03-Mar-2014 09:41 AM
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अरविंद केजरीवाल ने पहले तो मीडिया की खबर ली की वह उन्हें पर्याप्त कवरेज नहीं दे रहे हैं क्योंकि भाजपा और कांग्रेस ने मीडिया वालों को पैसे खिला दिए हैं। लेकिन इससे भी बात नहीं बनी तो

एक नया शिगूफा छेड़ दिया कि ओपिनियन पोल गलत हैं और उनसे छेड़छाड़ की जाती है। दरअसल केजरीवाल की इस नई घोषणा के पीछे योगेन्द्र यादव का दिमाग है जो सेफालॉजी के मास्टर कहे जाते हैं। कभी योगेन्द्र यादव बताया करते थे कि देश में किस पार्टी की हवा है और कांग्रेस ने उन्हें अधिकृत तौर पर इसी काम के लिए नियुक्त कर रखा था, लेकिन कांग्रेस से अलग होने के बाद अब योगेन्द्र यादव खुले रूप में भले ही न कहें, लेकिन कहीं न कहीं अरविंद केजरीवाल के मार्फत कुछ ऐसा जरूर कहलवा रहे हैं जिससे कांग्रेस को फायदा हो। टेलीविजन चैनलों और समाचार पत्रों द्वारा जारी किए जा रहे सर्वेक्षणों पर उंगली उठाना इसी रणनीति का हिस्सा है। केजरीवाल ने मांग की है कि न्यूज ब्रॉड कास्टर स्टेंडर्ड अथॉरिटी और एडिटर्स गिल्ड को इन सर्वेक्षणों की जांच करनी चाहिए। दरअसल पिछले कुछ सर्वेक्षणों में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता लगातार रसातल में जाती दिख रही है। दो माह पहले जहां देश में उसे 10 सीट मिलने की संभावना जताई जा रही थी अब सर्वेक्षणों में यह घटकर 1 की संख्या में आ गई है। आम आदमी पार्टी ने 350 चेहरे लोकसभा चुनाव में प्रस्तुत करने का फैसला किया है। जिसमें से पहली सूची जारी भी कर दी गई है। इस सूची में बड़े-बड़े नाम है, लेकिन इसके बाद भी सर्वेक्षणों में कुल एक सीट का दिखना आम आदमी पार्टी की रणनीति के लिए घातक है। एक तरह से यह उसकी पराजय ही है। यद्यपि दिल्ली में अभी भी 59 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में अगली बार भी केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को विजय मिलेगी, लेकिन दिल्ली के अलावा बाकी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी की मौजूदगी न के बराबर है। देश में 8 प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी को मिल सकते हैं, यह दावा किया जा रहा है, लेकिन सच्चाई इससे अलग है। दरअसल नोटा के बटन पर भी कई राज्यों में बहुत सी विधानसभा सीटों में 8 से 10 प्रतिशत वोट पड़े। इसलिए यह कहा जाता है कि जिन लोगों का मौजूदा राजनीतिक दलों से मोहभंग है वे या तो नोटा का चुनते हैं या फिर आम आदमी पार्टी को। बहरहाल इतना सब होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में मार्ग तलाशने की कोशिश की है। दिल्ली की सरकार त्यागने के बाद अरविंद केजरीवाल जिस करिश्माई गति से राष्ट्र की राजनीति में आगे बढऩे का प्रयास कर रहे थे उस पर फिलहाल विराम लगा हुआ है। आम आदमी पार्टी का वजूद मीडिया की सुर्खियों में था। लेकिन फिलहाल मीडिया को दूसरे मसाले मिल गए हैं और मीडिया की स्मृतियों में अब केजरीवाल सर्वोच्च प्राथमिकता पर नहीं हैं। वैसे भी जनता एक ही चेहरे को देखकर उब जाती है। इसलिए आम आदमी पार्टी के कुछ नेता लगातार प्रयास कर रहे हैं कि सुर्खियों में बने रहें। मुकेश अंबानी को लेकर अरविंद केजरीवाल का अभियान जारी है। उन्होंने नरेंद्र मोदी से पत्र लिखकर पूछा है कि मुकेश अंबानी द्वारा महंगी गैस बेचने की योजना के विषय में मोदी का क्या विचार है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है वह स्पष्ट कर चुकी है कि अंबानी के साथ सरकार का सौदा पारदर्शी है और उसमें कोई घालमेल नहीं है। