व्यापमं पर कांग्रेस एकजुट
03-Mar-2014 10:59 AM 1234783

मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी एकजुटता दिखाने का हरसंभव प्रयास कर रही है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल में हुए घोटाले को आधार बनाकर कांग्रेस संगठन में जान फंूकने की कोशिश में है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव चाहते हैं कि कम से कम युवा कांग्रेस से संबद्ध नया नेतृत्व इस आंदोलन को प्रदेशव्यापी बनाए ताकि लोकसभा चुनाव के समय भाजपा को कड़ा मुकाबला प्रस्तुत किया जा सके। लेकिन इसमें एक खतरा यह भी है कि जो लाख-डेढ़ लाख शिक्षक और अन्य कर्मचारी व्यापमं की परीक्षा के द्वारा भर्ती हुए हैं वे कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो सकते हैं, लेकिन यादव को इसकी परवाह नहीं है। उन्हें लगता है कि संगठन को मजबूती देने के लिए प्रदेश में माहौल बनाना ही होगा। उधर नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने व्यापमं घोटाले के साथ-साथ माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में भी नियुक्तियों पर भी सरकार व आरएसएस को घेरा है। कटारे का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की मुलाकात से साफ झलकता है कि शर्मा को बचाने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। व्यापमं घोटाले की जांच के लिए महिला कांगे्रस पदाधिकारी ने उपवास भी किया। अरुण यादव ऐसी टीम चाहते हैं जो तीव्रता से काम कर सके और प्रदेश में कांग्रेस की उपस्थिति बनाए रखें। संभवत: इसीलिए महिला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष मांडवी चौहान को अब प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। वे अर्चना जायसवाल के स्थान पर आई हैं।
राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा की नजदीकी रही चौहान की नियुक्ति की खासियत यह है कि इसे साक्षात्कार द्वारा तय किया गया है। इसका मकसद शायद यही जताना था कि कांग्रेस में गुटबाजी की नहीं योग्यता की जरूरत है। मांडवी चौहान सहित छह महिलाओं को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। उधर राहुल फार्मूले का असर भी संगठन पर दिखाई पड़ रहा है। हाल ही में इंदौर की एक लोकसभा सीट के लिए रायशुमारी हुई और बाद में वोटिंग के द्वारा लोकसभा प्रत्याशी का फैसला किया गया। सूत्र बताते हैं कि यदि पूरे प्रदेश में यही तरीका अपनाया गया तो असंतोष भी फैल सकता है। क्योंकि कई दिग्गज नेता अपने वालों को टिकिट दिलवाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वोटिंग के द्वारा प्रत्याशियों का चयन संभवत: अमेरिकी तर्ज पर किया जा रहा है। अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन और बराक ओबामा दोनों राष्ट्रपति पद के दावेदार थे बाद में संगठनात्मक मतदान से प्रत्याशी तय किया गया। ऑफ द रिकार्ड कुछ कांग्रेसियों का कहना है कि अमेरिका का फार्मूला भारत में शायद ही चले क्योंकि कांग्रेस में तो खास लोगों को टिकिट दिलाने के लिए नेेता किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। बहरहाल कांग्रेस के कुछ नेता मेहनत भी कर रहे हैं और जोखिम भी उठा रहे हैं। सागर के एक कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं की धक्का-मुक्की के बाद नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे मंच से गिर गए बाद में एक मशाल जुलूस के दौरान कटारे और अरुण यादव दोनों झुलस गए। देखना है यह बलिदान क्या रंग दिखाता। इस बीच राहुल के फार्मूले के बावजूद लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारों ने अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर दी है। 29 सीटों के लिए विभिन्न जिलों से तकरीबन 50 नाम अपने-अपने आकाओं के पास पहुंच चुके हैं, लेकिन सभी चुप्पी साधे हुए हैं। प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने स्पष्ट संदेश दिया है कि संगठन जो भी आंदोलन चला रहा है उस पर ध्यान रहना चाहिए।
एक मार्च को व्यापमं घोटाले पर प्रदेशव्यापी बंद को सफल बनाने के लिए भी विशेष प्रयास हो रहे हैं। पीसीसी में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है। 28 फरवरी को जिला एवं ब्लाक मुख्यालयों पर विशाल जुलूस के दौरान कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की, लेकिन भीतरी खबर यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, अजय सिंह, दिग्विजय सिंह जैसे नेता उतनी सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। शायद इसका कारण लोकसभा चुनाव में अपनाया जा रहा फार्मूला भी है। इस बीच कांग्रेस नेताओं में समन्वय के लिए आलाकमान ने जिन 11 पर्यवेक्षकों को भेजा है वे कांग्रेस के मोर्चा संगठनों के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। ये लोग हर लोकसभा क्षेत्र में दौरा करने वाले हैं और मैदानी तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। अरुण यादव खंडवा से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं तो सीधी से पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को लड़वाने की तैयारी है। कांग्रेस का मुख्य ध्यान बूथ मैनेजमेंट पर है। महासचिव चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी की टीम ब्लॉक स्तर की बैठकें करते हुए बूथ कमेटियों का गठन कर रही हैं।
कांग्रेस का मुख्य ध्यान उन सीटों पर है जहां जीत का अंतर 30 हजार से नीचे था। विशेषकर मालवा और बुंदेलखंड में कुछ सीटों पर उलटफेर करते हुए वर्तमान में जो सीटें हैं उन्हें बचाने की योजना बन रही है। सुनने में आया है कि प्रदेश के 12 सांसदों में से तकरीबन 8 सांसदों का टिकिट कट सकता है। अभी तक कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का टिकिट पक्का है। मीनाक्षी नटराजन चुनाव नहीं लड़ेंगी ऐसे संकेत हैं। उधर कुछ दिग्गज सांसदों को भी इस बार संगठन का काम करने का कहा जाएगा। कोशिश ज्यादा से ज्यादा युवा चेहरों को जोडऩे की है। देखना है गुटबाजी से कैसे निजात मिलती है। कांग्रेस ने कहा है कि म.प्र. सरकार ने व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) को उच्च व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु चयन एवं राज्य सरकार की नौकरियों की भर्ती परीक्षाएं संचालित करने की जवाबदारी सौंपी थी, किंतु भाजपाराज में वह भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गया। उसके द्वारा पिछले 10 वर्षों में संचालित ऐसी कोई परीक्षा नहीं बची, जिसमें मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की सीटें और नौकरियां लाखों रुपयों में न बिकी हों। नतीजा यह हुआ कि व्यापमं के महाघोटाले के कारण पात्रता रखने वाले 80 हजार से अधिक युवाओं का भविष्य बर्बाद हो गया और एक करोड़ के करीब उनके परिजनों का सुख-चैन भी इस महाघोटाले ने छीन लिया।
देश के इस सबसे बड़े घोटाले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर कांग्रेस पिछले एक साल से आंदोलन कर रही है। पूरे प्रदेश में युवा कांग्रेस ने धरना-प्रदर्शन के अलावा महू से पदयात्रा शुरू की है। इसके अलावा प्रांतव्यापी एक दिवसीय उपवास रखा गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री राजमणि पटेल सहित अन्य कांग्रेसजन इसी मुद्दे पर भोपाल में पांच दिन का अनशन भी कर चुके हैं, लेकिन अपने पूर्व और वर्तमान मंत्रियों, चहेते अधिकारियों और भाजपा नेताओं को बचाने के लिए राज्य सरकार सीबीआई जांच के मामले में लगातार अडिय़ल रवैया अपनाये हुए है।

