लाखों का फर्जीवाड़ा
02-Apr-2014 09:24 AM 1234765

मध्यप्रदेश की बहुचर्चित संस्था सेडमैप के स्वनामधन्य मुखिया जीतेंद्र तिवारी अपने रिश्तेदारों, मित्रों और चहेतों को उपकृत करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, फर्जी बिल पास कर सकते हैं, संदिग्ध बाउचर बनवा सकते हैं और ऑडिट में भी हेराफेरी करके संस्था को चूना लगा सकते हैं। आर्थिक अनियमितताओं में माहिर जीतेंद्र तिवारी ने अपने सीए की डिग्री का भरपूर सदुपयोग सेडमैप को चूना लगाने में किया है। लोकायुक्त में 4 अक्टूबर 2012 को की गई एक शिकायत में जीतेंद्र तिवारी द्वारा शासन की राशि के गबन एवं पद के दुरुपयोग के विषय में विस्तार से सबूतों सहित बताया गया है। इस प्रकरण को ध्यान से देखने पर लगता है कि साल-दर-साल तिवारी सेडमैप को लाखों का चूना लगाते रहे और उनका कुछ भी नहीं हुआ। इस सिलसिले में जानकार तथा जिम्मेदार लोगों की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही हैं।
शिकायतकर्ता मोहम्मद आसिम हुसैन ने बताया है कि जीतेंद्र तिवारी ने अपने दोस्तों को सेडमैप का काम दिलवाया और उसके मनमाने दाम तय किए। रिश्तेदारों को सैर करवाई और बिल संस्था में टांक दिए। व्यक्तिगत कार्य के लिए कर्मचारियों को विभिन्न स्थानों पर भेजा और पैसा खर्च हुआ सेडमैप का। यह सब इतने सुव्यवस्थित तरीके से किया गया कि किसी भी चार्टर्ड एकाउंटेंट ने आपत्ति नहीं उठाई और जिन्होंने उठाई उन्हें उपकृत किया गया। वर्ष 2010 में दिसंबर माह में जीतेंद्र तिवारी परिवार और अपने दोस्त मनीष व्यास के साथ जबलपुर, बांधवगढ़, शहडोल, अमरकंटक तथा कटनी का भ्रमण करके आए, लेकिन खर्च गया सेडमैप के खाते में। कुल 99 हजार 203 रुपए की राशि सेडमैप मुख्यालय के एकाउंट विभाग द्वारा जनरल बाउचर क्रमांक 42 दिनांक 7.4.2011 को डाली गई। जनरल बाउचर एक ऐसी कुंजी है जिसके माध्यम से लाखों के घोटालों को ढंका जा सकता है। इसीलिए तिवारी वर्ष दर वर्ष जनरल बाउचर के माध्यम से घोटाले करते रहे। रचना त्रिवेदी जैन, शरद सिंह, सीएस जोशी जैसे तिवारी के करीबी कर्मचारी 2006 से 2012 के बीच कई बार तिवारी के निजी काम से बाहर गए, लेकिन खर्च का भुगतान किया सेडमैप ने। यह राशि लगभग 6 लाख 50 हजार के करीब होती है। रचना त्रिवेदी ने तो 13 मई से 17 मई 2011 के दौरान हवाई यात्रा भी की और सेडमैप ने उनका टीए-डीए भी दिया। प्रश्न यह है कि रचना त्रिवेदी हवाई यात्रा की पात्रता रखती भी हैं या नहीं। स्वयं जीतेंद्र तिवारी उडऩे की काबिलियत रखते हैं या नहीं यह भी एक प्रश्न चिन्ह है। लेकिन वित्तीय अनियमितताओं का यह सिलसिला यही तक सीमित नहीं है। अपने मित्रों को उपकृत करने के लिए तिवारी हर करम अपना करेंगे की तर्ज पर सेडमैप जैसी महत्वपूर्ण संस्था को निजी जागीर की तरह उपयोग में लाते हैं। इसका एक उदाहरण तिवारी के मित्र मनीष व्यास की तथाकथित फर्म मेसर्स इंफ्रास्ट्रक्चर, एमके