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम एक टेलीविजन चैनल को साक्षात्कार में बता चुके हैं कि गैस की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार के मुकाबले बहुत कम दर पर तय की गई है। चिदंबरम का कहना है कि अंबानी 8 डॉलर प्रति यूनिट की कीमत लगा रहे हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 14 डॉलर प्रति यूनिट की कीमत है। इसलिए अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाने की बात गलत है। उधर भारतीय जनता पार्टी के चंदन मित्रा पहले ही दोहरा चुके हैं कि यदि अंबानी को सरकार द्वारा कोई विशेष सुविधा या लाभ दिया जा रहा है या महंगे मोल पर गैस खरीदी जा रही है तो यह गलत है। प्रश्न यह है कि अंबानी के साथ कीमतों को लेकर जवाबदेही सरकार की है। ऐसे में नरेंद्र मोदी से सवाल करके केजरीवाल क्या सिद्ध करना चाहते हैं। क्या वे नरेंद्र मोदी को व्यापक राष्ट्रीय फलक पर अभी से देखने लगे हैं। मोदी जवाबदेह तब होंगे जब वे सरकार बनाएंगे। फिलहाल उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। एक नागरिक होने के नाते वे अपनी राय प्रकट कर सकते हैं, लेकिन अपनी राय प्रकट करने के लिए उन्हें केजरीवाल के पत्र की आवश्यकता नहीं है।
केजरीवाल ने और भी कई मुद्दे उठाए हैं। जिनका सार यह है कि सभी राजनीतिक दलों में भ्रष्टाचार पनपता जा रहा है और सभी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से मुंह मोड़ रहे हैं। अकेले आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ सर तानकर खड़ी हुई है। बहरहाल आम आदमी पार्टी ने आम चुनाव के लिए कई दिग्गजों के खिलाफ लोकप्रिय चेहरों को उतारकर लोकसभा चुनाव की लड़ाई दिलचस्प बना दी है। जैसे चांदी चौक में कपिल सिब्बल के खिलाफ पत्रकार आशुतोष चुनाव लड़ेंगे। ये आशुतोष वही हैं जिन्होंने अंबानी के प्रभाव वाले एक न्यूज चैनल में वर्षों तक काम किया है। अब आशुतोष उस पार्टी के प्रमुख चेहरों में से एक हैं जो अंबानी को पानी पी-पीकर कोस रही है। उत्तरप्रदेश में फर्रुखाबाद में सलमान खुर्शीद के मुकाबले मुकुल त्रिपाठी चुनावी मैदान में होंगे। मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मैनपुरी से बाबा हरदेव मैदान में हैं। सुरेश कलमाड़ी का मुकाबला पुणे में समाजसेवी सुभाष वारे से होगा। नितिन गडकरी को नागपुर में अंजली दमानिया से जूझना होगा। अंजली दमानिया आरटीआई एक्टीविस्ट हैं जिन्होंने गडकरी के पूर्तिग्रुप का भांडा फोड़ किया था। बागपत (उत्तरप्रदेश) में आरएलडी के अजीत सिंह का मुकाबला करेंगे सौमेंद्र ढाका। राहुल गांधी के मुकाबले अमेठी में कुमार विश्वास को उतारा गया है। मुरली देवड़ा को महाराष्ट्र में मुंबई साउथ से मीरा सान्याल से मुकाबला करना होगा। मध्यप्रदेश में खंडवा से सांसद अरुण यादव के मुकाबले एक्टिविस्ट आलोक अग्रवाल को उतारकर आम आदमी पार्टी ने मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। लुधियाना में मनीष तिवारी के सामने हरविंदर सिंह फूलका मुकाबले में होंगे और उधर उत्तरप्रदेश में मुरादाबाद में अजहरुद्दीन का मुकाबला करेंगे खालिद परवेज।
पहली सूची में 25 नाम हैं, जिनमें हरियाणा से इंद्रजीत सिंह के मुकाबले योगेन्द्र यादव और मुंबई नार्थ से गुरुदास कामथ के मुकाबले मयंक गांधी तथा मुंबई नार्थ ईस्ट से संजय दीना पाटिल के मुकाबले मेधा पाटकर के नाम सामने आने से तय हो गया है कि इस बार दिग्गजों को आम आदमी पार्टी चैन से नहीं बैठने देगी। नरेंद्र मोदी कहां से चुनाव लड़ेंगे इस पर आम आदमी पार्टी की नजर रहेगी। समझा जाता है कि नरेंद्र मोदी के मुकाबले केजरीवाल स्वयं सामने आ सकते हैं। हालांकि उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी की सरकार में मंत्री रही राखी बिड़ला भी चुनावी मैदान में उतारी जा सकती हैं। फिलहाल आम आदमी पार्टी की दूसरी सूची जारी नहीं हुई है, लेकिन दूसरी सूची में कुछ वजनदार नाम अवश्य रहेेंगे, जिनमें महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। यदि केजरीवाल मैदान में नहीं उतरे तो राजमोहन गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले चुनाव लडऩे के लिए मनाया जा सकता है। राजमोहन गांधी ने हाल ही में आम आदमी पार्टी की सदस्यता गृहण की है वे महात्मा गांधी के सबसे छोटे सुपुत्र देवदास गांधी के पुत्र हैं। 