चुनावी रेल बजट में यूपी को सौगात
15-Feb-2014 10:51 AM 1234880

यूपीए-2 का अंतिम चुनावी बजट यूपी केंद्रित था। ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं है। 73 में से 11 टे्रनें उत्तरप्रदेश को और 10 ट्रेनें पूर्वोत्तर को देकर कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने साफ कर दिया है कि जहां-जहां कांग्रेस कमजोर है वहां-वहां ट्रेन से मतदाताओं को लुभाया जाएगा। यूपीए का यह चुनावी रेल बजट, जिसे अंतरिम बजट कहना ज्यादा उचित है पिछले बजट की नकल प्रतीत होता है। बजट में किराया वृद्धि का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन खर्च निकालने के कुछ रास्ते तलाशे गए हैं। जैसे प्रीमियम ट्रेनों की घोषणा। ये ट्रेनें मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर काम करेंगी। मांग अधिक होगी तो टिकिटों की कीमत बढ़ जाएगी और मांग घटने पर कीमतें भी नीचे आ जाएंगी। इससे सीजन में ज्यादा कमाई हो सकेगी। जो 17 प्रीमियम ट्रेनें चलाई जा रही हैं वे ज्यादातर उन मार्गों पर रहेंगी जहां यात्रियों का आना-जाना बाकी मार्गों की अपेक्षा अधिक है। पूर्वोत्तर में अपनी जमीन खोने का खतरा उठा रही कांग्रेस ने अरुणाचल को भी रेल मानचित्र पर लाने की योजना बनाई है। इसी प्रकार असम, बंगाल जैसे राज्यों पर खास मेहरबानी की है। मुंबई, पुणे, अमृतसर और नई दिल्ली से गौरखपुर के लिए ट्रेनें चलेंगी। पश्चिम बंगाल को 10 ट्रेनें दी गई हैं। रेल बजट मात्र 20 मिनट में प्रस्तुत होना इस बात का प्रतीक है कि संसद में कामकाज न के बराबर हो रहा है और राजनीति भरपूर की जा रही है। नरेंद्र मोदी के गुजरात को भी 7 ट्रेनें दी गई है ताकि गुजरात में कांग्रेस के युवराज का रास्ता आसान हो सके। रेल मंत्री मल्लिका अर्जुन खडग़े ने मात्र 20 मिनट में रेल बजट भाषण समाप्त कर लिया क्योंकि हंगामा ज्यादा था। हंगामा अब लगातार बढ़ेगा।
बजट की समालोचना करने का समय शायद संसद के पास नहीं है। बजट पर चर्चा तभी संभव है जब उसे ध्यान से सुना जाए। बहरहाल रेल के आंकड़े वैसे ही हैं कोई परिवर्तन नहीं आया है। दुर्घटनाएं होती हैं। ट्रेनें लेट हो रही है, रेलों में लूटपाट मची है। यात्रियों की तादाद अधिक है और ट्रेनें कम हैं। बहुत से मार्गों पर ट्रेनें ठसाठस चलाई जाती है। मांग और आपूर्ति के सिद्धांत का पालन यात्रियों की संख्या के अनुरूप किया जाता तो ज्यादा फायदा रहता। बहरहाल ट्रेन अब राजनीतिक ट्रेक पर है और यह टे्रक चुनाव तक चलता ही रहेगा। जहां तक दुर्घटना का प्रश्न है इससे बचने के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं जैसे 2310 रेलवे क्रासिंग पर चौकीदार तैनात हैं और 3090 क्रासिंग बंद करके उन्हें पुलों अथवा अंडरपास में बदल दिया गया है। वर्षों से टे्रनों को दुर्घटना से बचाने के लिए जिस एंटी कोलिजन डिवाइज लगाने का दावा किया जा रहा है वह शायद अब लग सकेगा क्योंकि आग के कारण मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है और आगजनी रोकने के लिए ट्रेन में एलपीजी का उपयोग बंद कर दिया गया है अब पेंट्री कार इंडक्शन कुकिंग से खाना पकाएगी। यह कारगर होगा अथवा नहीं यह कहना मुश्किल है। कुछ गाडिय़ों में पैसेंजर इंफारमेशन डिस्प्ले भी लगेगा।  बहरहाल आम आदमी को थोड़ी राहत है क्योंकि न किराया बढ़ा है और न ही माल भाड़ा बढ़ा है। किराए में तो कमी भी करने का प्लान था, लेकिन सरकार को इसका कोई रास्ता नहीं सूझा। सामान्य श्रेणी का टिकट मोबाइल पर उपलब्ध कराके रेलवे ने पर्यावरण से सहानुभूति दिखाई है, लेकिन यात्रियों के मोबाइल फोन को देखते-देखते टीसी की आंखें दर्द कर सकती है। इसके अलावा भी कुछ विशेष कदम उठाए गए हैं जैसे टिकिट के लिए ऑटोमैटिक वेंडिंग मशीन। सफर में किसी भी स्थान पर भोजन की ऑनलाइन बुकिंग जैसे कुछ कदम रेल यात्रा को आरामदेह और हवाई यात्रा के जैसे मनोरंजक बनाने की दिशा में उठाए गए हैं।
उम्मीद यह थी कि रेलमंत्री सदन में बताएंगे कि रेल इतना पैसा कमाने के बाद भी घाटे में क्यों चल रही है और रेलवे की स्थिति इतनी दयनीय क्यों है, लेकिन रेल मंत्री को सुनने वाले सदन में थे ही नहीं। हंगामा चल रहा था और हंगामा भी कुछ ऐसा था कि लगा कहीं हाथापाई न हो जाए।

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