एसोसिएट्स एवं हिंदुस्तान इंफो को लघु उद्योग विकास निगम के माध्यम से दिए जा रहे अनेकों प्रकार के काम हैं। शिकायतकर्ता ने कहा है कि तत्कालीन उद्योग आयुक्त आरके चतुर्वेदी एवं जीतेंद्र तिवारी द्वारा उपरोक्त फर्मों को कार्य आवंटन कर शासन को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया जा रहा है। बताया जाता है कि उक्त फर्म ने एसजीएसवाय योजना के अंतर्गत स्थापित आजीविका एवं कौशल उन्नयन केंद्रों में से छह आजीविका केंद्रों का फर्नीशिंग वर्क करके लाखों रुपए के वारे न्यारे किए। इसकी जांच आंतरिक अंकेक्षक एनके जैन ने की थी और उन्होंने पाया था कि टेंडर में दिखाए गए कार्य विवरण से वे बिल अधिक थे और उनकी भी स्वीकृति नहीं ली गई थी। आंतरिक अंकेक्षक ने जब आपत्ति दर्ज की तो उनका मुंह चुप करने के लिए एनके जैन के सुपुत्र अमित जैन की संस्था मेंटर कार्पोरेशन को लेखापाल की नियुक्ति का कार्य दे दिया गया। जिसका ब्यौरा आगे है। मिसाल के तौर पर बिलों में यह कहीं नहीं लिखा है कि किस कंपनी के कम्प्यूटर लगाए गए। जबकि टेंडर में स्पष्ट लिखा था कि एचसीएल अथवा लेनोवो कम्प्यूटर के सेट लगाए जाने थे। सभी छह आजीविका केंद्रों पर पहले से ही बिजली फिटिंग थी और कोई खराबी भी नहीं थी, लेकिन तिवारी के मित्र की उक्त संस्था ने 70-70 पाइंट की फिटिंग कागजों पर कर दी और उसका सत्यापन भी बिना किसी आधार के कर दिया गया। आजीविका केंद्रों पर पंखे पहले से ही लगे हुए थे, लेकिन पंखों का बिल भी वसूला गया और उन बिलों का सत्यापन कराना उचित नहीं समझा गया। वारासिवनी केंद्र पर 20 सिलाई मशीन दी जानी थी, लेकिन केंद्र प्रभारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 10 सिलाई मशीनें सप्लाई की गईं और बाकी 10 का क्या किया गया नहीं मालूम। जबकि बिल 20 का ही निकला है और तो और सिलाई मशीनें उपलब्ध कराने हेतु प्रशासनिक स्वीकृति भी नहीं ली गई। टेंडर में भी सिलाई मशीनें सम्मिलित नहीं थी और भी कई अनियमितताएं हैं जो सामग्री सूची में दर्शाई गई है उसका मिलान बिल से नहीं हो पा रहा है। किसी भी केंद्र के बिल का स्पॉट मेजरमेंट के आधार पर सत्यापन होना नहीं पाया गया। न ही बिल में उल्लेखित सामग्री का वास्तविक आधार पर उपलब्ध सामग्री से मिलान करना उचित समझा गया। इतना ही नहीं शरद मिश्रा (आजीविका परियोजना) ने 2 नवंबर 2010 में एक पत्र लिखकर कतिपय कमियों एवं शिकायतों का उल्लेख किया था पर उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। अंतिम राशि में से कितना टीडीएस काटा जाना है यह जानकारी भी अंकित नहीं है।
