अपराधों ने याद दिलाई लालू राज की
04-Feb-2013 10:37 AM 1234753

बिहार में अचानक अपराध का ग्राफ बढऩे से लालू राज की याद ताजा हो गई। हत्या, बलात्कार, पुलिसिया बर्बरता, अपहरण, तस्करी, सामूहिक अपराध जैसी घटनाएं राज्य के हर जिले में देखने में आ रही हैं। पुलिस खुद निरंकुश हो गई है और अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं। पिछले दिनों पुलिस ने शेखपुरा जिले में मुकेश कुमार नामक एक युवक की इस बुरी तरह पिटाई की कि उसके शरीर का निचला हिस्सा और बड़ी आत क्षतिग्रस्त हो गई। इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया। राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव ने अस्पताल पहुंचकर पीडि़त के प्रति सहानुभूति प्रकट की और सरकार की लानत-मलानत की तो बिहार बचाओ यात्रा पर निकले रामविलास पासवान ने इसे एक बड़ा मुद्दा बताते हुए सरकार की खिंचाई की। बिहार की खासियत यह है कि यहां अपराध का ग्राफ कभी कम नहीं रहता है। लेकिन नीतिश राज में कानून व्यवस्था की स्थिति पहले से बेहतर होने के कारण जनता में आस बंध रही थी, पर पिछले छह माह से जनता की आस टूटती नजर आ रही है। हालांकि अपराध की घटनाएं तो वर्ष 2012 के जनवरी माह से ही तेजी से बढऩे लगी थीं।
आपराधिक घटनाओं की वृद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल अपराध के ग्राफ में करीब 30 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़े बताते हैं कि यहां हत्या के मामले तो बढ़े ही हैं, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के बाद दुष्कर्म की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है, जो यहां के लिए नया ट्रेंड माना जा रहा है। बिहार में साल 2012 की पहली छमाही में जहां संज्ञेय अपराध के कुल 11,554 मामले सामने आए थे, वहीं केवल जुलाई, 2012 में अपराधियों ने 14,425 संज्ञेय अपराध को अंजाम दे दिया। बीते वर्ष जुलाई तक राज्य के विभिन्न थानों में अपराध के कुल 94,188 मामले दर्ज हुए, जबकि वर्ष 2011 के पहले सात महीने (जनवरी से जुलाई तक) में 13,338 मामले दर्ज किए गए थे। ये आंकड़े सरकारी खाते में दर्ज हैं, लेकिन गैर सरकारी सूत्र इस तादात को और अधिक बता रहे हैं। हत्या के मामलों में वृद्धि से आम लोग ही नहीं, पुलिस अधिकारी भी सकते में हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 के पहले महीने, यानी जनवरी में हत्या के कुल 227 मामले सामने आए थे, जबकि जुलाई में यह संख्या बढ़कर 317 तक जा पहुंची। इसी वर्ष पहले सात महीने के दौरान राज्य में 2,182 लोगों की हत्या की गई है। ऐसे में अब विपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अमन चैनÓ और सुशासनÓ वाले बहुप्रचारित दावे की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने लगा है। उल्लेखनीय है कि  बिहार पुलिस ने अपनी वेबसाइट पर पिछले 11 वर्षों के अपराध का तुलनात्मक लेखा-जोखा पेश किया था। इस लेखा-जोखा को सार्वजनिक करने के पीछे एकमात्र वजह नीतीश के शासन में अपराध पर अंकुश लगने के दावे को सच साबित करना था।
दरअसल, बिहार पुलिस द्वारा उसके वेबसाइट पर जो डाटा डाला गया था, वाकई में उसे देखने से लगता है कि बिहार हर तरह से बदल रहा है, क्योंकि वर्ष 2001 से 2011 तक के आंकड़े साइट पर दिए गए थे, जिसमें हत्या, अपहरण, डकैती, चोरी, दंगा, दुष्कर्म आदि की रिपोर्ट शामिल थीं। हत्या की बात करें, तो वर्ष 2001 में 3619, 2002 में 3634, 2003 में 3652, 2004 में 3861, 2005 में 3423, 2006 में 3225, 2007 में 2963, 2008 में 3029, 2009 में 3152, 2010 में 3362 और 2011 में महज 501 हत्याएं हुर्इं, तो वर्ष 2001 में 22, 2002 में 28, 2003 में 24, 2004 में 30, 2005 में 26, 2006 में 15, 2007 में 19, 2008 में 16, 2009 में 7, 2010 में 9 और 2011 में महज चार बैंक डकैतियां हुर्इं। अपहरण की बात करें, तो क्रमश: 2001 से 2011 तक 1689, 1948, 1956, 2566, 2226, 2301, 2092, 2735, 3142, 3602, 565 हैं, जबकि रेप के मामले में जहां 2001 से 2010 के बीच ये आंकड़ा 700 से हजार के ऊपर रहा, वहीं 2011 में यह 127 के आंकड़े पर ही सिमट गया। बिहार पुलिस के दस वर्षों के इन तुलनात्मक आंकड़ों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि वाकई में बिहार बदल रहा है। अपराध के लिए कई दशकों से मशहूर बिहार में अपराध अगर इस कदर कम हो गया है, तो वाकई में कहा जा सकता है कि सही में बिहार में सुशासन का बोलबाला है। लेकिन ये आंकड़े कई मायनों में चौंकाने वाले भी हैं। अचानक कैसे अपराध का ग्राफ गिर सकता है? दरअसल, ये सारे आंकड़े वर्ष 2011 तक के थे। इसमें वर्ष 2012 में हुए अपराध को जगह नहीं दी गई थी, जबकि वर्ष 2012 के आंकड़े और भी रोंगटे खड़े करने वाले हैं, क्योंकि बिहार की हाल की आपराधिक घटनाएं सीधे तौर पर बताती हैं कि सूबे में न सिर्फ अपराध बढ़ रहा है, बल्कि यह भी कि सत्ता से जुड़े लोग कानून को हाथ में लेने से परहेज नहीं कर रहे हैं। उन्हें पता है कि स्थानीय पुलिस-प्रशासन उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगा। दूसरी ओर, आम लोग अपराधियों का दबाव महसूस कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अपराधियों पर अब न तो पुलिस का खौफ है और न ही स्पीडी ट्रायल का, जबकि स्पीडी ट्रायल के जरिए करीब 75 हजार अपराधियों को सजा दिलाने का पुलिस महकमा दावा करता है।  एक नजर चंद हालिया आपराधिक घटनाओं पर डालें, तो पता चल जाएगा कि यहां अपराध और अपराधियों का क्या और कितना बोलबाला है। पिछले दिनों बांका में संत जोसेफ स्कूल में दसवीं कक्षा के छात्र आशीष के अपहरण और उसकी हत्या ने उन दिनों की याद ताजा कर दी, जब स्कूली बच्चे सरे राह उठा लिए जाते थे।
-अक्स ब्यूरो

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^