18-Feb-2014 06:36 AM
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आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने मुजफ्फरनगर के दंगा पीडि़तों को बरगलाने के लिए अपने खास बे्रन वाशरÓ तैनात कर दिए हैं। उधर मुलायम सिंह की पार्टी के मुख्यमंत्री अलिखेश यादव सैफई उत्सव में मजे लूट रहे थे और अब

उनके मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री तथा विधायकों ने विदेश यात्रा का प्रोग्राम बना लिया है। इससे साफ जाहिर होता है कि उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर के दंगों का राजनीतिक दलों का रुख सकारात्मक नहीं है और वे दंगों में अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
खुफिया एजेंसियों द्वारा दी गई इस सूचना ने सुरक्षाबलों की नींद उड़ा दी है कि लश्कर के कुछ प्रशिक्षित आतंकवादी मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद बनाए गए शिविरों में गए थे और वहां उन्होंने नौजवानों को बरगलाने की कोशिश की। कथित रूप से यह भी पता चला है कि राहत पहुंचाने के काम में लगे दो कैंप संचालकों के बैंक खातों में आतंकवादी संगठनों द्वारा धन राशि डाली गई है। इस घटना के बाद इंटेलीजेंस ब्यूरो व क्राइम ब्रांच मुजफ्फरनगर, श्यामली, लोई, मलकपुरा तथा जौला के इलाकों में सघन जांच पड़ताल कर रही है। चरथावल वा कैराना के कुछ बैंकों में भी कई खातों की जांच पड़ताल की जा रही है। इस घटनाक्रम के बाद उत्तरप्रदेश में आतंकवादी गतिविधियों का खुलासा होने लगा है। कई संदिग्ध आतंकवादियों की गतिविधियों और मुजफ्फरनगर और शामली में बढते नेटवर्क की जांच में क्राइम ब्रांच और आईबी ने अपना नेटवर्क बिछाकर जांच तेज कर दी है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली में सितम्बर माह में दंगे हुए थे। इसके बाद वहां कई हजार लोग राहत शिविर में रह रहे थे। बताया जाता है कि राहत शिविर में रह रहे लोगों को बहला फुसलाकर अपने साथ लाने के लिए लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी संगठन का म्भी नेटवर्क उसी समय से तेज हो गया था और दंगा पीडित लोगों को म्भावनाओं में बहाकर मजहब के लिए जेहाद करने की पृष्ठम्भूमि लश्कर-ए-तैयबा ने तैयार की थी। हरियाणा के दो इमामों ने पिछले दिनों आतंकवादी संगठन के खूंखार आतंकवादी को मुजफ्फरनगर व शामली में दौरा कराकर राहत शिविर में रह रहे लोगों से मिलवाया था। सूत्रों के अनुसार दंगा पीडितों ने इस बात का खुलासा क्राइम ब्रांच के सामने भी किया है। जिसके बाद यह स्पष्ट हो गया है कि मुजफ्फरनगर और शामली में लश्कर-ए-तैयबा अपने नेटवर्क के सहारे दंगा पीडितों को बहला फुसलाकर आतंकवादी संगठनों की नई फसल तैयार करने की जुगत में लडा था। इस खुलासे के बाद इंटेलीजेंस ब्यूरो व क्राइम ब्रांच मुजफ्फरनगर व शामली के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर संदिग्ध लोगों की तलाश कर रही है। सूत्रों के अनुसार क्राइम ब्रांच के पास संदिग्ध आतंकवादी के फोटो व अन्य जानकारियां म्भी है। ब्यूरो इस बात की जांच कर रहा है कि शामली और मुजफ्फरनगर में खूंखार आतंकवादी कैम्पों में कितनी बार आये और किस-किस के पास रूके। यही नहीं, दंगा राहत शिविरों से जुडे लोगों के बैंक खातों की भी जांच की जा रही है। बताया जा रहा है कि राहत पहुंचाने के काम में लगे दो कैम्प संचालकों के बैंक खातों में आतंकवादी संगठनों व अन्य संगठनों द्वारा धन भी भेजा गया था। इंटेलीजेंस ब्यूरो व क्राइम ब्रांच ने जौला, लोई, मलकपुरा व मुजफ्फरनगर शामली के कई स्थानों पर जांच के लिए अपना जाल बिछा दिया है। यहां विभिन्न स्थानों पर आतंकवादियों के आने के बारे में कई सूचनाएं खुफिया एजेंसी व क्राइम ब्रांच एकत्रित कर रही है।
