15-Feb-2014 10:43 AM
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मध्यप्रदेश के मंत्रियों में से कुछ को तो सत्ता में रहने का अच्छाखासा अनुभव है और उनमें भी कुछ ऐसे हैं जो नए हैं, लेकिन उनके स्टाफ में मंत्री के यहां रहने की हर काबिलियत मौजूद है। मंत्री स्टाफ की यही काबिलियत शिवराज सिंह की जीरो टालरेंस नीति को धता बता रही है। सूचना है कि लगभग सारे मंत्रियों के पास अरसे से ऐसा स्टाफ मौजूद है जो कोई भी शासन हो मंत्री के निकट पहुंचने की जुगाड़ जमा ही लेता है। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि मंत्री स्वयं ही अनुभवी स्टाफ की तलाश करते हैं जो मंत्री बंगलों से लेकर उनके निजी स्टाफ में रहने का अनुभव रखते हों। यह अनुभव बहुत काम का है और यही कारण है कि मंत्रियों के यहां जमें इन अनुभवियों को डिगाने का साहस किसी का नहीं है। 5-5, 10-10 वर्षों से मंत्रियों के अग्रणी मोर्चे पर तैनात यह धुरंधर बीच में ही काम निपटाने के माहिर हैं और कुछ तो इस चालाकी से काम कर डालते हैं कि मंत्रियों को भी भनक नहीं लगती। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ मंत्रियों को उनके स्टाफ के कारण परेशानी भी उठानी पड़ी है, लेकिन इन्हें बदलें तो बदलें कैसे। मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले जीएडी को निर्देशित किया था कि मंत्रियों के पीए, पीएस की नियुक्ति बहुत सोच-समझकर होनी चाहिए। जीएडी ने भी कई छन्ने लगाने की कोशिश की, लेकिन ये इतने सूक्ष्मजीवी हैं कि हर छन्ने से बाहर आ गए। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के यहां काम कर रहे संतोष चतुर्वेदी सर्वेसर्वा हैं। उन्हें कोई डिगा नहीं पाया है। उमाशंकर गुप्ता यूं तो सख्त, ईमानदार और दबंग मंत्री होने का ढिंडोरा पीटते हैं, लेकिन उनके यहां जाने से स्टाफ भी झिझकता है। शायद उनकी दबंगई से लोग भय खाते होंगे पर नरोत्तम मिश्रा की उदारता का कोई ओर छोर नहीं है। उनके उत्तम आचरण के कारण वीरेंद्र पांडेय वर्षों से उन्हीं के आसपास जमे हुए हैं और सरकार ने उनके आदेश भी नहीं किए। परंतु वे ही सर्वेसर्वा हैं। उनके घर पर सबेरे से ही डॉक्टरों की लंबी कतार लग जाती है। गौरीशंकर शेजवार के यहां नियुक्त विनोद सूरी और बसंत बाथरे की नियुक्ति का आर्डर अभी गफलत में पड़ा हुआ है, पूर्व मंत्री करण सिंह वर्मा की नैय्या डुबाने वाले विनोद सूरी शेजवार को भी पहले हार का मुंह दिखा चुके हैं। क्योंकि मंत्री के व्यवहार से ज्यादा उसके स्टाफ का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। उसके प्रत्यक्ष उदाहरण विनोद सूरी हैं जो कइयों बार मंत्री के स्टाफ में रहे परंतु मंत्री एक टर्म से ज्यादा पूरा नहीं कर पाए।
मंत्री बदलते रहते हैं। पीए, पीएस नहीं बदलते और जब तक पीए, पीएस नहीं बदलेंगे सीएम का जीरो टालरेंस कैसे संभव होगा। अंतर सिंह आर्य के यहां राजीव सक्सेना नामक बाबू मंत्री का खास हैं, लेकिन अब बैलेंस बनाने के लिए सेंधवा से कोई ज्ञान सिंह आर्य भी पधार गए हैं। सुनने में आया है कि ये मंत्री के रिश्तेदार हैं। अंतर सिंह ने तो पिछली बार स्वेच्छानुदान की सारी राशि रिश्तेदारों को ही दिलवा दी थी, जिसमें एक विशेष सहायक की विशेष भूमिका थी। इसी प्रकार रामपाल सिंह के यहां पर भी दिलीप सिंह नामक एक अनुभवी की तैनाती हुई है जो कभी नागेंद्र सिंह के स्पेशल