सेडमैप के ईडी के पास नहीं नियुक्ति पत्र
03-Mar-2014 11:04 AM 1234922

मध्यप्रदेश के एक उद्यमियों के उन्नयन के लिए अस्तित्व में लाई गई एक प्रमुख संस्था उधमिता विकास केंद्र के कार्यकारी निदेशक जीतेंद्र तिवारी के पास नियुक्ति पत्र नहीं है। न तो उद्योग विभाग इस विषय में जानकारी दे पाता है और न ही तिवारी पूछने पर नियुक्ति पत्र दिखाते हैं और पत्रकारों को चमकाते हुए कहते हैं कि मेरा लीगल डिपार्टमेंट आपको जवाब देगा। ऐसा लग रहा है कि तिवारी केंद्र नहीं बल्कि पूरा प्रदेश चला रहे हों। आरटीआई कार्यकर्ता भी तिवारी के नियुक्ति पत्र को देखने के लिए आतुर हैं, लेकिन अभी तक वह अप्राप्त ही है। कारण सीधा सा यह है कि आरटीआई की प्रथम अपीलीय अधिकारी तिवारी ही हैं भला वह अपनी बेइज्जती क्यों कराए।
नियुक्ति पत्र से वंचित किंतु केंद्र के सर्वोच्च एवं महत्वपूर्ण पद पर 2006 से सुसज्जित कार्यकारी संचालक जितेंद्र तिवारी की कहानी भी इसी पद लोलुपता से शुरू होती है। 2003 में तिवारी की नजदीकी सेडमैप के कर्ताधर्ता और दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ आईएएस अधिकारी से हुआ करती थी जो कि एम.पी.एफ.सी. के प्रबंध संचालक हुआ करते थे। इन अधिकारी की रुचियां और अभिरुचियां दोनों काफी मिलती जुलती थीं। लिहाजा दोनों के बीच इस तरह का तालमेल स्थापित हुआ कि वर्ष 2005 आते-आते तत्कालीन प्रमुख सचिव उद्योग की कृपा से जीतेंद्र तिवारी बिना पर्याप्त योग्यता के सेडमैप में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए। उक्त अधिकारी जब एम.पी.एफ.सी. से सेडमैप के कर्ताधर्ता बने तो उन्होंने तिवारी को सेडमैप में नियम विरुद्ध सलाहकार नियुक्त करवा दिया और मात्र दो माह में ही सेडमैप में नियम विरुद्ध पद न होते हुए भी मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनवा दिया। तिवारी मूल रूप से सीए हैं। सीए की डिग्री स्नातकोत्तर नहीं मानी जाती। लेकिन वे निर्धारित अर्हताएं न होते हुए भी नियमों की अनदेखी कर कार्यकारी संचालक बना दिए गए। उनसे पहले इस केंद्र के कर्ताधर्ता एम गोपाल रेड्डी थे। ऐसा नहीं है कि विभाग ने कार्यकारी निदेशक पद के लिए कोई विज्ञापन नहीं निकाले हों, वर्ष 2003 में टाईम्स ऑफ इंडिया में विज्ञापन निकला था यह मामला 2009 में लोकायुक्त के समक्ष भी पहुंचा और लोकायुक्त में जानकारी भी मंगाई किसी आवेदक ने तिवारी की नियुक्ति को चुनौती भी दी थी लेकिन मामला दबा रह गया। तिवारी की नियुक्ति की कहानी जितनी दिलचस्प है उतनी ही दिलचस्प बात यह है कि लगभग 8 वर्ष से एक अयोग्य व्यक्ति शासन द्वारा स्थापित एक महत्वपूर्ण संस्था का सर्वोच्च पद संभाल रहा है और उसकी शैक्षणिक योग्यता ही पर्याप्त नहीं है बाकी योग्यताओं की तो बात ही अलग है।
सेडमैप के मूल नियम के मुताबिक कार्यकारी संचालक के नियुक्ति के लिए जो शैक्षणिक योग्यता निर्धारित है उसके अनुसार इस पद के लिए आवेदन करने के लिए अभ्यर्थी को अर्थशास्त्र, वित्त वाणिज्य या प्रबंधन के क्षेत्र में स्नातकोत्तर या मास्टर डिग्री उत्तीर्ण होना चाहिए। इसके अलावा इस पद के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थी को उद्यमिता विकास से संबंधित प्रशिक्षण एवं प्रशासन के क्षेत्र में कम से कम 15 सालों का अनुभव होना चाहिए और इसमें भी कम से कम पांच वर्ष सुपर वाइजरी कैपेसिटी का अनुभव होना चाहिए। आरोप है कि तिवारी जब सेडमैप के डायरेक्टर बने तो उनके पास इसमें से कोई भी योग्यता और अनुभव नहीं था लेकिन चूंकि वह पहले से ही सेडमैप में पदस्थ हो चुके थे इसलिए उन्होंने कथित रूप से अपनी शैक्षणिक योग्यता को पद की योग्यता में शामिल कर लिया। तिवारी के खिलाफ यही अकेली शिकायत नहीं है उनके द्वारा की जा रही अनियमितताओं की सूची भी काफी लम्बी है।
पाक्षिक अक्स की छानबीन में यह भी पता चला है कि वर्ष 2002 में डा. पंचनारायण मिश्र के निधन के पश्चात विभाग ने 2003 में संचालक पद हेतु जो विज्ञापन प्रकाशित करवाया था उसमें बताया गया था कि पद हेतु आवश्यक अर्हताओं का विवरण सेडमैप की वेबसाइटÓÓ पर उपलब्ध है। उक्त विज्ञापन के फलस्वरूप लगभग 28 आवेदन पत्र प्राप्त हुए किन्तु मात्र 17 आवेदकों के आवेदन आवश्यक शुल्क के साथ मान्य किये गये। ये 17 आवेदक पद हेतु योग्य एवं अनुभवी थे। किन्तु तिवारी ने कार्यकारी संचालक पद हथियाने की लालसा में आवेदनों को दो वर्षों तक लंबित रखवाने के पश्चात आवेदकों के आवेदन शुल्क रूपये 1000/- जो कि वापसी योग्य नहीं थे ये कहते उन सभी 17 आवेदकों को लौटा दिए कि पद हेतु चयन नहीं किया गयाÓÓ और फिर विभाग में अपने आकाओं से सांठगांठ के चलते पद हेतु पूर्णत: अयोग्य होते हुए भी कार्यकारी संचालक पद पर काबिज हो गये। कहा तो यहां तक जाता है कि तिवारी ने पूर्व कार्यकारी संचालक गोपाल रेड्डी के पद से ट्रांसफर होने पर चार्ज लिया था किन्तु बाद में उसको इस तरह से प्रस्तुत किया कि जैसे उनकी नियुक्त कार्यकारी संचालक के रूप में हुई थी।
यह सारा मामला तिवारी की प्रथम नियुक्ति एवं उनके अनुचित तरीके से मुख्य कार्यपालन अधिकारी तथा फिर कार्यकारी संचालक बनने के समय से चर्चित रहा तथा समय-समय पर विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ तिवारी के कारनामों, अनियमितताओं के बारे में विभिन्न व्यक्तियों तथा संस्थाओं ने विधानसभा प्रश्नों तथा म.प्र.शासन के मुख्यमंत्री, मंत्री सहित लगभग सभी स्तर पर प्रमाणों सहित शिकायत की किन्तु सभी शिकायत आखिर में वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के मुखिया के अनिच्छा के कारण दबी रह गई फिर चाहे पूर्व में पदस्थ सत्यप्रकाश हों या फिर वर्तमान में पी.के. दास। विभाग के अन्य अफसर सारी सच्चाई जानते है और चाहते भी हैं कि ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कार्यवाही होनी चाहिए किन्तु अपने मुखिया की चुप्पी एवं लंबित रखने की रणनीति के कारण लाचार हैं।
कल मरते हो तो आज मर जाओ
जीतेंद्र तिवारी शब्दों के भी वीर हैं। शब्दों से ऐसा आघात करते हैं कि सामने वाले की जिंदगी भी जा सकती है। जिला समन्वयक सिद्धार्थ मेश्राम की संदेहास्पद मृत्यु इसका प्रमाण है। मेश्राम ने 22 मार्च 2013 को मानव अधिकार आयोग में शिकायत की थी कि वे अकारण ही तिवारी द्वारा परेशान किए जा रहे हैं और शारीरिक रूप से अनेक बीमारियों से पीडि़त हो गए हैं तथा शराब का सेवन भी करने लगे हैं। इस शिकायत के सात दिन बाद ही मेश्राम की मृत्यु हो गई इस मौत का जिम्मेदार कौन है यह एक बड़ा प्रश्र है जिसका जवाब शायद तिवारी के पास भी नहीं। अधिकारियों का उन्हें संरक्षण देना समझ से
परे है। आखिर क्यों इतने लंबे समय से एक व्यक्ति को लगातार बचाया जा रहा है। इसका क्या राज है।

