03-Mar-2014 10:22 AM
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रतनगढ़ के ताजा हादसे को घटे पांच माह से ऊपर का समय हो चुका है, लेकिन अभी तक इस हादसे को लेकर न तो कोई ठोस कदम उठाया गया और न ही किसी को सजा मिली।

और आखिर सजा मिले भी तो कैसे जब तक सत्ता के शीर्ष पर बैठे आका खुद गुनहगार अफसरों को बचाने के लिए सारी नैतिकता और जवाबदेही को ताक पर रखने के लिए नजदीकियों के चलतेÓ आमादा बैठे हो तब तक चाहे वो धाराजी देवास हादसे के समय एसपी रहे आरके चौधरी हों चाहे रतनगढ़ में 2006 हादसे के समय वहां की कलेक्टर रहीं एम. गीता (एनआरएचएम डायरेक्टर भोपाल) गीता या फिर रतनगढ़ के हालिया हादसे के समय कलेक्टर, एसपी रहे संकेत भोंडवे व चंद्रशेखर सोलंकी अमूमन होता यह है कि ऐसे हादसों के समय तत्कालीन आक्रोश को शांत करने के लिए न्यायिक जांच आयोग बना दिए जाते हैं और फिर बाद में ऐसे हादसों में इधर लोगों के जिंदा दफन होने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है और उधर जांच रिपोर्टें भी दफन कर दी जाती हैं। जिम्मेदार लोग मलाईदार पोस्टिंग पा जाते हैं और सत्ता तथा विपक्ष दोनों सब कुछ भूलकर जिम्मेदार अधिकारियों से रिश्तेदारियां निभाने लगता है।
रतनगढ़ 2006... आखिरकार
बच ही गईं एम गीता
पूर्व में 2006 को जब यह हादसा हुआ था उसके बाद जूडिशियल कमीशन बिठाया गया था। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में साफतौर से लिखा है कि यह दुर्घटना बड़ी दुर्घटना है इसमें 50 से अधिक लोगों की मौतें हुई थी उस समय तत्कालीन कलेक्टर एम गीता और पुलिस अधीक्षक प्रमोद वर्मा हुआ करते थे। इन दोनों पर तो कोई कार्रवाई सरकार ने नहीं की। वहीं तत्कालीन कलेक्टर एम. गीता को जांच रिपोर्ट में साफतौर से दोषी मानने पर भी निलंबित नहीं किया गया। बल्कि तत्कालीन कलेक्टर एम गीता जैसी अधिकारी को बचाने की भरसक कोशिश की गई। 7 अप्रैल 2005 को देवास के धाराजी हादसे के समय प्रशासन की लापरवाही के चलते इंदिरा सागर बांध से छोड़े गए जल में 200 से ज्यादा लोगों की जल समाधि हो गई थी। उसके बाद आनन-फानन में जांच बिठाई गई और इस बारे में एक परिपत्र 28 जुलाई 2005 को गृह मंत्रालय ने जारी किया। इस परिपत्र में धाराजी की घटना को देखते हुए लिखा था कि अगर नदी का पानी डाउन स्ट्रीट में बहता है तो ऐसे समय में जुलूस, मेला और धार्मिक आयोजन होते हैं, आयोजनों के संबंध में जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को आवश्यक रूप से आमंत्रित करें ताकि डाउन स्ट्रीट से बहने वाले पानी या बांधों से छोड़े गए पानी के लिए जल संसाधन विभाग के पास पर्याप्त व्यवस्था इस बात की होती है कि आसपास के गांवों को इसकी सूचना देने का इंतजाम किया जाए। इसी बात को देखते हुए दतिया स्थित रतनगढ़ में 2006 को हुए हादसे में गृह विभाग के परिपत्र को कलेक्टर ने ध्यान में नहीं रखा इसलिए इतनी बड़ी घटना घटित हो गई। क्योंकि गृह विभाग के इस परिपत्र के बाद भी दुर्घटनाएं होती रहीं। इस परिपत्र के जारी होने के लगभग 8 माह बाद ही 2006 में रतनगढ़ हादसे में 50 के करीब शृद्धालु मारे गए।
अभी पुरानी घटना की जांच ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थी और नई घटना फिर रतनगढ़ मंदिर में भगदड़ मचने के कारण 115 लोगों की मौत हो गई और जिला प्रशासन मुंह ताकता रह गया। एक ही जगह पर दोबारा घटना होना सिर्फ जिला प्रशासन की उदासीनता का प्रतीक ही नहीं बल्कि प्रशासनिक अराजकता का भी प्रतीक है।
रतनगढ़ हादसे की मौतों के जिम्मेदारों को बचाया जा रहा है
दतिया स्थित रतनगढ़ मंदिर में 2006 के हादसे के समय जो जांच आयोग बैठा था उसने अपनी रिपोर्ट कैबिनेट को दे दी थी। कैबिनेट ने इस मामले को सुनने के लिए तीन मंत्रियों की उप समिति बनाई थी। जांच आयोग ने अपनी फाउंडिंग में साफतौर से यह लिखा था कि बड़ी दुर्घटना है ज्यादा लोगों की मौत हुई है अधिकारियों की दंडनीय उदासीनता है। साथ में उन्होंने गृह विभाग के परिपत्र जो व्यवस्था के संबंध में था उसमें लिखा है कि तत्कालीन कलेक्टर एम गीता ने उसका पालन नहीं किया। जांच आयोग की अनुशंसा को मंत्रीमंडल की उप समिति और विभाग ने भी अपनी मोहर लगा दी। परंतु मौत के दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि वह रिपोर्ट ही पिटारे में बंद पड़ी रही और दो साल बाद चुनाव हो जाने के बाद सरकार ने उक्त जूडिशियल इंक्वायरी से यह कहकर कि नई सरकार बन गई है पुरानी मंत्रीमंडल भंग हो गया है इस कारण से इस पूरे मामले की जांच दोबारा से कराई जाना उचित होगा। परंतु सरकार के ही मुख्य सचिव ने पुरानी रिपोर्ट का हवाला देते हुए उक्त घटना पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पूरे मामले की जांच अब 4 मंत्रियों की उप समिति करेगी। इसके मद्देनजर तत्कालीन कलेक्टर और एसपी को अक्टूबर 2013 में सोकाज नोटिस दिए गए हैं जिसका जवाब उक्त अधिकारियों द्वारा 2014 में दे दिया गया है। परंतु गृह विभाग ने उनके सोकाज नोटिस पर कोई अभिमत नहीं दिया है। सूत्र बताते हैं कि संगठन से जुड़े हुए एक महामंत्री इस पूरी जांच की आंच एम गीता पर नहीं आने देना चाहते हैं। इसी के चलते इस नस्ती को इतने सालों तक दबाकर रखा गया था। अगर दोबारा रतनगढ़ में हादसा नहीं हुआ होता तो पुरानी नस्ती को दफन कर दिया जाता।