02-Apr-2014 09:40 AM
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वो दिन दूर नहीं जब इस देश की 543 संसदीय सीटों पर कोई न कोई नेता रिश्तेदार खड़ा होगा। इस बार चुनाव में रिश्तेदार लगभग साढ़े सात प्रतिशत टिकिट पाने में कामयाब रहे जो कि महिलाओं को मिले टिकिटों से थोड़े ही कम हैं और

जिस तेजी से महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ रही है उसी तेजी से रिश्तेदार भी राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं। जो लोकप्रिय, योग्य और सही मायने में जनता के सेवक हैं उनकी बात छोड़ भी दी जाये तो भी बिना किसी योग्यता के केवल पैतृक राजनीतिक विरासत संभालने वालों की अच्छी-खासी संख्या है और इसी कारण पार्टियों में असंतोष फैल रहा है।
बताया जाता है कि लोकसभा के 41 टिकट रिश्तेदारी में बंटे हैं और करीब 111 लोगों की उनके रिश्तेदार नेताओं ने सिफारिश की थी। यदि सभी सिफारिशें मान ली जातीं तो संसद का क्या नजारा होता यह समझा जा सकता है। बिहार में तो एक मुहावरा प्रचलित है कि आगामी 10 वर्षों में बिहार से लालू कुनबे की फौज सभी लोकसभा सीटों पर और विधानसभा में लगभग दो तिहाई सीटों पर लड़ेगी। लालू की जनसंख्या को राजनीति में भविष्य का निवेश कहा जा रहा है। लालू अकेले नहीं हैं। कांग्रेस-भाजपा में टिकिट पाने वाले रिश्तेदारों की लम्बी लाईन है। कांग्रेस ने 1967 से इसे शुरू कर दिया था। भाजपा भी पीछे नहीं रही। क्षेत्रीय दल भी नहीं। अभी तक जिन पार्टियों में रिश्तेदारी में टिकट नहीं बंटा है, उनमें राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ वामपंथी दल और क्षेत्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी और अन्नाद्रमुक हैं। कांग्रेस में ज्यादातर प्रांतों से रिश्तेदारों को टिकिट मिली है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परनीत पहले ही कांग्रेस प्रत्याशी थीं। अब वे भी मैदान में हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित चुनावी मैदान में हैं। पड़ौसी राज्य हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपिंदर हुड्डा के बेटे दीपेंदर को टिकिट मिला है। उत्तरांचल में विजय बहुगुणा के बेटे साकेत की लाटरी लग गयी। माधवसिंह सोलंकी के पुत्र भारत सिंह सोलंकी, अमरसिंह चौधरी के पुत्र तुषार चौधरी, नारायण राणे के बेटे निलेश राणे, केंद्रीय मंत्री आरवी देशपांडे के बेटे प्रशांत देशपांडे जैसे नाम भी उल्लेखनीय हैं। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कीर्ति चिदंबरम भी टिकिट पाने में कामयाब रहे। कश्मीर से पीएम सईद के बेटे हमदुल्ला सईद मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह, असम में तरुण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई और मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा को टिकिट मिलना वंशवाद का प्रत्यक्ष उदाहरण है। कहने को तो सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रिया दत्त भी इसी कतार में हैं किन्तु राहुल गांधी की तरह इन्होंने भी पिता की मृत्यु के बाद अपना मुकाम बनाने की कोशिश की। भाजपा ने वंशवाद से बचने की भरसक कोशिश की किन्तु फिर भी कुछ टिकिट चर्चित रहे जैसे गोपीनाथ मुंडे बीड़ से लड़ रहे हैं उनकी भांजी पूनम अपने पिता की सीट से लड़ रही हैं।
मेनका गांधी के साथ साथ उनके पुत्र वरुण गांधी मैदान में हैं इस तरह नेहरू गांधी खानदान की दो बहुओं और दो पुत्रों का संसद पहुंचना तय है। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह को आसानी से टिकिट मिल गया, यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत भी टिकिट पा गए हैं। भाजपा में वंशवाद को लेकर विवाद भी उत्पन्न हुआ था जिसके चलते मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में टिकिट की घोषणा में बिलम्ब हुआ। बाकी दल भी पीछे नहीं हैं टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने परिवार में ही तीन टिकट दे दिए हैं। उनकी बेटी के कविता, बेटे रामाराव और भतीजे हरीश राव को टिकिट मिला है। जनता दल (सेक्युलर) से एचडी देवेगौडा और उनके बेटे कुमारास्वामी दोनों चुनाव लड़ रहे हैं। मुलायम सिंह यादव, खुद दो जगह से उम्मीदवार हैं। साथ ही बहू डिम्पल और भतीजे धर्मेंद्र यादव भी चुनाव लड़ रहे हैं। बिहार के महारथी लालू यादव तो चुनाव नहीं लड़ सकते किन्तु उनकी बेटी मीसा भारती और पत्नी राबड़ी देवी मैदान में हैं। लोकजन शक्ति पार्टी के रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान कश्मीर में मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती भी चुनावी दाऊद में शामिल हैं।
यूं देखा जाए तो कई परिवार इस बार चुनाव मैदान में उतर गए हैं। लगभग हर राज्य में किसी न किसी दिग्गज नेता के सगे संबंधी चुनाव लड़ रहे हैं। कई मुख्यमंत्रियों ने अपने बेटों को चुनावी मैदान में उतारा है। लालू यादव जैसे नेता जो खुद चुनाव नहीं लड़ सकते पत्नी को लोकसभा में भेजने के लिए तैयार बैठे हैं। उधर भाजपा ने भी कई बेटों को टिकिट दिया है, जिनमें वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत का नाम भी है। इन नेता पुत्रों की मौजूदगी से निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा। केवल कुछ दलों ने पैतृक राजनीति से दूरी बनाकर रखी है। देखना है परिवार की विरासत संभालने वाले क्या गुल खिलाते हैं।