नियम बदलकर मारा हक, चुप बैठी कांग्रेस
मुख्यमंत्री खुद सदन में स्वीकार कर चुके हैं कि 1 लाख 46 हजार भर्तियों में जो गड़बड़ी हुई है उसमें लगभग 1 हजार फर्जी नियुक्तियां भी हुई हैं। कांग्रेस इस बात को लेकर देर आयत दुरुस्त आयद की तर्ज पर सड़कों पर उतर आई हो पर उसके आंदोलन में अभी भी अध्ययन का अभाव साफ झलकता है। दरअसल पूरे व्यापमं घोटाले का एक सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि घोटाला करने के पहले जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने संघ और सरकार से जुड़े अपने आकाओं और दलालों के इशारों पर कई ऐसे नियम भी बदले जिनका नतीजा यह निकला कि घोटालेबाजों को नौकरियां बेचने में आसानी तो हो ही गई इसका दूसरा दुष्परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश के युवाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के परंपरागत युवा कारीगरों का भी जमकर नुकसान हुआ। नियमों की आड़ में उनके हक पर डाका डाला गया और कांगे्रस आज तक उन नियमों को फिर से हटाने के लिए कोई बात नहीं कर रही है। मध्यप्रदेश के युवाओं का हक मारने वाले नियमों पर नजर डालें तो यह साफ नजर आता है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्रियों ने प्रदेश के युवाओं का हक सुनिश्चित करने के लिए जिन भर्ती नियमों को बनाया था भाजपा सरकार के दौरान वही नियम कथित दलालों के इशारों पर हटा दिए गए। जैसे पुलिस आरक्षक भर्ती के लिए पहले अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में दूसरे प्रदेशों के लोगों को रोकने के लिए यह नियम बनाया गया था कि पुलिस आरक्षक की भर्ती के लिए मध्यप्रदेश के रोजगार कार्यालय में विज्ञापन निकलने के 90 दिन पूर्व पंजीयन होना आवश्यक है। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि मध्यप्रदेश के रोजगार कार्यालय में पंजीयन उन्हीं का हो सकता था जो मध्यप्रदेश के मूल निवासी हों। 2012 में जब व्यापमं ने परीक्षा लेना शुरू की तो उसमें रोजगार पंजीयन का यह नियम हटा दिया गया। नतीजा यह रहा कि दूसरे प्रदेशों के लोग मध्यप्रदेश के युवाओं का हक मारकर नौकरियों पर काबिज हो गए। वहीं दूसरी और दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में मध्यप्रदेश के स्कूलों से ही 10-12वीं परीक्षा पास होना अनिवार्य है।Ó का नियम भी भाजपा सरकार के नौकरशाहों ने हटा दिया। नतीजा यह रहा कि नौकरियों के रास्ते पूरे देश के युवाओं के लिए खुल गए और दलालों की चांदी हो गई। यह तो महज एक बानगी है अमूमन हर भर्ती परीक्षा में कुछ ऐसे हेरफेर किए गए हैं जो योग्य युवाओं के बजाए दलालों का हक सुनिश्चित करते हैं। कांग्रेस को चाहिए कि उसकी सरकारों के समय बनाए गए प्रदेश के युवाओं का हक सुनिश्चित करने वाले भर्ती नियमों को फिर से शामिल करने के लिए भी लड़ाई लड़े ताकि मध्यप्रदेश के युवाओं का हक सुनिश्चित हो कसें।

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