15-Feb-2014 10:42 AM
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शिवराज कैबिनेट के दो वरिष्ठ सहयोगी। एक मुख्यमंत्री की आंखों का तारा तो दूसरा संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का दुलारा। एक की वाणी में शहद टपकताÓ है तो दूसरा ठनठोक बोलने वाला। भूमिका इसलिए कि शिव के ये दोनों गणÓ अपने रिश्तेदारों को लेकर कथित तौर पर सामने आ गए। पूरा वाकया बेहद दिलचस्प और खासा चौंकाने वाला है। सबसे पहले दोनों काबीना सहयोगियों से परिचयÓ जरूरी है सो पहले इन्हें जानÓ लीजिए। एक हैं मध्यप्रदेश सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य महकमे के मंत्री नरोत्तम मिश्रा और दूसरे हैं उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता। इनके बीच क्यों ठनीÓ और मामला कैसे सुलटाÓ, अब उसकी बात। उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता के एक कथित रिश्तेदार डॉक्टर दीपक अग्रवाल का तबादला नरोत्तम मिश्रा ने किया। जेपी अस्पताल में पदस्थ अग्रवाल को सिविल अस्पताल बैरागढ़ स्थानांतरित किया गया। स्वास्थ्य विभाग ने अग्रवाल के तबादले का आदेश 4 दिसंबर 13 को जारी किया। बरसों से जेपी अस्पताल में जमे अग्रवाल ने तबादला निरस्त कराने की जुगत लगाई। उमाशंकर गुप्ता ने भी नरोत्तम मिश्रा और विभाग के आला अफसरों को फोन मिलाएÓ मगर बातÓ नहीं बनी।
उच्च शिक्षा मंत्री ने छड़ीÓ घुमाई तो उसकी जदÓ में नरोत्तम मिश्रा के भाई आनंद मिश्रा आ गए। मूल रुप से शिक्षक आनंद मिश्रा जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में रजिस्ट्रार बने बैठे थे। भाई से बेहद मलाईदार और रुतबे वाले पदों में शुमार होने वाला रजिस्ट्रार पद छिना तो नरोत्तम मिश्रा सक्रिय हुए। हालांकि कार्रवाई अकेले आनंद मिश्रा के खिलाफ नहीं हुई। उमाशंकर गुप्ता उच्च शिक्षा महकमा मिलने के बाद ही जता चुके थे कि वे इस महकमे में ढर्राशाही नहीं चलने देंगे। डेपुटेशन से लेकर युक्ति-युक्तकरण और तमाम अव्यवस्थाएं खत्म करने की मुहिम में वे जुटे हैं। पचास से ज्यादा डेपुटेशन उन्होंने एक झटके में खत्म किए। उनकी इस कार्रवाई से हड़कंप मचा हुआ है। बहरहाल फरवरी महीने की शुरूआत में डॉक्टर दीपक अग्रवाल को स्वास्थ्य महकमे ने राहतÓ प्रदान कर दी है। हालांकि उनका तबादला निरस्त नहीं किया गया है, लेकिन बैरागढ़ सिविल अस्पताल स्थानांतरण के आदेश को संशोधित करते हुए उनकी पदस्थापना काटजू अस्पताल भोपाल में कर दी गई। इधर उमाशंकर गुप्ता भी नरोत्तम मिश्रा के भाई के मामले में नरम पड़ गए। गुप्ता ने आनंद मिश्रा समेत कुछ प्रभावशाली शिक्षकों को बख्श दिया। साफ शब्दों में बात करें तो डेपुटेशन पर बने आनंद शर्मा सहित कतिपय प्राध्यापक और सहायक प्राध्यापकों को फिलहाल उनके पुराने पदस्थापना स्थल पर बने रहने संबंधी आदेश उमाशंकर गुप्ता ने दे दिए।
उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता की मुहिम की जद में वरिष्ठ आईएएस अफसर अनुराग जैन भी आए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लंबे समय तक सचिव रहे जैन पिछले बरस डेपुटेशन पर दिल्ली गए हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय में जैन की पोस्टिंग है। जैन की पत्नी नमिता जैन उच्च शिक्षा महकमे में होम साइंस की प्रोफेसर हैं। जैन के दिल्ली जाने के पहले तक वे एमएलबी कॉलेज में पदस्थ थीं। जैन दिल्ली गए तो पत्नी को मध्यप्रदेश भवन में ओएसडी बनवाकर ले गए। गुप्ता ने अनुराग जैन की पत्नी नमिता जैन की सेवाएं सामान्य प्रशासन विभाग से वापस मांग ली हैं। फरवरी के पहले सप्ताह में विभाग ने इस बारे में बाकायदा आदेश भी जारी कर दिया। अब देखने वाली बात यह होगी कि गुप्ता के आदेश का पालन हो पाता है या अनुराग जैन उच्च शिक्षा महकमे के आदेश को धता बताने में कामयाब होते हैं।
ओएसडी बनने का शौक है प्रोफेसरों को
मध्यप्रदेश में कुछ दुर्लभ पाठ्यक्रमों के प्रोफेसरों को ओएसडी यानी विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी बनने का शौक कुछ इस कदर लगा है कि प्रोफेसरी छोड़कर ओएसडी बनने में ज्यादा ही आनंद आता है। हायर एज्यूकेशन के जिन 39 उच्च शिक्षित प्रोफेसरों, लेक्चररों को विभिन्न विभागों में ओएसडी बनाकर पदस्थापना की गई है उन विषयों के जानकार शिक्षकों की कमी मध्यप्रदेश में शिद्दत से महसूस की जा रही है, लेकिन ये सारे प्रोफेसर कहीं न कहीं बेहतर कनेक्शन रखने के कारण अपने मूल कर्तव्य शिक्षा से विमुख हैं और विशेष कर्तव्य निभाने के लिए विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी बनने में अपना गौरव समझते हैं। ऐसे प्रोफेसरों की लंबी लाइन है। जंतु विज्ञान के महेंद्र सिंह रघुवंशी मई 2004 से ओएसडी बने हुए हैं। आरके विजय, राकेश श्रीवास्तव, सर्वदमन सिंह, अखिलेश कुमार शर्मा, आनंद सिंह, अनिरुद्ध सिंह यादव, अनुज हंदेत, मनीष दुबे, रामकृष्ण श्रीवास्तव, एसके पारे, विनोद कुमार शुक्ला, उमेश कुमार मिश्रा, अनिल शर्मा, डीके गुप्ता, गिरीश शर्मा, एसएन दीक्षित, किशोर जॉन, राकेश सिंह चौहान, मधुर तिवारी, पवन तिवारी, टीआर नायडू, प्रभात पांडे, आरके गोस्वामी, रमेश जैन, इंद्रेश मंगल, एचएस त्रिपाठी, संजय तिवारी ये सभी विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं। इनके अतिरिक्त कुछ प्रोफेसर, लेक्चरर दूसरे पदों पर स्थापित हैं। कुल मिलाकर लुब्बे लुआब यह है कि शिक्षण के लिए नियुक्त यह सब लोग शिक्षणेत्तर गतिविधियों में संलग्न है। देश में शिक्षकों का भारी अभाव है। मध्यप्रदेश में तो वैसे भी बहुत से पाठ्यक्रमों में शिक्षकों की कमी है। कॉमर्स से लेकर साइंस पाठ्यक्रमों में शिक्षक तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं और हमारे उच्च शिक्षा विभाग के सुयोग्य शिक्षक किसी दूसरे ही काम में लगे हुए हैं। जाहिर सी बात है अपनी मन पसंद जगह पोस्टिंग के लिए यह व्यवस्था अपनाई गई है, लेकिन इससे शिक्षा की क्या दुर्दशा हो रही है अंदाज लगाया जा सकता है। मध्यप्रदेश में महाविद्यालयों में लगभग 2000 शिक्षकों के पद रिक्त हैं। जिनको लोकसेवा आयोग के माध्यम से भरने की प्रक्रिया जारी है। खास बात यह है कि उच्च शिक्षा विभाग में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी का पद मध्यप्रदेश शैक्षणिक सेवा (महाविद्यालयीन शाखा) भर्ती नियम 1990 के अनुसार स्वीकृत या सृजित नहीं है।