03-Mar-2014 08:59 AM
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अध्यात्म का सम्बन्ध जीवन के आन्तरिक पक्ष से है और धर्म का सम्बन्ध जीवन के बाह्य पक्ष से। धर्म हमारे आचरण का आधार है तो अध्यात्म हमारे जीवन का प्रकाश है। धर्म का पालन कर हम

जीवन को बहुत सुन्दरता से जी सकते हैं, तो अध्यात्म का पालन कर हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते है और जीवन के वास्तविक लक्ष्य को हासिल करते हुए आवागमन के (बन्धन) चक्कर से मुक्त हो सकते हैं। धर्म अगर धारयति इति धर्म: है तो अध्यात्म आत्मा का परमात्मा में मिलन है। जब आत्मा सतगुरु की कृपा से परमात्मा को प्राप्त लेती है तो वह आवगमन के चक्करों से मुक्त हो जाती है उसे बार - बार जन्म नहीं लेना पड़ता तो यह अध्यात्म की चरम अवस्था है। सबसे पहली बात तो यह कि हम धर्म और अध्यात्म के वास्तविक अर्थों को समझ पायें। धर्म के आधार पर हम हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि आदि हो सकते हैं। लेकिन अध्यात्म के आधार पर नहीं। यह बात अलग है कि धर्म के मूल में अध्यात्म नहीं हो सकता है लेकिन अध्यात्म के मूल में धर्म अवश्य रहा है।
हम संसार के किसी भी प्राणी को देख लें। सबमें जब हम ईश्वर का रूप देखते हैं तो हम अध्यात्म की और अग्रसर होते हैं और अगर हम भिन्नता देखते हैं तो धर्म की और धर्म के आधार पर हम हिन्दू है, मुस्लिम हैं, ईसाई है, जैन हैं लेकिन आध्यात्म के आधार पर नहीं। धर्म ने हमारी भाषा को अलग किया, खान-पान को अलग किया, रीति रिवाजों को अलग किया, पहरावे को अलग किया और भी कई ऐसी भिन्नताएं हैं जो धर्म के कारण यहाँ फैली हैं , लेकिन यह बात भी सच है कि धर्म का मूल मंतव्य यह नहीं था। धर्म का मूल मंतव्य तो यह था कि इंसान - इंसान के करीब आये वह दुसरे के हित के लिए हमेशा कार्य करे अपनी इच्छाओं का त्याग करते हुए जीवन को मानवता के लिए समर्पित करे। कोई भी धर्म ऐसा नहीं जिसे इंसान को इंसान बनने की सीख न दी हो।
लेकिन वर्तमान में जब देखता हूँ तो पाता हूँ कि धर्म के नाम पर हम कट्टर हो गए हैं। हम धर्म के वास्तविक मायनों को भूल गए हैं और आज जितने झगडे धर्म के कारण हो रहे हैं उतने शायद किसी और के कारण नहीं... किसी शायर ने क्या खूब लिखा है :
राम वालों को इस्लाम से बू आती है, अहले इस्लाम को राम से बू आती है
क्या कहें दुनिया के हालत है इस कदर,यहाँ इंसान को इंसान से बू आती है
आखिर क्या कारण है कि इंसान को इंसान से ही बू आने लगी और फिर धरती का यह स्वरूप बना। इतिहास गवाह है कि धर्म पर झगड़ों के कारण ही ना जाने कितने इंसानों की जान चली गयी है और आज भी हालात हमारे सामने हैं। ना जाने कितनी विसंगतियां आज हमारे सामने हैं और उनके विपरीत परिणाम भी आज हमें देखने को मिल रहे हैं आये दिन कहीं गोली चल रही है तो , कहीं बम फट रहा है , कहीं किसी को बंधक बनाया जा रहा है तो कहीं कुछ और किया जा रहा है। कुल मिलाकर स्थितियां बहुत दर्दनाक है और इंसान आज इंसान से ही महफूज नहीं है उसे सबसे ज्यादा डर अगर किसी से है तो इंसान से ही है। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक , सांस्कृतिक और धार्मिक परिस्थितयों के आधार पर हममें भिन्नताएं हो सकती हैं लेकिन आध्यात्मिक स्थिति के आधार पर नहीं। लेकिन हम उसे समझने की कभी कोशिश नहीं करते। आइये आध्यात्म के आधार पर देखते हैं कि किस तरह इन भिन्नताओं से निजात पायी जा सकती है और क्या सच में यह भिन्नताएं हैं या नहीं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण इस विषय में अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि-
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय:
अर्थात में सभी प्राणियों में समभाव से व्यापक हूँ । न किसी से द्वेष है , न ही कोई अधिक प्रिय। अब यह स्पष्ट हो गया कि जिसके पास ज्ञान रूपी प्रकाश है उसे सभी अपने ही दिखेंगे कोई भेद नहीं। पदमपुराण के उन्नीसवें अध्याय के 355-356 वें श्लोक में आता है -
श्रुयतां धर्म सर्वस्यं, श्रुत्वा चैवावधार्यातम, आत्म प्रतिकुलानि परेषां न समाचेतत।
अर्थात हे मनुष्य तुम लोग धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो कि - जो हम अपने लिए नहीं चाहते , वह दूसरों के प्रति न करें । क्योँकि जो मैं हूँ वही तुम हो। जब हम इस बात को समझ जाते हैं तो सही मायनों में हम इंसान कहलाते हैं। अध्यात्म के आधार पर हमें इस सृष्टि को समझने की आवश्यकता है। अगर हम सृष्टि के निर्माण को समझ लेते हैं तो फिर मुझे नहीं लगता कि हमें किसी और चीज को समझने की आवश्यकता है।