26 सीटों पर कैसे जीतेगी भाजपा?
16-Apr-2014 08:35 AM 1234904

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को एक चौंकाने वाली जीत का तोहफा देना चाहती है। भाजपा का लक्ष्य है कि मोदी को रिकॉड तोड़ मत मिले और भाजपा 26 सीटों पर जीते। इसके लिये गुजरातियों का भावनात्मक दोहन भी भरपूर किया जा रहा है। उन्हें सपने दिखाये गये हैं कि नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री हैं और मोरारजी देसाई के बाद वे दूसरे गुजराती हैं जो प्रधानमंत्री बनेंगे।
मोदी के इस सपने में गुजरातियों का सपना भी छुपा हुआ है। यदि प्रधानमंत्री गुजरात से हुआ तो गुजरात के विकास को चार चांद लग जायेंगे। इसी कारण गुजरात में लोकसभा चुनाव का कुछ ज्यादा ही उत्साह है और भाजपा ने इस बार जो लोकसभा टिकिट बांटे हैं उनसे असंतोष भले ही पनप गया है लेकिन टिकिट वितरण जीतने वाले प्रत्याशियों को ध्यान में रखते हुये दिया गया है। इस चक्कर में कई दिग्गज भी टिकिट से वंचित हो गये हैं। कांग्रेस इसी असंतोष का फायदा उठाना चाहती है। लेकिन भाजपा से नाराज वोटों का विभाजन होने के कारण कांग्रेस को घाटा हो सकता है। हाल ही में एक सर्वे में राज्य में 5 प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी को मिलने की भविष्यवाणी की गई है। यह वोट कांग्रेस को मिलना चाहिये था। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस के कुछ वोट और कट गये। ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का प्रदर्शन विशुद्ध रूप से पहले के मुकाबले अधिक रहेगा। पर 26 सीटें जीतना थोड़ा कठिन है। कुछ सीटें ऐसी हैं जहां मुकाबले बराबरी के रह सकते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है। कई समुदाय के परंपरागत वोट भी भाजपा के पक्ष में नहीं जाते हैं। मुस्लिमों के बीच भी भाजपा की छवि अच्छी नहीं है। यह तो तय है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी इस राज्य में बनेगी लेकिन पूरी 26 सीटें भाजपा को मिलेंगी इसमें थोड़ा संदेह है।
अपनी इसी रणनीति को अंजाम देने के लिए भाजपा ने कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक और क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं को तोडऩे का फॉर्मूला लगाया। इस काम में अमित शाह, आनंदी बहन पटेल और नरहरि अमीन जैसे पुराने और धाकड़ नेता जुटे। नजीता यह हुआ कि- आधा दर्जन कांग्रेस विधायक और कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए। गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) के केशुभाई पटेल, जो कभी नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी माने जाते थे, वे राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। उनके बेटे भरत पटेल भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा को उम्मीद है कि जीपीपी के गोवर्धन झडफिया, जैसे नेताओं के पार्टी में शामिल होने से उन्हें दो से तीन प्रतिशत अतिरिक्त वोटों का फायदा मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो चुनावी तस्वीर काफी बदल सकती है। भाजपा ने बारडोली में प्रभु वसावा और छोटा उदयपुर में राम सिंह राठवा को लोकसभा प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस के आदिवासी गढ़ में सेंध लगाने के साफ-साफ संकेत दे दिए हैं। यह दोनों दिग्गज नेता हाल तक कांग्रेस में हुआ करते थे। विठ्ठल रादडिया, किरीट सोलंकी, देवजी फतेहपुरा, विनोद चावड़ा, प्रभात सिंह चौहाण, केसी पटेल जैसे मूल रूप से कांग्रेसी नेताओं को टिकट देकर इस तरह सोशल इंजीनियरिंग की है कि मिशन-26 हर हाल में पूरा हो जाए। यह भी उल्लेखनीय है कि- गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य हैं जहां मुख्यमंत्री (नरेन्द्र मोदी-वड़ोदरा), नेता प्रतिपक्ष (शंकर सिंह वाघेला-साबरकांठा) एवं राज्य सरकार के दो मंत्री-लीलाधर वाघेला-पाटण व जशवंत सिंह भाभोर-दाहोद (एसटी) भी आम चुनाव में किस्मत अजमा रहे हैं।
