03-Mar-2014 11:02 AM
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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लाइट मैट्रो आगामी कुछ वर्षों में दौडऩे लगेगी। ऐसे सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं। हम यह नहीं कहते कि यह असंभव है, लेकिन राजधानी को मैट्रो संपन्न बनाने के

अभियान में जुटे बहुत से लोगों और तकनीशियनों ने अभी तक यह जाहिर नहीं किया है कि भोपाल के 2031 के मास्टर प्लान को समझे बगैर मैट्रो की योजना बनाना कितना संभव है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मास्टर प्लान सदैव ही एक बड़ी चुनौती रहा है। वर्ष 2005 का मास्टर प्लान लागू है, लेकिन शहर का आकार जिस तेजी से बढ़ा है और वाहनों की संख्या लगातार दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ रही है उसे देखते हुए आज से 4 वर्ष पहले ही मास्टर प्लान की जरूरत महसूस की जा रही थी, लेकिन 2031 का मास्टर प्लान अभी भी तैयार नहीं है। ऐसा नहीं है कि मास्टर प्लान प्रस्तावित नहीं किया गया। मास्टर प्लान प्रस्तावित भी किया गया था और उसमें गिनाई गई खामियों के कारण उसे वापस भी लेना पड़ा। 2010 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल विकास योजना 2021 के नाम से प्रस्तावित मास्टर प्लान को अपर्याप्त बताते हुए रद्द कर दिया था।
मध्यप्रदेश के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट 1973 की धारा 17 में स्पष्ट लिखा है कि एक शहर के विकास नियोजन में या विकास योजना में क्या-क्या होना चाहिए। मध्यप्रदेश में मास्टर प्लान को आमतौर पर विकास योजना कहा जाता है। जिसमें भूमि के निवास, उद्योग, व्यवसाय, कृषि, मनोरंजन इत्यादि से संबंधित उपयोग के विषय में खाका तैयार किया जाता है। विकास परियोजना में अनिवार्य रूप से परिवहन, सार्वजनिक सुविधाओं, अपवाह तंत्र आदि कई पहलू शामिल रहते हैं। भोपाल का मास्टर प्लान कई खामियों वाला था इसे अस्वीकार कर दिया गया। मार्च 2012 में टाउनएंड कंट्री प्लानिंग ने भोपाल के 2031 के मास्टर प्लान पर काम करना शुरू किया उस वक्त पहली बैठक में कोरम भी पूरा नहीं हुआ क्योंकि कुछ ही अधिकारी आए थे। जून 2012 में ड्राफ्ट पूरा होना था, लेकिन पूरा नहीं हो सका। जिस गति से काम किया जा रहा था उसके चलते संभव भी नहीं था। भोपाल की त्रासदी यही है कि यहां समयसीमा में काम नहीं होता। अक्टूबर 2013 तक अपर लेक का मास्टर प्लान या विकास परियोजना पूरी होनी थी, लेकिन उस समय तक भी कोई जानकारी नहीं थी। भोपाल नगर निगम ने सरकार से निवेदन किया था कि वह भोपाल की विकास परियोजना या मास्टर प्लान को तब तक जारी न करें जब तक कि इसका मिलान अपर लेक के मास्टर प्लान से न हो जाए। सरकार के अधिकारियों का कहना है कि अपर लेक और भोपाल की विकास परियोजना एक-दूसरे की पूरक है। अपर लेक का प्लान अहमदाबाद आधारित एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी ने बनाया है। सवाल यह है कि इन दोनों विकास परियोजनाओं को फाइनल किए बगैर मैट्रो के बारे में सही प्लानिंग कैसे हो सकती है। पूर्व आईएएस अधिकारी एम.एन. बुच कहते हैं कि विकास योजनाएं तैयार नहीं हों तो इसका अर्थ यह नहीं कि शहर का विकास रुक जाएगा। विकास तो करना ही होगा इस दृष्टि से लाइट मैट्रो के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है। वह सोच समझकर ही किया जा रहा होगा।
