16-Feb-2013 11:40 AM
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एक तरफ तो नीतिश शासन अपनी योग्यता की दुहाई देता सारे देश में घूम रहा है और बिहार के सुशासन को आगे करके सरकार का प्रचार किया जा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ बिहार में मनरेगा
जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार और लापरवाही का उत्कृष्ट उदाहरण बन गई हैं। कहने को तो यह महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना है किंतु अब इसे प्रदेश में मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहा जाने लगा है। इसका कारण यह है कि इस योजना में ज्यादातर राशि प्रदेश में लेप्स होने की कगार पर है। इसी डर से राज्य के आला अफसर इस राशि को जो कि बैंक में पड़ी है येन-केन-प्रकारेण खर्च करने में जुट गए हैं और राहत कार्यों से लेकर विकास कार्यों की गुणवत्ता पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित यह योजना गरीबों के उन्नयन और उनकी आजीविका की दृष्टि से महत्वपूर्ण योजना है, लेकिन इसका लक्ष्य गरीबों को कुशल तथा प्रशिक्षित बनाना भी है ताकि वे गरीबी के दुष्चक्र से निकल सकें पर बिहार में जिस तरह से काम किया जा रहा है उसे देखकर लगता है कि गरीबी का दुष्चक्र भोगने के लिए यह लोग अभिशप्त हैं और सरकार इनके जीवन में टिकाऊ बदलाव करने का संकल्प नहीं जुटा पा रही है।
केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को परिवर्तित कर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना किया गया। इस योजना के अन्र्तगत काम के अधिकार को सरकार द्वारा कानूनी दर्जा दिया गया तथा 18 वर्ष के ऊपर के इच्छुक व्यक्ति के एक परिवार को न्यूनतम 100 दिन कार्य का अधिकार मिला। कार्य नहीं दिए जाने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है। बताया जाता है कि इस योजना की रुपरेखा तैयार करते समय ही बिहार में सरकारी राशि के दुरुपयोग की सुनिश्चत संरचना तैयार की गयी। बिहार में गैर तकनीकी योग्यताधारी व्यक्ति को तकनीकी पदधारी नाम पंचायत तकनीकी सहायक दिया गया। इनको एक लाख रुपये तक के प्राक्कलन बनाने एवं मापी पुस्तिका संधारण का अधिकार दिया गया, बाद में अपर-सचिव- सह-आयुक्त मनरेगा के पंत्राक 6599 दिनांक 03/06/2011 द्वारा सभी प्रकार के योजनाओं की मापी पुस्तिका संधारण का अधिकार दे दिया गया, यह अधिकार उसी प्रकार का है, जिस प्रकार एक हड्डी के डॉक्टर से हार्ट का आपरेशन करवाया जाए।
सरकार द्वारा उक्त जारी आदेश के आलोक में अवर अभियंता संध, बिहार के महामंत्री ई. ऋर्षिकेष पाठक ने अपने पत्रांक 386, दिनांक 06/08/2011 के द्वारा मुख्यमंत्री, बिहार को लिखे पत्र में कहा था कि राज्यहित एंव कार्यहित में मनरेगा के तहत होने वाले कार्यो में करोड़ो- अरबों का वारा- न्यारा पंचायत तकनीकी सहायक द्वारा न कराया जाए, अन्यथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई बंद कर दी जाए।
बताया जाता है कि मनरेगा द्वारा 60 प्रतिशत मिट्टी कार्य और 40 प्रतिशत पक्का कार्य कराया जाता है। पंचायत तकनीकी सहायक द्वारा सड़क एवं पुलिया आदि निर्माण से संबंधित आवश्यक कार्यों हेतु मिट्टी की भार संधारण, मिट्टी की संपीडऩ क्षमता, सड़क की ढाल, कंक्रीट की कार्य क्षमता, सीमेन्ट पानी अनुपात, प्रथम क्षेणी ईट की पहचान, प्रबलन के बीच की दूरी आदि तकनीकी ज्ञान का अभाव है। उनके द्वारा तैयार किए गए प्राक्कलन कार्य संपादन क्षमता एंव मापी पुस्तिका दर्ज करने के लिए उपलब्ध नहीं है, जिससे सरकारी राशि के दुरुपयोग एंव मजदूरों की शोषण की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। तकनीकी शिक्षा पर सरकार द्वारा जनता की गाढ़ी कमाई का बड़ा अंश खर्च किया जाता है, परन्तु गैर तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर्मी पंचायत तकनीकी सहायक द्वारा उपयुक्त कार्य संपादित कराने से खर्च की गई राशि का सदुपयोग नही हो पाएगा। फलत: अभियंत्रण संस्थान के माध्यम से एक अभिंयता को प्रशिक्षित करने में खर्च किए गए लाखों रुपये के बदले प्राप्त तकनीकी ज्ञान से राज्य लाभान्वित नहीं हो पा रहा है। सागर यादव (सुपौल) द्वारा 20277/11 द्वारा जनहित याचिका के रूप में माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष इस षडय़ंत्र को लाया गया था, जिस पर न्यायधीश टी. मीना कुमारी एंव विकास जैन द्वारा दिनांक 22/11/2011 को फैसला सुनाया गया था, परन्तु आज तक सरकार द्वारा कानुन संगत आदेश निर्गत नहीं किया गया। सरकार कुंभकरणी निंद्रा में सोई हुई है गैर तकनीकी व्यक्ति द्वारा तकनीकी कार्य कराया जाना यह दर्शाता है कि राज्य सरकार की नीयत कार्य की गुणवत्ता पर साफ नही है। क्या राज्य सरकार केन्द्र प्रायोजित योजना को असफल बनाने के लिए सुनियोजित साजिश तो नहीं कर रही है। क्या जनता की गाढ़ी कमाई का वारा- न्यारा करने का बुद्धिमतापूर्ण प्रयास तो नहीं है? राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी, बिहार प्रशासनिक एंव तकनीकी मार्गदर्शिका प्रकाशन बिहार सरकार ग्रामीण विकास विभाग पटना के अध्याय 11 में वर्णित है कि राज्य के निर्माण कार्यों के कार्यन्वयन में संलग्न पदाधिकारियों के मार्ग निर्देषन हेतु बिहार लोक निर्माण विभागीय संहिता, बिहार लोक निर्माण लेखा संहिता, बिहार वित्त नियमावली,बिहार कोषागार नियमावली आदि का प्रतिपादन बिहार सरकार द्वारा किया गया है। लेकिन सरकार को इसकी परख नहीं है।
अक्स ब्यूरो