संकल्प की क्षिप्रा से श्रम की नर्मदा का मिलन
03-Mar-2014 11:35 AM 1235242

ब्रिटेन और उसकी सहयोगियी शक्तियों की लंबी पराधीनता के बाद सुदूर एशिया का देश टर्की वहां के महान नेता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में लंबे स्वतंत्रता संघर्ष के बाद स्वतंत्र हुआ। मुस्तफा कमाल पाशा ने 1923 में टर्की को गणराज्य घोषित किया। लंबी पराधीनता और स्वतंत्रता संघर्ष से उबरे देश के सामने राष्ट्र निर्माण की अनेक समस्यायें थी। देश की राजधानी अंकारा में नये गणराज्य की पहली बैठक में इन समस्याओं पर विचार के लिये मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों और अधिकारियों की बैठक आयोजित की गई। मुस्तफा कमाल पाशा ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिये पहली आवश्यकता यह है कि अंग्रेजी के स्थान पर तुर्की भाषा को राष्ट्र भाषा बनाया जाये। कमाल पाशा ने पूछा कि तुर्की को राष्ट्र भाषा बनाने कितना समय लगेगा। जवाब मिला कि तुर्की को देश की राष्ट्र भाषा बनाने में कम से कम पांच वर्ष का समय आवश्यक है। मुस्तफा कमाल पाशा ने कहा कि अपनी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में देखने के लिये मैं इतनी लंबी प्रतीक्षा नही कर सकता। पूरे आत्मविश्वास और अधिकार के साथ मुस्तफा कमाल पाशा ने कहा कि कल सुबह से ही तुर्की तुर्की-गणराज्य की राष्ट्र भाषा होगी। इस प्रकार मुस्तफा कमाल पाशा की इच्छा शक्ति ने अविश्सनीय समय में तुर्की को राष्ट्र भाषा बना दिया।
तुर्की का यह प्रसंग इस बात का उदाहरण है कि यदि राजनेताओं में व्यापक जनहित के लिये अदम्य इच्छा शक्ति हो तो वे नितांत असम्भव लगने वाली चुनौतियों को भी संभव बना सकते हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में राजनीतिक इच्छा शक्ति का एक ऐसा ही स्वरूप सामने आया। भू जल के अंधाधुंध दोहन और विभिन्न पर्यावरणीय कारणों से राज्य का मालवांचल सत्तर और अस्सी के दशक से सूखे की त्रासदी से गुजर रहा है। भू-वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस खतरे से आगाह किया हुआ है कि मालवांचल का भू जल स्तर तेजी से घट रहा है और यह स्थिति लगातार बनी रही तो राजस्थान से लगा हुआ मालवांचल आने वाले समय में बंजर रेगिस्तान में परिवर्तित हो जायेगा। जलापूर्ति के स्थानीय विकल्पों पर समय-समय पर अमल किया गया लेकिन गम्भीर बिमारी की तरह इसका सफल इलाज घरेलु उपचार से नही किया जा सका।
मालवा के घोर जल संकट का यह हाहाकार जब घनीभूत हुआ तो स्थानीय जन प्रतिनिधियों के संबोधनो का विषय बना। जब स्थिति और गम्भीर हुई तो यह एक प्रमुख मुद्दे के रूप में राजनीति और प्रशासन के उच्च स्तरों तक पहुंचा। नब्बे के दशक में मालवा के संदर्भ में हर बार इस मुद्दे पर उच्च स्तरीय विचार विमर्श होता रहा। इस मुख्य विकल्प पर विचार हुआ कि नर्मदा से साढे पांच मिलियन एकड फीट पानी उद्वहन कर मालवा पठार में किसी निर्धारित क्षेत्र में संग्रहित किया जाये जिससे मालवा अंचल के जल स्तर में बढोत्तरी की जा सके। इस योजना को नर्मदा सागर पम्प स्टोरेज कम मालवा लिफ्ट स्कीम नाम दिया गया। लंबे विचार विमर्श के बाद इस परियोजना की भारी भरकम 3910 करोड रू. की लागत को देखते हुये इस पर कोई कार्यवाही नही हो सकी। कुछ समय बाद वर्ष 1994 में नर्मदा से तीन मिलियन एकड फीट पानी उद्वहन कर मालवा तक पहुंचाने की परियोजनाओं पर विचार हुआ। लंबे विचार विमर्श और बैठकों के बाद यह निष्कर्ष सामने आया कि परियोजना की 3453 करोड रू. की लागत और रू. 