सेक्रेटरी हुआ करते थे। उन पर पीडब्ल्यूडी में रहते हुए अनियमितता का आरोप भी लगा है। राज घराने की यशोधरा राजे के यहां जमे हुए जैन ही महाराज को झेल पाते हैं बाकी कोई पीए, पीएस उनके यहां जाना पसंद नहीं करता कारण साफ है कि मंत्री किसी भी तरीके के स्टाफ के कारण अपनी बदनामी सहन नहीं कर सकती है। भूपेंद्र सिंह के यहां आरसी राय जल संसाधन से आए हुए हैं और हर तरह के संसाधन जुटाने में माहिर हैं। राजेंद्र सिंह सेंगर को मंत्रीजी का रिश्तेदार बताया जाता है। राय पहले पूर्व परिवहन मंत्री हरवंश सिंह के यहां रह चुके हैं। इन्हें परिवहन विभाग का अच्छाखासे अनुभव से पारंगत हैं। अभी इनके भी आदेश जीएडी ने नहीं किए हैं। गोपाल भार्गव अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर है, लेकिन उनके यहां भी जमें-जकड़े स्टाफ की बहुतायत है। सुनने में आया है कि कोई राय हैं जो बेहतर काम कर रहे हैं। आवेदन के लिए बाकायदा एक पेटी भी रखी हुई है अब इस पेटी में केवल आवेदन डाले जाते हैं या कुछ और किसे पता। यह तो खोलने वाला ही बता सकता है। कुंवर विजयशाह के यहां वर्षों से जमे हुए गुना कलेक्ट्रट के बाबू जेके राठौर का साथ देने के लिए खंडवा से कोई राठौर पधार रहे हैं। कुसुम मेहदेले के विभाग की नब्ज पर कोमल सिंह राजपूत की अच्छीखासी पकड़ है। किसी सिरफिरे ने राजपूत की प्रापर्टी की फोटो खींचकर ऊपर तक शिकायत कर डाली है, लेकिन मंत्री महोदया को इससे कोई मतलब नहीं है। कहने वाले तो कथित रूप से यह भी कहते हैं कि राजपूत ने पिछली बार मंत्री जी की पार्टनरशिप में दुकान भी खोलकर रखी थी। इसी कारण से राजपूत वह भी कोमल के आदेश भी नहीं हुए हैं। ऐसे ही राजघराने की मंत्री माया सिंह के यहां पर विजय शर्मा को पदस्थ किया है वह पूर्व में श्यामाशरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के यहां भी कार्य कर चुके हैं। आखिर माया सिंह को विजय शर्मा ही क्यों पसंद आए।
अपने खासमखास लोगों की पैरवी करने में मंत्री किस सीमा तक जा सकते हैं इसका श्रेष्ठ उदाहरण ज्ञान सिंह द्वारा की गई वह सिफारिश है जिसमें उन्होंने किसी एमएल आर्य को तैनात करने के लिए चिट्ठी भेजी थी। डिप्टी कलेक्टर एमएल आर्य सजायाफ्ता हैं उन पर अनियमितता का आरोप लग चुका है, लेकिन मंत्री महोदय को इससे क्या मतलब। जमें हुओ की जकडऩ कुछ इस कदर है कि मंत्रियों का मोह नहीं छूटता और यही मोह गाडिय़ों तथा तामझाम के प्रति भी है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का लाव लश्कर देखते ही बनता है। छोटे-मोटे उद्घाटन के लिए भी 10-20 गाडिय़ां आगे-पीछे न चलें तो मंत्रीजी की शान में गुस्ताखी हो जाएगी। यही हाल अन्य मंत्रियों का भी है। खासकर उन मंत्रियों का जिनके पास एक से अधिक विभाग हैं। उनके यहां गाडिय़ों की अच्छीखासी तादाद है चाहे वह जयंत मलैया हों, कैलाश विजयवर्गीय हो या नरोत्तम मिश्रा। जितने विभाग उतनी गाडिय़ां। न केवल गाडिय़ां बल्कि किराए की गाडिय़ां भी मंत्रियों के बेड़े में तैनात हैं। बताया जाता है कि मंत्रियों के यहां टैक्सियों का चलन है। ट्रेवल कंपनियों से टैक्सियां लेकर चलाई जाती हैं। जाहिर सी बात है इन टैक्सियों में सरकारी लोग बैठते है। जिनकी गोपनीय बातें बाहर भी आ जाती हैं। सरकार को मंत्री और स्टाफ के लिए सिर्फ सरकारी गैरेज की ही गाड़ी लगाना चाहिए जिसमें पूरा लाव लश्कर सरकारी हो।