तीसरे मोर्चे का शिगूफा
15-Feb-2014 10:53 AM 1234778

हाल ही में दिल्ली में जब 11 गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से बैठक करके संसद में जनहित से जुड़े मुद्दे उठाने का संकल्प किया तो जनता को और राजनीतिक विश्लेषकों को लगा कि एक बार फिर लगभग 365 दिनों के लिए तीसरा मोर्चा गठित हो सकता है। दरअसल तीसरा मोर्चा एक ऐसा उत्पाद है जिसकी एक्सपायरी डेट 12 माह से अधिक नहीं रहती। इसीलिए जब इन दलों के नेता दिल्ली में मिले तो केवल इतना ही कहा गया कि आगामी लोकसभा चुनाव के परिणामों की धुंधली तस्वीर कुछ दलों को साथ आने के लिए प्रेरित कर रही है। वर्ष 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे को सरकार बनाने का मौका मिला था, लेकिन उस समय बाहर से समर्थन दे रही भारतीय जनता पार्टी के रहमोकरम पर वह सरकार जिंदा थी और बाद में कांग्रेस ने कुछ समय सरकार को समर्थन दिया। लगभग दो-ढाई वर्ष तक सरकारों के बदलने का नाटक चलता रहा और इस चक्कर में देवेगौड़ा जैसे राजनीतिज्ञों को भी प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल गया जो ब्लॉक लेवल की समझ रखते थे। इस बार भी कमोबेश वही हालात हैं, लेकिन मजबूरी यह है कि भाजपा और कांग्रेस में से किसी एक को साथ लिए बगैर तीसरे मोर्चे की सरकार संभव नहीं है। इसलिए तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने से पहले दो-तीन छतरियां भी तैयार करनी होंगी।
एक छतरी धर्मनिरपेक्षता की है जिसके नीचे नीतिश, मुलायम, लालू से लेकर जयललिता, माया और ममता भी पनाह मांग सकते हैं। दूसरी छतरी मराठा सरदार शरद पवार तैयार करने की जुगत में हैं, जिसके अस्थि-पंजर भाजपा के समर्थन से निर्मित हो सकते हैं और एक तीसरी छतरी चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में भी तैयार हो सकती है। जिसके नीचे दक्षिण के अधिकांश राजनीतिक दल तथा भाजपा या कांग्रेस हो सकती है। छतरी कोई भी हो छतरी को आधार और संतुलन प्रदान करने के लिए भाजपा अथवा कांग्रेस को आगे आना ही होगा। इस प्रकार लगभग दो-ढाई वर्ष कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा की बैशाखियों पर यह सरकार टिकी रहेगी और जब इन दलों को लगेगा कि जनता का मन इस भानुमति के कुनबे से भर चुका है तो फिर बड़े आराम से सरकार गिरा दी जाएगी और मध्यावधि चुनाव में मोदी अथवा राहुल में से किसी एक को चुनने का आव्हान होगा। इस वर्ष के मई माह में यदि देश की जनता ने स्पष्ट जनादेश नहीं दिया तो राजनीतिक अस्थिरता के चलते संभवत: वैसे ही हालात पैदा हो जाएं जब देश को अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन लोकतंत्र के लिए अंग्रेजी में एक कथन है यू हेव टू पे फॉर डेमोक्रेसी। प्रजातंत्र की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। तीसरे मोर्चे के बैनर तले विभिन्न राजनीतिक दलों का एकत्रीकरण आने वाली खर्चीली राजनीति का श्रीगणेश है। कांग्रेस इसे लेकर बिल्कुल भी चिंतित और सतर्क नहीं है। क्योंकि उसे पता है कि आगामी सरकार बनाना उनके बस में नहीं है, लेकिन भाजपा के लिए अवश्य यह एक चिंता का विषय है क्योंकि नरेंद्र मोदी को जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने सुर्खियों से बेदखल कर दिया है उसी तरह तीसरा मोर्चा इतनी ताकत तो रखता ही है कि वह उन्हें सत्ता में आने से रोक दे। जयललिता की वामदलों के साथ मित्रता का अर्थ यह भी हो सकता है। जयललिता का कदम मामूली नहीं है और इस कदम ने नरेंद्र मोदी को सचेत भी किया है। उन्होंने कोलकाता में ममता बनर्जी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। बल्कि तीसरे मोर्चे से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर उनका निशाना भरपूर रहा। बहरहाल दिल्ली में जब जनता दल एसके एचडी देवेगौड़ा, एआईडीएमके के एम थंबीदुरई, सीपीएम के बसुदेव अचारिया, जनतादल यूनाइटेड के केसी त्यागी। बीजू जनता दल के जय पांडा, एजीपी के बिरेन बैश्य, सीपीआई के डी राजा, आरएसपी मनोहर टिर्की, फारवर्ड ब्लॉक के बरुण मखुर्जी और समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने सक्रियता दिखाई तो लगा कि कहीं न कहीं कोई गंभीर पहल तो हो रही है और इस पहल ने नरेंद्र मोदी को चिंतित किया है। उनकी चिंता जायज भी हैं। यह लगभग साफ है कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को काफी नुकसान हो सकता है और भाजपा फायदे में रहेगी। लेकिन यह भी साफ है कि कुछ राज्यों को छोड़कर भाजपा देश के दूसरे इलाकों में कोई खास मौजूदगी नहीं रखती। ऐसे में वोटर जाएगा कहां? भाजपा और कांग्रेस से इतर जो दल हैं, वो काफी वक्त से एक साथ मिलकर चुनौती देने का मन बना रहे थे और जब मोदी कोलकाता में भाषण दे रहे थे, ठीक उसी वक्त दिल्ली में तीसरा मोर्चा औपचारिक आकार ले रहा था। मोदी को इल्म है कि यह मोर्चा क्या जलवे दिखा सकता है। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत बंगाली भाषा से की और गुरु रवींद्रनाथ टेगोर की आमार सोनार बांगलाÓ अवधारणा का जिक्र कर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। हमले की शुरुआत कांग्रेस से की, लेकिन जल्द ही अपनी तोप का मुंह तीसरे मोर्चे की ओर घुमा दिया। भाजपा के पीएम पद के दावेदार ने कहा, वक्त आ गया है कि तीसरे मोर्चे के विचार को भारतीय राजनीति से हमेशा के लिए विदा कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में तीसरे मोर्चे से जुड़े दल सत्ता में रहे, वे पिछड़ते चले गए। कोलकाता में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में आयोजित रैली में उन्होंने कहा, वाम मोर्चे के नेताओं को देखने दीजिए कि हवा किस तरफ बह रही है। भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों के बाद सरकार बनाने जा रही है। तीसरे मोर्चे के घटक दलों पर सीधा हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, चुनावों से ठीक पहले ये सेकुलर की माला जपने लगते हैं। जबकि देख लीजिए कि जहां-जहां इनके दलों ने शासन संभाला है, वहां का क्या हाल हुआ। मोदी ने कहा, च्च्तीसरा मोर्चा बनाने के पीछे जो विचार है, वो यह है कि इस देश को तीसरे दर्जे का मुल्क बनाया जाए। पूर्वी भारत के राज्य पिछड़े हैं, क्योंकि यहां तीसरे मोर्चे से जुड़े राजनीतिक दलों ने सत्ता संभाली है। गुजरात के सीएम ने कहा, देश के पश्चिमी छोर पर जो राज्य हैं, वहां आपको विकास दिख जाएगा। लेकिन पूर्व में जहां-जहां ये दल रहे हैं, वहां कोई विकास नहीं हुआ। उन राज्यों को पिछड़ा बनाकर छोड़ दिया। नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब कभी चुनाव आते हैं, तीसरे मोर्चे से जुड़े ये दल गरीब लोगों की बात करने लगते हैं और सेकुलरिज्म की चर्चा पर उतर आते हैं। लेकिन ऐसा सिर्फ चुनावी मौसम में होता है। उन्होंने कहा, इन दलों ने कभी इस बात की कोशिश नहीं की कि विकास का फायदा मुसलमानों तक पहुंचे। मुस्लिमों को उन्होंने हमेशा वोटर के रूप में देखा है, जिससे चुनाव में फायदा हो सके। मोदी ने दावा किया कि अल्पसंख्यकों की प्रति व्यक्ति आय सबसे ज्यादा गुजरात में है। उन्होंने कहा, सरकार के लिए मजहब की सिर्फ एक किताब होनी चाहिए और वो है संविधान। उसे सिर्फ राष्ट्रवाद में यकीन करना चाहिए। नरेंद्र मोदी ने तीसरे मोर्चे को कांग्रेस को बचाने का कवच बताया है। एक तरह से नरेंद्र मोदी सच ही बोल रहे हैं क्योंकि तीसरा मोर्चा जब-जब फ्लाप होता है कांग्रेस ही सत्ता में आती है। इसीलिए इस बार भी यह प्रयोग कहीं कांग्रेस की वापसी के लिए तो नहीं किया जा रहा है।
तीसरा मोर्चा उसी सूरत पर गठित हो सकता है जब घटक दलों में चुनाव पूर्व कोई समझौता हो इससे जनता में यह संदेश जाएगा कि उनके समक्ष कोई तीसरा विकल्प भी है। फिलहाल तो ऐसी कोई संभावना दिखाई नहीं देती क्योंकि सभी अलग भाग रहे हैं। यदि एक ही दिशा में सारे दल चले तो कांगे्रस भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि इनकी दिशा कौन तय करे।

ममता के लिए प्रचार करेंगे अन्ना
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे आने वाले चुनाव में नरेंद्र मोदी की जगह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है अगर ममता प्रधानमंत्री बनती हैं तो भ्रष्टाचार रुकेगा। हमें उनमें आशा की किरण दिखाई देती है। यदि लोग ऐसे नेताओं का समर्थन करने लगें तो देश को बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अन्ना के अनुसार, ममता बनर्जी ने चार्टर बिल के सभी बिंदुओं पर सहमति जताई है। अन्ना ने कहा कि वह केजरीवाल का समर्थन भी इस बिल पर उनकी सहमति के बाद ही करेंगे। अभी तक नरेंद्र मोदी ने चार्टर बिल पर कोई जवाब नहीं दिया है।

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