02-Apr-2014 09:42 AM
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हाल ही में दुनिया भर में 22 मार्च को जल दिवस मनाया गया पानी को बचाने का सन्देश देकर। किन्तु सारी दुनिया में पानी का सामान वितरण हो और किसी को पानी के लिए भटकना न पड़े यह संकल्प इस जल दिवस में दिखाई ही नहीं

दिया। सारी दुनिया में जल ही एकमात्र ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जो प्रचुर मात्रा में होने के बावजूद गरीबों को आसानी से उपलब्ध नहीं है। भारत का ही उदाहरण लें तो यहाँ देश की राजधानी में गरीब इलाकों की लगभग 90 प्रतिशत आबादी सुबह से देर रात तक पानी की भागमभाग करती देखी जा सकती है लेकिन दिल्ली के ही पाश इलाकों में पैसे वाले लोग आराम से पानी फेंकते हैं। क्योंकि उनके पास क्रय शक्ति है। वे राजनीतिक और सामाजिक रूप से ताकतवर लोग हैं। केजरीवाल के चुनाव जीतने से लगा था कि कम से कम पानी को लेकर इस वर्गभेद को मिटाने की वे पहल करेंगे, किन्तु उन्होंने पानी की एक निश्चित मात्रा मुफ्त करके एक तरह से इसी वर्ग को लाभान्वित किया। जिनके घरों में नल नहीं है वे आज भी भटक रहे हैं। दिल्ली ही नहीं सारे देश में पानी के लिए आम आदमी का यह संघर्ष बदस्तूर जारी है। बहरहाल इन सारी विसंगतियों के बावजूद सारी दुनिया में विश्व जल दिवस मनाया जाता है। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। इनमें सबसे बड़ी तादात भारतीयों की है। वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है।
पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रुप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले खतरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी देते हैं। समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूंद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की पिछले साल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में लगभग 900 करोड़ लोगों को साफ पानी नहीं मिल पा रहा। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की एक बड़ी आबादी आज भी रोगों के विषाणुओं और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों से युक्त पानी पीने पर मजबूर है। इसी का परिणाम है कि दुनियाभर में हर दिन लगभग 4,500 बच्चों की मौत जलजनित बीमारियों के कारण होती है। यह संख्या एचआईवी-एड्स, मलेरिया और टीबी से मरने वाले बच्चों की संख्या से भी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया के विभिन्न महानगर रोजाना 150 से 200 मिलियन प्रति गैलन पानी की कमी से जूझते हैं। विश्व शक्ति बनने जा रहे भारत में अब भी करोड़ों लोग साफ पानी से महरूम हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
मुंबई में रोज़ वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है।
दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज़ 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है।
इजऱाइल में औसतन मात्र 10 सेंटी मीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।
पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं।
भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है।
पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
हमारी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलो लीटर पानी है। इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बफऱ् के रूप में ध्रुव प्रदेशों में है। इसमें से बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुओं, झरनों और झीलों में है जो पीने के लायक है। इस एक प्रतिशत पानी का 60 वाँ हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत होता है। बाकी का 40 वाँ हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं।
यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।
बाथ टब में नहाते समय 300 से 500 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामान्य रूप से नहाने में 100 से 150 पानी लीटर खर्च होता है।
विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है।
प्रति वर्ष 3 अरब लीटर बोतल पैक पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं।