फर्जी फर्मों के सहारे भ्रष्टाचार
18-Mar-2014 09:55 AM 1234903

सेडमैप के कार्यकारी संचालक जितेन्द्र तिवारी का नियुक्ति पत्र जाने बैंक के किस लॉकर में रखा है लेकिन उनमें इतनी काबिलियत है कि वे अपने चहेतों को सेडमैप का अकान्उट खोलने की इजाजत भी दे देते हैं और उनकी फर्में भी पंजीकृत कर लेते हैं। बाद में जब उस मित्र से मनमुटाव हुआ तो तिवारी ने बैंक को पत्र लिखकर खाता बंद करवाया और अपने मित्र के खिलाफ थाने में रिपोर्ट कर दी। ये सारे उपकृम भ्रष्टाचार के लिए किये जा रहे हैं जिसमें तिवारी बहुत माहिर हैं। पाक्षिक अक्स के पास उपलब्ध सूचना से पता चलता है कि तिवारी ने कुछ विशेष लोगों को वित्तीय अनिमितताएं करने की खासी छूट दे रखी थी। जो व्यक्ति सेडमैप से दूर-दूर तक संबद्ध नहीं थे उन्हें सामने लाते हुए उनके मार्फत पैसा कमाया गया और कमीशन खोरी की गई। तिवारी ने वर्ष 2005  के दिसम्बर में तत्कालीन कार्यकारी संचालक जेएन कन्सोटिया एवं उद्योग आयुक्त से एक नोटशीट के माध्यम से विशेषज्ञों की सेवाऐं लेने हेतु स्वीकृति प्राप्त की जिसकी आड़ में उसने अपने चहेतों, परिचितों और मित्रों की लगभग 21 फर्मों का पंजीयन कर लिया। यहीं से तिवारी के भ्रष्टाचार की कहानी प्रारंभ होती है। सेडमैप के नाम पर विभिन्न विभागों से प्रशिक्षण,परियोजना एवं कम्प्यूटर से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट लेकर अपने मित्रों को आवंटित कर देना तथा कार्य के निष्पादन हेतु 90 प्रतिशत राशि आवंटित कर देना तिवारी का प्रमुख हथकंडा था। जबकि इसके पूर्व सेडमैप में कार्यरत एवं जिलों पदस्थ जिला समन्वयको द्वारा यही कार्य मात्र 40 से 60 प्रतिशत बजट में गुणवत्तापूर्ण कार्य के साथ सम्पन्न किया जाता रहा। कथित रूप से तिवारी ने अपने मित्र फर्मो के माध्यम से अतिरिक्त राशि पर हिस्सा तय कर लिया था।
इसी क्रम में सेडमैप को जब राज्य शिक्षा केन्द्र में मैनपावर सप्लाई का कार्य प्राप्त हुआ तो वह कार्य तिवारी ने अपनी इच्छानुसार
बिना किसी चयन प्रक्रिया के सी.ए. की
परीक्षा के सहपाठी सुनील मानधन्या को आवंटित कर दिया।
प्राप्त जानकारी अनुसार इस काम में राज्य शिक्षा केन्द्र से जो राशि कर्मचारियों के वेतन एवं वैधानिक दायित्वों के भुगतान हेतु सेडमैप को प्राप्त होती थी वो राशि सुनील मानधन्या को हस्तांतरित कर दी जाती थी। इस प्रयोजन हेतु सुनील मानधन्या को सेडमैप से प्रत्येक कर्मचारी के लिए रुपये 500/- सर्विस चार्ज के रूप में प्राप्त होते थे। सेडमैप सूत्रों से ज्ञात हुआ कि इसी हिस्सा बांट में दोनों दोस्तों के बीच तनातनी हुई तथा विवाद बढ़ता गया। यहां ये उल्लेखनीय है कि सुनील मानधन्या जो कि मूलत: सी.ए. हैं, का पंजीयन किसी भी कार्य के लिए सेडमैप में आज दिनांक तक कभी नहीं हुआ है। अक्स के पास उन सभी 21 फर्मों के नाम सहित विवरण उपलब्ध है जिन्होंने पंजीयन कराया था फिर किस प्रकार सुनील मानधन्या को अनुचित तरीके से बिना चयन प्रक्रिया के कार्य आवंटित कर दिया गया। इस मामले में अयोध्या बाईपास रोड स्थित पंजाब नेशनल बैंक शाखा की भूमिका का भी आंकलन आवश्यक है कि एक फर्म के खाते का संचालन किसी व्यक्ति विशेष को दे दिया गया। क्या इस प्रक्रिया में आरबीआई के निर्देशों का पालन किया गया था।
बहरहाल सबसे बड़ी गड़बड़ी तब सामने आयी जब सर्विस टेक्स विभाग ने सेडमैप को लगभग 12 करोड़ रुपये चुकाने हेतु समय-समय पर नोटिस जारी किये। इस पूरे प्रकरण में जो जानकारी प्राप्त हुई उससे ये तथ्य सामने आया कि राज्य शिक्षा केन्द्र से राशि कर्मचारियों के वैधानिक दायित्वों हेतु प्राप्त हुई किन्तु सेडमैप एवं मानधन्या द्वारा कर्मचारियों की भविष्यनिधि खाते में संपूर्ण राशि जमा नहीं कि गई। साथ ही सर्विसटेक्स की राशि भी पूर्णत: जमा नहीं की गई। इसी के फलस्वरूप मानधन्या की फर्म वर्धन कारपोरेशन पर सर्विस टेक्स विभाग का छापा पड़ा। इस छापे से विभाग को सेडमैप द्वारा सर्विस टेक्स की चोरी किये जाने का मामला प्रकाश में आया। तत्पश्चात सर्विस टेक्स आयुक्त ने अपने 2 आदेशों के माध्यम से सेडमैप को लगभग 12 करोड़ रुपये जमा करने के आदेश दिये। ज्ञात हुआ है कि सेडमैप के तिवारी ने जो कि खुद सी.ए. हैं ने ऐसा जानबूझ कर अपने अधीनस्थों से करवाया ताकि सेडमैप के वार्षिक प्रतिवेदनों में लाभ की स्थिति दिखाई जाती रहे और अध्यक्ष एवं संचालक मंडल से वाहवाही प्राप्त होती रहे। ऐसा नहीं कि तिवारी इन सब चीजों से अनभिज्ञ थे क्योंकि वर्ष 2007 में सर्विस टेक्स के सभी शीर्षो में राशि जमा करवाई गई थी। किन्तु इतनी बड़ी चूक एवं लापरवाही के बावजूद संचालक मंडल अथवा शासन द्वारा तिवारी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं किया जाना संदेह को जन्म देता है। सेडमैप सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि जब तिवारी को लगा कि सर्विस टेक्स जमा न करने का दायित्व उस पर आयेगा तो उन्होंने लेखा में कार्यरत एक सहायक को जिम्मेदार ठहराते हुए निलंबित कर दिया। हालांकि सहायक ने अध्यक्ष सेडमैप के समक्ष अपील प्रस्तुत की जिसका निराकरण करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग विभाग उक्त सहायक का निलंबन न्यायपूर्ण न होने के कारण निरस्त कर दिया था। आश्चर्य की बात यह है कि सेडमैप में कार्यकारी संचालक स्वयं सी.ए. हैं। सेडमैप के वार्षिक लेखों का अंकेक्षण करने हेतु एक वैधानिक अंकेक्षक फर्म भी नियुक्त है। तीसरे सेडमैप में तिवारी के घरेलू मित्र आंतरिक अंकेक्षक के पद पर कार्यरत हंै। इतने विशेषज्ञों के बावजूद इस तरह की त्रुटि एवं लापरवाही कैसे हो गई।
तिवारी की नियत पर प्रश्नचिन्ह इसलिए लगता है क्योंकि यह इस तरह की पहली घटना नहीं हैं। अप्रैल 2008 में सागर के राजेन्द्र अहिरवार ने कार्यकारी संचालक सेडमैप, आयुक्त उद्योग सहित प्रमुख सचिव वाणिज्य एवं उद्योग को एक शिकायती पत्र प्रस्तुत किया था। जिसमें उनके द्वारा सेडमैप  की एक फ्रैंचाईजी  के संचालक दिलीप जैन द्वारा सेडमैप के नाम से अनाधिकृत रूप से विभागों से कार्य लेने एवं सेडमैप  के नाम से ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया गोपालगंज सागर की शाखा में एक खाता खोलकर सेडमैप के नाम से प्राप्त चेक क्र. 248671 जमा कर राशि का आहरण भी किया गया। उक्त मामले पर वाणिज्य एवं उद्योग विभाग द्वारा सेडमैप से जांच प्रतिवेदन तथा टीप चाही। जिसके प्रति उत्तर में तिवारी ने अपने पत्र क्र. 197 दिनांक 05.06.2008 के माध्यम से अवगत कराया कि जांच प्रक्रियाधीन है तथा नियमानुसार प्रशासनिक कार्यवाही की जावेगी। किन्तु आज लगभग 5 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद सेडमैप की ओर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की गई। जबकि ये मामला मानधन्या के मामले से भी ज्यादा गंभीर है क्योंकि ये स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी एवं अमानत में ख्यानत का मामला बनता है। चूंकि दिलीप जैन तिवारी के दोस्त हैं और
सेडमैप के आंतरिक अंकेक्षक जैन तथा सेडमैप में पदस्थ एवं कार्यरत मांडवकर के बेहद
करीबी है इसलिए इतना गंभीर मामला भी दबा दिया गया।
अनियमितताओं की लंबी कहानी है। 24 दिसंबर 2011 को सेडमैप के नोडल अधिकारी ने पंजाब नेशनल बैंक की अयोध्या बाईपास रोड शाखा में पत्र लिखकर सुनील मानधन्या की सेवाएं समाप्त होने का हवाला देते  हुए सेडमैप के नाम से खुले खाते का ब्यौरा मांगा था जिसे मानधन्या आपरेट कर रहे थे। मानधन्या का पद क्या था और वे किस हैसियत से संबद्ध थे। यदि एसोसिएट थे तो खाता आपरेट करने का अधिकार उन्हें क्यों दिया गया यह बड़ा सवाल है। जिसकी तह में जाना होगा।

कैसे खुला पीएनबी में खाता?
