माया-कांग्रेस में गुप्त समझौता
03-Mar-2014 11:52 AM 1234818

मायावती ने अगले चुनाव के लिए पत्ते खोल रखे हैं, वे सरकार बनने के बाद ही कोई फैसला लेने वाली थीं किन्तु कांग्रेस शायद उन्हें चुनाव पहले ही अपने खेमे में खींचने की कोशिश में है. सूत्रों के मुताबिक उत्तरप्रदेश में भले ही दोनों दल साथ न आयें किन्तु राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह दोस्ती परवान चढ़ सकती है क्योंकि इन राज्यों में बसपा की पकड़ बेहतर है और कांग्रेस-बसपा का संयुक्त गठबंधन भाजपा को परेशान कर सकता है, खासकर बुंदेलखंड में बसपा की ताकत कांग्रेस के कम आ सकती है। राहुल  गांधी की राह आसान करने में जुटे कांग्रेसी  भी इस समीकरण से वाकिफ हैं इसलिए बसपा की घेराबंदी की जा रही है। सुनने में आया है कि सीबीआई, उत्तरप्रदेश के सात जिलों में मायावती के शासनकाल के दौरान मनरेगा के तहत प्रदान धन के कथित दुरुपयोग की जांच शीघ्र ही शुरू करने वाली है ।सीबीआई जांच का आदेश आने के बाद मायावती ने कहा कि वह बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को अगला प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगी। वह मोदी से देश को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगी। यह कोशिश कांग्रेस के हाथ मजबूत करने के आलावा और क्या हो सकती है। वैसे भी मोदी पिछड़े वर्ग से हैं इसीलिए बसपा को अपने वोट बैंक की भी फिक्र है। दूसरी फिक्र यह है कि  कथित वित्तीय अनियमितताओं और राज्य में साल 2007-10 के दौरान केंद्र प्रायोजित योजना के कार्यान्वयन में सत्ता के दुरुपयोग की जांच शुरू करने का फैसला किया गया है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ की ओर से सीबीआई को कथित दुरुपयोग और धन की घपलेबाजी के साथ-साथ सूबे के सात जिलों में मनरेगा योजना के तहत सत्ता के दुरुपयोग की जांच का निर्देश दिए जाने के बाद किया गया। आदेश न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति अशोक पाल सिंह की पीठ ने सच्चिदानंद गुप्ता सच्चे की जनहित याचिका पर दिया था। अदालत ने सीबीआई को साल 2007 और 2010 के बीच बलरामपुर, गोंडा, महोबा, सोनभद्र, संत कबीर नगर, मिर्जापुर और कुशीनगर में मनरेगा के तहत धन की अनियमितता और दुरुपयोग के साथ-साथ शक्ति के दुरुपयोग की जांच करने तथा कानून के अनुसार उचित कार्रवाई और मुकदमे का निर्देश दिया था।
ये घोटाले मायावती के लिए सरदर्द हैं, सुप्रीम कोर्ट दागियों के चुनाव लडऩे पर पहले ही रोक लगा चुका है, लालू यादव इसी कारण चाहकर भी किसी भी सदन में नहीं पहुँच सकते, मायावती को यह डर भी है। लेकिन एक दुविधा यह है कि वक्त आने पर कांग्रेस मुलायम सिंह यादव को भी प्रधानमंत्री बनवा सकती है, ऐसे में मायावती कांग्रेस से चुनाव पूर्व गठबंधन भला कैसे निभा सकती है इसीलिए किसी गुप्त समझौते की ज्यादा सम्भावना है, जो बसपा के प्रभाव वाले अन्य राज्यों में मूर्त रूप ले सकता है। खबर यह है कि उत्तरप्रदेश को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य में जिला मुख्यालयों पर बसपा  की रसद नहीं पहुंची है। आम तौर पर चुनाव से पहले बसपा के कार्यालय हरे-भरे हो जाते हैं किन्तु इस बार वह हरियाली नहीं है, कांग्रेस चाहती है कि बसपा पूरी तैयारी के साथ मैदान में न आये जिससे उसके वोटरों को लुभाया जा सके।  
मुलायम को अलीगढ़ विवि में प्रवेश नहीं
समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के लिए उत्तरप्रदेश में उस वक्त बड़ी शर्मिंदगी वाली स्थिति पैदा हो गई जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उनका एक भाषण स्थगित करना पड़ा। कैम्पस में मुलायम के खिलाफ लगातार प्रदर्शन किया गया। जिसके चलते एक सेमिनार में वक्ता के तौर पर आमंत्रित मुलायम नहीं आए। बताया जाता है कि सर सैय्यद मूवमेंट द्वारा आयोजित इस सेमिनार में मुलायम को बुलाने का विरोध प्रशिक्षकों द्वारा लगातार किया जा रहा था। इन शिक्षकों का कहना था कि मुजफ्फरनगर दंगों में जिस तरह सरकार ने लापरवाही की उसके चलते मुलायम सिंह यादव को बतौर वक्ता बुलाना मुस्लिम समाज की भावनाओं के साथ खिलवाड़ होगा। ये लोग मुलायम सिंह द्वारा सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक का विरोध करने से भी नाराज हैं। इस घटनाक्रम से लग रहा है कि उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ेगी। क्योंकि उनकी छवि मुस्लिम समर्थकों की न होकर मुस्लिम विरोधियों की बनती जा रही है। दूसरी तरफ कट्टर हिंदू उन्हें पहले ही खलनायक मानते हैं। क्योंकि उन्होंने कारसेवकों पर गोलियां चलवा दी थी। मुलायम इस नुकसान की भरपाई के हर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन किस्मत उनके साथ नहीं है।
कांग्रेस ने संसद में सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक प्रस्तुत करके मुस्लिम समाज के बीच एक बहस तो छेड़ ही दी है। दुविधा यह है कि इस विधेयक का श्रेय कांग्रेस को मिल गया तो भी घाटा मुलायम को ही उठाना पड़ेगा एक तरफ कुआं तो एक तरफ खाई वाली स्थिति है। ऐसे में उत्तरप्रदेश की भावी राजनीति कुछ उलझी नजर आ रही है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी यही इशारा करते हंै कि समाजवादी पार्टी लाभ में नहीं रहेगी। उधर अखिलेश यादव के राज में हुई गुंडागर्दी की छाया भी लोकसभा चुनाव पर पडऩा तय है। देखना है मुलायम इस दुष्चक्र से निकलने का क्या रास्ता तलाशते हंै। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है वह चुनाव पूर्व गठबंधन करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी। वैसे भी लोकसभा चुनाव केंद्र में सत्तासीन सरकार की आलोचना और समालोचना के आधार पर लड़े जाते हैं। यदि कोई भी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव में भाजपा का डर बताते हुए चुनावी मैदान में उतरेगा तो उसे शायद ही फायदा मिले क्योंकि भाजपा केंद्र में सत्तासीन नहीं है। सांप्रदायिकता का डर भी एक सीमा तक ही दिखाया जा सकता है। अंतत: तो बात केंद्र सरकार के परफारमेंस की ही करनी पड़ेगी और केंद्र सरकार की क्या स्थिति है यह सभी राजनीतिक दल जानते हैं। केंद की कुनीतियों के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ा ऐसा मुलायम सिंह यादव कई बार कह चुके हैं। अब यदि वे अपनी चुनावी रणनीति के केंद्र में सांप्रदायिकता को लाते हैं तो जनता को यह बकवास शायद ही पसंद आए। क्योंकि मूल समस्या भ्रष्टाचार है। जिसके आधार पर ये चुनाव लड़े जा रहे हैं।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^