15-Feb-2014 10:46 AM
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पूर्वोत्तर के छात्र की दिल्ली में दिनदहाड़े हत्या ने कई सवाल खड़े किए हैं निदो तानिया नामक इस छात्र की हत्या का कारण सामने आ चुका है। उसे सिर पर राड मारी गई और सीने में घूसें मारे गए। उसके दिमाग पर तथा छाती पर सूजन पाई

गई है। नस्लीय हिंसा का यह भयानक रूप है। भारत वैसे भी तमाम समुदायों में बंटा देश है। संसार की कोई भी मानव जाति ऐसी नहीं है जो भारत में निवास न करती हो। पूर्वोत्तर के मंगोलायड का चेहरा और नाक नक्श अक्सर उनके उपहास का कारण बनता है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बिलकुल सही कहा कि चपटी नाक वाले भारत के निवासी हैं। लेकिन दुख इस बात का है कि भारत के विकास में अभूतपूर्व योगदान देने वाले पूर्वोत्तर वासियों को भारत के दूसरे क्षेत्रों में अक्सर उपहास और हिंसा का सामना करना पड़ता है। पूर्वोत्तर की महिलाओं को सुलभÓ मानते हुए उनके विरुद्ध यौन हिंसा और यौन अपराध आम बात है। उन्हें छेडऩा और सताना महान कर्तव्य समझा जाता है। अक्सर उनके चरित्र को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। यह मान लिया जाता है कि पूर्वोत्तर की महिलाएं चरित्र की दृढ़ नहीं होतीं यही मनोवृत्ति उनके शोषण का कारण बनती है। दिल्ली में भी निदो तानिया इसी मानसिकता का कारण बन गया।
निदो तानिया सिर्फ उन्नीस साल का, दुबला-पतला लड़का था। एक निजी प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में फस्र्ट इयर का छात्र। जिसे 29 जनवरी को अचानक, दिल्ली के व्यावसायिक बाजार लाजपतनगर में, आठ दुकानदारों द्वारा पीट-पीट कर खत्म कर दिया गया। उसकी हत्या करने वालों में दो हत्यारे नाबालिग थे, ठीक उसी तरह, जैसे निर्भयाÓ बस बलात्कार कांड का सबसे जघन्य बलात्कारी भी नाबालिग था। उसने अपने बाल आजकल के युवाओं की तरह कलरÓ (रंगीन) कर रखे थे। वह दिल्ली की एक पनीर की दुकान में, पनीर या क्रीम-मक्खन खरीदने नहीं, बल्कि अपने किसी दोस्त का पता पूछने गया था। उसने अपने ऊपर की गयी टिप्पणी पर नाराज हो कर उस दुकान का शीशा तोड़ दिया। इसके लिए उसने दस हजार रुपयों का जुर्माना भर दिया और अपने हत्यारों के साथ समझौताÓ कर लिया। उसके पिता निदो पवित्र उसी राजनीतिक पार्टी के विधायक और परिवार तथा स्वास्थ्य कल्याण विभाग के संसदीय सचिव हैं, जिस पार्टी की सरकार अभी भी केंद्र में सत्ताधारी है। नीदो तानिया की हत्या कई गंभीर सवाल खड़े करती है। यह कोई एक आम आपराधिक वारदात नहीं है। यह एक गणराज्य के असफल हो जाने का एक गंभीर संकेत है। एक इमरजेंसी अलार्मÓ। अभी कुछ ही समय पहले अमेरिका के मशहूर अखबार वाशिंगटन पोस्टÓ ने एक सर्वेक्षण में दुनिया के उन दस सबसे मुख्य देशों में भारत को शिखर पर रखा है, जहां नस्ल, जेंडर (लिंग), सामुदायिक और जातीय असहिष्णुता सबसे अधिक है। एशिया का आर्थिक सुपर पावरÓ बनने और चंद्रमा तथा मंगल तक अपने उपग्रह भेजनेवाला, परमाणु क्लब का एक अहम सदस्य, मिसाइल टेक्नोलॉजी में संसार को चौंकानेवाला यह देश अपने मूल चरित्र में निहायत पिछड़ा हुआ, पूर्व-आधुनिक, मध्यकालीन सामंती समाज का एक कट्टर हिंसक देश कैसे बनता जा रहा है? इस पर सोचने की जरूरत है।
निदो तानिया की हत्या के कुछ ही दिन पहले, दक्षिण दिल्ली के उसी इलाके में, बाहर घूमने निकलीं मणिपुर की दो लड़कियों के जूते में, दो युवकों ने अपने पालतू कुत्ते का पट्टा बांध दिया था और जब डर कर वे लड़कियां चिल्लाने लगीं तो वे हंसने लगे और जब उनमें से एक लड़की ने कुत्ते को दूर रखने के लिए उसे पैर से ठोकर मारी तो उन्होंने उस लड़की को बाल पकड़ कर घसीटा और उसे चिंकीÓ, ङिांगा ला लाÓ, चाऊमिंगÓ कहते हुए गालियां दीं। उन लड़कियों की मदद में आये उत्तर-पूर्व के दो युवकों को उन्होंने मारा-पीटा। शिकायत करने पर भी पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं की। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इसलामिया विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महिला आयोग के एक संयुक्त सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि देश के महानगरों में उत्तर-पूर्व से आनेवाली 60 प्रतिशत महिलाएं नस्लवादी भेदभाव, अपमान और उत्पीडऩ का शिकार बनती हैं।
इन महानगरों में सबसे ऊपर है देश की राजधानी दिल्ली, जहां 81 प्रतिशत महिलाएं इस भेदभाव और अपमान का दंश ङोल रही हैं। उन्हें चिंकी, नेपाली, चीनी, चाऊमिंग तो कहा ही जाता है, उनसे यह अक्सर पूछा जाता है कि क्या तुम लोग कुत्ता और सांप खाते हो? इन सबका गंभीर पक्ष यह भी है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी ऐसे पूर्वग्रहों से ग्रस्त हैं। इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य मानद अतिथि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे थे। यह किस्सा कम रोचक नहीं है कि मणिपुर और मिजोरम के कुछ दर्शकों से सुरक्षा तथा अन्य सरकारी अधिकारी आकर बार-बार पूछ रहे थे कि क्या आप जापानी डेलिगेशन के सदस्य हैं? आगरा का ताजमहल देखने के लिए टिकट खरीदने वाले उत्तर-पूर्व के लोगों से पासपोर्ट मांगना तो एक आम घटना है।