555 करोड रू. के वार्षिक आवर्ती व्यय को वहन करना सरकार के बूते के बाहर है। मालवांचल में सरकार की ओर से गम्भीर जल समस्या का कोई समाधान सामने नही आया तो पुन: इस मुद्दे पर बहस और विचार विमर्श का दौर आरम्भ हुआ। इस बात पर सहमति बनी कि भारी लागत वाली नर्मदा मालवा जल प्रदाय योजना के लिये निजी क्षेत्र से वित्तीय पोषण की सम्भावनाओं पर विचार किया जाये। सम्भावनायें खोजी जाने लगी लेकिन अंत यह हुआ कि भारी वार्षिक आवर्ती व्यय के कारण परियोजना लाभप्रद नही मानी गई। इसके स्थान पर मालवांचल के उज्जैन, देवास और शाजापुर क्षेत्र में उपलब्ध जल संसाधनों और भू-जल का दोहन करना उपयुक्त होगा। यह भी चेतावनी उल्लेखित हुई कि इन जिलो के जल संसाधनो का उपयोग नही किया गया तो इनका उपयोग पडोसी राज्य राजस्थान द्वारा निकट के झालावाड जिले की परियोजनाओं से कर लिया जायेगा। कुल मिलाकर एक ओर राजनीति और प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर समस्या के समाधान के लिये विकल्पों और सुझावों पर विचार विमर्श होता रहा और दूसरी ओर सम्पूर्ण मालवा अंचल जल संकट की त्रासदी से साल-दर-साल गुजरता रहा।
वर्ष अस्सी के बाद के इस लंबे अंतराल में क्षिप्रा नदी के किनारे बसे उज्जैन नगर में प्रत्येक बारह वर्ष के बाद आयोजित होने वाले सिंहस्थ मेले में एकत्रित देश विदेश से आये लाखों लोग असंतृप्त धार्मिक स्नान की पीडा से गुजरते रहे। मालवावासी इस बात से अंजान है कि 08 अगस्त 2012 का दिन उनके लिये एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन के रूप में प्रशासनिक इतिहास में अंकित रहेगा। इस दिन मध्यप्रदेश मंत्रालय में जो प्रसंग उपस्थित हुआ उसकी तुलना टर्की के सर्वे सर्वा मुस्तफा कमाल पाशा के प्रसंग से ही की जा सकती है। इस दिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में नर्मदा नियंत्रण मण्डल की बैठक और बैठक में प्रस्तुत नर्मदा घाटी विकास की परियोजनाओं से संबंधित विभिन्न प्रशासनिक और आर्थिक मुद्दे। इन मुद्दो पर विचार प्रक्रिया से परे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूछा कि नर्मदा का पानी जल्द से जल्द मालवा वासियों तक पहुंचाने के लिये क्या कोई योजना अधिकारियों के पास है। बैठक की मूल विचार आयोजना से परे इस प्रश्न पर नर्मदा घाटी विकास विभाग के प्रमुख सचिव जो मूल रूप से एक इंजिनियर हैं ने एक ऐसी योजना लागू करने की संभावना बताई जिसमें पांच क्यूमेक्स (5 हजार लीटर प्रति सेकण्ड) जल की मात्रा उद्वहन कर क्षिप्रा नदी में प्रवाहित की जा सकती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि यह संभव है तो मैं इसके लिये लंबी प्रतीक्षा नही कर सकता। मुझे कम से कम समय में नर्मदा को मालवा में देखना है। मुख्यमंत्री ने स्वयं ही कहा कि कम से कम समय का उनका आंकलन केवल 365 दिन है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मै जानता