सुनियोजित था फर्म का गठन
02-Apr-2014 09:10 AM 1234805

वर्ष 2006 में स्वास्थ्य विभाग में ड्रग किट आशा ए और बी के क्रय में हुए घोटाले में बर्खास्त स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा और उनके व्यावसायिक साझेदार एचआईपीएल के संचालक अशोक नंदा सहित छह आरोपियों के विरुद्ध जो चालान प्रस्तुत किया है उसे देखने पर पता चलता है कि योगीराज और उनके गुर्गों का शातिर दिमाग विभाग की खरीददारी पर वर्षों से नजर रख रहा था और इसीलिए सुनियोजित तरीके से उन्होंने नेप्च्यून रेमेडीज का गठन सत्येंद्र साहू नामक एक मामूली व्यक्ति के नाम पर किया जिसे मेडिकल तो क्या दवाओं की भी जानकारी नहीं थी। नेप्च्यून के मार्फत अपना फाच्र्यूनÓ बनाने में जुटे योगीराज और उनके गिरोह की कारस्तानी तो वर्ष 2006 में सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत संचालित रूरल चाइल्ड हेल्थ योजना के समय से ही शुरू हो गई थी। दरअसल इस योजना के तहत मध्यप्रदेश शासन के स्वास्थ्य विभाग को प्रदेश के समस्त जिलों में आवश्यकतानुसार औषधि किटों की सप्लाई करनी थी। औषधि किट में कुछ जरूरी औषधियां होती हैं। मध्यप्रदेश को इस कार्य के लिए 28 मार्च 2006 को प्रथम किस्त के रूप में 23 करोड़ 24 लाख रुपए का आवंटन प्राप्त हुआ। इस आवंटन से पूर्व केंद्र सरकार उक्त योजना के अंतर्गत औषधियों के किट सीधे जिलास्तर पर भेजती थी, लेकिन इसमें सरकारी कार्यशैली के कारण विलंब हो जाया करता था। इस विलंब से बचने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को सीधे राशि आवंटित कर दी। जून 2006 में जब मध्यप्रदेश के औषधि क्रय नीति की घोषणा हुई और मार्च में जारी आवंटन का उपयोग करने हेतु विस्तृत दिशा निर्देश केंद्र शासन से मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग को लगभग ढाई माह बाद प्राप्त हुए तो औषधि क्रय करने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने 7 अगस्त 2006 को एक पत्र जारी किया था, जिसमें पीपीपी अर्थात् परचेज प्रिफरेन्स पॉलिसी का जिक्र था और 102 दवाओं की सूची थी। पत्र का मंतव्य था कि औषधियां सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज से खरीदे जाएं ताकि केंद्रीय, शासकीय उपक्रमों को बढ़ावा मिले। ऐसे पांच उपक्रम भारत में औषधियां बनाते हैं।
हालांकि इस पत्र में खरीदने के दिशा-निर्देश दिए गए थे, कोई बाध्यता नहीं थी। यही एक ऐसा ल्यूपोल था जिसका फायदा योगीराज और उनके गिरोहबाज उठाना चाह रहे थे। उक्त परिप्रेक्ष्य में मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम को नोडल एजेंसी मानकर औषधियां क्रय करने की कार्रवाई स्वास्थ्य विभाग में चल रही थी। मध्यप्रदेश सरकार ने औषधियों एवं सर्जिकल सामान की खरीद पर मध्यप्रदेश भंडार क्रय नियमों से मुक्त किया था ताकि आवश्यकता पडऩे पर सुचारू रूप से स्वास्थ्य विभाग औषधियां एवं सर्जिकल सामान लघु उद्योग निगम के माध्यम से या अन्य कहीं से भी क्रय कर सकें। 