माखनलाल में भर्ती घोटाला, सच क्या है
18-Feb-2014 06:28 AM 1234763

मध्यप्रदेश का माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय ऐसा है जहां एक साथ 200-250 भर्तियां निकल आती हैं और उन पर अपने-अपने वालों को ही नियुक्ति दे दी जाती है, लेकिन फिर भी न तो प्रशासन की आंखे खुलती है और न ही विश्वविद्यालय के भाग्य विधाताओं के कानों पर जूं रेंगती हैं।
वैसे तो अपने जन्मकाल से ही पत्रकारिता का यह एकमात्र विश्वविद्यालय कई विवादों से घिरा रहा। कभी पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के रिश्तेदार अरविंद चतुर्वेदी को हटाने को लेकर आंदोलन चला था तो बाद में कई प्राध्यापकों के खिलाफ छात्र खड़े हो गए उसके बाद प्रबंधन और कर्मचारियों की लड़ाइयां हुईं और अब ताजा तरीन यह भर्ती घोटाला सामने आया है। खबर है कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुछ खास लोगों को पर्याप्त योग्यता और आरक्षण नियमों का पालन किए बिना नियुक्त करने की चाल चली गई है जिसका फायदा किसी एक विशेष विचारधारा को समर्पित लोगों को मिला है। पत्रकारिता का पेशा इस तरह का है कि इसमें निष्पक्षता प्रथम और अनिवार्य शर्त होती है। भारतीय पत्रकारिता तथा अकादमिक जगत से वामपंथी कबाड़ को हटाने में दशकों लग गए और अब माखनलाल जैसी संस्थाएं यदि एक ही तरह के उत्पादÓ पैदा करेंगी तो उन्हें हटाने में कितने दशक लगेंगे यह कहना मुश्किल है। बहरहाल यहां बात हो रही है पत्रकारिता विश्वविद्यालय में नियुक्तियों के दौरान की गई अनियमितताओं की। यूं तो नियुक्ति में धांधलियों की खबर बहुत पुरानी है और तकरीबन 12 वर्ष से यह गोरखधंधा जारी है, लेकिन हाल ही में पिछले वर्ष जब अचानक बड़ी संख्या में पदों के लिए विज्ञापन निकला तो लगा कि इस विश्वविद्यालय के विकास के लिए जो पैसा खर्च किया जा रहा है उसी मद में यह नियुक्तियां भी शामिल हैं पर इनकी गहराई में जाने पर पता चला कि अंधा बांटे रेवड़ी और अपने-अपने को दे। गत 2012 के मार्च और 2013 के अप्रैल माह में शैक्षणिक संवर्ग के 44 तथा गैर शैक्षणिक संवर्ग के 150 इस प्रकार कुल 194 पद विज्ञाप्ति किए गए थे। 16 अगस्त 2013 से लेकर 3 सितंबर 2013 के बीच इन विज्ञाप्ति पदों पर भर्ती प्रक्रिया संचालित की गई। यहां तक कि भृत्य के पदों के लिए भी साक्षात्कार संपन्न हो गए। जहां तक सूचना है इनमें से लगभग 80 लोगों की नियुक्ति भी हो चुकी है और कुछ को दो माह का वेतन भी मिल चुका है। इन नियुक्तियों की खासियत यह है कि इन पदों पर नियुक्ति करते समय कई बड़ी-बड़ी अनियमितताएं या तो जानबूझ कर की गई हैं या फिर इन अनियमितताओं की आड़ में सरकार को गुमराह करने की कोशिश की गई है। अनियमितताओं का सिलसिला आरक्षण नियमों के उल्लंघन तक ही सीमित नहीं है बल्कि कुछ अयोग्य लोगों को महत्वपूर्ण पद सौंपे गए और यूजीसी नियमों की भी जमकर धज्जियां उड़ाई गईं।
पाक्षिक अक्स के पास उपलब्ध सूचना के अनुसार मध्यप्रदेश में महिलाओं की नियुक्ति हेतु जो विशेष उपबंध नियम 1997 बनाया गया था उसमेें साफ कहा गया है कि कम से कम शैक्षणिक संवर्ग में तो महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत पद अनिवार्य रूप से आरक्षित होने चाहिए। लेकिन यहां इस नियम का पालन नहीं किया गया। सामान्य प्रशासन विभाग के ज्ञापन क्रमांक सी-3.2/97/311 में भी 30 प्रतिशत आरक्षण देने का स्पष्ट निर्देश दिया गया है। यही नहीं मध्यप्रदेश में किसी भी भर्ती में भूतपूर्व सैनिकों, विकलांगों के साथ-साथ दैनिक वेतन भोगियों के लिए भी नियमानुसार आरक्षण का