03-Mar-2014 09:03 AM
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यूपीए सरकार के विदाई बजट में केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने भारत की जनता को शगुन देने की कोशिश की है। बड़े बुजुर्ग विदा होते हुए छोटे बच्चों के हाथों में कुछ रखते हैं। हाथ खर्चें के लिए

कि वे मीठा-नमकीन खरीदकर खा लें या कोई खिलौना ले लें। संसार के विख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह अगली बार प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे और चिदम्बरम का भविष्य भी सुनिश्चित नहीं है। इसलिए उन्होंने कुछ सौगातें भारत की जनता को लॉलीपॉप की शक्ल में देने की कोशिश की है, लेकिन बेहतर रहता यदि वे कोई टिकाऊ व्यवस्था इस बजट में कर दिखाते। फिलहाल तो यह बजट एक झूठा वादा ही लग रहा है। वैसे भी अंतरिम बजट होने के कारण सरकार की कुछ सीमाएं तो थी ही उनके आगे वह जा भी नहीं सकती थी।
बता दें कि अंतरिम बजट में आमतौर पर सरकार बड़े फैसले करने से परहेज करती है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक वित्तीय लेखानुदान में सरकार कोई बड़ा निर्णय नहीं लेती है। सरकार महज तीन-चार महीने के व्यय के लिए धनराशि की मांग रखती है। चूंकि यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की स्थिति खस्ताहाल है। इसलिए लोकलुभावन वित्तीय लेखानुदान पेश करने के अलावा सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था।
माना जा रहा है कि ईंधन सब्सिडी देने से 15 करोड़ एलपीजी ग्राहक, दो पहिया व चार पहिया वाहन मालिक, व्यापारी, किसान आदि को फायदा होगा। सेना के कर्मचारियों के लिए समान पद, समान पेंशन योजना को मंजूरी देकर वित्त मंत्री ने सेना में अलग-अलग पद से सेवानिवृत हुए लोगों के पेंशन में व्याप्त फर्क को खत्म करने की कोशिश की है, जिसका लाभ सेना से सेवानिवृत 25 लाख लोगों के परिवार को मिलेगा। कहा जा रहा है कि श्री चिदंबरम के इस सुधारात्मक कदम से एक परिवार में औसतन 4 सदस्यों के हिसाब से कुल एक करोड़ लोगों को फायदा पहुंचेगा।
अपने इस अंतरिम बजट में चिदंबरम ने कृषि कर्ज में ब्याज अनुदान को जारी रखने का ऐलान किया है। इस क्रम में 1.80 लाख करोड़ रूपये के उर्वरक पर छूट की राशि किसानों में वितरित की जायेगी। यूपीए सरकार जानती है कि वर्ष 2008 में किसानों को बांटे गये कृषि कर्ज माफी की राशि की वजह से ही वह दोबारा सत्ता में आ पाई थी। इस बार फिर से वह अपना वही पुराना दांव आजमाना चाहती है। गौरतलब है कि हमारे देश की 65-70 करोड़ जनता अभी भी कृषि पर निर्भर है और उनका जीवनयापन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कार्यों से ही चल रहा है। आज भले ही हम दावा करें कि हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में आने वाला है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती-किसानी का काम कर्ज की मदद से ही कर रहे हैं। ब्याज में रियायत मिलने से किसान तबके को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। कहने के लिए भारत जरूर कल्याणकारी देश है, लेकिन यहाँ गरीबों का कल्याण सिर्फ वोट के लिए किया जाता है। सरकार जानती है कि बैंकों से जोड़कर ही समाज के इस वर्ग को अपने पक्ष में किया जा सकता है। वित्तीय समावेशन या ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के विस्तार का मर्म वास्तव में यही है।
एक आंकलन के मुताबिक तकरीबन नौ लाख पढ़े-लिखे युवाओं को शिक्षा ऋण दिया गया है। कुछ वर्षों से मंदी के कारण युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है, जिसके कारण शिक्षा ऋण बड़ी संख्या में एनपीए हो रहे हैं तथा ब्याज एवं किस्त जमा करने के लिए बैंककर्मी युवाओं पर लगातार दबाव बना रहे हैं। इसलिए इस वर्ग को राहत देने के लिए वित्त मंत्री ने 31 मार्च 2009 से पहले लिए गये शिक्षा ऋण पर प्रभारित ब्याज में रियायत देने के लिए 2600 करोड़ का प्रावधान किया है, जिसके तहत 31 मार्च 2009 से दिसंबर, 2013 के बीच प्रभारित ब्याज का भुगतान सरकार करेगी। जाहिर है युवाओं के परिवार को भी इसका लाभ मिलेगा। युवाओं पर डोरे डालने के लिए वित्त मंत्री ने 10 करोड़ नौकरियाँ देने की बात भी कही है और कौशल विकास के लिये उन्होंने 1000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है।