इस खुलासे के बाद मुजफ्फरनगर व आसपास के इलाके में भी हडकम्प है। क्राइम ब्रांच व आईबी भी उन लोगों की तलाश कर चिन्हित कर रही है जिन लोगों को बहला फुसलाकर आतंकवादी बनाने में लश्कर-ए-तैयबा ने उनसे सम्पर्क साधा था। हालांकि स्थानीय पुलिस प्रशासन क्राइम ब्रांच आईबी की गतिविधियों के बारे में जानकारी नहीं दे रहा है। आईजी आशुतोष पांडेय ने कहा कि केंद्रीय खुफिया एजेंसी व सुरक्षा एजेंसियों की गतिविधियों के बारे में उन्हे जानकारी नहीं है।
मुजफ्फरनगर दंगों में मुस्लिम नेताओं के विरुद्ध दर्ज मामले वापस लेने के अखिलेश सरकार के कदम का उत्तरप्रदेश में भरपूर विरोध हो रहा है और इस पर अब सियासत भी शुरू हो गई है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश सरकार के पास कोई प्रभावी मुद्दा नहीं है। हालांकि अखिलेश यादव को सत्ता संभाले एक वर्ष से भी अधिक का समय हो चुका है। लेकिन उनकी उपलब्धियां इस दौरान शून्य हैं। बल्कि मुजफ्फरनगर दंगों का दाग उनके दामन पर लग चुका है। इसी कारण सियासत का बाजार गर्म है। हर राजनीतिक पार्टी इस सियासी माहौल में अपना उल्लू सीधा करना चाहती है। मुजफ्फरनगर ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश और उत्तरप्रदेश से लगे हुए बिहार में भी यही माहौल है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव तो मुजफ्फरनगर का दौरा भी कर चुके हैं। उधर राहुल गांधी का भी दंगा पीडि़तों से सामना हो चुका है। मुलायम सिंह यादव ने लालू यादव को कांग्रेस का चाटुकार बताया था। इसके बाद दोनों के बीच तीखी शब्दावली में कुछ आदान प्रदान भी हुआ। उधर दिल्ली में खुफिया एजेंसियों ने यह कहकर चौंकाया है कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी उत्तरप्रदेश के दंगा पीडि़तों से मिले थे। लेकिन भड़काऊ भाषण देने वाले मुस्लिम नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की तैयारी के बाद माहौल में तब्दीली आई है। भारतीय जनता पार्टी इसे हिंदुओं के साथ भेदभाव बता रही है तो वहीं अखिलेश सरकार का कहना है कि इस संदर्भ में मुख्यमंत्री ने मुजफ्फरनगर के डीएम को कोई खत नहीं लिखा है बल्कि गृह विभाग ने जानकारी तलब की है। ज्ञात रहे कि बीएसपी सांसद कादिर राणा, विधायक नूर सलीम और मौलाना जमील अहमद, पूर्व कांगे्रस मंत्री सईदुज्जमा उनके बेटे सलमान सईद, समुदाय के नेता असद जमा, नौशाद कुरैशी, व्यापारी अहसान, वकील सुल्तान मशीर सहित कई मुस्लिम नेताओं के विरुद्ध दंगे के दौरान भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज किया गया है। मामले तो हिंदुओं के खिलाफ भी दर्ज हंै, लेकिन अखिलेश सरकार को संभवत: मुस्लिमों की ही फिक्र है और यही चुनावी विवाद का कारण है।
अखिलेश यादव ने सफाई दी है कि उनकी सरकार ने दंगों में आरोपी मुसलमानों के विरुद्ध की गई कार्रवाई पर जानकारी तलब की है। जानकारी मंगाने का अर्थ मुकदमे वापस लेना नहीं होता, लेकिन गृह विभाग के सूत्र बताते हैं कि केवल एक ही समुदाय के नेताओं की जानकारी मंगाकर अखिलेश यादव ने कहीं न कहीं इन नेताओं के प्रति नरमी बरतने का संकेत तो दिया ही है। दंगों के दौरान भी समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इसी तरह से पुलिस को फोन करके गिरफ्तार मुस्लिमों को छोडऩे का आदेश दिया था। इसके बाद दंगे और भड़क गए थे।