प्रावधान है पर माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में इन प्रावधानों की भी धज्जियां उड़ाई गई। जिसके बाद विश्वविद्यालय के कुलपति कुठियाला के खिलाफ लामबंदी शुरू हो गई। उस समय नियुक्तियों की जांच की मांग भी उठी। कुलपति के खिलाफ माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन के बेनर तले कर्मचारियों ने प्रदर्शन भी किया। अनिश्चितकलीन हड़ताल भी की गई। उस समय आशीष जोशी, राघवेंद्र सिंह एवं सौरभ मालवीय को विश्वविद्यालय में नियुक्ति प्रदान कर प्रस्ताव पारित करवाया गया था। जबकि उक्त तीनों ही व्यक्तियों की नियुक्ति के विरुद्ध न्यायालय में याचिका दर्ज थी और भी कई नियुक्तियां समय-समय पर विवाद के दायरे में आती गईं, लेकिन कुठियाला की ऊंची पकड़ के कारण उन तक पहुंचने का पराक्रम फिलहाल कोई भी नहीं दिखा पाया है। कुठियाला के विरोधियों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपनी पकड़ के चलते कुठियाला अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो जाते हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी विवि के कुलाधिपति को पत्र लिखकर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों की जांच करवाने की मांग की थी। उन्होंने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी  को भी पत्र लिखा तथा उसमें कहा गया कि भाजपा और संघ के कई प्रभावशाली लोगों ने अपने रिश्तेदारों की नियुक्ति कराई है। दिग्विजय सिंह ने आरएसएस नेता सुरेश सोनी, भाजपा उपाध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा सहित अन्य पर यह आरोप लगाया था कि इन लोगों के रिश्तेदारों की भर्ती की गई है। हालांकि विश्वविद्यालय की तरफ से इन नियुक्तियों की जांच करने की कोई पहल नहीं हुई है। वर्ष 2010-11 में भी इसी तरह की धांधली सामने आई थी जब प्रोफेसर एनके त्रिखा, वरिष्ठ प्राध्यापक अशोक टंडन तथा सौरभ मालवीय की नियुक्ति को लेकर बवाल मचा था। विधानसभा में भी इस संबंध में सवाल-जवाब हुए, लेकिन मामला वहीं दबा रह गया। दिसंबर 2013 में इसी विषय को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि संघ और भाजपा के लोगों को विश्वविद्यालय में नियुक्त किया जा रहा है। लेकिन उस याचिका के बाद भी भर्ती प्रक्रिया चालू रही और 80 पद पर नियुक्तियां होकर काम शुरू हो गया। कांग्रे्रस पहले ही आरोप लगा चुकी है कि विश्वविद्यालय में सीएम की नोटशीट पर संघ के लोगों को नियुक्तियां दी गई हैं। आरोप यह भी है कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय को भगवा रंग में रंगने की कोशिश की जा रही है। कुछ खास पाठ्यक्रमों पर भी कई बार उंगली उठी है, लेकिन इस समय विश्वविद्यालय गंभीर आरोपों का सामना कर रहा हैै। पिछले दिनों लगातार यह बात कही गई कि विश्वविद्यालय में संघ समर्थक कर्मचारियों और प्राध्यापकों की नियुक्तियां की जा रही है। कुछ विशेष पाठ्यक्रमों को लेकर भी सवाल उठाए गए। बाद में रजिस्ट्रार चंदर सोनाने की नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ। कहा गया कि जनसंपर्क विभाग के संयुक्त संचालक के पद से सोनाने को प्रतिनियुक्ति पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में भेजने पर रजिस्ट्रार का चार्ज दिया गया जो कि नियमानुसार नहीं था। संचालक स्तर के अधिकारी को ही रजिस्ट्रार का चार्ज दिया जा सकता है।
हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में भी यही मांग की गई थी कि जिन नियुक्तियों के कारण विश्वविद्यालय में नियमों का उल्लंघन हुआ है उन्हें शून्य घोषित किया जाए। इसके बाद न्यायाधीश सुशील हरकोली व न्यायमूर्ति आलोक आराधे की युगलपीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन से जवाब तलब किया था एवं नियुक्ति के विषय में सारे रिकार्ड पेश करने को कहा गया था। लेकिन इन सारी अनियमितताओं के साथ-साथ भी कई ऐसी बाते हैं जो कहीं न कहीं यह सिद्ध करती हैं कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में समूचा पाठ्यक्रम और अध्यापन कार्य किसी विशेष झुकाव से प्रेरित है। इसी कारण इस विश्वविद्यालय की साख को काफी धक्का पहुंचा है। जिन लोगों ने नियुक्तियों में घपले का आरोप लगाया है उनका यह भी कहना है कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार चयन प्रक्रिया के दौरान चयन समिति के सदस्यों में मध्यप्रदेश के किसी विश्वविद्यालय का कुलपति जो विश्वविद्यालय महापरिषद का सदस्य हो, महापरिषद में एडिटर्स गिल्ड का प्रतिनिधि, सचिव जनसंपर्क मध्यप्रदेश शासन आदि विभिन्न शैक्षणिक पदों के साक्षात्कार के समय उपस्थित रहने चाहिए, लेकिन वे उपस्थित नहीं थे। खास बात यह है कि उक्त व्यक्ति अपने प्रतिनिधि नहीं भेज सकते। इसी तरह सहायक प्राध्यापक की भर्ती के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण होना चाहिए। राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण मिलता है, लेकिन माखनलाल में दूसरे राज्यों के उन छात्रों ने जिन्होंने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में आरक्षण का लाभ लेकर परीक्षा उत्तीर्ण की, भी सामान्य वर्ग में एप्लाई कर दिया और उनकी नियुक्ति भी हो गई जो कि गलत है। आरोप यह भी है कि साक्षात्कार के समय ऐसे अनेक उम्मीदवारों को बुलाया गया जिनकी पीएचडी न तो यूजीसी के पीएचडी रेग्यूलेशन 2009 के अनुसार थी न ही वे राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में उत्तीर्ण हुए थे। एसोसिएट प्रोफेसर के पद के लिए भी 8 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव तथा सहायक प्राध्यापक या समकक्ष वेतनमान पर कार्य करना अनिवार्य है। साथ ही संबंधित विषय में पीएचडी भी होनी चाहिए, लेकिन विश्वविद्यालय के साक्षात्कार में ऐसे अनेक उम्मीदवार शामिल हुए जो उक्त कसौटियों पर खरे ही नहीं उतरते थे। प्रोफेसर पद के साक्षात्कार में शामिल अनेक उम्मीदवार भी इसी प्रकार निर्धारित मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। विश्वविद्यालय ने पूरी भर्ती प्रक्रिया को अत्यंत गोपनीय तरीके से संपन्न किया। सरकारी छुट्टी वाले दिनों में भी साक्षात्कार आयोजित किए गए। जबकि सच तो यह है कि इस तरह की नियुक्तियों को वेबसाइट पर दिखाते हुए पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता अपनाना अत्यंत आवश्यक है। लगभग 8-10 माह तक लगातार प्रदर्शन एवं हड़ताल के बावजूद कुठियाला द्वारा इस संबंध में कोई ठोस कदम न उठाना कई सवाल खड़े करता है। भारी भरकम नियुक्तियों के चलते आने वाले दिनों में विश्वविद्यालय पर 22 करोड़ रुपए सालाना का अतिरिक्त वित्तीय बोझ भी बढ़ जाएगा। इतने सारे पद सृजित करने का औचित्य समझ से परे है। अब देखना यह है कि बिशनखेड़ी स्थित विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में विकास व निर्माण के लिए कुलपति ने जो 129 करोड़ की भारी-भरकम योजना तैयार की है उसे अंजाम देने के लिए कुलपति का कार्यकाल बढ़ाया जाता है या नहीं क्योंकि तैयारी तो कुलपति ने पूरी कर ली है और अपनी सेटिंग भी जमा ली है।

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