जवाबदार मुंह मोड़ रहे हैं
इस पूरे मामले में अपर मुख्य सचिव उद्योग से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा संचालक मंडल नियम प्रक्रियाओं के तहत कार्य करता है और राज्य शासन उन्हें कोई फंड नहीं देता है और जितेंद्र तिवारी की कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिसकी जांच करने के लिए मैंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दी है। अगर कोई अनियमितता पाई जाती है तो उन पर कार्रवाई के लिए कहा जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि उनका नियुक्ति पत्र भी नहीं है तो प्रमुख सचिव महोदय ने कहा कि इसको भी दिखवा रहे हैं। तिवारी की विदेश यात्राओं के विषय में उन्होंने कहा कि मेरे कार्यकाल में ऐसी कोई यात्रा नहीं हुई पहले हुई होगी तो उसके लिए उन्होंने आवश्यक अनुमति ली होगी।
पद अर्हताएं एवं तिवारी की अयोग्यताएं
विज्ञापन विवरण अनुसार पद हेतु कम से कम स्नातकोत्तर होना चाहिए था किन्तु तिवारी  मूल रूप से सी.ए. बताये जाते हैं और सी.ए. की योग्यता स्नातकोत्तर नहीं मानी जाती।
पद हेतु उद्यमिता क्षेत्र का कम से कम 15 वर्ष का अनुभव होना आवश्यक था किन्तु तिवारी के पास मात्र 10 माह का अनुभव है वो भी भोपाल नगर निगम में एक फर्म सलाहकार के रूप में।
सेडमैप सेवा नियमों एवं स्वीकृति अनुसार पद पर नियुक्ति के समय न्यूनतम आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए थी जबकि तिवारी की सही आयु जानना कठिन है क्योकि उप पंजीयक, फम्र्स एवं सोसायटी कार्यालय भोपाल में प्रस्तुत एक प्रपत्र में स्वघोषणा अनुसार तिवारी 2006 में मात्र 32 वर्ष के थे जबकि उनके पासपोर्ट एवं हायर सेकेन्डरी की अंकसूची में दर्ज जन्मतिथि कुछ और ही कहानी कहती है।

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