18-Mar-2014 11:12 AM
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जिस वक्त मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और उनका मंत्रीमंडल ओलावृष्टि से हुए नुकसान पर विशेष राहत पैकेज की मांग करते हुए भोपाल में एक दिवसीय उपवास किया उस वक्त मध्यप्रदेश के हजारों किसान ऐसे थे जो सोयाबीन की
फसल के विनाश के बाद हुए नुकसान के एवज में प्राप्त सहायता राशि की बाट जोह रहे थे। सोयबीन की तबाही के वक्त सर्वेक्षण करने वाले पटवारियों से लेकर अधिकारियों तक की जेब में किसानों की गाढ़ी कमाई से प्राप्त कमीशन की रकम तो पहुंच चुकी है लेकिन किसानों की जेब में राहत राशि अभी तक नहीं पहुंची है। चुनावी माहौल है और आचार संहिता के चलते प्रदेश सरकार के हाथ बंधे हुए हैं लेकिन सोयाबीन के समय सर्वेक्षण के दौरान सरकारी अमले ने जो घनघोर भ्र्रष्टाचार तथा अनियमितताएं की हैं उनसे किसानों में निराशा है और उनकी उम्मीदें दम तोडऩे लगी हैं। मुआवजे को लेकर राजनीति की जा रही है लेकिन अन्नदाता का कष्ट ज्यों का त्यों है । हालांकि यह भी सच है कि किसान हर मुसीबत के समय सरकारी सहायता की आस में सारी हिम्मत खो देते हैं और उधर बहुत से फर्जी पीडि़त अपना नाम दर्ज कराने तथा सर्वे के फलस्वरूप मनमाफिक मुआवजा लेने के लिए अधिकारियों की जेब गरम भी करते हैं। यह फर्जीवाड़ा उन लोगों को गहरे तक दु:खी कर गया है जो वास्तव में पीडि़त है और जिन्हें सचमुच मुआवजे की दरकार है। म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब देश के मान. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को प्रदेश में हुई भयानक ओलावृष्टि की जानकारी देते हुए पांच हजार करोड़ के विशेष राहत पैकेज की मांग की तब स्वाभाविक ही था कि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका निभा रही कांग्रेस राहत कार्यो और सर्वेक्षण में हुई गड़बडिय़ों (यदि कहीं हुई है) को तो मुदद बनाती किन्तु साथ साथ मुख्यमंत्री की इस पैकेज मांग के सुर में सुर भी मिला देती और प्रदेश के कृषकों का भला कर जाती किन्तु खेद कि प्रदेश कांग्रेस भी समय की इस मांग को नहीं समझ पाई और किसान विरोधी आचरण करती दिखाई पड़ रही है।
स्वाभावत: ही इस प्रकार की विकराल समस्या का सामना अकेली प्रदेश सरकार कर सकें यह संभव नहीं है. संकट की इस विकराल घड़ी में एक बड़ी राहत राशि का केन्द्र सरकार के द्वारा दिया जाना अपेक्षित भी है और यथोचित भी किन्तु जिस प्रकार 2010 से लेकर आज तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने किसानों के आपदा राहत के लिए कई बार केन्द्र से अनुरोध हुए हैं और उन्हें निरंतर अनदेखा किया गया है, वह घोर भेदभाव और घृणित दलगत राजनीति का परिचायक है। आज प्रदेश के आपदाग्रस्त कृषकों के हित में जहां म.प्र. सरकार ने उसने त्वरित निर्णय लेकर 50 प्रतिशत क्षति को शत प्रतिशत क्षति मानकर राहत राशि मंजूर किये जान, सर्वे के बाद त्वरित सहायता राशि जिलों में वितरित करने के आदेश के साथ साथ आपदा ग्रस्त किसानों को सस्ता राशन, कन्यादान योजना में विवाह के लिए सहायता, कर्ज बसूली स्थगन, बीमा के अंतर्गत राशि आंवटन के आदेश तीव्रगति से देने के निर्देश जारी कर दिये है, वही केंद्र सरकार सब कुछ जानतें हुए भी रहस्यमय चुप्पी साधे बैठी है। म.प्र.सरकार ने किसानों को मदद के लिए आपात बैठक में 2000 करोड़ की राशि जारी कर दी है जिससे 15 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर के मान से मुआवजा दिया जाएगा,और केंद्र से मांग की है कि प्रदेश 51 म3 49 जिलों के दस हजार ग्रामों में हुई ओलावृष्टि को राष्ट्रीय आपदा घोषित की जानी चाहिए। म.प्र. सरकार ने कृषकों की संवेदनशील और नाजुक स्थिति को देखते हुए द्विचरणीय योजना बनाई है प्रथम चरण में नगद राहत राशि प्रदान की जावेगी तथा द्वितीय चरण में फसल बीमा योजना के माध्यम से भी किसानों को सहायता उपलब्ध कराई जावेगी। फसल बीमा योजना हेतु बीमा किश्त का भुगतान भी राज्य सरकार द्वारा किया जावेगा. इसके साथ ही पीडि़त परिवारों को अगली फसल आने तक 1 रुपये किलो गेहूं व चावल उपलब्ध कराया जावेगा। पीडि़त परिवार के घर में बेटी की शादी होने पर 25 हजार रूपयें तक की सहायता राज्य सरकार मुहैया कराऐगी। प्रशासन को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि राजस्व अमला पूर्ण ईमानदारी व सहृदयता के साथ नुकसान का आंकलन करें और जिन किसानों की फसलों को 50 प्रतिशत या उससे अधिक नुकसान हुआ होगा, उन्हें शतप्रतिशत नुकसान मानते हुए मदद दी जावें। साथ ही ओलावृष्टि से मकानों व पशुधन आदि का नुकसान होने पर भी राहत राशि की व्यवस्था की गई है और अगली फसल के लिए खाद और बीज की व्यवस्था भी की गई है।
360 करोड़ क्यों नहीं पहुंचा
इस मामले में कई स्तर पर लापरवाही सामने आ रही है। सूचना है कि वर्ष 2013 में सितम्बर -अक्टूबर माह में अतिवृष्टि से सोयाबीन की फसल खराब होने पर प्रदेश के 35 प्रतिशत मामलों में किसानों को राहत राशि नहीं मिली। राज्य सरकार ने सोयाबीन पर 1020 करोड़ 46 लाख रुपये स्वीकृत किए थे लेकिन किसानों तक 660 करोड़ 11 लाख रूपये पहुंचा। 360 करोड़ रूपये ट्रजेरी में रखे हैं यह हकीकत मुख्य सचिव की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में सामने आई है गनीमत यह है कि इसमें चुनावी आचार संहिता के कारण मुख्यमंत्री नहीं थे अन्यथा अफसरों को जबाव देना भी मुश्किल हो जाता। अब मध्यप्रदेश सरकार ने केन्द्र से लगभग 6 हजार करोड़ रूपये ऊपर सहायता राशि की मांग है लेकिन पहला पैसा कब तक बटेगा इसका कोई जबाव सरकार के पास नहीं है।