16-Feb-2013 11:42 AM
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कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है। एक दौर था जब बड़े-बड़े दिग्गजों की राह में खड़े होकर दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद हासिल कर लिया था। आज वहीं इतिहास दोहराया जा रहा है। कांग्रेस जीतेगी या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा को लेकर दिग्विजय सिंह ने अभी से बाधा उत्पन्न करना शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव संचालन समिति की कमान सौंपने का यही अर्थ समझा जा रहा है कि सत्ता में आने पर महाराजा ही मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करेंगे। किंतु लगता है महाराजा की राह में राजा टांग अड़ाना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने कुछ दिन पूर्व स्पष्ट रूप से कहा था कि मुख्यमंत्री का फैसला भोपाल में नहीं दिल्ली में होगा। दिल्ली में जिस तरह दिग्विजय सिंह ने नेताओं को घेरकर रखा है उससे साफ समझा जा सकता है कि सरकार बनने की स्थिति में आगामी मुख्यमंत्री के फैसले में दिग्विजय सिंह की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण रहेगी। दरअसल दिग्विजय सिंह से प्रदेश की जनता

भले ही नाराज हो लेकिन कांग्रेस आलाकमान उनकी तमाम नाकामयाबियों के बावजूद उनसे बहुत खुश हैं। यह खुशी मजबूरी भी हो सकती है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि दिग्विजय की सहमति से ही कांग्रेस में महत्वपूर्ण फैसले किए जाते हैं। थोड़ी बहुत दखलंदाजी सुरेश पचौरी की भी है, लेकिन कांतिलाल भूरिया और कमलनाथ दोनों प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण होते हुए भी प्रभावी नहीं है। कमलनाथ तो खैर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय ही नहीं होना चाहते और अपने समर्थकों के माध्यम से राजनीतिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं। लेकिन भूरिया का प्रभावहीन होना एक चिंताजनक खबर है। कांग्रेस आलाकमान को भी इसका भान है। इसीलिए कांग्रेस आलाकमान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपी है और भूरिया को जहां हैं वहीं स्थिर कर दिया है, लेकिन इससे कांग्रेस में उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही है। आगामी चुनाव को देखते हुए प्रमुख नेताओं और उनके चहेतों ने टिकट के लिए जोर लगाना शुरू कर दिया है।
उधर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रदेशव्यापी दौरे का कार्यक्रम तो बना लिया है, लेकिन उनके दौरे को लेकर कांग्रेस में विशेष उत्साह नहीं है। इसका कारण यह है कि जिस मालवा-निवाड़ क्षेत्र से वे दौरे का सूत्रपात कर रहे हैं वहां दिग्विजय सिंह की राजनीति खूब चलती है और सिंधिया को असहयोग करने के मामले में दिग्विजय सिंह के निकटस्थ कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी कारण सिंधिया के समक्ष कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से निपटने के साथ-साथ पार्टी में ही विरोधियों के षड्यंत्रों से सावधान रहने का लक्ष्य भी होगा। भिंड जिले के मेहगांव में सिंधिया के आगमन के समय यह गुटबाजी स्पष्ट रूप से देखने को मिली थी। उधर प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया द्वारा ग्वालियर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष दर्शन सिंह यादव को अनुशासनहीनता का नोटिस थमा देने से भी गुटबाजी उभरकर सामने आ गई थी। यादव को सिंधिया समर्थक समझा जाता है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के भीतर अल्पसंख्यकों में भी काफी कश्मकश देखी जा रही है। बहुत से अल्पसंख्यक पदाधिकारी पार्टी के आला नेताओं से नाराज हैं। उसका कारण यह है कि कई जाने-माने चेहरों को नजरअंदाज कर ऐसे लोगों को आगे बढ़ाया जा रहा है जो न तो कोई पहचान रखते हैं और न ही किसी प्रकार से राजनीति में सक्रिय हैं। हाल ही में एक पदाधिकारी की कांतिलाल भूरिया से निकटता कुछ अल्पसंख्यक नेताओं को रास नहीं आई थी। वैसे ये भी कहा जा रहा है कि चुनाव के समय कांग्रेस के कई बड़े नेता अपने चहेतों को टिकट न मिलने की स्थिति में भाजपा का रुख भी कर सकते हैं। शायद इसी को भांपकर कांतिलाल भूरिया ने कहा है कि उन्हें हर क्षेत्र से एक नाम चाहिए। भूरिया के इस कथन से असंतोष थमने वाला नहीं है। असलम शेर खान और गुफराने आजम जैसे नेता भाजपा में जाने की कगार पर हैं। गुफराने आजम तो वक्फ बोर्ड में भाजपा के समर्थन से ही अपनी राजनीति चला रहे हैं। अशलम शेर खान भी खुली बगावत पर उतर आए हैं। उन्होंने तो भोपाल में एक सम्मेलन ही आयोजित कर लिया था उसी दिन विदिशा में कांग्रेस का सम्मेलन तय हुआ था। कांग्रेस अनुशासन समिति के अध्यक्ष चंद्रप्रभाश शेखर असलम शेर खान को मनाने के लिए तैनात किए गए हैं, लेकिन इससे कोई बात बनती नजर नहीं आ रही है। दरअसल शिक्षा माफिया साजिद अली जैसे नेताओं को बढ़ावा देना कांगे्रस को महंगा पड़ सकता है जिनका कोई जनाधार नहीं है। उत्तर भोपाल के विधायक आरिफ अकील ने साजिद अली के बारे में जो टिप्पणी की है वह गौर करने लायक है। अब सबकी नजर अजय सिंह के नेतृत्व में आयोजित होने वाली स्वाभिमान रैली पर भी है जो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आयोजित की जाएगी।