वित्तीय लेखानुदान के पहले यह कयास लगाया जा था कि वित्त मंत्री अप्रत्यक्ष कर में कोई बदलाव नहीं करेंगे, लेकिन चुनावी रथ पर सवार श्री चिदंबरम ने मध्यम वर्ग को रिझाने के लिए उत्पाद शुल्क में नाममात्र की कटौती की है। उत्पाद शुल्क कम करने से छोटी कार, दो पहिया वाहन, मोबाइल हैंडसैट, कम्प्युटर, प्रिंटर, स्कैनर, एयरकंडीशन, फ्रिज, माइक्रोबेव ओवन, डिजिटल कैमरा आदि सस्ते हो जायेंगे। चिदंबरम इतने पर भी नहीं रुके, उन्होंने सीमा शुल्क के कुछ मदों में भी राहत दी, मसलन, साबुन बनाने वाले रसायन का आयात। साथ ही, कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए धान, चावल आदि के भंडारण, पैकिंग, ढुलाई आदि को सेवाकर से बाहर कर दिया। चूंकि प्रत्यक्ष कर में बदलाव करना एक अतिवादी कदम माना जाता, इसलिए बमुश्किल चिदंबरम ने इस परिप्रेक्ष्य में अपने पर काबू रखा, अन्यथा आयकर में वे जरूर मध्यम वर्ग को रिझाने वाला फेरबदल करते। महिलाओं को खुश करने के लिए वित्त मंत्री ने निर्भया कोष में भी 1000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है।
अल्पसंख्यक, महिला व बाल विकास, दलित एवं पिछड़ों से जुड़े मंत्रालयों के बजट में इजाफा करके चिदंबरम ने यह जताने की कोशिश की यूपीए सरकार हर वर्ग का ख्याल रखती है। दरअसल, यूपीए सरकार यह मानकर चल रही है भारत की जनता तोहफों की बारिश में सराबोर होकर उसके रंग में रंग जायेगी। इसलिए अंतरिम बजट पेश करने से पहले ही उसने सातवें वेतन आयोग के गठन का ऐलान कर दिया था। वह जानती है कि देश में केन्द्रीय कर्मचारियों की संख्या लगभग 40 लाख है। इस संबंध में कर्मचारियों के परिवार की औसत सदस्य संख्या यदि चार माना जाए तो 1.60 करोड़ लोगों को वेतनवृद्धि का फायदा मिलेगा। चिदंबरम एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वे नफा-नुकसान का आंकलन करके ही कोई कदम उठाते हैं। विदित हो कि सरकारी बैंक कर्मचारियों का वेतनवृद्धि होना नवंबर, 2012 से लंबित है। यूनियन और सरकार के बीच बीते सालों में हुई अनेक वार्ता सरकार के अडिय़ल रुख की वजह से विफल हो चुकी है। चिदंबरम जानते हैं देश में सरकारी बैंक कर्मचारियों की संख्या तकरीबन आठ लाख है। स्पष्ट है अगर बैंक कर्मचारियों की मांग मानी जाती है तो वह सरकार के लिये फायदेमंद सौदा नहीं होगा, क्योंकि इस वर्ग के नाममात्र वोट
से यूपीए सरकार को बहुत फायदा नहीं हो
सकता है।
मौजूदा समय में देश की अर्थव्यवस्था एक नाजुक दौर से गुजर रही है। बीते दिनों से महंगाई के आंकड़ों में जरूर कुछ कमी आई है, पर रिजर्व बैंक का आंकलन है कि महंगाई का दौर अभी जारी रहेगा। महंगाई एवं मुद्रास्फीति की वजह से बीते सालों से आम आदमी हलकान है। स्थिति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक लगातार कोशिश कर रहा है। इस आलोक में अंतरिम बजट की मदद से वित्त मंत्री वित्तीय मजबूती के लिए प्रयास कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। 17.63 करोड़ रुपए के इस अंतरिम बजट में सिर्फ चुनाव पर निशाना साधा गया है। अब चुनाव में महज 60 दिन बच गये हैं। ऐसे में शिक्षा ऋण में राहत, महिला सुरक्षा के नाम पर 1000 करोड़ रूपये देना, कृषि कर्ज में ब्याज अनुदान को जारी रखना, उर्वरक पर बढ़ी हुई सब्सिडी, समान पद, समान पेंशन योजना आदि घोषणाएं चुनाव में कितने कारगर साबित होंगे, यह कहना फिलहाल मुनासिब नहीं होगा। फिर भी यह माना जा सकता है कि मौजूदा समय में जनता के बीच जागरूकता बढ़ी है। वह जानती है कि 10 सालों में 10 करोड़ नौकरियां देने की बात करना, सब्जबाग दिखाने के समान है। 4 महीनों के लेखानुदान में ऐसा करना संभव नहीं है। विकास दर भी वर्तमान में 4.8 प्रतिशत है। इस दर में इतनी नौकरियों का सृजन नहीं हो सकता है। कौशल विकास के नाम पर कोष का प्रावधान करना भी केवल दिखावा है। विगत सालों में रोजगार के अवसर और भी कम हुए हैं। 2013 में बेरोजगारी दर 3.37 प्रतिशत थी, जो 2014 में बढ़कर 3.8 हो गई है। निर्भया कोष में 1000 करोड़ रूपये देना केवल रस्म अदायगी का हिस्सा है। इस कोष में पूर्व में आवंटित की गई राशि अभी तक खर्च नहीं की जा सकी है। सरकार ने इन घोषणाओं से साबित कर दिया है कि यह अंतरिम बजट पूरी तरह से लोकलुभावन है। वैसे देश के समग्र विकास के लिए राजनेताओं को इस तरह की ओछी रणनीति से बचना चाहिए।