भोपाल की विकास परियोजना के बारे में पूछने पर अधिकारी गोल-मोल जवाब देते हैं। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की साइट पर भोपाल मास्टर प्लान 2005 का नक्शा डला हुआ है उसी आधार पर सब कुछ किया जा रहा है। प्रश्न यह है कि क्या यही भविष्य का भोपाल है। बैंगलोर और जयपुर में मैट्रो आ चुकी है जबकि मध्य भारत का सबसे प्रमुख शहर भोपाल अभी भी परिवहन की उचित प्रणाली के अभाव में कई समस्याओं से जूझ रहा है।
बहरहाल भोपाल का मास्टर प्लान अभी सिर्फ कल्पनाओं में है और इन्हीं कल्पनाओं के बीच भोपाल में लाइट मेट्रो लाने का प्रस्ताव हुआ है जिसे भोपालवासियों ने हाथों-हाथ लिया क्योंकि परिवहन अभी भी इस बढ़ते शहर में एक चुनौती ही है। इसकी वजह शायद शहर का सुनियोजित विकास न हो पाना है। आयुक्त नगर तथा ग्राम विकास गुलशन बामरा कहते हैं कि आगामी 2-3 माह में भोपाल विकास योजना सार्वजनिक कर दी जाएगी। सही परिवहन एक नियोजित शहर में वरदान हो सकते हैं जबकि शहर का नियोजन ठीक से न हो तो सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था अभिशाप भी बन सकती है। कुछ बड़े शहरों में ऐसे उदाहरण देखे जा चुके हैं। दिल्ली में ही जब डीटीसी की बसों की संख्या बढ़ाई गई तो सड़कों पर किलोमीटर लंबे जाम लगने लगे। बाद में दिल्ली मेट्रो ने कुछ राहत प्रदान की। अब 15-20 साल पुरानी वे बसें डिपो में सड़ रही हैं। केजरीवाल सरकार ने उनमें रैन बसेरे बनवाए थे, लेकिन दिल्ली की गर्मियों में उन बसों में सोने कौन जाएगा। खैर भोपाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती इसका सही तरीके से विकास है। भोपाल शहर कुछेक इलाकों को छोड़कर उतना सुव्यवस्थित नहीं है। वाहनों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। बुच रौशनपुरा चौराहे का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि जब उस चौराहे की प्लानिंग की गई तो आगामी 25 वर्ष को ध्यान में रखा गया था, लेकिन आज वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वहां दूसरी व्यवस्था करना अनिवार्य हो गया है। शहर के बहुत से इलाकों की यही हालत है और इस लगातार घने होते जा रहे शहर में मेट्रो के लिए जगह तलाशना कितना कठिन है यह कहने की आवश्यकता नहीं है। बुच कहते हैं कि अगले 20-25 वर्षों की प्लानिंग तो होनी ही चाहिए। उसके बाद आवश्यकता के अनुसार दूसरी प्लानिंग की जा सकती है। क्योंकि कुछ शहरों का आकार बढ़ता है तो कुछ का कम भी हो सकता है। पूर्व कमिश्नर देवीशरण का कहना है कि भोपाल में लाइट मैट्रो ही उचित है इससे एक तरफ मंडीदीप तक और दूसरी तरफ सीहोर तथा रायसेन, खड़वई कैम्प तक खंभों के ऊपर दौड़ाया जाना चाहिए। क्योंकि अंडर ग्राउण्ड खुदाई यहां संभव नहीं है। जमीन पथरीली है, बहुत बड़ी-बड़ी चट्टाने हैं। गाडिय़ों की तादाद बढ़ती जा रही है हर जगह जाम लगते हैं। पुराने शहर में पार्किंग की समस्या है। इब्राहिमपुरा के सामने टंकी के पास पार्किंग बनाई गई, लेकिन वहां भी मकसद पूरा नहीं हुआ। वाहनों से निजात नहीं मिल रही है। मुंबई में नरीमन पाइंट से बांद्रा तक शिप से जाने का विकल्प तलाशा गया है। भोपाल में तो जमीन पर ही सारे विकल्प तलाशने होंगे। देवीशरण बताते हैं कि पुराने शहर का भगवान ही मालिक है। लाइट मैट्रो भी जिन पिल्लरों पर चलेगी उन्हें कहां जगह मिलेगी। भोपाल के पुराने शहर में व्यावसायिक गतिविधियों का बड़ा पुराना सेटअप है जिसके कारण वहां सारे प्रदश से खरीददार आते हैं। भोपाल के लोग भी पुराने भोपाल में ही उमड़ते हैं। अभी तक इसका कोई विकल्प नहीं है। देवीशरण कहते हैं कि विकल्प बनाया जाना चाहिए। कुछ ऐसे इलाके विकसित होने चाहिए जहां पुराने भोपाल के व्यापारी माइग्रेड कर सकें।
भोपाल में लाइट मेट्रो ज्यादा कारगर