24 करोड़ से ऊपर की धनराशि देखकर आरोपियों के शातिर दिमाग में योजना बन चुकी थी। इसको अमल में लाने के लिए सत्येंद्र साहू नामक व्यक्ति के नाम पर डॉ. योगीराज शर्मा एवं अशोक नंदा ने नेप्च्यून रेमेडीज नामक फर्म का गठन किया। जिसका पंजीयन 12 जुलाई 2006 को कराया गया। 7 अगस्त 2006 को केंद्र सरकार की पीपीपी प्रकाशित हुई। इसके दिशा निर्देषों की आड़ में 18 सितंबर 2006 को डॉ. योगीराज शर्मा ने एक नोटशीट लिखी की ड्रग किटों में अधिकांश दवाइयां सीपीएसयू की हैं अत: सीपीएसयू से खुली स्पर्धा करवाकर लघु उद्योग निगम द्वारा औषधि किटों का क्रय किया जाए। ज्ञात रहे कि तब तक नेप्च्यून रेमेडीज अस्तित्व में आ चुकी थी। नवंबर 2006 में पीएनबी की गोविंदपुरा शाखा में नेप्च्यून रेमेडीज का खाता खुला जिसमें परिचयकर्ता बने अशोक नंदा। इसी खाते में विग्नेस हाउसिंग के खाते से 45 लाख रुपए का डिमांड लोन नेप्च्यून रेमेडीज को दिया गया। यह फर्म डॉ. योगीराज शर्मा और उनके व्यावसायिक साझेदार अशोक नंदा की ही थी जो सारा लक्ष्मी का खेल खेल रहे थे। 2 नवंबर 2006 को स्वास्थ्य विभाग के अनुरोध पर लघु उद्योग निगम ने टेंडर जारी किए, 24 नवंबर 2006 को टेंडर खोले गए जिसमें केएपीएल का टेंडर एल-01 होने से 25 नवंबर 2006 को मान्य किया गया। 12 दिसंबर 2006 को टेंडर के 7 दिन बाद 6 करोड़ 72 लाख रुपए का एडवांस केएपीएल को दिया गया। 30 दिसंबर 2006 से 31 जनवरी 2007 तक मात्र एक माह के भीतर केएपीएल को 23 करोड़ 32 लाख रुपए का पैमेंट कर दिया गया और केएपीएल द्वारा भी उक्त राशि में से 21 करोड़ 88 लाख रुपए का पैमेंट उन्ही तारीखों में नेप्च्यून रेमेडीज को किया गया। जबकि औषधियों की सप्लाई एक वर्ष आगे तक होती रही। जो फर्म जुलाई 2006 में अस्तित्व में आई वह मात्र छह माह के भीतर इतनी आगे बढ़ गई कि 21 करोड़ रुपए से ज्यादा के आर्डर उसे मिले गए। बताया जाता है कि वर्ष 2007 में मंडीदीप स्थित आईसोमेट्रिक्स के परिसर में औषधि की किटें बनवाई गईं यह अशोक नंदा की कंपनी थी। सत्येंद्र साहू के नाम पर पंजाब नेशनल बैंक में 21 नवंबर 2006 को खाता क्रमांक-257002100019110 खुलवाया गया और 13 अगस्त 2007 को मात्र 8 माह 7 दिन बाद बंद करवा दिया गया।
सत्येंद्र साहू ने 17 जुलाई 2006 को बैरागढ़ के महानगर सहकारी बैंक में ही खाता खुलवाया था, जिसे 18 माह 15 दिन बाद 30 जनवरी 2008 को बंद कर दिया। इस खाते में 11 लाख रुपए का लेनदेन हुआ। दरअसल नेप्च्यून रेमेडीज के इस खाते से चेक क्रमांक 135804 के मार्फत 3 जनवरी 2007 को 11 लाख रुपए एचआईपीएल के अशोक नंदा के खाते में जमा कराए गए। सत्येंद्र साहू सामान्य व्यक्ति है वह कभी भी बैंगलोर नहीं गया और न ही उसे दवाइयां खरीदने-बेचने का