इन सब कमियों के बावजूद बिल पूर्ण भुगतान करने हेतु प्रस्तुत किए गए। क्योंकि ये बिल किसी और के नहीं तिवारी के मित्र के थे और मित्र का इतना हक तो बनता ही है। घोटाले में मित्रों को सहभागी बनाने में तिवारी बड़े माहिर हैं, लेकिन बात यही तक नहीं है। घोटाला इससे भी बड़ा है। तिवारी के मित्र मनीष व्यास को सेडमैप के डिंडोरी, अनूपपुर एवं शहडोल स्थित आजीविका केंद्रों में कंप्यूटर लैब बनाने सहित कुछ अन्य काम मिले, लेकिन इनमें घटिया उपकरण लगाए गए। गुणवत्ता कोई प्रमाणिकरण ही नहीं किया गया और 45 लाख रुपए का फर्जीवाड़ा करते हुए पूर्ण भुगतान कर दिया गया। सेडमैप एक स्वशासी संस्था होने के कारण किसी को जानकारी देने अथवा रिपोर्ट करने के लिए बाध्य नहीं है क्या ऐसा तिवारी का मानना है? परंतु सेडमैप तो अधिकांश कार्य सरकार से जुड़े हुए विभाग, उपकृमों का ही तो करती है फिर तो कोई न कोई संस्था हिसाब तो पूछेगी ही। कुछ समय पूर्व नगर निगम भोपाल द्वारा टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से सेडमैप को उत्थान प्रोजेक्ट के अंतर्गत प्रशिक्षण एवं रोजगार दिलाने का कार्य दिया गया। टेंडर प्रक्रिया में सेडमैप एवं प्राइम वन सिक्योरिटी दोनों के ही द्वारा संयुक्त रूप से टेंडर भरा गया। कार्य आवंटन होने के उपरांत 36 लाख की बैंक गारंटी संयुक्त रूप से दी जानी थी, लेकिन प्राइम वन सिक्योरिटी पर भार न डालते हुए सेडमैप ने सारी की सारी राशि स्वयं दे दी। उत्थान प्रोजेक्ट के तहत दो कार्य किए जाने थे जिसमें पहला प्रशिक्षण कार्य सेडमैप द्वारा संचालित किया जाना था, दूसरा प्राइम सिक्योरिटी का दायित्व है।
जिसके लिए सेडमैप और प्राइम वन सिक्योरिटी के बीच अनुबंध किया गया। जिसके अनुसार 60 प्रतिशत राशि प्राइम वन सिक्योरिटी को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए दी जानी थी परंतु यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका और नगर निगम भोपाल ने सेडमैप की गारंटी की संपूर्ण राशि छत्तीस लाख रुपए जब्त कर ली। विचारणीय प्रश्न यह है कि जब संयुक्त रूप से काम किया जाना था तो बैंक गारंटी की आधी राशि यानी 18 लाख रुपए प्राइम वन सिक्योरिटी से क्यों नहीं ली गई। जब यह पैसा नगर निगम भोपाल ने जब्त कर लिया तो आधा 18 लाख रुपए वसूलने के लिए प्राइम वन सिक्योरिटी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। कम से कम एक लीगल नोटिस ही भेज दिया जाता, किंतु मित्रों को उपकृत करने में माहिर तिवारी भला अपने किसी अजीज का अहित कैसे कर सकते हैं। समझा जाता है कि प्राइम वन सिक्योरिटी के संचालक को फायदा पहुंचाने के लिए तिवारी ने कथित रूप से ऊपर लेन-देन करते हुए मामला रफा-दफा करने की कोशिश की। इसमें सेडमैप के दो उच्च अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है जो प्रोजेक्ट के संचालक के रूप में शामिल थे। मेंटर कार्पोरेशन सेडमैप में पदस्थ अंकेक्षक एनके जैन के पुत्र अमित जैन की संस्था है। शासन एवं सेडमैप की नियमावली के अनुसार कोई भी कर्मचारी अपने पुत्र अथवा पारिवारिक सदस्य के किसी भी फर्म को अपने से संबंधित विभाग में कार्य नहीं दिलवा सकता, जबकि अंकेक्षक एनके जैन द्वारा मनी रिसिप्ट आडिट (एम आर आडिट) का कार्य अपने पुत्र को दिलवाया