चुनाव में अपराधियों की पौबारह
02-Apr-2014 09:57 AM 1234768

लोकसभा चुनाव के दौरान हर बार यह सवाल उठता है कि चुनाव में अपराधियों को प्रवेश नहीं करने दिया जाना चाहिए, लेकिन इसके बावजूद भी निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं हो पाते क्योंकि बाहुबलियों के कारण चुनाव में धांधली होने की संभावना रहती है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी आपराधिक मामले जिन नेताओं के ऊपर दर्ज हैं और बाहुबलियों ने विभिन्न दलों में टिकिट पाने में सफलता प्राप्त कर ली है। भाजपा और कांग्रेस के तीन में से एक उम्मीदवार ऐसा है जिसके खिलाफ कोई न कोई मामला दर्ज है। नेशनल इलेक्शन वॉच एंड एसोसिएशन ऑफ डेमेक्रेटिक रिफाम्र्स (एडीआर) ने कुछ समय पहले 280 एफिडेविट का परीक्षण करने के बाद पाया था कि भाजपा और कांग्रेस के मार्च के दूसरे सप्ताह तक नामांकित 469 प्रत्याशियों में से 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिनके विरुद्ध कोई न कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज था। इनमें से भी 13 प्रतिशत ऐसे हैं जिनके खिलाफ हत्या या अपहरण जैसे गंभीर अपराध दर्ज हैं। अपने आपको साफ सुथरी कहने वाली भाजपा के तो 35 प्रतिशत प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं जिनमें भी 17 प्रतिशत ऐसे हैं जो गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस के भी 27 प्रतिशत प्रत्याशी कहीं न कहीं आपराधिक प्रकरणों का सामना कर रहे हैं, जिनमें से 10 प्रतिशत के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। जैसे भाजपा के दिल्ली से प्रत्याशी सतीश दुबे और कांग्रेस के प्रत्याशी रमेश चंद तोमर के खिलाफ हत्या के प्रयास का आरोप लगा है। इसी तरह भाजपा के प्रत्याशी वीएस येदियुरप्पा जेल हो आए हैं और खनन के आरोपों का सामना कर रहे हैं। कांग्रेस में पवन बंसल भ्रष्टाचार के आरोपों में रेल मंत्री पद से हाथ धो बैठे थे।
इसी तरह अन्य दलों में भी बाहुबलियों और अपराधियों की भरमार है। कांग्रेस और भाजपा दोनों से पूछने पर एक सुर में जवाब मिलता है कि जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए सामने वाला निर्दोष ही कहलाएगा। निर्दोष होने की यह परिभाषा भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। उत्तरप्रदेश के बाहुबलि नेता अतीक अहमद श्रावस्ती से चुनाव मैदान में हैं। वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लडऩे की तैयारी में मुख्तार अंसारी भी पुराने बाहुबली माने जाते हैं वे जेल के अंदर से चुनाव लड़ेंगे। बाहुबल के चलते चुनावी प्रक्रिया तो बाधित होती ही हैं, लेकिन निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं हो पाते। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला देते हुए दागियों के चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। बिहार में बाहुबलियों ने अपनी पत्नियों को टिकिट दिलवा दिया। जाहिर सी बात है वे पत्नियों को परदे के आगे रखकर पीछे से चुनाव लड़ेंगे। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मेनपुरी से सांसद रमाकांत यादव बाहुबली हैं। वाराणसी के कांग्रेस विधायक अजय राय को भी बाहुबली समझा जाता है। हालांकि चुनाव आयोग की बाहुबल के प्रयोग पर पैनी नजर है और उसने बाहुबल रोकने के लिए विशेष कदम उठाए हैं हर एक जिले में निर्वाचन अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए गए हैं और आयोग ने इसके लिए 18001801950 भी जारी किया है, लेकिन यह नंबर प्रभावी होगा कहा नहीं जा सकता। चुनाव में बेहिसाब खर्च करने वाले प्रत्याशियों पर इस बार मुकदमा भी दर्ज होगा। आयोग का साफ कहना है कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धन और सामग्री का वितरण किया गया तो कठोर कार्रवाई की जाएगी। मतदाता अपने मन-मिजाज से किसी भी प्रत्याशी को अपना मत दे सकते हैं। यदि कोई प्रत्याशी मतदाताओं को धमकाता है तो उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा। पहले मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए साड़ी, कंबल और पैसे वितरित किए जाने के आरोप सामने आते रहे हैं। यही नहीं, मतदाताओं को दावत भी दी जाती थी। दावतों का दौर चुनाव समाप्त होने तक जारी रहता था, जिला प्रशासन कुछ नहीं कर पाता था। अब आयोग ने ऐसी दावतों पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए मतदाताओं को वोट देने के एवज में कुछ भी देने की प्रथा पर पूर्णविराम लगा दिया है।
निर्देश में कहा गया है कि सभी जिला निर्वाचन अधिकारी इस बात की जांच लगातार जारी रखें कि चुनाव के दौरान इस तरह की कोई भी दावत नहीं हो सके। इसके अलावा उपजिलाधिकारी व विशेष मजिस्ट्रेट की भी तैनाती की जाए। इसके साथ ही कंट्रोल रूम की भी स्थापना की गई है। आयोग ने आम जन से कहा है कि अगर किसी के पास धन लेने व देने की जानकारी हो तो वह तत्काल इसकी सूचना कंट्रोल रूम को दे, ताकि समय रहते संबंधित व्यक्ति पर कार्रवाई की जा सके। निश्चित रूप से देश के दो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार राजनीति के अपराधीकरण अथवा अपराधीकरण की राजनीति को लेकर काफी बदनाम रहे हैं। उत्तर प्रदेश में हद तो यह है कि पंडित जवाहर लाल नेहरु जैसे साफ-सुथरी छवि रखने वाले तथा उदारवादी राजनीति में पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान कायम करने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री इलाहाबाद जिले की जिस फूलपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया करते थे, उसी लोकसभा सीट पर पहले भी एक बाहुबली अपराधी निर्वाचित हुआ था और उसी सीट पर पुन: एक दूसरा बाहुबली अब एक अन्य पार्टी से निर्वाचित हुआ है। इस लोकतांत्रिक दुर्घटनाÓ को हम राजनीति के अपराधीकरण का चरमोत्कर्ष भी कह सकते हैं। आंकड़ों के अनुसार 2005 में हुई अपराधियों की राजनैतिक सक्रियता की तुलना में 2009 आते-आते कुछ कमी जरूर आई है। माना जा रहा है कि इसके पीछे बिहार की अदालतों द्वारा तेजी के साथ मुकद्दमों का निपटाराकिया जाना भी एक सबसे बड़ी वजह रही है।
एक अनुमान के अनुसार गत् लगभग 5 वर्षों के दौरान करीब-करीब 50 हजार अपराधियों को पूरे बिहार राज्य में अदालतों द्वारा सजाएं सुनाई गई हैं। जाहिर है इन्हीं में कई बाहुबली नेता भी शामिल हैं जो इस समय साायां ता होने का तमगाÓ भी पा चुके हैं। इसके बावजूद भले ही साायां ता होने के नाते ऐसे अपराधी बाहुबली कानूनी तौर पर स्वयं चुनाव न लड़ सकें परंतु वे अपनी पत्नी या अपने भाईयों अथवा सगे संबंधियों को चुनाव मैदान में उतार कर अपनी सीट पर अपना नियंत्रण बरकरार रखना चाहेंगे।
उधर राज्य में सक्रिय कई राजनैतिक दल ऐसे भी हैं जो भले ही स्वयं को अपराधियों से दूर रखने का ढोंग क्यों न करते हों परंतु उन्होंने भी अभी से बाहुबलियों व अपराधियों से मिलने-जुलने यहां तक कि जेल तक जाकर उनसे मिलने का सिलसिला शुरु कर दिया है। इससे सांफ संकेत मिलने लगे हैं कि राजनीतिज्ञों व अपराधियों के मध्य बन चुका गठजोड़ अब एक बहुत माबूत शक्ल अख्तियार कर चुका है

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