78 वर्षीय राजमोहन गांधी विख्यात लेखक और अकादमिक विद्वान हैं। राजनाथ सिंह पहले ही कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे इसलिए आम आदमी पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते आदर्श शास्त्री, उद्योगपति राजीव बजाज, ख्यातिनाम गायक रब्बी शेरगिल जैसे नामों पर भी चर्चा चल रही है। अरविंद केजरीवाल ने साफ किया है कि वे पूंजीवाद के विरोधी नहीं हैं। इसलिए केजरीवाल की लिस्ट में बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज का नाम आना आश्चर्य का विषय नहीं है। शेरगिल को अमृतसर से नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ लाने की योजना है। वही राखी बिड़ला अजय माकन के खिलाफ नई दिल्ली से चुनाव लड़ सकती हैं। लखनऊ में आदर्श शास्त्री भाजपा और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ सकते हैं। आदर्श ने एप्पल जैसी प्रतिष्ठित कंपनी की नौकरी छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थामा है। आम आदमी पार्टी की सूची देखकर लगता है कि नाम भले ही आम आदमी पार्टी हो, लेकिन चुनावी टिकिट खास लोगों को ही दिए गए हैं। अधिकतर वे नाम हैं जो समाजसेवी के क्षेत्र से जुड़े रहे और किसी न किसी वजह से चर्चा में रहे। बीच में यह खबर भी उड़ी थी कि बस्तर की एक्टीविस्ट सोनी सोरी को भी चुनाव लड़वाया जाएगा जो कभी नक्सलियों का साथ देती थीं। लेकिन सोनी सोरी पार्टी में तो आईं पर फिलहाल उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया है। चिदंबरम पर जूता उछालने वाले जरनैल सिंह को प्रत्याशी बनाकर आम आदमी पार्टी क्या संदेश देना चाहती है समझ से परे है। किसी भी सम्मानित व्यक्ति पर जूता उछालना भले ही वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न किया गया हो। एक गलत कार्य ही है। अपराधी मनोवृत्ति का व्यक्ति ही ऐसे काम को अंजाम देता है। केजरीवाल इस तरह के लोगों को महज चर्चा में बने रहे के लालच से चुनावी टिकिट दे रहे हैं। यह राजनीति के शुद्धिकरण की शुरुआत तो नहीं कहीं जा सकती। आम आदमी पार्टी में भी कई विरोधाभाष हैं जैसे मुंबई में चुनाव लड़ रही मेधा पाटकर और मीरा सान्याल एक दूसरे की घोर विरोधी रही हैं। जिस समय सान्याल रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की प्रमुख थीं। उस समय मेधा पाटकर एनरॉन जैसे प्रोजेक्ट की मुखालफत कर रही थीं। सान्याल और पाटकर दो विपरीत मंच पर थीं। सान्याल उस बैंक मेंं महत्वपूर्ण अधिकारी थी जो एनरॉन प्रोजेक्ट को वित्तीय सहायता दे रहा था। प्रश्न यह भी उठता है कि मेधा पाटकर जैसी एक्टिविस्ट यदि किसी राजनीतिक दल से जुड़ती हैं और वह देश के विकास के लिए फिर उन्हीं परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाता है जो जन विरोधी हैं तो मेधा पाटकर या उनके जैसे अन्य लोग किस मुंह से मैदान में जाएंगे। जनता को क्या उत्तर देंगे। कई एक्टिविस्ट राजनीति में आने को उतारू हैं। क्या इसे देखकर कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में बदलाव आएगा। यदि राजनीति इसी ढर्रे पर चली तो देश का बंटाधार होना तय है। आम आदमी पार्टी ने तमाम लोगों को एकत्र कर लिया है, जिनमें से सब खास हैं। किसी न किसी वजह से चर्चित रहे हैं। आम आदमी पार्टी को पता है कि चर्चित चेहरों पर ही दांव लगाया जा सकता है। इसलिए उसने उन लोगों को चुना जिन्हें कम से कम जनता एक्टिविस्ट के रूप में जानती है। उसकी पहली सूची में तो कोई भी अनजान नाम नहीं है। देखना है दूसरी सूची क्या गुल खिलाती है।