बहरहाल, भाजपा का दूसरा लक्ष्य वड़ोदरा में नरेन्द्र मोदी को रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीत दिलाने का हैै। लगभग 16.5 लाख वोटरों वाले वड़ोदरा निर्वाचन क्षेत्र नरेन्द्र मोदी के खड़े होने का असर मध्य गुजरात पर भी पड़ेगा। अगर नरेन्द्र मोदी को यहां से सचमुच रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करनी है तो 70 प्रतिशत की वोटिंग पर उन्हें आठ-साढ़े आठ लाख वोट लेने होंगे।
कांग्रेस उम्मीदवार पार्टी के बड़े नेता मधुसूदन मिस्त्री ने मोदी को रिकॉर्ड तोडऩे से रोकने की जबर्दस्त तैयारी शुरू कर दी है, और वे अपने प्रचार में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी को लाने का इरादा रखते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के तीन-चार दिग्गज उम्मीदवार अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं। इनमें साबरकांठा से शंकर सिंह वाघेला, आणंद से भरत सिंह सोलंकी, खेड़ा से दिनशा पटेल को हराना फिलहाल भाजपा के लिए भारी दिख रहा है। इसके अलावा कांग्रेस बारडोली, वलसाड-सुरेन्द्रनगर, राजकोट और जूनागढ़ सीट पर भी टक्कर में है। हालांकि भाजपा नेताओं का कहना है कि-जैसे ही नरेन्द्र मोदी राज्य में चुनाव प्रचार शुरू करेंगे वैसे ही, हवा उनके पक्ष में और तेज हो जाएगी और हम सभी 26 सीटें जीत सकेंगे।
टोपी ने नहीं छोड़ा पीछा
मुसलमानों की गोल टोपी नरेंद्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ रही है। टोपी का भूत यक्ष प्रश्न बनकर उनके समक्ष खड़ा ही हो जाता है। कई वर्षों बाद मोदी ने एक टेलीविजन को साक्षात्कार दिया तो टेलीविजन चैनल वाले ने भी टोपी की बात छेड़ ही दी और कहा कि टोपी न पहनकर आपने क्या संदेश दिया। मोदी का जवाब भी स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, सरदार पटेल या पंडित नेहरू ने कभी टोपी नहीं पहनी लेकिन ये सब एकता की बात करते थे। इसी वजह से टोपी पहनकर फोटो खिंचाकर लोगों की आंखों में धूल झोंकने का पाप नहीं कर सकता। मोदी टोपी वाले प्रकरण पर लंबे समय से मुसलमानों को स्पष्टीकरण देना चाह रहे थे और जिस अंदाज में उन्होंने अपनी बात रखी है उससे फिलहाल विरोधियों को संभलने का मौका नहीं मिला। अब कम से कम टोपी को लेकर मोदी की आलोचना करने वाले चार बार सोचेंगे। इसी तरह उन्होंने मुस्लिमों की तुलना पप्पी (श्वान शावक) से किए जाने पर भी स्पष्टीकरण दिया यदि एक चीटी से तुलना करता तो लोग कहते कि मैंने किसी आदमी को चीटी कह दिया। जबकि मैं तो संवेदना प्रकट कर रहा था।Ó मोदी विकास के दांवों पर भी चुनौती दे चुके हैं कि गुजरात के दावे फर्जी होते तो जनता बार-बार उन्हें नहीं जिताती। किसी ने मोदी को कुत्ता कहा था इसका जवाब भी मोदी ने दिया कि मैं कुत्ते की वफादारी का कायल हूं और उसी वफादारी से देश की सेवा करना चाहता हूं। फिलहाल तो हाजिर जवाबी में मोदी आगे हैं, लेकिन मोदी के विवाह का प्रश्न चर्चा का विषय बन चुका है। मोदी की धर्मपत्नी हैं यह तो सारी दुनिया को पता था पर वे इस पर मौन थे, संभवत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध होने के कारण मोदी ने इस सच्चाई को छुपाए रखा, लेकिन चुनाव आयोग ने जब जानकारी देना अनिवार्य कर दिया तो अब यह सवाल अनुत्तरित नहीं छोड़ा जा सकता था। लिहाजा मोदी ने