गया। अमित जैन वास्तविक रूप से कंपनी सेके्रटरी है जिन्हें अंकेक्षण का कोई अनुभव नहीं है, इस हेतु कथित रूप से 4.50 लाख का भुगतान जीतेंद्र तिवारी एवं एनके जैन की मिलीभगत से मेंटर कार्पोरेशन को किया गया। मेंटर कार्पोरेशन को सेडमैप ने लेखापालों की नियुक्ति का कार्य भी दिया जो नियमविरुद्ध है। अमित जैन पेशे से वास्तविक रूप से कंपनी सेके्रटरी हैं, जिन्हें प्लेसमेंट का कोई अनुभव नहीं है, जबकि सेडमैप में सक्षम प्रशासनिक आमला पदस्थ है। सेडमैप द्वारा उपरोक्त कार्य स्वयं किया जा सकता था, परंतु इस हेतु सेडमैप को लाखों की क्षति पहुंचाई गई। सेडमैप की सर्विस नियमावली के पृष्ठ 68 के बिंदु क्रमांक 11 में स्पष्ट लिखा है कि किसी भी कर्मचारी से संबंधित व्यक्ति द्वारा संस्थान में सेवाए नहीं ली जा सकती हैं। फिर भी अपने खास लोगों को उपकृत करने के लिए इस नियमावली का उल्लंघन किया गया।

लोकायुक्त में मामला ठंडे बस्ते में
ऐसा नहीं है कि सेडमैप में लंबे समय से जारी इन घोटालों की शिकायत कहीं नहीं की गई। लोकायुक्त में यह जांच प्रकरण आज से लगभग दो वर्ष पूर्व पंजीबद्ध किया गया था। इस सिलसिले में लोकायुक्त महोदय ने सुनवाई भी की थी। इस आशय का एक पत्र शिकायतकर्ता आसिम हुसैन को 22 जनवरी 2013 को श्रीमती रश्मि अग्रवाल विधि सलाहकार-2 द्वारा अपने हस्ताक्षर से दिया गया था जिसमें शिकायतकर्ता को अधिकथनों के समर्थन में दस्तावेजों समेत उपस्थित होने को लिखा गया था। परंतु शिकायतकर्ता का कहना है कि मेरे द्वारा सारे दस्तावेज उपलब्ध करा देने के बाद भी आगे की कोई भी जानकारी से मुझे अवगत नहीं कराया गया और न ही संबंधितों के ऊपर एफआईआर की गई।

क्या है मिश्रा के पत्र में
वारासिवनी के आजीविका केंद्र की सिलाई मशीनों का मामला कुछ ज्यादा ही संगीन लग रहा है। इस सिलसिले में आजीविका परियोजना भोपाल के शरद कुमार मिश्रा ने जो अंतरकार्यालयीन पत्र लिखा था उसमें बताया गया था कि फैशन डिजाइनिंग ट्रेड हेतु इंडस्ट्रीयल सिलाई मशीन की आवश्यकता थी, लेकिन आंतरिक साज-सज्जा, बैठक व्यवस्था हेतु साजो-सामान तथा मशीनों की उपलब्धता सेंटर में करवाने वाले ठेकेदार द्वारा सेंटर में पैर से चलने वाली घरेलू सिलाई मशीन लगवाई गई। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि तिवारी के चमत्कार से जो ठेकेदार आंतरिक साज-सज्जा करता है वह मशीनों का सप्लायर भी बन जाता है। अन्य पांच अजीविका केंद्रों जहां डीटीपी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है वहां हर दो प्रशिक्षार्थी पर एक कंप्यूटर लगाया गया है, लेकिन आजीविका केंद्र वारासिवनी में 40 प्रशिक्षणार्थियों पर मात्र 10 सिलाई मशीनें ही हैं। सिलाई मशीनों पर बैठने के लिए स्टूल या साधारण कुर्सी की आवश्यकता होती है, लेकिन ठेकेदार ने मोटी रकम वसूलने के लिए रिवाल्विंग चेयर सप्लाई कर दी।

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