02-Apr-2014 09:33 AM
1234767
लबे समय तक कुर्सी से चिपके रहने के बाद अंतत: बड़े मुरौब्बत होकर तेरे कूचे से हम निकले की तर्ज पर बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कुर्सी छोड़ गए। उनके स्थान पर सुनील गावास्कर को अंतरिम अध्यक्ष बनाया

गया है। श्रीनिवासन लगातार तमाम विरोध के बावजूद कुर्सी से चिपके हुये थे। दरअसल उन्हें कुर्सी से चिपकाये रखने में बीसीसीआई की एक कोटरी काम कर रही थी जिसके हित श्रीनिवासन के साथ जुड़े हुये थे। यहां तक कि अरुण जेटली जैसे न्याय पसंदÓ क्रिकेट प्रशासकों ने भी श्रीनिवासन के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोला। संभवत: शरद पवार भी श्रीनिवासन के पैरोकार बने रहे और भी तमाम लोग थे जो श्रीनिवासन की पैरवी कर रहे थे, क्योंकि श्रीनिवासन के हाथ में कुछ लोगों की नब्ज थी और कुछ अपने भविष्य को श्रीनिवासन से जोड़कर देख रहे थे। बताया जाता है कि जो लोग आने वाले समय में इस सर्वाधिक धनी क्रिकेट बोर्ड के सर्वोच्च पद पर जाना चाह रहे थे उन्होंने श्रीनिवासन को भरपूर संरक्षण दिया। श्रीनिवासन बचते रहे। ऐसे में न्यायपालिका का सुदर्शन चक्र चलना अवश्यंभावी था। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएल की गड़बडिय़ों के निष्पक्ष जांच का हवाला देते हुये अपना रुख साफ किया और कहा कि वह चाहता है कि फिलहाल वे सभी आईपीएल से दूर हो जायें जिनके ऊपर उंगली उठाई जा रही है।
देखा जाये तो आईपीएल के इस भ्रष्ट तंत्र में सभी की भागीदारी है। आईपीएल अब एक मजाक बन चुका है। जहां पहले से तय परिणामों के आधार पर टीमें मैच खेलती हैं और दर्शक ठगे जाते हैं। महेंद्र सिंह धोनी ने चेन्नई की कप्तानी छोडऩे की पेशकश की। धोनी के मित्र मयप्पन अपने ससुर श्रीनिवासन की कंपनी इंडिया सीमेंट में बतौर वाइस प्रेसिडेंट काम कर रहे थे और वे टीम से भी बतौर प्रिंसिपल जुड़े हुये थे। मामला हितों के टकराव का था। संभवत: धोनी ने श्रीनिवासन को बचाने के लिये झूठ बोला। लेकिन धोनी श्रीनिवासन को बचाना क्यों चाह रहे थे? क्या धोनी को यह भय था कि श्रीनिवासन उन्हें कप्तानी से हटा देंगे? धोनी ने जी मीडिया के खिलाफ सौ करोड़ रुपये का मानहानि दावा कर रखा है।
बहरहाल कोर्ट के रुख से यह साफ हो गया है कि आईपीएल साफ-सुथरा खेल नहीं है। इसमें सट्टेबाजी जमकर चल रही है। सारे के सारे जो इसमें शामिल हैं खेल अपने तरीके से खेल रहे हैं। यदि कोर्ट ने अपना रुख इसी तरह का बनाया रखा तो इस साल आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपरकिंग शायद नहीं खेल पायेंगी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुंद्रा और श्रीनिवासन के दामाद मयप्पन को ससपेंड किया जा सकता है तो उनकी टीमों के साथ भी यही बर्ताव किया जाना चाहिये। एन. श्रीनिवासन इस मामले में फंसते जा रहे हैं। बोर्ड का कहना है कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती श्रीनिवासन हटने को तैयार हैं। लेकिन श्रीनिवासन के हटने से क्या होगा। सारा बोर्ड ही इस तमाशे में किसी न किसी रूप से शामिल है और सभी गुनहगार हैं। अकेले श्रीनिवासन हट गये तो बाकी मिलकर उन्हें बचा ले जायेंगे। इसलिये जरूरी है सुप्रीम कोर्ट इस वर्ष आईपीएल को निरस्त करते हुये इसकी सफाई का अभियान चलाये। दूसरे क्रिकेट से संबंधित इस बोर्ड के संविधान की समीक्षा भी की जानी चाहिये। बोर्ड में चुनाव लडऩे का अधिकार और अध्यक्ष सहित तमाम महत्वपूर्ण पदों पर बैठने का अधिकार केवल पूर्व खिलाडिय़ों को ही होना चाहिये, जो कम से कम अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हों। खिलाडिय़ों के हाथों में कमान देने से राजनीति नहीं होगी। राजनीति ही भ्रष्टाचार का मार्ग बनाती है।
आईपीएल से पहले भी बीसीसीआई की निरंकुश कार्यशैली की चर्चा होती रही है। कई प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों का कैरियर बीसीसीआई ने बर्बाद किया और कई बेकार खिलाडिय़ों को लंबे समय तक झेला जाता रहा, क्योंकि वे अप्रोच वाले थे। बीसीसीआई का क्रिकेट जगत में बोलबाला है। आईसीसी जैसी सर्वोच्च क्रिकेट संस्थायें भी बीसीसीआई से बैर मोल नहीं लेतीं। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को उसकी औकात दिखा दी है, जो कड़ा रवैया कोर्ट ने अख्तियार किया है उससे साफ है कि बीसीसीआई लंबे समय तक मनमानी नहीं कर पायेगा। कोर्ट ने श्रीनिवासन को कुर्सी से चिपके रहने के लिये फटकार लगाते हुये यह तक कह डाला कि आपके रवैये पर घिन आती है इसलिये क्रिकेट की सफाई के लिये आपको पद से इस्तीफा दे देना चाहिये। सवाल यह है कि अब श्रीनिवासन क्या करेंगे? क्रिकेट की दुनिया के वे बेताज बादशाह हैं। आईसीसी बोर्ड के भी एक जुलाई से चेरमैन बने हुये हैं। अब ये सब बादशाहत उनसे छिन सकती है। आईसीसी भी श्रीनिवासन को ज्यादा दिन तक बर्दाश्त नहीं करेगी। देखना है सुप्रीम कोर्ट के इस कदम के बाद किस सीमा तक क्रिकेट साफ हो पाता है।