दरअसल उत्तरप्रदेश में हुए मुजफ्फरनगर के दंगे एक तरह से सरकार द्वारा एक समुदाय विशेष को दिए जा रहे प्रश्रय के कारण ही भड़के थे। 11 जून 2013 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसके तहत राज्य के कुछ मुस्लिम युवकों के खिलाफ लंबित आतंकवाद के मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई थी उस समय भी सियासी माहौल काफी गर्म था। अदालत ने दूसरी बार सरकार के फैसले को खारिज किया था। उत्तरप्रदेश सरकार का कहना था कि बम विस्फोट के सिलसिले में दर्जनों मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से ज्यादातर अपनी बेगुनाही का दावा कर रहे हैं। मायावती सरकार ने भी आतंकवाद के मामलों में निर्दोष मुस्लिम युवकों को फंसाए जाने के बाद प्रकरण पूरी तरह देखने हेतु एक आयोग गठित किया था। जिसकी रिपोर्ट विधानसभा में पेश ही नहीं हो पाई। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जांच की गंभीर खामियों और पुलिस ज्यादतियों को उजागर किया था। बाद में जब चुनाव हुए तो अपने घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी के निर्दोष मुस्लिमों को छोडऩे की बात शामिल की थी। इसी के उपरांत यह मामला सियासी हो गया। जब तक कोर्ट में बेगुनाही साबित न हो जाए किसी को कैसे छोड़ा जा सकता है। यदि ऐसा ही है तो फिर किसी समुदाय विशेष के प्रति यह रियायत क्यों? हर समुदाय को यह छूट मिलनी चाहिए। लेकिन जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य के कुछ मुसलमानों के खिलाफ लंबित मामलों को वापस लेने का तरीका अपनाया, उससे स्पष्ट था कि इस प्रक्रिया में गंभीरता और जिम्मेदारी कम और सियासत का असर अधिक था। अखिलेश यादव ने जो तरीका अपनाया उससे मुसलमानों के खिलाफ गैर मुस्लिम आबादी की भावनाएं, जो पहले से ही बहुत अच्छी नहीं थी, और बिगड़ी हैं। पहले मामले में जिन दो लोगों के खिलाफ सरकार ने मुकदमे वापस लिए उनमें से एक पिछले महीने अदालत से वापस लौटते हुए पुलिस की हिरासत में रहस्यमयी रूप से मरे हुए पाए गए। कुछ दिनों पहले आतंकवादÓ के आरोप में गिरफ्तार किए गए बिहार के एक युवक की पुणे की जेल में मौत हो गई थी। उनकी गवाही पर कुछ अन्य नौजवानों की बेगुनाही साबित हो सकती थी।
एक तरफ तो राज्य में बेगुनाहों को फंसाने और आतंकवादी गतिविधियों के द्वारा नौजवानों को गुमराह करने की मुहिम चल रही है दूसरी तरफ अखिलेश यादव की सरकार करोड़ों रुपए मनोरंजन में खर्च करने में जुटी हुई है। सैफई महोत्सव में जिस तरह बॉलीवुड के सितारों का जमावड़ा किया गया और पानी की तरह पैसा बहाया गया उस पर अखिलेश सरकार की खासी आलोचना हुई है। उधर अखिलेश सरकार के कुछ मंत्री और विधायक पांच देशों की यात्रा पर निकल पड़े हैं। यूं तो यह यात्रा अध्ययन यात्रा के नाम से बताई जा रही है पर सच तो यह है कि इस यात्रा में सरकारी खर्चें पर मंत्री और विधायकों को विदेश की सैर तथा विदेश में मौज मस्ती का अवसर मिलेगा। अखिलेश यादव इन सब बातों से बेपरवाह हैं। उनका कहना है कि मीडिया मुजफ्फरनगर दंगों को अनावश्यक तूल दे रहा है और कतिपय कारणों से इस मुद्दे को चुनाव तक जीवित रखना चाहता है। लेकिन सच तो यह है कि मुजफ्फरनगर दंगा शिविरों में जिस तरह छोटे मासूम बच्चों की मौतें हुई हैं। उसे मीडिया इग्नोर नहीं कर सकता था। अखिलेश यादव ने तो एक टीवी चैनल को यहां तक कहा कि जिस दिन सैफई उत्सव होगा उस दिन स्क्रीन पर आप एक तरफ मुजफ्फरनगर दंगा शिविरों को दिखाएंगे और एक तरफ सैफई महोत्सव को। अखिलेश यादव के इस रुख से साफ है कि मुजफ्फरनगर जैसी समस्याओं से सरकार गंभीर नहीं है।