हूं पूरे जोश और जूनून से यह संभव हो सकता है। बैठक में उपस्थित अधिकारियों को मुख्यमंत्री की इस असीम इच्छा शक्ति ने पूरी गहराई से प्रभावित किया और इस तरह नर्मदा को मालवा तक ले जाने का काम अगले ही दिन से परवान चढने लगा। नर्मदा को मालवा लाने के इस असंभव को संभव बनाने की योजना 432 करोड रू. की बनी। अमूमन इस लागत की योजनाओं को पूरा करने में कम से कम पांच वर्ष का समय लगता लेकिन कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति के प्रभाव ने अपना कमाल दिखाना आरम्भ कर दिया।
इस परियोजना को 365 दिन में पूरा करने का जूनून प्राधिकरण के उच्च स्तर से लेकर हर उस इंजिनियर पर सवार था जिसे इस परियोजना के काम में लगाया गया। लक्ष्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण था, खरगोन जिले की बडवाह तहसील स्थित सिसलिया जलाशय से क्षिप्रा उद्गम स्थल तक 46 कि.मी. लम्बाई में 1.8 मीटर व्यास और 12 मीटर लंबाई के 2788 नग माईल्ड स्टील (एम.एस.) पाईपों को बिछाना तकनीकी रूप से अत्यंत कठिन इसलिये बन गया कि पूरा इलाका विंध्याचल की दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं से भरा हुआ है। अधिकांश स्थान ऐसे थे जहां किसी मशीन का जाना संभव नही था। इसके अतिरिक्त जल उद्वहन के लिये इन्ही दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं के बीच तीन विशाल पम्पिंग स्टेशन स्थापित करना और उन तक बिजली लाइने बिछाई जाना थी। एक स्थान पर रेल्वे लाईन के नीचे पाईप डालना था। प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छा थी कि नर्मदा और क्षिप्रा का मिलन एन नर्मदा जयंती के दिन 06 फरवरी को हो। परियोजना की इतनी बडी संरचना को जल प्रवाह के लिये परीक्षण करना और नर्मदा का जल क्षिप्रा उद्गम 06 फरवरी को पहुंचाना इंजिनियरों के लिये एक कठिन चुनौती थी। लेकिन इस परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री के संकल्प और इच्छाशक्ति के प्रभाव ने निर्माण एजेन्सी मेसर्स मेघा इंफ्रास्ट्रक्चर्स और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के इंजिनियरों में जिस ऊर्जा का संचार किया उस ऊर्जा ने अंतत: मुख्यमंत्री का संकल्प पूरा कर दिखाया। नर्मदा जयंती के दिन रात्रि 11 बजकर 58 मिनट पर जैसे ही नर्मदा का जल क्षिप्रा के उद्गम पर प्रकट हुआ वहां उपस्थित सैकडों ग्रामीण नर्मदा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जय-जयकार करने से स्वयं को रोक नही सके। अद्र्धरात्रि को ग्रामीण महिलाओं ने विधि विधान से नर्मदा के जल की पूजा की। इस अवसर पर न केवल ग्रामीण जनों का अपितु परियोजना से जुडे हर छोटे बडे अधिकारी / कर्मचारी का उत्साह चरम पर था। मिठाईयांॅ बांटी गई नर्मदा जयंती का दिन होने से केक काटकर नर्मदा का जन्म दिन मनाया गया। अगले दिन से जब नर्मदा का जल क्षिप्रा में आगे बढने लगा तो लगभग हर गांव में क्षिप्रा में प्रवाहित नर्मदा जल को चुनरी भेंट कर श्रद्धा और सम्मान प्रगट किया गया। कुल मिलाकर लगभग 14 माह की अवधि में मुख्यमंत्री के संकल्प की क्षिप्रा में इच्छाशक्ति से प्रेरित श्रम की नर्मदा का प्रवाह संभव हो गया।

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