अनुभव है। एक 100 रुपए का स्टाम्प पेपर जो कि कर्नाटक सरकार का है बैंगलोर के स्टेट बैंक ऑफ मैसूर से 15 नवंबर 2006 को साहू के नाम पर ही खरीदा गया। इसमें केएपीएल के तत्कालीन महाप्रबंधक विपणन एसके नागेंद्र तथा सत्येंद्र साहू के बीच एक मार्केटिंग एसोसिएट एग्रीमेंट हुआ है। जिस पर 14 नवंबर 2006 को संपादित होना लिखा है जो स्टाम्प पेपर 15 नवंबर को खरीदा गया उस पर एग्रीमेंट 14 नवंबर को ही हो गया। बताया जाता है कि एग्रीमेंट पर डीएल नाइगांवकर एवं शशिधर जो केएपीएल के अधिकारी हैं, ने हस्ताक्षर किए थे जबकि एमके नागेंद्रा ने उक्त दस्तावेज पर स्वयं के हस्ताक्षर कर कोरियर द्वारा भेजने की बात कही। इससे लगता है कि सारा खेल फर्जीवाड़े में खेला गया और शासन की आंख में धूल झोंकने की कोशिश की गई। सत्येंद्र साहू ने अपने व्यवसाय का पता जहां का दिया था वहां दो दुकानें हैं जिनमें एक में 15 वर्षों से चाय की पत्ती तथा दूसरी में फूलों की दुकान चल रही थी। इसी आधार पर वाणिज्यिक कर विभाग ने उसका टिन नंबर भी निरस्त कर दिया था। ड्रग लाइसेंस एवं टिन नंबर सत्येंद्र साहू द्वारा प्राप्त कर लिए गए और उन्हें केएपीएल में प्रस्तुति हेतु भिजवाया। जाहिर सी बात है सत्येंद्र साहू के पीछे अशोक नंदा, योगीराज शर्मा, एमके नागेंद्र, योगेश पटेरिया, डीएल नाइगांवकर, बीएम शशिधर, का दिमाग काम कर रहा था। इन लोगों ने अपने को जिम्मेदारी से मुक्त रखने के लिए साहू के कंधे पर बंदूक रखकर चलाई। बैरागढ़ के महानगर नागरिक सहकारी बैंक में जो खाता खुलवाया गया उसमें लोन मैनेजर शिवकिशोर मिश्रा परिचयकर्ता बना है परंतु वह साहू को पहचानता ही नहीं था। राजेश जैन नामक सीए ने उसे अपनी पहचान का बताते हुए शिवकिशोर मिश्रा से उसका सत्यापन करवाया। नेप्च्यून रेमेडीज के खाते में जो 45 लाख रुपए का लोन आया है वह विग्नेश वेयर हाउस एंड डिस्टीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड के फिक्स डिपॉजिट पर जमानत के रूप में आया है। जिसके अधिकृत प्रतिनिधि अशोक नंदा थे। जबकि यह फर्म योगीराज शर्मा की पत्नी शशि शर्मा और बेटे गौरव शर्मा के नाम पर थी।

420 के आरोपी
डॉ. योगीराज शर्मा, बर्खास्त स्वास्थ्य संचालक
अशोक नंदा, एचआईपीएल एवं पूर्व संचालक मालवा ड्रग्स
सत्येंद्र साहू, फर्म के संचालक (केवल कागजों में)
एमके नागेंद्रा, तत्कालीन जीएम, केएपीएल बेंगलुरू
दीपक लक्ष्मण नाईगांवकर, एजीएम केएपीएल बेंगलुरू
योगेश पटेरिया, छपाई, पेंटिंग का काम

उपाध्याय-राजौरा बने गवाह

एफआईआर में तत्कालीन आयुक्त स्वास्थ्य विभाग राजेश राजौरा का नाम भी था। आरोप साबित नहीं होने पर उनका नाम हटा दिया गया। इसके बाद राजौरा व तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी, स्वास्थ्य एमएम उपाध्याय को गवाह बनाया गया।

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