18-Feb-2014 06:20 AM
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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव से पहले सब कुछ दुरुस्त कर लेना चाहते है। विधानसभा सत्र के दौरान भी उनकी यह जल्दबाजी नजर आई। लेकिन सदन में गिने-चुने कांग्रेसी उनकी जल्दबाजी पर कटाक्ष

करने की हालत में नहीं थे। जो अच्छे वक्ता हुआ करते थे वे भी फिलहाल मौन थे। किंतु शिवराज सिंह चौहान ने 100 दिन के भीतर द्रुत गति से प्रदेश को विकास के पथ पर दौड़ाने का जो सपना दिखाया है वह कैसे साकार होगा यह प्रश्न तो पूछा जा सकता है। क्योंकि नौकरशाही वही है और मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों के खासमखास भी वे ही लोग हैं जो पिछली सरकार में हुआ करते थे। यह कहना अनुचित होगा कि पहले काम नहीं हुआ यदि काम नहीं होता तो बहुमत कैसे मिलता, अब उस काम को गति देने का समय है। इसलिए मुख्यमंत्री दो-टूक शब्दों में कह रहे है कि जो काम करेगा वही पद पर रहेगा। जो काम नहीं करेगा उसका पद लेने के लिए दूसरा तैयार है। इसका अर्थ यह हुआ कि मध्यप्रदेश में मिला बहुमत कहीं न कहीं परेशानी का सबब तो हैं ही और असंतुष्टों की संख्या भी कम नहीं हैं। खासकर वे जिन्हें अन्याय का सामना करना पड़ा ज्यादा दुखी और मुखर हैं। इन्हीं में से एक हिम्मत कोठारी तो भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के समापन से पहले रोने लगे और टिकिट न मिलने का कारण बताया कि पैसे कमाते तो यह हालत नहीं होती। वे तो बैठक से जाने भी लगे थे कि विक्रम वर्मा ने उनको पकड़ कर बिठा लिया। कोठारी के इस कथन से तो अर्थ यही निकलता है कि टिकिट उन्हें ही मिली जिन्होंने पैसा कमाया या खर्च किया। बहरहाल भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने के लिए हेल्पलाइन की घोषणा कर चुके शिवराज को इन घटनाओं से रूबरू तो होना ही पड़ेगा क्योंकि इससे पहले मेनन भी कह चुके हैं कि वे अफीम के खेत में तुलसी के पौधे हैं। अफीम कौन है यह बताने का काम मेनन ने नहीं किया। चुनाव के बाद जिस तरह भाजपा में भितरघातियों की शिकायतें हुई हैं उससे कहीं लगता है कि पार्टी में असंतोष है। रामदयाल अहिरवार भी दुख व्यक्त कर चुके हैं और नए-नए मंत्री बने तथा कई बार जीतकर ताकतवर हुए कुछ मंत्रियों के सुर भी बदले हुए से नजर आ रहे हैं। इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री ने दोहराया है कि जो काम करेगा वहीं रहेगा, जो काम नहीं करेगा उसका बोरिया-बिस्तर बांध दिया जाएगा। इससे सिद्ध होता है कि शिवराज इस बार ज्यादा बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हंै। पिछली बार संगठन का कुछ दबाव उनके ऊपर रहा जिसके चलते उन्हें अप्रिय फैसले भी करने पड़े। मंत्रिमंडल गठन के समय कुछ ऐसे लोगों को शामिल करना पड़ा जिन्हें वे फिलहाल अपनी टीम में जोडऩा नहीं चाह रहे थे, लेकिन अब उन्होंने परफारमेंस के नाम पर सभी को अपनी शक्ति से अवगत करा दिया है पर मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान पर थोड़ा संशय है। क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसी नौकरशाही को साथ लेकर लड़ाई लडऩा उतना आसान नहीं है। 