18-Mar-2014 10:36 AM
1234807
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि जिन मीडिया वालों ने भारतीय जनता पार्टी की ज्यादा तरफदारी की है। उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल की इस तानाशाहपूर्ण हरकत ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में उनकी
लोकप्रियता धराशायी कर दी है। गुजरात में भी अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी के शांत समुद्र में हिलौरें पैदा करने की कोशिश की थी। लगातार चुनाव हारने से कांग्रेस मायूस है और गुजरात में उसके पास कोई चेहरा भी नहीं है जो पार्टी को जीवित कर सके। इसीलिए जब केजरीवाल गुजरात पहुंचे तो मीडिया ने उन्हें लगभग वैसे ही सर-आंखों पर बिठाया जैसे किसी विपक्षी दल को बिठाया जाता है। केजरीवाल भी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रहे थे।
केजरीवाल एक तरह से जनता में कांग्रेस के गुस्से को बंाटने का काम कर रहे हैं ताकि उसका एक तरफा लाभ भाजपा को न मिल सके, लेकिन गुजरात में उनका दौरा किसी एन.जी.ओ. के कार्यकर्ता के सर्वे के समान ही था। केजरीवाल यह मानकर गुजरात गये थे कि मोदी नर नहीं नारायण हैं लिहाजा उनके राज्य में समस्याएं नहीं मिलेंगी लेकिन समस्या तो हर राज्य में हंै। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। गुजरात भी अपवाद नहीं है।
बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, शहरों की तरफ पलायन और भ्रष्टाचार अन्य राज्यों की तरह गुजरात में भी है कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन केजरीवाल ने कुछ सवाल उठाये हैं जिनका उत्तर अवश्य दिया जाना चाहिए। जैसे केजी बेसिन से निकलने वाली गैस के दाम गुजरात सरकार सोलह डॉलर कैसे कर सकती है क्योंकि यह तो केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में है। केजरीवाल ने सवाल उठाया है कि गुजरात सरकार 13 रूपये प्रति यूनिट की दर से सोलर एनर्जी खरीद रही है जबकि मध्यप्रदेश और कर्नाटक में 7.50 तथा 5.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से सोलर एनर्जी खरीदी जा रही है। कृषि विकास दर 1.18 प्रतिशत है जबकि मोदी 11 प्रतिशत का दावा कर रहे हैं।
पिछले दस साल में गुजरात में दो तिहाई उद्योग बंद हो चुके हैं- इसके अलावा भी भ्रष्टाचार, अवैध खनन, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, किसानों की आत्महत्या, जमीनों के हेराफेरी, पेयजल आदि को लेकर लगभग सोलह सवाल केजरीवाल ने पूछे हैं। यदि इनका जबाब सिलसिले वार आ जाएगा तो केजरीवाल के प्रश्नों की हकीकत सामने आ सकेगी। लेकिन लगता है गुजरात सरकार और भाजपा की इन सवालों के उत्तर देने में कोई रुचि नहीं है। इसलिए वह चुप्पी साधे है। उधर गुजरात में चार-पांच घंटे के लिए केजरीवाल की गिरफ्तारी और रिहाई के बाद जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पर धावा बोल दिया तो सारे देश में इसकी प्रतिक्रिया देखी गई। जगह-जगह भाजपा कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के खिलाफ धरने प्रदर्शन किये। खास बात यह है कि गुजरात में मोदी के विकास का इंपेक्ट देखने के बाद केजरीवाल ने भी एक तरह से हथियार डाल दिये और घोषणा की कि इन चुनावों में साम्प्रदायिकता सबसे बड़ा मुद्दा है। केजरीवाल की इस घोषणा के पीछे संभवत: उनकी भविष्य की महत्वाकांक्षा छिपी हुई है। यदि उनकी पार्टी को चमत्कारिक रूप से कुछ सीटें मिल जाती हैं तो तीसरे मोर्चे की अगुवाई के लिए केजरीवाल स्वयं को प्रस्तुत कर सकते हैं। इसलिए साम्प्रदायिकता का कोरस गाना केजरीवाल भी अनिवार्य समझते हैं। दूसरा तथ्य यह है कि भले ही गुजरात में विकास को लेकर मोदी के दावों की पोल खोलने की कोशिश केजरीवाल ने की है किन्तु सच तो यह है कि मोदी को विकास पर चुनौती देना देश में किसी भी राजनीतिक दल के लिए संभव नहीं है। लिहाजा सभी राजनीतिक दल विकास पर बात न करके साम्प्रदायिकता को केन्द्र में लाना चाहते हैं और केजरीवाल भी इसी संक्रमण के शिकार हैं। अन्यथा उन्हें भ्रष्टाचार के विरोध में योद्धा की संज्ञा दी गई थी, लेकिन भ्रष्टाचार का विरोध करने पर कांग्रेस का ही विरोध होगा और केजरीवाल फिलहाल कांग्रेस पर नरम रहते हुए मोदी और भाजपा के प्रति आक्रामक हैं, भ्रष्टाचार का मुद्दा वे दबा रहे हैं। कांग्रेस में इतनी संभवना तो है कि वह उन्हें चुनाव बाद दिल्ली की तरह कुछ अच्छी खबर दे सके। वह संभावना भाजपा में नहीं है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में अपनी रैली का श्रीगणेश केजरीवाल ने राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र से न करते हुए अन्य जगह से किया।
राहुल के खिलाफ कुमार विश्वास को मैदान में भले ही उतारा गया हो लेकिन मोदी ने कुमार का कद पार्टी में काट-छांट करते हुए घटा दिया है। यह शायद राहुल गांधी को भविष्य का संकेत भी हो सकता है। एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह केजरीवाल भी कहीं न कहीं अपनी महत्वाकांक्षा को अंजाम देने के लिए भरपूर राजनीति कर रहे हैं। राजनीति का यह ओवर डोज कितना फायदेमंद साबित होगा यह तो 16 मई को शाम तक पता चल सकेगा।