुख्यमंत्री से लेकर वरिष्ठ आला अफसरों की भी हिम्मत नहीं होती कोई उन पर कार्यवाही कर सके, और सेडमैप के अधिकारी/कर्मचारी जितेन्द्र तिवारी के निरंकुश एवं तानाशाही व्यवहार से इतने भयभीत है कि सालों से बंधुआ मजदूर की तरह ही रह रहें है भय इतना है कि दबी जबान में भी किसी से कहने में डरते है कही तिवारी को पता न चल जाये। वहीं दूसरी ओर अपने मुखिया-तिवारी के इस रवैये को देखते हुए कुछ अवसरवादी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी सेडमैप में बह रही भ्रष्टाचार की नदी में गोते लगाने में महारत हासिल कर ली है। सेडमैप मे अब यह आलम हो गया है कि बॉसÓÓ के साथ साथ उनके मातहत भी अब ज्यादा से ज्यादा भ्रष्टाचार की कमाई करने की दौड़ में आगे निकलना चाहते है फिर भले कोई भी नियम प्रक्रिया अगर आड़े आये उसे दरकिनार कर दिया जाता है।
दस्तावेजों एवं जानकारी अनुसार सेडमैप का प्रमुख कार्य शासकीय विभागों एवं संस्थाओं द्वारा प्रायोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना है और शासकीय संस्था होने के नातेे सभी विभाग एवं संस्थाऐं सेडमैप को प्राथमिकता के आधार पर प्रशिक्षण कार्य आवंटित भी करती हैं। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रशिक्षण के साथ-साथ प्रशिक्षणार्थियों को टूल किट वितरण का भी प्रावधान होता है। यदि सेडमैप द्वारा पिछले 7 वर्षो में दिये गये प्रशिक्षण एवं टूल किट की राशि को जोडा जाये तो यह राशि लगभग 100 करोड़ से भी अधिक होगी। यह खरीदी सेडमैप अपने मुख्यालय भोपाल के साथ साथ क्षेत्रीय कार्यालयों इंदौर, ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, रायपुर एवं बिलासपुर तथा उनमें पदस्थ तिवारी के विश्वस्त मातहतों के माध्यम से की जाती है। शासकीय नियमों एवं प्रावधानों के अनुसार रुपए 25000 या अधिक की राशि की खरीदी निविदा प्रक्रियाÓÓ के माध्यम से ही करनी चाहिए। यदि खरीदी की जाने वाली सामग्री की राशि 25000 से कम है तो निर्धारित प्रक्रिया अपनाकर 3 कोटेशन के द्वारा खरीदी की जा सकती है किन्तु विक्रेता द्वारा विधिवत गुमास्ता, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स आदि का पंजीयन होना अनिवार्य होता है। किन्तु घोटालों में माहिर हो चुके सेडमैप के कार्यकारी संचालक जितेन्द्र तिवारी एवं उनके विश्वस्त मातहत पिछले कई वर्षों से करोड़ों की खरीदी कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने जबलपुर के छुटभैया व्यवसायी से करोड़ों की टूलकिटें खरीद लीं। इस व्यवसायी का टिन नंबर अर्खल एन्टरप्राईज के नाम पर है जबकि कोटेशन में ए.के. एन्टरप्राईज के नाम पर टिन नंबर 23705903243 लिखा है। इसका मतलब साफ यह है कि व्यवसायी और तिवारी की मिलीभगत के कारण सेल्स टैक्स की चोरी भी की गई। इस चोरी के मामले की शिकायत सेल्स टैक्स कमिश्नर से भी कर दी गई है। गलत टिन नंबर डालकर ये लोग नियमों का खुला उल्लघंन कर रहें है। ऐसे अनेकों मामलों में से एक प्रकरण के दस्तावेजों एवं जानकारी के अनुसार जबलपुर क्षेत्रीय कार्यालय में पदस्थ क्षेत्रीय समन्वयक एस.एल.कोरी, मुख्यालय में पदस्थ लेखा प्रमुख जी.पी.मिश्रा, प्रशासन में पदस्थ चित्रा अय्यर तथा इनके मुखिया जितेन्द्र तिवारी ने सारे शासकीय नियमों, प्रक्रिया एवं प्रावधानों को ताक पर रखकर लाखों की टूलकिट की खरीदी को अंजाम दिया। पाक्षिक अक्सÓÓ को प्राप्त दस्तोवेजों में ही लगभग 5.50 लाख की खरीदी में भ्रष्टाचार एवं नियमों का खुला उल्लघंन प्रकाश में आया है।
मामला ऐसा है कि सेडमैप- जबलपुर क्षेत्रीय कार्यालय में पदस्थ क्षेत्रीय समन्वयक एस.एल.कोरी ने मुख्यालय से टूलकिट खरीदी की अनुमति मांगी और तिवारी ने प्रशासन में पदस्थ चित्रा अय्यर के माध्यम से कोरी को खुली अनुमति अपने पत्र क्रं. 06/एडमिन/2012 दिनांक 05.05.2012 से दे दी। फिर तो कोरी जी ने सभी नियम प्रक्रियाओं का माखौल उड़ाते हुए एक ही पार्टी से तीन कोटेशन मंगवा कर उन्हें टूलकिट सप्लाई करने का आदेश दे दिया। कोरी ने यह भी चिन्ता नहीं कि और न ही यह जानने का प्रयास किया कि सप्लाई करने वाली फर्म का कोटेशन एवं उसके बिल विधिवत मुद्रित भी है कि नहीं और तो और उन फर्मों के पास अनिवार्य पंजीयन है भी की नही इसे भी जानना जरूरी नहीं समझा।