7 हजार करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट तभी लोकसभा चुनाव तक सार्थक परिणाम देगा जब सही तरीके से काम हों। मुख्यमंत्री सड़कें भी खोदकर देख रहे हैं कि गुणवत्ता अच्छी है या नहीं और उधर नौकरशाही को भी कसने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्हें मंत्रियों बड़बोलेपन का भी सामना करना पड़ेगा जैसे परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने बसे चलाने से मना किया तो सरकार बसें खरीदकर चलवा देगी। भूपेन्द्र सिंह ने एक बड़ी हास्यास्पद बात कही कि ट्रांसपोर्टर गाडिय़ों में ओवर लोडिंग कम करें इससे सड़कें खराब नहीं होंगी। सड़कें तो तभी खराब हो सकती हैं, जब वे ठीक हों। प्रदेश की सड़कों को लेकर आम जनता की राय ठीक नहीं है। खासकर शहरी इलाकों में सड़कों की गुणवत्ता सुधारना एक चुनौती है। इस पर मंत्रियों को 100 दिन की कार्ययोजना बनाने का जो जिम्मा सौंपा गया है उसमें निश्चित रूप से दिन-रात मेहनत करनी होगी। यदि कार्य सही गति से चला तो अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं।
100 दिन में यह करेंगे महत्वपूर्ण विभाग
उद्योग : सिंगल विंडो सिस्टम को एक अप्रैल तक ऑनलाइन कर दिया जाएगा। दिल्ली-मुंबई कॉरीडोर और राज्य स्तर पर बने कॉरीडोर में सुविधाएं व इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाएंगे। कटनी-शिवपुरी व राजगढ़ में नेशनल मेनुफेक्चरिंग एंड इनवेस्टमेंट जोन (एनएमआईजेड) बनेगा।
खेल : 17 खेल अकादमियों को सुविधाएं दी जाएंगी।
धर्मस्व : मंदिरों का डाटाबेस (जमीन कितनी है, बाउंड्रीवाल है या नहीं) बनेगा। रतनगढ़ हादसा दोबारा न हो, इसके लिए अभी से रूपरेखा बनाई जाएगी।
जल संसाधन: 100 लघु सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के साथ-साथ नहरों की साफ सफाई कराएंगे।
वित्त: एक हजार करोड़ से अधिक बजट वाले दस बड़े विभागों में वित्तीय सलाहकार की नियुक्ति। तृतीय समयमान वेतन लागू करने की योजना बनेगी।
योजना : जून माह तक दो करोड़ आधार कार्ड बनाने का लक्ष्य पूरा होगा।
वन : 97 हजार 650 हेक्टेयर में पौधरोपण। एक लाख 53 हजार हेक्टेयर वन की पुनस्र्थापना और 71 हजार 809 हेक्टेयर में वनों का पुनरुद्धार। बाघों की सुरक्षा के लिए भोपाल, होशंगाबाद और रायसेन में ई-सर्विलेंस व्यवस्था लागू होगी।
लोक निर्माण : नेशनल हाइवे पर सुविधाओं के लिए सर्विस एरिया बनेंगे। नहरों पर गांव के लिए सड़कें बनेंगी। युवा कांट्रेक्टर योजना में 500 युवाओं को प्रशिक्षण। एक्सीडेंट रिस्पांस सिस्टम बनेगा।
खाद्य: पीडीएस सिस्टम में छत्तीसगढ़ मॉडल लागू होगा। समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी की चाकचौबंद व्यवस्था होगी।
स्वास्थ्य : एक हजार उप स्वास्थ्य केंद्र भवनों का निर्माण प्रारंभ होगा। स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना लागू होगी। साथ ही 1600 प्रसव केंद्र विकसित होंगे। विकासखंडों में 626 मोबाइल चिकित्सा दल बनेंगे।
कृषि: मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना सभी जिलों में लागू होगी। पड़त भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए मेरा खेत-मेरी माटी योजना का क्रियान्वयन होगा।
पशुपालन : पांच सौ नई दुग्ध समिति और चलित पशु चिकित्सा इकाइयों का गठन।
पीएचई : खराब हैंडपंप सुधारने के लिए 15 जनवरी से अभियान चलेगा। एक हजार से ज्यादा की बस्तियों में नल-जल योजना की शुरुआत होगी।
सीताशरण बने विधानसभा अध्यक्ष
सरल सौम्य और निर्विवाद वरिष्ठ नेता सीताशरण शर्मा को मध्यप्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष घोषित किया गया है। उनका निर्विरोध निर्वाचन तय था। 64 वर्षीय सीताशरण को एक ऐसी विधानसभा की अध्यक्षता करनी है जिसमें भाजपा का अच्छा-खासा बहुमत है। इसी कारण उनके कार्यकाल में कोई चुनौती शायद ही आए। 1977 में जनता पार्टी से अपनी राजनीति शुरू करने वाले सीताशरण 1990-93-98 और अब 2013 में चौथी बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए हैं। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव भाजपा के लिए फायदेमंद रहेगा। वैसे सदन में उनकी काबिलियत का परीक्षण होना अभी बाकी है।