स्वयं को विवाहित घोषित किया और उनकी इस घोषणा के कारण ही कांग्रेस को बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल गया। कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है कि इतने दिन मोदी ने अपनी विवाह की बात छिपाई इसलिए उनके विरुद्ध केस दर्ज किया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने कहा कि मोदी पत्नी का नाम छिपाते हैं सारी ताकत महिला की जासूसी में लगाते हैं और महिला सम्मान के पोस्टर लगाते हैं। मोदी की इस स्वीकारोक्ति के बाद भाजपा बैकफुट पर आ गई है।
लेकिन चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि इससे मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उनकी पत्नी को लेकर मीडिया में पहले ही काफी कुछ छप चुका है। मोदी द्वारा स्वीकारे जाने के बाद अब उन्हें अपनी पत्नी को या तो उनका वैवाहिक हक देना पड़ेगा या फिर मोदी को अपनी वैवाहिक स्थिति पर कोई स्पष्ट निर्णय लेना होगा, लेकिन यह चुनाव बाद का विषय है। फिलहाल तो मोदी इन सबसे बेपरवाह कांग्रेस पर लगातार हमले कर रहे हैं और उनकी आक्रामकता का जवाब कांग्रेस के पास नहीं है।
आजम खान ने कुछ समय पूर्व कहा था कि मुसलमान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने बच्चे पैदा करना भी कम कर दिया है और उन्होंने यह भी कहा कि यदि मुस्लिम बंटे रहे तो मोदी पीएम बन जाएंगे। दरअसल देखा जाए तो गुजरात में नरेंद्र मोदी की स्कीम कामयाब होती दिखाई दे रही है यहां मुस्लिम वोट पहले कांग्रेस को मिला करते थे, लेकिन अब उनमें विभाजन है। निश्चित रूप से कुछ मुस्लिम भारतीय जनता पार्टी से जुड़ चुके हैं, लेकिन बाकी मुसलमानों के बीच कांगे्रस और आम आदमी पार्टी का चयन सामने है। अनुमान है कि गुजरात में इस बार लगभग आधे मुसलमान आम आदमी पार्टी का समर्थन करेंगे। अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह बनारस में जाकर नरेंद्र मोदी को चुनौती दी है उससे गुजरात के मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग केजरीवाल के समर्थन में आ गया है। यही वजह है कि 26 सीटें जीतना अब भाजपा के लिए और आसान होता जा रहा है। लगभग 5 लोकसभा सीटों पर मुसलमानों की तादाद अच्छी खासी है और वे परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। कांग्रेस मुस्लिमों तथा एंटीइनकमबेंसी वोटों के बदौलत चुनाव जीतने तथा अधिक से अधिक सीटें पाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस असर को बांटने के लिए अब मैदान में आम आदमी पार्टी है।
आम आदमी पार्टी के सभी नेता गुजरात में गांव-गांव में बेतहाशा प्रचार कर रहे हैं। यदि उनके प्रचार अभियान सफल रहे तो नुकसान कांग्रेस ही उठाएगी क्योंकि ताजा सर्वेक्षणों में भाजपा के मतों का प्रतिशत बढ़ता दिखाई दे रहा है, लेकिन कांग्रेस का वोट बैंक घटा है और आम आदमी पार्टी ने अन्य दलों सहित कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा दी है। गुजरात का ट्रेंड आसपास के राज्यों में भी दिखाई दे सकता है। सबसे ज्यादा नुकसान शहरी इलाकों में होगा। कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होए- इस नेता का कहना है कि दिल्ली में जिस तरह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा दी उससे नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ा। संभवत: यह एक कटु सत्य है। गुजरात में कांग्रेस इकाई राष्ट्रीय नेताओं के असहयोग से भी खफा है। स्थानीय नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी राष्ट्रीय नेता गुजरात के चुनाव से कटे हुए से हैं।

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