सेडमैप जैसी संस्था का खाता कई किलोमीटर दूर किसी दूरस्थ बैंक में खुल भी सकता है और सेडमैप के नाम पर कोई अनाधिकृत व्यक्ति उस खाते को ऑपरेट भी कर सकता है। खास बात यह है कि बैंक भी किसी अनाधिकृत व्यक्ति को खाता ऑपरेट करने की छूट दे देता है। क्या यह बैंक और दूसरे अन्य जिम्मेदार लोगों की मिली भगत का सबूत नहीं है।
प्राप्त जानकारी एवं दस्तावेजों से ज्ञात हुआ है कि तिवारी के पूर्व मित्र जो कि अब दुश्म न बन चुके हैं सुनील मानधन्य ने सेडमैप के नाम से एक अनाधिकृत बैंक खाता पंजाब नेशनल बैंके अयोध्याबाई पास रोड़ की शाखा  में  खाता क्रमांक 30243713284 खोल लिया तथा राज्यशिक्षा केन्द्र से प्राप्त चेक भी जमा किया किन्तु उसका भुगतान प्राप्त नहीं किया।
उपरोक्त तथ्यों से कई यक्षप्रश्न उत्पन्न होते हैं कि किसकी अनुमति से मानधन्य द्वारा बैंक में खाता खुलवाने की प्रक्रिया पूर्ण की वहीं दूसरी और शाखाप्रबंधक भूमिका पर भी संदेह उत्पन्न होता है कि उनके द्वारा सेडमैप के विधिवत अधिकृत पत्र के बिना किस प्रकार एक सरकारी संस्था के नाम से खाता खोल दिया गया। सेडमैप के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तिवारी द्वारा ही शाखा प्रबंधक को स्वयं फोन कर खाता खोलने हेतु अनुरोध किया था तथा कुछ दिनों में विधिवत अधिकृत पत्र भेजने के आश्वासन के आधार पर ही शाखा प्रबंधक द्वारा खाता खोला गया। प्राप्त देस्तावेजों के आधार पर उक्त खाता फरवरी-मार्च 2012 में खोला गया तथा तभी सेडमैप की जानकारी में भी आया किन्तु न तो बैंक और ना ही सेडमैप द्वारा इस संबंध में काई कानूनी कार्यवाही हेतु पहल की गई जिससे मिली भगत होने का संकेत मिलता है। चूंकि मानधन्य एवं तिवारी सहपाठी रह चुके हैं तथा अब दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए हैं तथा जब तिवारी ने देखा कि इस पूरे प्रकरण में उनकी भूमिका संदिग्ध दिख रही है जिसके कारण दायित्व उन पर आ सकता है तो उन्होंने मानधन्य के विरूद्ध एम.पी.नगर थाने में शिकायत की।

खुद की संपत्ति का ब्यौरा क्यों नहीं
तिवारी को दूसरों की संपत्ति देखने का बड़ा शौक है लेकिन खुद की संपत्ति के विषय में वे कोई जानकारी नहीं देते खास बात यह है कि सरकार के जिस विभाग के प्रति सेडमैप उत्तरदायी है वहां के आला अफसरों ने भी कभी तिवारी की संपत्ति का व्यौरा जानने की कोशिश नहीं कि जबकि तिवारी इतना सजग है कि वे 28 फरवरी तक ही अपने कार्यालय के तमाम लोगों की संपत्ति का व्यौरा अपनी टेबल पर मंगा लेते हैं। सुनने में आया है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने अब तिवारी का नियुक्ति पत्र मांगा है और उद्योग एंव वाणिज्य विभाग भी नियुक्ति पत्र  को लेकर नोटिस जारी करने वाला है।

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