राजधानी में चार-पांच साल में लाइट मेट्रो ट्रेन शहर में 73 किलोमीटर लंबे पांच रूट पर दौड़ेगी। दो स्टेशन के बीच की न्यूनतम दूरी 500 से 700 मीटर रखी गई है। प्रोजेक्ट पर 13 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने हाल ही में इसे मंजूरी दी है। अब लाइट मेट्रो के लिए सर्वे कर स्टेशन की लोकेशन और टोपोग्राफी के हिसाब से प्रोजेक्ट की विस्तृत रिपोर्ट बनाई जाएगी। लोकसभा चुनाव की वजह से लाइट मेट्रो की डीपीआर जून 2014 तक बनेगी। इसके बाद सरकार द्वारा टेंडर जारी कर काम शुरू कर दिया जाएगा।
नगरीय प्रशासन विभाग, जर्मन कंपनी एलआरटीसी और भारतीय कंपनी रोहित एसोसिएट के संयुक्त उपक्रम से भोपाल और इंदौर शहर में मॉस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (एमआरटीएस) की डीपीआर तैयार करवा रहा है। इसके पहले चरण में कंपनी को सर्वे कर रेल के विभिन्न मोड मेट्रो, मोनो या एलआरटीएस में से एक का चयन करना था। कंपनी ने मेट्रो ट्रेन का हल्का वर्जन लाइट मेट्रो ट्रेन को राजधानी के लिए उपयुक्त माना है। जनवरी में इस मोड को मुख्यमंत्री ने अपनी मौखिक सहमति दे दी थी। लाइट मेट्रो की औपचारिक मंजूरी के आदेश जारी कर कंपनी को डीपीआर के अगले चरण का काम शुरू करने के लिए कहा जाएगा। नगरीय प्रशासन विभाग के मुताबिक अगले 25 सालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर डीपीआर तैयार की जाएगी। इसके साथ ही कंपनी को डीपीआर के लिए राशि का भुगतान भी प्रति किलोमीटर के हिसाब से होगा। यह राशि 13 लाख रुपए प्रति किमी है। अब लाइट मेट्रो के स्टेशन और अन्य सर्वे कर कंपनी डीपीआर का दूसरा चरण बनाएगी। भूअर्जन और अन्य छोटे-छोटे खर्चे को शामिल कर इसकी लागत निकाली जाएगी। तीसरे चरण में कंपनी फाइनल डीपीआर बनाएगी। इसमें कंपनी यह सुझाव भी देगी कि परियोजना का वित्तीय मॉडल क्या होगा? इसके तहत जापान, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों से कर्ज लेने, केंद्र और राज्य सरकार से अंशदान लेने, पीपीपी के तहत निजी क्षेत्र से राशि जुटाने, एफएआर बेचने आदि का विकल्प बताया जाएगा। इसमें पांच फीसदी तक पैसा स्थानीय निकाय को वहन करना पड़ सकता है। राजधानी में लाइट मेट्रो ट्रेन के लिए फिलहाल पांच रूट प्रस्तावित हैं। दो और रूट शामिल किए जाने के बाद इसके सात रूट हो जाएंगे। इस तरह यह ट्रेन नए और पुराने शहर के अधिकांश हिस्सों को कवर कर लेगी। ट्रेन को भोपाल रेलवे स्टेशन और हबीबगंज स्टेशन से भी जोड़ा जा रहा है।
2031 का मास्टर प्लान अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, गोपनीय है। प्रकाशित होगा तो उसमें निश्चित रूप से मैट्रो की अधोसंरचना पर भी बात होगी। तालाब का भी मास्टर प्लान है। तालाब के मास्टर प्लान पर सेप्ट ने स्टडी की है। उम्मीद है कि अगले दो माह में दोनों सामने आ जाएंगे। 2021 का मास्टर प्लान अस्वीकार कर दिया गया था। 2005 का मास्टर प्लान चल रहा है। 2031 का मास्टर प्लान लागू होगा।
गुलशन बामरा
भोपाल की सही प्लानिंग के बगैर मैट्रो या लाइट मैट्रो लाना संभव नहीं है। भोपाल में पुराने शहर के बहुत से इलाके सुव्यवस्थित नहीं बसे हैं। पार्किंग की समस्या है। सड़कों पर भी जाम लग जाता है। ऐसी स्थिति में सही प्लानिंग के बगैर कोई भी काम संभव नहीं है। 2005 की भोपाल विकास योजना में आगामी 20 वर्षों की प्लानिंग की गई थी, लेकिन शहर बहुत तेजी से बढ़ा है और उससे भी तेजी से वाहन बढ़ रहे हैं। इसलिए ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी प्लान लाना पड़ेगा।
देवीशरण, पूर्व नगर निगम कमिश्नर