जबलपुर की दो फर्में ए.के.इन्टरप्राईसेसÓÓ एवं अर्खल इन्टरप्राईसेसÓÓ जिन्होंने सेडमैप को टूलकिट सप्लाई की है। इनके कोटेशनों से ऐसा लगता है कि फोटोकॉपी या आवश्यकतानुसार प्रिंटर से काम चलाऊ प्रिंट करवाये गये है और सब एक जगह बैठ कर एक ही दिन क्रमबद्ध जारी किये गये है क्योंकि इन सब में जावक क्रं. सीरियल में हैं। हस्तलिपि भी मिलती जुलती है। यही हाल इन फर्मों द्वारा सप्लाई के पश्चात जारी किये गये एवं प्रस्तुत बिलों का भी है जो कि शासकीय नियमों में उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार नहीं है और सारे बिल संभवत: एक ही दिन, एक साथ फर्जी रूप से जारी किये गये है (देखे बॉक्स)। यहां तक की भुगतान प्राप्ति की रसीदों में मात्र फर्म की सील लगी है इन फर्मों ने रुपए 5000 से उपर प्राप्त होने वाले भुगतान में अनिवार्य रेवेन्यू टिकिट भी लगाना जरूरी नहीं समझा। फर्म के प्रोपराइट अजय अर्खल से जब बात की तो उन्होंने कहा कि उनकी एक फर्म अर्खल एन्टरप्राइज का टिन है। बाकी फर्मों का टर्न ओवर इतना नहीं है कि टिन लिया जाए। हालांकि वाणिज्यिक कर विभाग की वेबसाईट पर यह टिन नंबर 2013 में ही समाप्त हो गया था। (देखें बॉक्स)
धोखाधड़ी का मामला
सेडमैप जबलपुर में टूलकिट सप्लाई करने वाली दो फर्में (1) मेसर्स ए.के.इन्टरप्राईसेस व दूसरी फर्म मेसर्स अर्खल इन्टरप्राईसेस के पास पंजीयन तो है पर निरस्त पंजीयन एवं टिन नं. है। यह दोनों ही फर्मे एक ही है इसमें से ए.के.इन्टरप्राईसेस के मालिक है अजय कुमार। आश्चर्य की बात तो यह है कि सेडमैप के कार्यकारी संचालक जितेन्द्र तिवारी जो कि खुद सी.ए. हैं, उनकी नजर से इतनी बड़ी गलती निकल जाना एक षड्यंत्र है। सेडमैप के लेखा प्रमुख जी.पी.मिश्रा, प्रशासन में पदस्थ चित्रा अय्यर, आंतरिक अंकेक्षक एन.के.जैन एवं वैधानिक अंकेक्षक सभी ने आंख मूंद कर इन बिलों को पास कर नियमविरूद्ध भुगतान कर दिया एवं लेखों में समायोजन कर दिया और तो अध्यक्ष सहित संचालक मंडल ने भी इसे वार्षिक प्रतिवेदन के माध्यम से पास कर दिया। मामला धोखाधड़ी का है क्योंकि सप्लाई करने वाली फर्मों ने अपने बिलों में सप्लाई किये गये औजारों एवं सामग्री के माप, तकनीकी विवरण एवं अन्य जानकारी का उल्लेख तक नहीं किया। इस संबंध में सेडमैप के अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर यह बताया कि असल में तो यह टूलकिट खरीदी ही नहीं केवल फर्जी बिल बनवाकर इनकी राशि का बंदरबाट हुआ है और यदि कहीं दिखावे के लिये टूलकिट बांॅटी भी गई है मात्र उसके नाम पर केवल एक या दो औजार वो भी इतनी घटिया क्वालिटी के प्रशिक्षणार्थियों के पास अब वो मिलेेंगे भी नहीं।
मामले की शिकायत इ.ओ.डब्ल्यू और लोकायुक्त में 10 महीनों से लंबित
इस पूरे मामले की शिकायत शिकायतकर्ताओं ने जून 2013 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर पंजीबद्ध करायी थी इसके साथ शासन के संबंधित विभाग में शिकायत की गई थी किन्तु 10 माह का समय व्यतीत होने के पश्चात भी मामला जहां का तहां है। ऐसे में संभावना व्यक्त की जा रही है कि जितेन्द्र तिवारी को भाजपा नेताओं से रिश्ते एवं उनके माध्यम से आला अफसरों में अपनी पैठ के चलते अभयदान मिला हुआ है वरना जिस व्यक्ति के खिलाफ फर्जी तरीके से कार्यकारी संचालक का पद हथियाने, राष्ट्रीय प्रतीक का दुरूपयोग, भ्रष्टाचार एवं अनीति तथा तानाशाही रूप से संस्था के संचालन के गंभीर आरोप हो वो व्यक्ति कैसे पिछले 7 वर्षों से बिना नियुक्ति पत्र के कार्यकारी संचालक बना बैठा है।
चुनाव आयोग में भी शिकायत
स्वयंभू कार्यकारी संचालक जितेंद्र तिवारी की शिकायत मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को भी कर दी गई है। उक्त शिकायत के पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने उनके ऊपर गंभीर अनियमितता, सरकारी दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़, महिलाओं को प्रताडि़त करने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी कहा है कि जितेंद्र तिवारी की नियुक्ति पूरी तरह अवैध है और वह भाजपा से जुड़े हुए उम्मीदवारों के लिए उद्यमियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस शिकायत को आयोग ने गंभीरता से लिया है। इस पूरे मामले की शिकायत मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री से भी की गई है।